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प्राइम टाइम इंट्रो : जब हम सवाल नहीं पूछ पाएंगे, तो क्या करेंगे?

 
प्राइम टाइम इंट्रो : जब हम सवाल नहीं पूछ पाएंगे, तो क्या करेंगे ?

अथॉरिटी और पुलिस कब सवाल से मुक्त हो गए. अथॉरिटी का मतलब है जवाबदेही. बगैर जवाबदेही के अथॉरिटी या पुलिस कुछ और होती होगी. जब हम सवाल नहीं पूछ पाएंगे, कुछ बता नहीं पायेंगे तो क्या करेंगे.

दिल्ली में सरकारी स्कूलों को बंद करने का फैसला किया गया है. गुड़गांव के भी कुछ स्कूलों को बंद करने का फैसला किया गया है. हवा ही कुछ ऐसी है कि अब जाने क्या क्या बंद करने का फैसला किया जाएगा. हम जागरूक हैं. हम जानते भी हैं. आज बच्चा बच्चा पीएम के साथ साथ पीएम 2.5 के बारे में जानने लगा है. मगर हो क्या रहा है. इस सवाल को ऐसे भी पूछिये कि हो क्या सकता है. अभी अभी तो रिपोर्ट आई थी कि कार्बन का भाई डाई आक्साईड का हौसला इतना बढ़ गया है कि अब वो कभी पीछे नहीं हटेगा. दिल्ली की हवा आने वाले साल में ख़राब नहीं होगी बल्कि हो चुकी है. अब जो हो रहा है वो ये कि ये हवा पहले से ज़्यादा ख़राब होती जा रही है. दरअसल जवाब तो तब मिलेगा जब सवाल पूछा जाएगा, सवाल तो तब पूछा जाएगा जब नोटिस लिया जाएगा, नोटिस दिया नहीं जाएगा.

आपने नचिकेता की कहानी तो सुनी ही होगी. बालक नचिकेता की कहानी हमें क्यों पढ़ाई गई. नचिकेता के सवालों ने उसके पिता वाजश्रवा को कितना क्रोधित कर दिया. क्रोध में वाजश्रवा ने नचिकेता को यमराज को ही दान कर दिया. नचिकेता ने देख लिया कि पिता सब कुछ दान देने के नाम पर अपने लोभ पर काबू नहीं पा रहे हैं. अच्छी गायों की जगह मरियल और बूढ़ी गायें दान में दे रहे हैं. नचिकेता हैरान रह जाता है. सोचता है कि पिता ने दुनिया को कहा कुछ, और कर कुछ रहे हैं. यह भ्रम नहीं टूटता अगर नचिकेता सवाल नहीं करता. नचिकेता पिता से बुनियादी सवाल करता है कि मुझे दान करना होगो तो किसे करोगे. ताम कस्मै माम दास्यसि? यानी पिता मुझे किसे दान करेंगे. वाजश्रवा को गुस्सा आता है और कहते हैं कि मृत्युव त्वाम दास्यामि. यानी जा मैं तुझे मृत्यु को दान करता हूं. याद रखियेगा, हज़ारों साल पहले की यह कहानी नचिकेता के बाप के दानवीर होने के कारण नहीं जानी जाती है, नचिकेता के नाम से जानी जाती है.

अथॉरिटी और पुलिस कब सवाल से मुक्त हो गए. अथॉरिटी का मतलब है जवाबदेही. बगैर जवाबदेही के अथॉरिटी या पुलिस कुछ और होती होगी. जब हम सवाल नहीं पूछ पाएंगे, कुछ बता नहीं पायेंगे तो क्या करेंगे.

