भारत सरकार के पूर्व सचिव ईएएस शर्मा ने पीएम नरेंद्र मोदी को लिखी एक खुली चिट्ठी में कहा है कि देश में काले धन पर पाबंदी के लिए नोटबंदी के अलावा तमाम और ठोस कदमों की जरूरत है।
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पीएम को संबोधित अपने पत्र में ईएएस शर्मा ने कहा है कि वह निजी कंपनियों को बेशकीमती जमीन के टुकड़े (खेती की और अन्य जमीनें) और खनिज सस्ते में देना बंद करें। इससे इन कंपनियों जनता के पैसे पर मोटा मुनाफा कमाने का मौका मिलता है। पत्र में फॉरन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) का भी हवाला देते हुए कहा गया है कि इस कानून का कोई और नहीं खुद भाजपा उल्लंघन कर रही है। चिट्ठी में कहा गया है कि काला धन राजनीतिक दलों के नेताओं और सार्वजनिक संस्थाओं के कर्ता-धर्ताओं की आलमारियों में ठूंसा हुआ है। इसलिए इनकी जांच के लिए विशेषज्ञ जांच एजेंसियों की जरूरत है। ये एजेंसियां ही इन संपत्तियों की जांच कर दोषियों को कटघरे में खड़ा कर सकती हैं। सिर्फ बड़े नोटों पर पाबंदी लगा कर काला धन खत्म नहीं किया जा सकता।
शर्मा की चिट्ठी का ब्योरा यहां पेश है –
प्रिय प्रधानमंत्री जी
प्रधानमंत्री जी, मुझे खुशी है कि आपने काले धन को खत्म करने के एक अहम कदम के तहत बड़े नोटों को बंद करने का साहसिक फैसला किया। इस तरह के कदम और प्रभावी हो सकते थे अगर आप बीमारी के लक्षणों का इलाज करने के बजाय इसकी जड़ को खत्म करने की कोशिश करते।
जापान के कोबे से आपने कहा कि आपकी सरकार देश में काला धन इकट्ठा होने के खिलाफ कदम उठाएगी। आपने कहा कि सरकार भ्रष्टाचार भी खत्म करने के कदम उठाएगी। आपके इस फैसले का स्वागत है।
इस संबंध में मेरे कुछ सुझाव हैं। अगर आपकी सरकार ने इन पर अमल किया तो उसकी विश्वसनीयता और बढ़ेगी।
1. निवेशकों को बुलाने के नाम पर ज्यादातर राज्य सरकारें सार्वजनिक जमीनों और बेशकीमती खनिजों को कॉरपोरेट कंपनियो को औने-पौने दाम पर सौंप रही है। सस्ती जमीन और खनिज हासिल करने वाली ये कंपनियां जनता के पैसों पर भारी मुनाफा कमा रही हैं। यह प्रवृति देश में काला धन पैदा कर रही है। आपको इस बारे में पहल कर देश में एक सहमति कायम करनी चाहिए ताकि इस तरह के नकारात्मक कदमों पर रोक लग सके। जहां तक संभव हो सरकारों को इन प्राकृतिक संसाधनों के ट्रस्टी की भूमिका निभानी चाहिए ताकि इनका संरक्षण हो। सरकारों को इन संसाधनों को लगभग मुफ्त में बांटने से परहेज करना चाहिए। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने खुद यह निर्देश दिया था कि प्राकृतिक संसाधनों को बाजार कीमतों से कम पर न बेचा जाए।
2. कंपनी एक्ट के तहत कंपनियां अपने मुनाफे का साढ़े सात फीसदी राजनीतिक दलों को दान कर सकती हैं। जबकि सामाजिक कार्यों के लिए कंपनियों के लिए दो फीसदी देना जरूरी है। कंपनी कानून के इस प्रावधान से क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा मिलता है। कंपनी कानून में मुनाफे का साढ़े फीसदी तक राजनीतिक चंदा देने का प्रावधान नकारात्मक है। इससे राजनीतिक दलों और कंपनियों में मिलीभगत को बढ़ावा मिलता है। कंपनियां सत्ताधारी पार्टी से इसका अनुचित लाभ लेती हैं। अगर आप राजनीतिक चंदे को बिल्कुल खत्म कर दें और चुनाव लड़ने के लिए स्टेट फंडिंग की व्यवस्था करने का कदम उठाएं तो चुनावी भ्रष्टाचार की जड़ों पर चोट होगी। आपको चुनावी फंडिंग की सफाई और बड़े खर्चे पर चुनाव लड़ने को रोकने के लिए निर्वाचन आयोग की मदद करनी चाहिए।
3. फॉरन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) राजनीतिक दलों और राजनीतिक नेताओं को विदेशी कंपनियों से चंदा लेने से रोकता है। लेकिन भाजपा समेत राजनीतिक दलों ने इस कानून का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किया है। मैंने दिल्ली हाई कोर्ट में इसके खिलाफ एक रिट याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 28-3-2014 सरकार को यह निर्देश दिया था कि एफसीआरए का उल्लंघन करने वाली राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ कार्यवाही की जाए और दोषी कंपनियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो। विदेशी कंपनियों से चंदा लेने से देश के हितों से समझौता होता और मुझे दुख है कि कांग्रेस और आपकी भाजपा दोनों ने यह अपराध किया है। आपकी पार्टी न एफसीआरए के संबंध में कोर्ट ऑर्डर को लागू करने में नाकाम रही बल्कि एक कदम आगे बढ़ कर उसने इस कानून में पिछली तारीखों से संशोधन भी कर दिया। इसमें वित्त विधेयक के जरिये पिछले दरवाजे से संशोधन किया गया।
दूसरे शब्दों में कहें तो आपकी सरकार को विदेशी कंपनियों से चंदा लेने से कोई परहेज नहीं है। भले ही ये कंपनियां देश हित के खिलाफ क्यों न हों। आपकी सरकार इस मामले में एक कदम आगे निकली और इसने इस तरह के आपत्तिजनक प्रावधानों को अनुमति देने के लिए एफसीआरए में ही पिछले दरवाजे से संशोधन कर दिया।
प्रधानमंत्री जी, जब तक आप इस नकारात्मक प्रावधान को खत्म नहीं कर देते तब तक लोग काले धन को खत्म करने के आपके कदमों पर विश्वास नहीं करेंगे।
मैंने 3-4-2016 को (इसकी प्रति आपको भी भेजी जा रही है) कैबिनेट सचिव को इस बारे में लिखा है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि उन्होंने इस पर कोई कदम उठाया है।.
