सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल यह साबित करने में किया गया कि रोहित वेमुला दलित नहीं थे और उनकी मां ने इस बारे में झूठ बोला है। राधिका वेमुला को केंद्र सरकार के इशारे पर लगातार अभद्रता, अपमान और लांछन का शिकार बनाया जा रहा है।
जनवरी महीने की 17 तारीख रोहित वेमुला की पहली पुण्यतिथि होगी। उनकी त्रासद आत्महत्या किसी सांस्थानिक हत्या से कम नहीं थी। रोहित की आत्महत्या ने पूरे देश को हिला दिया था। गम और गुस्से की लहर पूरे देश में फैल गई थी और उनके लिए न्याय मांगने के लिए लाखों लोग उठ खड़े हुए थे। रोहित के लिए देश भर में आंदोलन की मशाल लेकर चलने वालों की एक प्रमुख मांग विभिन्न विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों में दलित और आदिवासी छात्र-छात्राओं के साथ होने वाले भेदभाव और अत्याचार के खिलाफ बचाव और अधिकारों के लिए अलग से कानून लाने की थी। इन उच्च शिक्षा संस्थानों में अत्याचार और अन्याय की यह जो अपसंस्कृति है, उसके खिलाफ कानून लाने की मांग इस आंदोलन की प्रमुख मांग रही। एक और अहम मांग रोहित वेमुला की आत्महत्या के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई थी।
जिन लोगों के भेदभावपूर्ण कदमों से रोहित वेमुला को खुदकुशी करनी पड़ी उनमें हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के मौजूदा वाइस चासंलर अप्पाराव शामिल हैं। रोहित की खुदकुशी के बाद केंद्र सरकार की ओर से उन्हें छुट्टी पर जाने को कहा गया था। हालांकि यह कदम उन्हें सजा देने के लिए नहीं बल्कि बचाने के लिए उठाया गया था। मार्च में उन्हें फिर तैनात कर दिया गया।
इस बीच, वेमुला परिवार और खास कर रोहित की मां राधिका को बदनाम करने का लगातार अभियान चलाया गया। सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल यह साबित करने में किया गया कि रोहित वेमुला दलित नहीं थे और उनकी मां ने इस बारे में झूठ बोला है। इसके लिए उनके खिलाफ धोखाधड़ी का मामला बन सकता है। राधिका वेमुला को केंद्र सरकार के इशारे पर लगातार अभद्रता, अपमान और लांछन का शिकार बनाया जाता रहा है। लेकिन इस मामले पर विचार करने से पहले आइए एक बार पूरे मामले के बैकग्राउंड का जायजा ले लें।
रोहित पर दलित न होने का आरोप उनकी मौत के तीन दिन के भीतर खुद तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने अपनी बेहद आपत्तिजनक प्रेस कांफ्रेंस में लगाया था। यह 21 जनवरी का दिन था। उन्होंने खुद और अपने उन सहयोगियों के कदम का बचाव किया जिन्होंने रोहित और उनके पांच दलित साथी छात्रों के खिलाफ कार्रवाई का दबाव बनाया था। इन दलित छात्रों के खिलाफ कार्रवाई आरएसएस के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परषिद की शिकायत के बाद की गई थी।
ईरानी ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि रोहित वेमुला दलित नहीं थे। भाजपा ने रोहित के पिता ( जो अपनी पत्नी से अलग हो चुके हैं) को प्रेस कांफ्रेंस में पेश किया और उनसे कहलवाया कि वह ओबीसी समुदाय से आते हैं। रोहित की मौत को सात दिन भी नहीं हुए थे कि उनकी मां को अपना बचाव करना पड़ा और दुनिया के सामने अपनी त्रासदियों का खुलासा करना पड़ा। उन्हें यह बताना पड़ा कि वह एक दलित परिवार में पैदा हुई थीं, जो आप्रवासी श्रमिकों से ताल्लुक रखता था। उन्हें एक ओबीसी परिवार ने गोद ले लिया था। उन्हें अपने माता-पिता का कभी पता नहीं चला क्योंकि वे उसे छोड़ कर काम की तलाश में आगे निकल गए थे। उन्हें अपने दलित होने का पता भी दलितों को दी जाने वाली गाली को सुन कर पता चला। ये गालियां उस परिवार के एक बुजुर्ग देते थे, जो किसी दलित बच्चे को गोद लेने को कभी पचा नहीं पाए।
राधिका वेमुला को यह बताना पड़ा कि उनकी शादी एक ओबीसी परिवार में हुई है। उन्हें दुनिया को यह भी बताना पड़ा कि उनके पति ने उन्हें छोड़ दिया था। यह त्रासदी उनके साथ उस समय घटी जब उनके बच्चे बेहद छोटे थे। इसके बाद वह फिर उस मां-बाप के पास लौट गई थीं, जिन्होंने उन्हें गोद लिया था। परिस्थितियों ने उन्हें पति का घर छोड़ने के लिए मजबूर किया था। वह अपने दोनों बच्चों के साथ अकेले रह रही थीं। उन्होंने सिलाई के जरिये मिलने वाले थोड़े पैसों से अपने बच्चों को बड़ा किया। उन्हें यह भी बताना पड़ा कि जब खराब माली हालत की वजह से बच्चों के प्राइवेट स्कूल की पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र हासिल किया।
