Categories
Caste Dalit Bahujan Adivasi Freedom Minorities Politics

राधिका वेमुला ने रुपनवाल आयोग की रिपोर्ट खारिज की, एससी-एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई से बचने की कोशिश

रोहित की आत्महत्या के मामले में रूपनवाल जांच आयोग की रिपोर्ट लीपापोती के सिवा कुछ नहीं है। यह केंद्रीय मंत्रियों और वाइस चासंलर को दलित अत्याचार निरोधक कानून के तहत होने वाली कार्रवाई से बचाने की साजिश का हिस्सा है- राधिका वेमुला

Radhika Vemula

रोहित वेमुला खुदकुशी मामले की जांच करने वाले रूपनवाल आयोग की रिपोर्ट के खिलाफ लोगों में काफी रोष है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग के चेयरमैन पीएल पूनिया ने इस पर काफी आक्रोश जताया है। उन्होंने कहा है-
 

यह बेहद शर्मनाक है कि हाईकोर्ट के जज रहे (रूपनवाल) एक शख्स ने इस तरह का गैर पेशेवाराना व्यवहार किया है। रोहित मामले में बीजेपी देश में जो कहती आई है, उस पर मुहर लगवाने वाल कि लिए इस जज को नियुक्त किया गया था। रूपनवाल ने इस मामले में निर्णय देने के संदर्भों का अतिक्रमण किया है। रिपोर्ट में वह अपनी टिप्पणी में काफी आगे चले गए हैं। इस आयोग को वेमुला परिवार की जाति की पड़ताल नहीं करनी थी। रूपनवाल ने इस मामले में उन चीजों पर टिप्पणी की है जो निर्णय देने के उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर थीं। आयोग को सिर्फ दो पहलुओं ( इस मामले में सिर्फ दो टर्म ऑफ रेफरेंस) पर रिपोर्ट देनी थी। पहला- ये कौन सी परिस्थितियां थीं, जिनमें रोहित वेमुला ने आत्महत्या की। और यूनवर्सिटी में इस तरह के मामले में छात्र-छात्राओं के साथ भेदभाव की शिकायतों के दूर करने की सांस्थानिक व्यवस्था क्या थी। आखिर जज अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर क्यों गए?   
 

रोहित वेमुला मामले में आखिरकार मोदी सरकार की साजिश सामने आ ही गई। दलित स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या मामले में पूरे देश में उठ खड़े हुए आंदोलन से शर्मसार और चुप होने पर मजबूर हुई और इसे इंस्टीट्यूशनल मर्डर करार देने वाली सरकार हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वाइस चासंलर अप्पा राव को हटाने की स्टूडेंट्स की मांग पूरी करने में नाकाम रही। इसके बजाय वह अपने अड़ियल रवैये पर कायम रही। पहले दिन से इसने अपनी सारी ऊर्जा यह साबित करने में झोंक दी कि रोहित वेमुला दलित नहीं थे। दिवंगत रोहित वेमुला के बाद अब उनके परिवार खास कर रोहित वेमुला की मां को सरकार ने निशाने पर ले रखा है।

रोहित की आत्महत्या ने पूर देश को झकझोर दिया था। सरकार ने मामले की जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक आयोग बनाया, जिसकी रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि रोहित की मां खुद को दलित के तौर पर पेश कर रही हैं। रिपोर्ट में लिखा है- राधिका वेमुला दलित के तौर पर अपनी ब्रांडिंग कर रही हैं। इस मामले में सरकार का जो रवैया था उसे देखते हुए  सबरंगइंडिया ने पहले ही बता दिया था कि आखिरकार न्यायिक आयोग का निष्कर्ष क्या होगा।

