राजस्थान के धौलपुर जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की ऐसी बदहाली है कि लोग देखते ही रह जाते हैं। जिले के सैपऊ स्वास्थ्य केंद्र का नजारा ये बताने के लिए काफी है कि वसुंधरा सरकार लोगों के स्वास्थ्य और इलाज के प्रति कितनी संवेदनहीन है।
सैपऊ स्वास्थ्य केंद्र में नीम के पेड़ के सहारे मरीजों का इलाज चल रहा है। इसी पेड़ पर मरीजों को चढ़ाई जाने वाली बोतलें लटकी रहती हैं और पेड़ के नीचे मरीज पड़े अपनी किस्मत को कोसते रहते हैं।
Hard-pressed medical staff have turned to two neem trees on the campus to nurse back to health a flood of fever-stricken patients. (HT Photo)
इस स्वास्थ्य केंद्र में 15 बिस्तर हैं, और 200 मरीजों के इनडोर
इलाज की सुविधा है, लेकिन चिकनगुनिया और अन्य बीमारियों से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ जाने के कारण मरीजों के भर्ती करने के लिए जगह नहीं है। हालत ये है कि स्वास्थ्य केंद्र के परिसर में लगे पेड़ों के नीचे ही मरीज पड़े हैं। दिन तो किसी तरह गुजर जाता है, लेकिन रात में दिक्कत और बढ़ जाती है। मरीज किसी तरह से अस्पताल में किसी कोने में लेटने की जगह ढूँढ़ते फिरते हैं।
दिक्कत केवल जगह की ही नहीं है, डॉक्टरों की भी कमी है। केंद्र में केवल तीन डॉक्टर हैं और दवाओं की भी कमी है। कुछ मरीज तो कामचलाऊ इलाज कराने के बाद इलाज कराने कहीं और चल दिए, लेकिन जिनके पास ज्यादा पैसा नहीं है, वो इसी हालत में रहने पर मजबूर हैं।
स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉ चरणजीत सिंह चौहान कहते हैं कि क्षमता से ज्यादा मरीज आ रहे हैं, जिनको लौटाया नहीं जा सकता।
स्वच्छ भारत मिशन की जोर-शोर से योजना चलने के बीच इस स्वास्थ्य केंद्र में साफ-सफाई की भी व्यवस्था नहीं है। मरीज और उनके परिजन खुले में ही शौच करने पर मजबूर हैं।
ये हालत केवल एक स्वास्थ्य केंद्र की नहीं है, पूरे राज्य की यही हालत है, लेकिन राज्य सरकार के एजेंडे में तो लगता है कि ग्रामीण चिकित्सा व्यवस्था है ही नहीं।
विकासखंड के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ वीरेंद्र भास्कर कहते हैं कि डॉक्टर तो अपने स्तर पर पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन दवाओं और सुविधाएँ मुहैया कराना तो सरकार की जिम्मेदारी है।