लेकिन सरकारी मशीनरी के पास न तो करुणा थी और न ही न्याय की भावना। सरकारी अधिकारी पूरी ताकत से यह साबित करने में जुट गए कि रोहित वेमुला दलित नहीं थे। अधिकारियों ने 12 फरवरी को राधिका वेमुला की बीमार मां यानी रोहित वेमुला की नानी तक पहुंच कर पूछताछ की। राधिका वेमुला की मां ने बताया कि उन्होंने एक दलित लड़की गोद ली थी। राधिका वेमुला की मां ने उन परिस्थितियों के बारे में भी बताया जिनकी वजह से उन्होंने एक दलित लड़की गोद ली थी। इसके बाद दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। कुछ लोगों का कहना था कि रोहित वेमुला की मौत और इसके बाद लांछनाओं और अपमान का तनाव वह झेल नहीं पाईं और उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। राधिका के ससुर ने भी बाकायदा शपथपत्र भर कर कहा कि उन्हें भी अपने बेटे की शादी के वक्त बताया गया था कि उनके बेटे की होने वाली दुल्हन एक दलित है। यह सारा बयान रिकार्ड में है। इससे केंद्र की ओर से फैलाए जा रहे झूठ का पर्दाफाश हो जाता है।
रोहित को गैर दलित साबित करने और उनकी मां को बदनाम करने की कोशिश यहीं नहीं रुकी। ईरानी ने रिटायर्ड जस्टिस एके रुपनवाल की एक सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया ताकि रोहित की मौत की परिस्थितियों और इसकी साजिशकर्ताओं को पता चल सके। कमेटी को शिकायत सुनने वाली कमेटी के कामकाज की समीक्षा करनी थी इसमें सुधार के उपाय सुझाने थे। इस साल अक्टूबर में रुपनवाल कमेटी की रिपोर्ट मानव संसाधन मंत्रालय को सौंप दिया गया। लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया गया। मीडिया में इसके चुनिंदा अंश लीक किए गए, जिनके मुताबिक रुपनवाल कमेटी की रिपोर्ट का चौथाई हिस्सा रोहित वेमुला की जाति बताने को समर्पित था। अगर ऐसा था तो आखिर किसके आदेश से रुपनवाल कमेटी ने रोहित की जाति की जांच की थी। रुपनवाल कमेटी में न तो रोहित वेमुला की जाति की जांच करने की योग्यता थी और न ही उसे यह अधिकार था। जाति प्रमाण पत्र खास अधिकारियों के जरिये ही जारी किए जाते हैं।
अगर एक क्षण को मान भी लिया जाए कि रोहित वेमुला का जाति प्रमाणपत्र गलत था तो भी रोहित की मौत से जुड़ा मामले को कैसे तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है। जब एबीवीपी ने रोहित को निशाना बनाया, तब वाइस चासंलर ने उसे दंडित किया। उसका स्कॉलरशिप रोक दिया और वह अपनी मां को पैसे नहीं भेज सके। जब उन्हें उनके कमरे से बाहर कर दिया गया तो क्या ये सब यह सोच कर नहीं किया गया कि रोहित वेमुला दलित हैं। रोहित के खिलाफ उनकी कार्रवाइयों को इसी कसौटी पर कसा जाएगा। बाकी चीजों से कोई वास्ता नहीं। रोहित की जाति की जांच एक सुविधाजनक सरकारी सोच थी। रोहित की जाति का जांच का कोई भी नैतिक और कानूनी अधिकार नहीं बनता। हमें यह अच्छी तरह मालूम है। साथ ही में हमें यह भी जानने की जरूरत है कि रोहित वेमुला के मामले को खत्म करने के लिए सरकारी एजेंसियां किस हद तक जाने को तैयार थीं।
इस साल 2 नवंबर को राधिका को गुंटुर के जिलाधिकारी के दफ्तर में बुलाया गया। राधिका अपने छोटे बेटे राजा के साथ गुंटुर में ही रहती हैं। कलेक्टर खुद दलित हैं। गुंटुर के जिलाधिकारी ने ही अपने पहले की जांच के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में रोहित वेमुला की जाति के स्टेटस के बारे में सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल की थी। इसमें रोहित वेमुला के दलित होने की पुष्टि की गई थी। इसके बाद जिलाधिकारी और उनके अधिकारियों के व्यवहार के पीछे क्या दबाव था और कौन बना रहा था।