लीपापोती
जांच आयोग की रिपोर्ट में रोहित के दलित स्टेटस पर सवाल उठाया। कहा- आत्महत्या के लिए वह खुद दोषी
रोहित की मां राधिका केरल में एक मीटिंग को संबोधित कर रही थीं। रोहित की आत्महत्या की जांच से जुड़े रुपनवाल आयोग की रिपोर्ट के बारे में उन्होंने वहीं से फोन पर सबरंगइंडिया से बात की। उन्होंने कहा- रूपनवाल जांच आयोग की रिपोर्ट केंद्रीय मंत्रियों और वाइस चासंलर को दलित अत्याचार कानून के तहत दर्ज मुकदमों से बचाने की साजिश है। सरकार के दो मंत्रियों स्मृति ईरानी, बंडारू दत्तात्रेय और हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वाइस चासंलर अप्पा राव पोडाइल के खिलाफ इस मामले में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में मुकदमे लंबित हैं। रिपोर्ट इन्हें इन मुकदमों से बचाने की दयनीय कोशिश के सिवा और कुछ नहीं है। हम इसके खिलाफ लड़ेंगे। मोदी सरकार के खिलाफ हमारा संघर्ष और मजबूत होगा।

इंडियन एक्सप्रेस ने आज (  6 अक्टूबर, 2016) की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जस्टिस रूपनवाल आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा है कि रोहित वेमुला की मां ने खुद को दलित के तौर पेश (ब्रांडेड) किया। रोहित वेमुला को हॉस्टल से निकाला जाना बिल्कुल वाजिब था। रोहित ने अपनी निजी हताशा में आत्महत्या की थी और उसके साथ कोई भेदभाव नहीं हुआ था। इस मामले में दोनों केंद्रीय मंत्रियों- बंडारू दत्तात्रेय और स्मृति ईरानी के बारे में कहा गया है कि दोनों सिर्फ अपना काम कर रहे थे। उनका हैदराबाद सेंट्रल यूनवर्सिटी के अधिकारियों पर कोई दबाव नहीं था। 

यह रिपोर्ट स्थानीय कलेक्टर और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग की रिपोर्ट की जांच के बिल्कुल उलट है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग के चेयरमैन पीएल पुनिया ने कहा था – रोहित दलित था। इस मामले में दलित अत्याचार निरोधक कानून के तहत कार्रवाई अनिवार्य है।

रोहित की मौत के 11 दिन बाद यानी 28 जनवरी 2016 को इसकी जांच के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक सदस्यीय आयोग का गठन किया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज एके रुपनवाल की 41 पेज की रिपोर्ट का सार कुछ इस तरह है-

रिपोर्ट के मुताबिक जांच के तहत 50 लोगों की गवाहियां ली गईं। इनमें से ज्यादातर यूनिवर्सिटी के टीचर और स्टाफ थे। रूपनवाल ने यूनिवर्सिटी के पांच स्टूडेंट्स और कैंपस में रोहित के समर्थन में आंदोलन कर रहे छात्र-छात्राओं की ज्वाइंट एक्शन कमेटी के सदस्यों से बात की। हालांकि आश्चर्यजनक तौर पर रिपोर्ट ने यह कहा है कि भेदभाव रोकने वाले अधिकारी के नेतृत्व में काम कर रही है यूनिवर्सिटी की इक्वल ऑर्प्यूचनिटीज सेल (समान अधिकार) काम नहीं कर रही थी। ऑम्बुड्समैन के नेतृत्व में काम करने वाली इस सेल को ज्यादा प्रभावी बनाने की जरूरत है। उन्होंने इस बात की पड़ताल नहीं कि विश्वविद्यालय प्रशासन क्यों इसकी अनदेखी करता आ रहा था। जांच में जस्टिस रूपनवाल में इस पहलू की कोई पड़ताल नहीं की है।

इससे ज्यादा आश्चर्यजनक क्या हो सकता है कि रिपोर्ट में आत्महत्या का ठीकरा खुद उसके ऊपर फोड़ दिया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आत्महत्या के लिए वह खुद जिम्मेदार था। इसके लिए उसे किसी ने नहीं उकसाया। न यूनिवर्सिटी प्रशासन ने और न ही सरकार ने। जब इंडियन एक्सप्रेस ने रूपनवाल से उनकी जांच रिपोर्ट के निष्कर्षों के बारे में पूछा तो उन्होंने इस पर बात करने से इनकार कर दिया।

