‘RSS मानसिकता के चलते मोदीजी मुसलमान को नहीं बनने देना चाहते सेनाध्‍यक्ष’

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने 17 दिसंबर को नए थलसेनाध्‍यक्ष के रूप में लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत के नाम का एलान किया जिसके बाद सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर चल रही है। उन्हें चीफ चुने जाने के लिए कमांड चीफ लेफ्टिनेंट प्रवीण बक्शी और दक्षिणी कमान के आर्मी चीफ लेफ्टिनेंट पीएम हारिज को नजरअंदाज किया गया। 

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जहां सरकार का कहना है कि बिपिन को मेरिट के आधार पर चुना गया है। वहीं कांग्रेस नेता शहजाद पूनावाला ने नए सेनाध्‍यक्ष की नियुक्ति को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर साम्‍प्रदायिक भेदभाव का आरोप लगाया है। पूनावाला ने ट्वीट कर कहा कि पीएम मोदी लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्‍मद अली हरीज को पहला मुस्लिम जनरल नहीं बनाना चाहते थे, इसलिए दो वरिष्‍ठ सैन्‍य अधिकारियों की अनदेखी की गई। 
 
शहजाद पूनावाला ने ट्वीट कर कहा, 'अगर मोदी बिपिन रावत को बिना बारी के आर्मी चीफ नहीं बनाते तो हरीज लेफ्टिनेंट बक्‍शी के कार्यकाल के बाद सेना के पहले मुस्लिम प्रमुख होते। लेकिन मोदी ऐसा नहीं चाहते थे।'
 
एक दूसरे ट्वीट में शहजाद ने लिखा कि शायद आरएसएस मानसिकता के चलते मोदी सरकार किसी अल्‍पसंख्‍यक के सेना प्रमुख बनने को सहन नहीं कर सकती थी। उन्‍होंने आगे लिखा, ”भूतकाल में एक लेफ्टिनेंट जनरल की अनदेखी की गई थी दो की कभी नहीं हुई। अब बक्‍शी को सीडीएस बनाने की बात की जा रही है। पूनावाला ने कहा कि हरीज जो चीज डिजर्व करते थे वो मोदी सरकार के चलते नहीं मिल पाई। यदि 1983 को दोहराया भी गया तो हरीज चीफ ऑफ आर्मी स्‍टाफ होते। इस अभूतपूर्व कदम के पीछे मोदी की मुस्लिम विरोधी आरएसएस मानसिकता है।”
 
गौरतलब है 1983 में इंदिरा गांधी की सरकार के समय भी सीनियर अधिकारी को नजरअंदाज कर जूनियर को सेनाध्‍यक्ष बनाया गया था। उस समय जनरल एएस वैद्य को आर्मी चीफ चुना गया था। इस पर उनके सीनियर लेफ्टिनेंट एसके सिन्हा ने विरोध किया था। वहीं 1988 में एयर मार्शल एमएम सिंह की जगह एसके मेहरा को IAF चीफ बना दिया गया था।

Courtesy: National Dastak

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