Red letter day for Indo-Pak judiciary

October 31 will be remembered as a red-letter day when it comes to the judgements delivered by Pakistan Supreme Court and Delhi High court.

Asia Bibi Hashimpura
 
October 31 will be remembered as a red-letter day when it comes to the judgements delivered by Pakistan Supreme Court and Delhi High court.
 
It may be mentioned here that Pakistan Supreme Court has acquitted a 47-year-old Christian woman from the punishment given to her under the blasphemy law of Pakistan. She was in prison for almost a decade. Pronouncing the judgement, the Pakistan Supreme Court said that Islam is the most tolerant religion.
 
On 31 October itself, Delhi High Court sentenced 16 UP Policemen to life imprisonment holding them guilty for the massacre of 38 Muslims who were shot dead on May 22, 1987, and their bodies were thrown in a canal. The most interesting aspect of this case was that V. N. Rai, then SP of the district himself filed an FIR against the guilty Policemen. Rai is also a famous writer who later became the DG of UP Police.    
 
Justice Fazanuddin, former Supreme Court Judge, Dr. Ram Puniyani, Retired professor, IIT Mumbai, L S Herdenia, Convener, All India Secular Forum, Rajendra Kothari, Chandrakant Naidu, Journalist and Dr. Ranjeet, Bangalore based human rights activist and well-known writer have hailed the judgments pronounced by Pakistan’s Supreme Court and Delhi High Court.
 
In a statement issued here they have stated that October 31, 2018, will be remembered as a red letter day in the history of Indo-Pak judiciary.

In Hindi-

दिनांक 31 अक्टूबर 2018 भारत एवं पाकिस्तान की न्यायपालिका के इतिहास में  स्वर्णाक्षरों से लिखा जाएगा। 31 अक्टूबर को दिल्ली उच्च न्यायालय एवं पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसले दिए हैं, उनकी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है।

भोपाल में जारी एक वक्तव्य में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति फैजानुद्दीन, राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के संयोजक एलएस हरदेनिया, प्रोफेसर डॉ. राम पुनियानी,राजेन्द्र कोठारी, पत्रकार चन्द्रकांत नायडू एवं बंगलौर के मानवाधिकार कार्यकर्ता व साहित्यकार डॉ. रंजीत ने आशा प्रकट की है कि इन दोनों निर्णयों का मुस्तैदी से पालन किया जाएगा।

यहां उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने एक ऐसी ईसाई महिला को दोषमुक्त घोषित किया है जो पिछले अनेक वर्षों से जेल में थी और ईशनिंदा कानून के अंतर्गत सजा भुगत रही थी। इसी तरह दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन 16 पुलिकर्मियों को दोषी करार देकर आजीवन कारावास की सजा सुनाई है जिन्होंने 40 से अधिक निर्दोष मुस्लिम युवकों की निर्मम हत्या की थी और उनकी लाशों को एक नहर में फेंक दिया था। इस जघन्य अपराध में शामिल पीएसी के पुलिसकर्मियों को सजा दिलाने में 31 वर्ष लगे।

इस संबंध में सबसे दिलचस्प बात यह है कि दोषी पुलिसकर्मियों के विरूद्ध तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विभूति नारायण राय ने ही एफआईआर दर्ज करवाई थी। इसी एफआईआर के अंतर्गत की गई जांच एवं हत्याकांड में जीवित बचे एक युवक के साक्ष्य के आधार पर सजा हुई है। विभूतिनारायण राय बाद में उत्तरप्रदेश पुलिस के महानिदेशक भी रहे। राय ने साम्प्रदायिकता और पुलिस की भूमिका पर अनेक पुस्तकें लिखी हैं।

Report by L S Herdenia, Convener, All India Secular Forum.
 

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