रोहित ने किन परिस्थितियों की वजह से आत्महत्या की। इस बारे में तथ्य क्या थे। हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स के साथ भेदभाव की शिकायतों को दूर करने के मैकेनिज्म क्या था और इसकी खामियों को दूर करने के लिए क्या किया जाना चाहिए था। इन सारे पहलुओं के बारे में रुपनवाल आयोग को जांच करनी थी। आइए देखते हैं कि जांच के निष्कर्ष क्या हैं।

रोहित की मां दलित नहीं
रूपनवाल ने विस्तार से रोहित की जाति पर सवाल उठाए हैं- चूंकि रोहित की परवरिश उनकी मां वी राधिका ने किया था। लिहाजा रिपोर्ट में यह स्थापित करने की कोशिश की गई है कि राधिका माला (अनुसूचित जाति) की नहीं हैं। राधिका ने रोहित को मिले कास्ट सर्टिफिकेट को सही ठहराने के लिए खुद को माला जाति का घोषित करवाया है। राधिका का कहना है कि उन्हें गोद लेने वाले मां-बाप अनुसूचित जाति के थे। लेकिन रुपनवाल आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि उनके इस दावे पर विश्वास करना कठिन है। अगर राधिका को गोद लेने वाले परिवार ने उनके असली मां-बाप का नाम नहीं बताया था तो फिर वे उनकी जाति के बारे में भी उन्हें कैसे बता सकते थे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि रोहित वेमुला की मां खुद को माला जाति का इसलिए बताती रहीं कि वह इसके आधार पर रोहित के लिए कास्ट सर्टिफिकेट हासिल करने में कामयाब रही थीं। यह सर्टिफिकेट उन्होंने एक पार्षद उप्पलपट्टी दानाम्मा ने दिया था, जिनके साथ वह डेढ़ साल तक रही थीं। रिपोर्ट में कहा गया है- मेरी निगाह में इस जाति प्रमाणपत्र का कोई महत्व नहीं है क्योंकि अनुसूचित जाति को मिलने वाले लाभ के लिए उन्होंने किसी तरह यह सर्टिफिकेट जुगाड़ किया था। सर्टिफिकेट उन्होंने एक पार्षद उप्पलपट्टी दानाम्मा ने दिया था जिसके साथ राधिका डेढ़ साल तक रही थीं।

रिटायर्ड जज ने अपनी रिपोर्ट में राधिका की ओर से अपने छोटे बेटे राजा चैतन्य कुमार की अनूसूचित जाति के दर्जे के समर्थन में बर्थ सर्टिफिकेट हासिल करने के लिए 2014 में किए गए आवेदन का भी हवाला दिया है। उस समय उन्होंने कहा था कि वह वढेरा जाति की हैं। वढेरा पिछड़े वर्ग की जाति है। रिपोट में कहा गया है कि रोहित को बगैर ठीक से जांच के सर्टिफिकेट जारी कर दिया गया। चूंकि रोहित मां माला जाति की नहीं हैं इसलिए उन्हें जारी किया गया जाति सर्टिफिकेट प्रामाणिक नहीं है।
 रोहित के भाई राजा ने इस जांच रिपोर्ट के निष्कर्षों को खारिज करते हुए कहा है – हम हमेशा दलितों की तरह रहे। दलित समुदाय में हमारी परवरिश हुई। हां मेरे पिता जरूर पिछड़ी जाति से थे। लेकिन अपने अनुभव से हमने यही जाना है कि हम दलितों की तरह ही जिंदगी जिये। अब तक की पूरी जिंदगी में हमने भेदभाव का सामना किया है। रोहित ने भी आत्महत्या से पहले लिखी अपनी चिट्ठी में इसका जिक्र किया है।

