नई दिल्ली। हैदराबाद यूनिवर्सिटी के स्कॉलर रोहित वेमुला को जिस मंशा से विवि से निकाला गया था उसे पूरा करने में सरकार द्वारा तमाम तामझाम झोंक दिए गए। इसके बावजूद भी मामला दब नहीं पाया। अपने अधिकारों और आत्मसम्मान के लिए लड़ रहे रोहित वेमुला और उनके साथियों को एबीवीपी के छात्रों के इशारे पर पढ़ाई से वंचित कर दिया गया था। ये छात्र चुपचाप निष्काषन सहने के बजाय विवि की तानाशाही का विरोध करते रहे। लेकिन इन्हें इतना प्रताड़ित किया गया कि रोहित वेमुला को अपनी जान देनी पड़ी। इसके बाद न्याय की लड़ाई खत्म होने के बजाय बढ़ती गई।
अब आलम यह है कि रोहित वेमुला मनुवाद के खिलाफ जंग के आइकन बन चुके हैं। उनकी जंग ने उन्हें देश विदेश में पहचान दिला दी है। इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने लिखा है…...
किसी व्यक्ति या विचार का लोक यानी Folk में प्रवेश कर जाना ही दरअसल उसका अमर हो जाना है।
डॉ. रोहित वेमुला सोशल मीडिया से होकर किताब में पहुँचे और अब वे लोकसंगीत और नाटकों में नजर आ रहे हैं। कलाकार उनके नाम पर गाने लिख रहे हैं, जिन्हें गुनगुनाया जा रहा है। उनपर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बन रही है। नाटक खेले जा रहे हैं।
पिछले दिनों मुझे महाराष्ट्र के वर्धा में ऐसा ही एक नाटक देखने का मौक़ा मिला। डायरेक्टर और कलाकारों का आभार।
रोहित वेमुला का भूत RSS को लंबे समय तक चैन की नींद सोने नहीं देगा।
Courtesy: National Dastak