मूक अभिनय को अंग्रेज़ी में माइम कहते हैं. इसकी अथॉरिटी कला की दुनिया में कितनी है मैं नहीं जानता लेकिन हम सबको माइम आर्ट के बारे में जानना चाहिए. यूपीएससी नहीं तो बीपीएससी में तो आ ही जाएगा कि भारत में माइम कला के उदभव और विकास की यात्रा पर लघु निबंध लिखें. कोलकाता के निरंजन गोस्वामी ने बताया कि 2500 साल पुराने नाट्य शास्त्र में भी मूक अभिनय का उल्लेख मिलता है. भारतीय मूक कलाकारों ने सब कुछ यूरोप से नहीं लिया है बल्कि बहुत कुछ अपनी परंपराओं से भी विकसित किया है. बल्कि दुनिया में जो टेकनिक अपनाई जाती है उसमें भारतीय असर ही ज्यादा है. बीबीसी के अनुसार कोलकाता से चुप्पी की आवाज़ नाम की एक पत्रिका भी छपती है जो कई देशों में पढ़ी जाती है. मूक अभिनय में आप संवाद मन में बोलते हैं ताकि दर्शक सुनाई देते हैं. मन की बात नहीं करने पर चेहरे पर भाव नहीं आता है. इस वक्त भारत में माइम की कई रिपोर्टरी कंपनी खुल गई है. कोलकाता में हर साल बीस पचीस टीमें आती हैं. आम तौर पर आप चार्ली चैपलिन के ज़रिये मूक अभियन को याद रखते हैं. आम तौर पर दुख और सुख को ही इसके ज़रिये व्यक्त किया जाता है. जैसे आप जब चार्ली चैपलिन को देखते हैं तो हंसी आती है मगर कलाकार के मन का भाव दुखी है.

आमतौर पर शुक्रवार के रोज़ फिल्मों की ही बात होती है, लेकिन माइम यानी मूक अभिनय की हम बात करेंगे. आज के माहौल में जब हवा ख़राब है, कार्बन कणों की मात्रा काफी बढ़ गई है तो क्यों न इन कलाकारों की सोहबत में हम आज की शाम गुज़ारें और महसूस करें कि जब हमारा बोलना बंद हो जाएगा तो मन में तैरते हुए भाव चेहरे पर कैसे आएंगे. आप क्या करेंगे ताकि लोगों को पता चल सके कि क्या बोलना चाहते हैं. बोलने से याद आया कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने नोटिस भेजा है कि 9 नवंबर के दिन एनडीटीवी इंडिया का प्रसारण एक दिन के लिए स्थगित करना होगा. एनडीटीवी का जवाब है कि ये दुखद है कि सिर्फ़ एनडीटीवी को इस तरह निशाना बनाया गया. सभी चैनलों और अख़बारों में (पठानकोट हमले की) ऐसी ही कवरेज थी. (पठानकोट हमले पर) एनडीटीवी की कवरेज ख़ास तौर पर संतुलित रही. प्रेस को ज़ंजीरों में जकड़ने वाले आपातकाल के काले दिनों के बाद एनडीटीवी पर इस तरह की कार्रवाई असाधारण है. एनडीटीवी सभी विकल्पों पर विचार कर रहा है.

देश भर से हमें समर्थन मिल रहा है. आप सभी का शुक्रिया. नोटिस की सर्वत्र निंदा हो रही है. एनडीटीवी जल्द ही सूचित करेगा कि आगे का रास्ता क्या होगा. हम अपना काम उसी बुलंदी और इकबाल से करते रहेंगे. ख़ैर वैसे भी सवालों से घबरा कर बहुत लोग मुझसे दूर जा चुके हैं. तभी सोचा कि कुछ ऐसा किया जाए जिसमें सवालों का डर न रहे. दिन ढले न ढले दिल ज़रूर बहले. इससे पहले कि आप घर में भी मास्क पहनकर टीवी देखने लगें, हम आपके साथ कुछ बात करना चाहते हैं. रामनाथ गोयनका पुरस्कार के दौरान प्रधानमंत्री के भाषण के बाद धन्यवाद भाषण देते हुए इंडियन एक्सप्रेस के संपादक राजकमल झा ने एक बात कही थी. अगर कोई पत्रकार इस वक्त प्राइम टाइम देख रहा है तो राजकमल झा की इस बात को लिखकर पर्स में रख ले. अगर किसी पॉकेटमार ने उसका कभी पर्स उड़ा भी लिया तो राजकमल झा की इस बात को पढ़ कर हमेशा के लिए बदल जाएगा और एक अच्छा नागरिक बन जाएगा. वो बात ये है, 'इस साल मैं 50 का हो रहा हूं और मैं कह सकता हूं कि इस वक्त जब हमारे पास ऐसे पत्रकार हैं, जो रिट्वीट और लाइक के ज़माने में जवान हो रहे हैं, जिन्हें पता नहीं है कि सरकार की तरफ से की गई आलोचना हमारे लिए इज्ज़त की बात है.'

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