4. प्रधानमंत्री जी, काला धन राजनीतिक नेताओं और और अन्य सार्वजनिक संस्थानों में काम करने वाले कर्ता-धर्ताओं के पास जमा है। लेकिन यह बेनामी संपत्ति और अलग-अलग राज्यों में रियल एस्टेट के तौर पर जमा है। आपको इन संपत्तियों का पता लगाने के लिए एक विशेषज्ञ जांच एजेंसी की जरूरत है। ताकि दोषियों को कानून के कठघरे में खड़ा किया जा सके। सिर्फ बड़े नोटों को बंद कर देने भर से काले धन पर रोक नहीं लगेगी।
5. जहां तक विदेशी बैंकों में जमा काले धन का सवाल है तो मैंने आपकी जांच एजेंसियों को कई मुख्यमंत्रियों के इस तरह के खातों की जानकारी दी है। लेकिन आपकी सरकार की एजेंसियों ने इस पर कोई कदम नहीं उठाया। इस संबंध में कोई कदम न उठाने से आपकी सरकार की ओर से उच्च पदों पर भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए उठाए गए कथित कदमों पर जनता को भरोसा नहीं हो रहा है। लोगों में इस मामले को लेकर आपकी सरकार के प्रति जो अविश्वास बढ़ रहा है उसे आपको खत्म करने के लिए कदम उठाने पड़ सकते हैं। लेकिन आपको यह काम सिर्फ नारेबाजी की से नहीं बल्कि ठोस कदमों के जरिये करना होगा।
6. भ्रष्टाचार को खत्म करने का एक रास्ता तो यह सकता है कि सरकार जो भी संप्रभु अनुबंध करे उसकी आत्मा की रक्षा हो। यानी सही मायने में इन अनुबंधों की भावनाओं को जमीन पर उतारा जाए। मैं अक्सर देखता हूं कि राजनीतिक संरक्षण में इन अनुबंधों का लगातार उल्लंघन होता है। अब जैसे तेल और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के प्रोडक्शन शेयरिंग कांट्रेक्ट को ही ले लीजिये। किस तरह इसका उल्लंघन हुआ है। इस तरह के उल्लंघन के लिए कड़े अनुबंध प्रबंधन की जरूरत है। यह अच्छे गवर्नेंस का एक अहम तत्व हो सकता है और इससे भ्रष्टाचार खत्म करने की दिशा में आप एक अहम संदेश दे सकते हैं।
7. आजकल राजनीतिक संरक्षण की आड़ में एक और भ्रष्टाचार बेतहाशा बढ़ा है। राजनीतिक संरक्षण की वजह से पीएसयू बैंकों की ओर कॉरपोरेट कंपनियों को बगैर ड्यू डिलिजेंस ( जांच-परख) के बड़े कर्ज दिए जा रहे हैं। इसके एक ज्वलंत उदाहरण के तौर पर ऑस्ट्रेलिया में आपकी मौजूदगी में अडाणी समूह को एक अरब डॉलर ऋण देने के लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का समझौता है। बिना ड्यू डिलिजेंस को अडाणी समूह को इतनी बड़ी राशि का ऋण देने का करार हो गया। हालांकि जनता के भारी दबाव में यह एएमयू रद्द कर दिया गया लेकिन पीएसयू बैंकों ने तथाकथित कैपिटल डेट रीस्ट्रक्चरिंग का खूब दुरुपयोग किया है। इस स्कीम की वजह से बड़ी मात्रा में पब्लिक फंड एनपीए बन गया। आरबीआई और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बीच हितों का टकराव देखने को मिला है। वित्त मंत्रालय और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बीच भी हितों का टकराव है। इस टकराव को खत्म किया जाना चाहिए। सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों में तुरंत सुधार के कदम उठाए जाने चाहिए।
मुझे उम्मीद है कि आप इन सुझावों पर अमल करें ताकि भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ उठाए गए आपके कदमों का सही परिणाम मिले।
मैं इस पत्र का बड़े दायरे में प्रसार इसलिए कर रहा हूं कि इससे अहम मुद्दे पर लोगों को बीच ज्यादा बातचीत और विमर्श हो।
लेखक भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं। उनसे eassarma@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।