राजनीतिक दखल नहीं
रिपोर्ट ने यह बात नकारी है कि रोहित के साथ कोई भेदभाव हुआ था। उसने इस बात से भी इनकार किया है कि रोहित को राजनीतिक दबाव में हॉस्टल से निकाला गया था। आयोग ने इस निष्कर्ष के लिए यूनिवर्सिटी के नौ सदस्यीय प्रॉक्टरियल बोर्ड की उस अंतरिम रिपोर्ट को  आधार बनाया है, जिसमें रोहित वेमुला, सुशील कुमार और अन्य चार बर्खास्त छात्रों को कड़ी चेतावनी देने की बात कही गई थी। यह रिपोर्ट 12 अगस्त 2015 को जमा की गई थी। जबकि दत्तात्रेय ने स्मृति ईरानी को 17 अगस्त 2015 को चिट्ठी लिखी थी । इसलिए दत्तात्रेय की चिट्ठी के इस अंतिम रिपोर्ट पर असर का सवाल ही नहीं उठता। इसके लिए इस बात पर विश्वास करने को कोई आधार नहीं बनता कि नौ सदस्यीय बोर्ड की ऐसी रिपोर्ट राजनीतिक दबाव से हासिल की जा सकती है। नौ लोग एक साथ कैसे प्रभावित हो सकते हैं। राजनीतिक हो गैर राजनीतिक, नौ लोग सीधे एक व्यक्ति के नियंत्रण में कैसे हो सकते हैं।

इसके साथ यह भी कहा गया है कि मामले की नए सिरे से जांच करने वाली हैदराबाद यूनवर्सिटी की एग्जीक्यूटिव काउंसिल पर भी कोई राजनीतिक दबाव नहीं था। उसने स्वतंत्र जांच की। एचसीयू (हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी) का वेमुला और उसके साथियों का हॉस्टल से निकाले जाने का फैसला बिल्कुल वाजिब था और प्रॉक्टोरियल बोर्ड की यूनिवर्सिटी से पूरी तरह निलंबन की सिफारिश की तुलना में काफी उदार था। जहां तक स्थानीय बीजेपी एमएलसी रामचंद्र राव और कैबिनेट मंत्री बंडारू दत्तात्रेय और स्मृति ईरानी के हस्तक्षेप का सवाल है तो वे सिर्फ अपना काम कर रहे थे। जनप्रतिनिधि होने के नाते राव ने कैंपस में हो रही राजनीति और छात्रों के बीच संघर्ष की बात यूनिवर्सिटी अधिकारियों के सामने उठाई थी। बंडारू उस समय श्रम और रोजगार मंत्री थे और उन्होंने सिकदरांबाद का सांसद होने के नाते स्मृति ईरानी को मामले को देखने की चिट्ठी लिखी।

आत्महत्या के लिए निलंबन जिम्मेदार नहीं
रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि रोहित और उसके साथियों के हॉस्टल से निलंबन का मामला आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में लंबित था इसलिए वेमुला की आत्महत्या के लिए निलंबन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। सुसाइड नोट से जाहिर होता है कि रोहित की अपनी समस्याएं थीं और वह अपने दुनियावी मामलों से खुश नहीं था। वह हताशा में जी रहा था और इसकी वजहों के बारे में उसे ही पता होगा। रोहित ने लिखा था- प्यार दर्द, जिंदगी और मृत्यु को समझने की कोई जल्दबाजी नहीं है। इससे पता चलता है कि वह अपने आसपास की गतिविधियों से खुश नहीं था। उसने लिखा कि बचपन से लेकर अब तक वह अकेला रहा है और उसकी कभी तारीफ नहीं हुई। उसने सुसाइड के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया। अगर वह यूनिवर्सिटी प्रशासन से नाराज होता तो उसका खास तौर पर जिक्र करता, जिम्मेदार ठहराता या इसका संकेत देता। इसका मतलब यह कि यूनिवर्सिटी की परिस्थितियां सुसाइड के लिए जिम्मेदार नहीं थीं। चिट्ठी से जाहिर होता था कि वह खुश नहीं था और उसने अपनी हताशा में आत्महत्या की है।

