तेलंगाना में 12 जिलों में दो पुलिस अफसरों ने रेप पीड़िताओं पर एक सर्वे किया है। इस सर्वे के आंकड़े न केवल चौंकाने वाले हैं बल्कि कई तरह के सवालों का जवाब भी दे जाते हैं। मरी रामू नामक पत्रकार ने अंग्रेजी अखबार द हिंदू में इसके बार में जानकारी दी है। इस सर्वे के मुताबिक पिछले साल इन जिलों में दर्ज हुए 418 रेप पीड़िताओं में से तकरीबन 50 प्रतिशत पीड़िताएं दलित और आदिवासी समुदाय से थीं। इससे पता चलता है कि दलित-आदिवासी महिलाएं किस तरह शोषण और अत्याचार की शिकार हैं।
इस सर्वे के मुताबिक उनमें 45 प्रतिशत रेप पीड़िताएं पिछड़ी जाति (बैकवर्ड कास्ट) की थीं। अगर दलितों-आदिवासियों और पिछड़ी जाति की रेप पीड़िताओं की संख्या जोड़ दें तो यह करीब 94 या 95 प्रतिशत बैठता है। क्योंकि बाकी करीब 5.98 प्रतिशत रेप पीड़िताएं अन्य जातियों की बताई गई हैं। जाहिर हैं, वे अपर कास्ट की होंगी। इसके अलावा सर्वे यह भी बताता है कि करीब 80 प्रतिशत रेप पीड़िताएं गरीबी रेखा के नीचे वाली या बेहद गरीब थीं। इसके साफ बता चलता है कि रेप की शिकार होने वाली अधिकतर महिलाएं दलित-आदिवासी-पिछड़ी जाति की और गरीब थीं।
यह सर्वे से हम केवल तेलंगाना का ही नहीं बल्कि देश में भी रेप पीड़िताओं का अंदाजा लगा सकते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर 95 फीसदी भले न हों, लेकिन हकीकत यही मालूम पड़ता है कि रेप की शिकार मुख्यतया वंचित समुदाय की महिलाएं हैं। हालांकि मैं यह नहीं कह रही कि सवर्ण महिलाएं पीड़ित नहीं हैं पर वंचितों का बुरा हाल है। और यह सर्वे इस सवाल का भी जवाब दे देता है कि आखिर देश आखिर कुछेक ही रेप की घटनाओं पर आखिर क्यों डोलता है.
समाज, नेता और मीडिया ये सभी राजधानी दिल्ली में एक सवर्ण महिला के साथ रेप पर तो सरकार हिला देते हैं, बंगलुरू में छेड़खानी को लेकर खौलने लगते हैं पर अधिकतर मामलों में चुप रहते हैं। दरसअल अधिकतर मामलों में शिकार दलित-आदिवासी-पिछड़ी जाति और गरीब तबके की महिलाएं रेप की शिकार बनती हैं। क्या यह सर्वे सामाजिक और सरकारी सत्ता का लाभ ले रहे अपर कास्ट के दोहरे रवैये की ओर संकेत नहीं कर रहा है? वरना क्या वजह है कि वंचितों महिलाओं की ऐसी बदतर स्थिति पर देश चुप्पी क्यों साध जाता है।
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)
Courtesy: National Dastak