पंजाब में मायावती की रैली: सामाजिक मुद्दों का दबदबा

30 जनवरी, सोमवार की सुबह पंजाब के अख़बारों की पहले पन्ने पर दो खबरें प्रमुखता से छपीं. अरविन्द केजरीवाल का एक खालिस्तान समर्थक पूर्व ‘आतंकी’ के घर पर रात गुजारना और प्रधानमंत्री मोदी की रैली जिसमें वह यह कहते हैं कि पंजाब के चुनाव देश की सुरक्षा से जुड़े हैं. बसपा की रैली इन खबरों में खो गयी थी लेकिन सोमवार की दोपहर फगवारा में हुई बसपा की विशाल महारैली में मायावती ने प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण, पदोन्नति में आरक्षण, कमजोर तबकों पर अत्याचार रोकने के मुद्दों को उठाकर जता दिया कि बसपा पंजाब विधानसभा चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रही है.

mayawati Punjab Rally

लगभग 1 बजे पंजाब के दो बड़े शहर जालंधर और लुधियाना के पास फगवारा के अनाज मंडी वाले मैदान में मायावती का भाषण शुरू हुआ. रैली में पूरे पंजाब से लगभग एक लाख लोग आए थे जिसमें महिलाओं की संख्या लगभग आधी थी. रैली मंच के पृष्ठभूमि में लगे बैनर पर गुरुमुखी पंजाबी में ‘विशाल महारैली’ बड़े अक्षरों में लिखा था और मायावती की बड़ी तस्वीर के साथ ही ज्योतिबा फुले, छत्रपति शाहू जी महराज, श्री नारायणा गुरु, डॉ भीमराव आंबेडकर और कांशीराम की तस्वीरें लगी थी. आयोजन स्थल के प्रवेश द्वार पर बसपा के संस्थापक कांशीराम के आदमकद बोर्ड लगे थे.

कांग्रेस-भाजपा की मिलीभगत
मायावती ने अपने भाषण की शुरुआत में ही भाजपा और कांग्रेस दोनों पर प्रहार करते हुए कहा कि प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण लागू किए बिना ही केंद्र और राज्य सरकारें अपने महत्वपूर्ण काम प्राइवेट कंपनियों और पूंजीपतियों को दे रही हैं. इस वजह से वंचित तबकों को आरक्षण का लाभ बहुत कम मिल पा रहा है. मायावती ने आगे कहा कि कांग्रेस और भाजपा ने आपसी मिलीभगत से दलितों और आदिवासियों के लिए सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण के बिल को लोकसभा में पास नहीं होने दिया. बसपा ने इस मुद्दे को लेकर संसद में और बाहर कड़ा संघर्ष किया है और इस मुद्दे पर बसपा केंद्र में सरकार में रही कांग्रेस और भाजपा दोनों से लड़ी है.

मायावती ने लोगों को आगाह किया कि भाजपा और आरएसएस भारतीय संविधान और आरक्षण की समीक्षा करने की आड़ में आरक्षण को पूरी तरह से खत्म करने की कोशिश में लगे हुए है. मायावती ने लोगों से अपील की कि वे भाजपा और उसकी सहयोगी अकाली दल को वोट न दे, ये पार्टियां मिलकर आरक्षण को खत्म कर देंगी. मायावती ने अपने भाषण में सच्चर समिति की रिपोर्ट की बात भी उठाई और कहा कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही इस कमेटी की सिफारिशों को लागू नहीं किया.

बेरोजगारी, गरीबी और महंगाई के मुद्दों पर बात करते हुए मायावती ने कहा कि केंद्र सरकार की गलत आर्थिक नीति का खामियाजा पंजाब के लोगों को भी भुगतना पड़ा है. उन्होंने कहा कि सपा ने शुरू से केंद्र सरकार पर दबाव डाला है कि ऐसी आर्थिक नीति लायी जाए जिससे सिर्फ कुछ पूंजीपतियों का विकास होने की जगह आम आदमी का विकास होना चाहिए.

Mayawati Punjab rally

सर्वसमाज की बात लेकिन दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों पर जोर
मायावती ने उत्तर प्रदेश में अपने चार बार के कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाई जिसमें सर्वसमाज का ख्याल रखा गया था, लेकिन उसमें से कमजोर वर्ग के लोग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समाज का विशेष ख्याल रखा गया. गांवों के विकास के साथ-साथ शहरीकरण को लेकर योजनाओं में कमजोर तबके जैसे दलित और पिछड़े वर्ग की बस्तियों के विकास पर विशेष ध्यान दिया गया. मायावती ने विकट परिस्थितयों में भी सांप्रदायिक दंगे न होने देने को अपने कार्यकाल और कानून व्यवस्था की सबसे बड़ी उपलब्धि बताई.

मायावती ने पंजाब में बेरोजगारी और नशे पर बात करते हुए कहा कि अगर बसपा की सरकार आती है तो पंजाब से नशे के धंधे को जड़ से खत्म कर दिया जाएगा और पंजाब के बेरोजगार युवाओं को सरकारी और प्राइवेट सेक्टर में रोजगार मिलेगा.

अच्छे दिन के वादों से लेकर नोटबंदी के अंजाम तक
मायावती ने कहा कि बसपा बाकि पार्टियों की तरह चुनावी घोषणापत्र जारी नहीं करती है क्योंकि बसपा उन दूसरी पार्टियों की तरह कहने नहीं बल्कि करने में ज्यादा विश्वास करती है. मायावती ने दावा किया कि बिना पूरी तैयारी के नोटबंदी वाले फैसले ने देश के लगभग 90 प्रतिशत गरीब, मजदूरों, किसानों और मध्यवर्ग को तोड़कर रख दिया है.

उन्होंने आगे कहा कि भाजपा ने नोटबंदी का फैसला लेने से पहले अपनी पार्टी, वरिष्ठ नेताओं और चहेते बड़े-बड़े पूंजीपतियों का अरबों-खरबों का काल धन सफ़ेद करवा लिया था. मायावती ने यह अपील की कि देश की पीड़ित जनता को इस बात को ध्यान में रखकर भाजपा, मोदी और इनकी सहयोगी पार्टी अकाली दल को इसकी सजा इसी चुनाव में देना बहुत जरुरी है वरना आगे चलकर जनता को इससे भी ज्यादा परेशानियों को झेलना पड़ सकता है. मायावती ने लोगों को रोहित वेमुला पर हुए अत्याचार और उना आन्दोलन की भी याद दिलाई.

बसपा ने पंजाब की सभी 117 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. पंजाब में बसपा का चुनावी रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है. पिछले दो विधानसभा चुनावों में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पायी थी. बीते विधानसभा चुनाव में बसपा कई सीटों पर तीसरे नंबर पर रही थी लेकिन पिछले 5 साल में काफी कुछ बदला है. खासकर पिछला एक साल रोहित वेमुला की मौत और उना घटना के बाद आंबेडकरवादी आंदोलनों के उभार का साल रहा है. पंजाब के दोआबा और माझा क्षेत्र में बसपा के मजबूत रहने के आसार हैं. इस बात की प्रबल संभावना है कि पंजाब चुनाव में किसी भी पार्टी को सरकार बना पाने के लिए बहुमत नहीं मिल पाएगा. ऐसी स्थिति में बसपा की भूमिका महत्त्वपूर्ण  हो सकती है.

[अतुल आनंद सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज, नई दिल्ली के रिसर्च फेलो हैं. उनका अध्ययन प्रवासी मजदूर, आर्थिक विकास और लोकतंत्र के वृहत्तर मुद्दों से जुड़ा है. उनसे speaktoatul@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.]

 
 

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