आयोग ने रोहित की ओर से 18 दिसंबर, 2015 को यूनिवर्सिटी के वाइस चासंलर को लिखी चिट्ठी में दलित छात्रों के साथ भेदभाव का हवाला देकर साइनाइड और रस्सी मुहैया कराए जाने की जो मांग की थी उसे तवज्जो नहीं दी है। वास्तविकता यह है रोहित ने इस चिट्ठी के एक महीने बाद खुदकुशी की। रुपनवाल कहते हैं कि रोहित की चिट्ठी में दिखा गुस्सा उसकी आत्महत्या का कारण नहीं हो सकता। रोहित ने जिस वक्त आत्महत्या की, उस समय तक उसका गुस्सा शांत हो गया होगा। हॉस्टल से निलंबन के फैसले को हाई कोर्ट में चैलेंज भी किया गया था। अप्पा राव को लिखी चिट्ठी की बातों का कोई जिक्र उसने अपने सुसाइट नोट में नहीं किया था। अगर रोहित के अंदर कोई गुस्सा होता तो सुसाइड नोट में इसका जिक्र होता।
2016 के जून महीने में कानून के तहत रोहित वेमुला और उसके परिवार के परिवार के सदस्यों की जाति तय करने के जिम्मेदार प्राधिकरण राजस्व विभाग ने स्पष्ट रूप से कहा था कि रोहित दलित था। सबरंगइंडिया ने इसकी जानकारी देते हुए इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट छापी थी।
 

रिपोर्ट का शीर्षक था-

रोहित वेमुला और उनका परिवार दलित है- कांतिलाल दांडे, जिलाधिकारी गुंटुर

राष्ट्रीय अनुसुचित जाति और जनजाति आयोग ने इसके बाद साइबराबाद पुलिस थाने को अनुसुचित जाति और जनजाति के खिलाफ अत्याचार निरोधक कानून के तहत बंडारू दत्तात्रेय और एचसीयू के वाइस चासंलर पी. अप्पा राव के खिलाफ मामला दर्ज कराने को कहा था।

उस दौरान आयोग के चेयरमैन पी एल पुनिया ने  द हिंदू से कहा था कि चूंकि गुंटर के कलक्टर ने रोहित को हिंदू माला जाति के तौर पर प्रमाणित किया है इसलिए तेलंगाना पुलिस को आरोपियों के खिलाफ (एससी-एसटी अत्याचार एक्ट के तहत) कार्रवाई करनी होगी। ऐसा न करना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन होगा।

इसके बाद मीडिया की खबरों में कहा गया था कि एनसीएससी ने अप्पा राव, दत्तात्रेय और पांच अन्य लोगों के खिलाफ साइबराबाद पुलिस को कार्रवाई के लिए निर्देश देगा। एनसीएससी की रिपोर्ट गुंटुर के कलक्टर की रिपोर्ट पर आधारित होगी। पुनिया ने कहा था कि चूंकि कलेक्टर प्रशासन के सर्वोच्च अधिकारी हैं, जो जाति सर्टिफिकेट जारी कर सकते हैं इसलिए  उनकी रिपोर्ट मान्य होगी। कलेक्टर की रिपोर्ट गुंटुर जिले के रेवेन्यू डिवीजनल ऑफिसर और सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट मजिस्ट्रेट गुंटुर के आंकड़ों पर दस्तावेजों पर आधारित है। दस्तावेजों के आधार पर रोहित वेमुला को गुंटुर के तहसीलदार ने 2005 में स्थायी कास्ट सर्टिफिकेट जारी किया था। रोहित की जाति माला के तौर पर दर्ज हुई है इसलिए पुलिस को अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निरोधक कानून के तहत कार्रवाई करनी होगी। एऩसीएससी को अधिकार है कि अगर इस कानून के तहत कार्रवाई नहीं हुई तो पुलिस से जवाब मांगे।