राधिका को जिलाधिकारी के दफ्तर में यह दूसरा बुलावा था। रुपनवाल आयोग की रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद राधिका के छोटे बेटे राजा से जाति प्रमाण पत्र और शैक्षणिक योग्यता से जुड़े दस्तावेज मांगे गए। उसने ये जमा करा दिए। जब राधिका पिछले महीने जिलाधिकारी के दफ्तर पहुंचीं तो देखा बच्चों के पिता भी वहां मौजूद हैं। वहां दस अधिकारी मौजूद थे। राधिका से उस दफ्तर में दोपहर दो बजे से शाम पांच बजे तक लगातार तीन घंटे तक पूछताछ की गई।
कहा जा रहा है कि उनसे तमाम तरह के सवाल पूछे गए। जैसे – आपने अपने पति को क्यों छोड़ा। इस बात के क्या सबूत हैं कि आपके पति शराबी हैं और उन्होंने आपके साथ दुर्व्यवहार किया। क्या पति का घर छोड़ने के बाद आप अकेले रहती थीं या किसी के साथ। क्या आपके पास ओबसी सर्टिफिकेट है। आप झूठ क्यों बोल रही हैं कि आपके पास ओबीसी सर्टिफिकेट नहीं है। आपने अपने बेटों के जाति प्रमाण पत्र दिलाने का इंतजार क्यों किया। क्या यह सच नहीं है कि आपने सरकार की ओर अनुसूचित जाति के लोगों को दिए जाने वाले लाभ हासिल करने के लिए दलित होने का दावा किया। इस तरह के कई और सवाल किए गए।
राधिका वेमुला के साथ ऐसा व्यवहार किया गया। जैसे वह अपराधी हैं। उन्हें उस शख्स के सामने अपमानित किया गया, जिसने उन्हें छोड़ दिया था। उनसे बिल्कुल फिजूल के सवाल पूछे गए। उनकी पूरी जिंदगी की पड़ताल की गई। पूछताछ के दौरान न तो उन्हें पानी दिया गया और न ही वहां किसी टॉयलेट की व्यवस्था थी।
राधिका की बेटी नीलिमा को भी बुलाया गया। उनसे भी तमाम तरह के सवाल पूछे गए। रोते हुए उसने अपनी मां से कहा कि सब कुछ छोड़ कर घर में बैठें। अफसर खुश थे। वे क्रूरता की किस हद तक जा सकते थे यह इसी बात से पता चलता है कि जब नीलिमा ने अपने तीन साल के बेटे को बिस्कुट खिलाने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि उनके दफ्तर को गंदा न किया जाए।
अफसरों ने खुलेआम अपने अधिकारों और पद का दुरुपयोग कर एक दलित महिला और बेटे के गम में घुल रही एक मां और उसके परिवार को जिस तरह धमकी दी। उन पर दबाव बनाया और रोब गालिब किया। क्या ऐसे में उन्हें इन पदों पर रहने का अधिकार है। क्या इस मामले में थोड़ी भी जिम्मदारी या न्यूनतम नियम का पालन नहीं किया जाना चाहिए था। इस पूरे मामले में दिल्ली का धौंस इस कदर था कि किसी अफसर ने इस पूरी प्रक्रिया के बारे में सवाल उठाने की हिम्मत नहीं की। हर कोई चुपचाप आदेश का पालन करता रहा चाहे यह कितना भी घिनौना क्यों न हो।
इस बीच, राधिका वेमुला अपने दुख और गुस्से के बीच मजबूत होकर उभरी हैं। वह बेटे की मौत से शोक संतप्त मां से प्रतिरोध के प्रतीक के तौर पर उभर आई हैं। जो अपने साहस और धैर्य से हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई हैं। वह बीमार हैं। एक बार फिर उन्हें जीविका के लिए सिलाई के काम का सहारा लेना पड़ा है। उनके पास आज की तारीख में कोई घर नहीं है। आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से उन्हें पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का वादा अखबार में सुर्खियों की स्याही की तरह ही गायब हो गया।
दिल्ली और इससे साठगांठ कर शासन चलाने वालों का एक ही संदेश है- समझौता करके चलो और फायदा उठाओ। जिस दिन आपने खुद को व्यापक लोगों को हितों से जुड़े मुद्दे के साथ जोड़ा आपको प्रताड़ना, कष्ट और दुखों का सामना करना पड़ेगा।
रोहित वेमुला के निधन के एक साल बाद उनके लिए न्याय की मांग में एक और जरूरी मुद्दा जुड़ गया है। रोहित के लिए न्याय के मुद्दे में उनके परिवार के लिए न्याय का मुद्दा भी जुड़ गया है। सरकार रुपनवाल कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक करे और इस पर अपनी आधिकारिक प्रतिक्रिया दे। अनुसूचित जाति अत्याचार निरोधक कानून के तहत अप्पा राव और रोहित की मौत के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो। साथ ही दलित और आदिवासी छात्रों को अत्याचार से बचाने के लिए कानून बनाना भी बेहद जरूरी है।
आप राधिका का साथ दे सकते हैं। उनकी मदद कर सकते हैं। आप उन्हें समर्थन दे सकते हैं और उनके साथ खड़े हो सकते हैं।
वृंदा करात माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य हैं। वह राज्यसभा की सांसद रह चुकी हैं