आओ हम फिर एक शोकगीत गाएँ,
अपने प्यारे बच्चे रोहित वेमुला के नाम
उसी शोक गीत को जो जिंदा है
न जाने कितनी सदियों से
पेशवा युग, पाषाण युग से भी पहले से
जिसे सुन रहे हो तुम, न जाने कितने वषों से
तुम्हारे सतयुग त्रेतायुग द्वापर युग
और युग पर युग बीतते गए.
न बदली तुम्हारी जुबान न बदले तुम्हारे वार
अब जबकि ये कलयुग है
तुम्हारे झूठे किस्से कहानियाँ मनगंढत
शास्त्रों पुराणों की बातों का नही
पर साहेब,
न्यायाधिकारी दंडाथिकारी
धर्माधिकारी, महागुरु द्रोणाचार्यों
की पूरी जमात लगी है
कलयुग को पलटने में
कलयुग तो कलयुग है
जिसकी जुबान काली है
मजबूत है तीखी है
भोथरी है धारदार है
जिसमें संघर्ष के लिए तनी कई मुट्ठियाँ है
तैयार हो रहे है सब हाथ में हाथ डालकर
लिपट रहे है गले मिल मिलकर
एक साथ साथ रोने और लड़ने के लिए।
अनिता भारती