इस साल 25 फरवरी को तीस्ता सीतलवाड़ ने सबरंगइंडिया में रोहित वेमुला मामले में तत्कालीन एचआरडी मिनिस्टर स्मृति ईरानी की ओर से संसद में दिए गए वक्तव्य पर कई मुनासिब सवाल उठाए थे। इन सवालों में पूछा गया था कि क्या यह सही नहीं है कि भारत सरकार की दो मंत्रियों (दोनों महिला) समेत कई वरिष्ठ कर्ताधर्ताओं ने रोहित वेमुला की दलित पहचान की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए थे। क्या 17 जनवरी 2016 को रोहित की आत्महत्या के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को भारत सरकार ने उनकी असली जाति के बारे में पता करने का जिम्मा नहीं दिया था। ऐसा हुआ था कि नहीं। क्या यह कार्रवाई राजनीतिक नहीं थी। क्या भारतीय जनता पार्टी की हैदराबाद इकाई के उपाध्यक्ष नंदनम दिवाकार ने बंडारू दत्तात्रेय ( 10 अगस्त 2015) को गलत आरोपों के साथ चिट्ठी नहीं लिखी थी। यह चिट्ठी ईरानी को लिखी चिट्ठी के एक सप्ताह पहले लिखी गई थी और इसमें सुशील कुमार को झगड़े में आई चोटों के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया था। साथ ही यूनवर्सिटी में छात्रों के अंबडेकरवादी राजनीति के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया था।

इसके बाद 16 जून को टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा कि एससी-एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई में इसलिए देर हुई कि हैदराबाद पुलिस ने ही सुसाइड के मामले में जांच में देरी कर दी। यूनवर्सिटी फैकल्टी के एक हिस्से का कहना था कि एनसीएससी की हरी झंडी के बावजूद वाइस चासंलर से समय पर पूछताछ नहीं हुई।

रोहित की आत्महत्या के खिलाफ 22 मार्च को निकाले गए छात्रों के जुलूस का बदला लेने लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन ने दो प्रोफेसरों- केवाई रत्नम और तथागत सेनगुप्ता सस्पेंड कर दिया था। निलंबन का आदेश 13 जून को आया और उसके बाद 14 जून से लगातार प्रदर्शन शुरू हो गए थे। प्रशासन और मोदी सरकार ने इसका पूरा फायदा उठाया था क्योंकि उस समय तक छुट्टी की वजह से यूनिवर्सिटी में छात्र कम हो गए थे।

क्या यूनिवर्सिटी प्रबंधन अप्पाराव को बचाने लिए पुलिस के साथ मिलकर काम नहीं कर रहा था। स्टूडेंट्स और फैकल्टी के मेंबरों के बयान से साफ होता है कि रोहित मामले में त्वरित कार्रवाई के बजाय पुलिस ने ढीला रवैया अपनाया। इस मामले में पोडाइल आरोपी थे और उन्हें बचाने के लिए ऐसा किया गया। और यह सब एनसीएससी की उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए हरी झंडी के बावजूद हुआ।

रोहित के करीबी दोस्त प्रशांत डोंथा के मुताबिक एनसीएससी की बैठक के ब्योरे से पता चलता है कि उसने गुटुंर के अतिरिक्त जिलाधीश की संक्षिप्त रिपोर्ट के आधार पर दो-तीन सप्ताह पहले ही कार्रवाई का निर्देश दे दिया था। इसके बावजूद वाइस चासंलर से न तो पूछताछ की गई और उन्हें गिरफ्तार किया गया। उन्होंने उम्मीद जताई थी कि पुलिस जल्द ही उनसे एनसी-एक्ट के तहत पूछताछ करेगी। फैकल्टी मेंबरों का कहना था कुछ ताकतें पोडाइल को बचाने की कोशिश कर रही है। उनका कहना था कि पुलिस इस मामले में जानबूझ कर खींच रही है और कार्रवाई को धीमा करने के लिए कमजोर बहाने बना रही है।

Exit mobile version