उत्तर प्रदेश में फैजाबाद पुलिस ने बजरंग दल के स्थानीय संयोजक महेश मिश्रा को इस आरोप में गिरफ्तार किया है कि वे मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचा रहे थे और सांप्रदायिक नफरत फैलाने में लगे थे। 24 मई को सबरंग इंडिया ने इस मसले पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि संघ परिवार कैसे आत्मरक्षा के नाम पर हिंदुओं को हथियारों के साथ प्रशिक्षण दे रहा है और 2017 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर वहां भयावह सांप्रदायिक आग भड़काने की जमीन तैयार करने में लगा है।
दरअसल, 14 मई को बजरंग दल ने अयोध्या में एक 'आत्मरक्षा कैंप' का आयोजन किया था। जब उसका वीडियो वायरल हो गया तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 153-ए के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। यानी यह सीधे-सीधे विभिन्न समुदायों के बीच धार्मिक आधार पर दुश्मनी पैदा करने और सौहार्द को नुकसान पहुंचाने की कवायद है।
एफआईआर के मुताबिक उस कथित ट्रेनिंग कैंप में कुछ कार्यकर्ताओं को मुसलमान आतंकवादियों के रूप में पेश किया गया था और बाकी को भारती सेना के हिंदू युवा के तौर पर। अब जांच अधिकारी उस वीडियो के लिए मीडिया से संपर्क करने में लगे हैं और उसके जरिए उसमें शामिल लोगों की पहचान की जाएगी और कार्रवाई होगी।
बजरंग दल विश्व हिंदू परिषद का ही एक आतंक फैलाने वाला संगठन माना जाता है। विहिप इसे अपने 'सालाना गतिविधि' और 'मॉक ड्रील' की तरह पेश करती है। लेकिन सवाल है कि इस कथित 'मॉक ड्रील' में मुसलिम टोपी और मुसलमानों की आम पहचान के तौर पर लगाई गई नकली दाढ़ियों की व्याख्या कैसे की जाएगी! विहिप के आग उगलने वाले युवाओं के संगठन बजरंग दल ने उत्तर प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी इसी तरह हथियारों के साथ चलने वाले प्रशिक्षण कैंपों का आयोजन किया है। अगर इस तरह की विध्वंसक गतिविधियों पर लगाम नहीं लगी तो आने वाले दिनों में सुल्तानपुर, गोरखपुर, पीलीभीत, नोएडा और फतेहपुर में भी ऐसे ही कथित 'आत्मरक्षा कैंप' और 'प्रशिक्षण शिविर' देखे जा सकते हैं।
जाहिर है, यह देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ एक खौफ का माहौल पैदा करने की कोशिश है, जिसमें हिंदू युवाओं को झोंका जा रहा है। अगर यह सब कुछ यों ही चलता रहा तो क्या आने वाले दिनों में समाज की तस्वीर का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है? किसी भी आतंकी घटना तो दूर, किसी आशंका भर से किसी खास समुदाय के युवाओं को गिरफ्तार करके सालों जेल में बंद रखने वाले प्रशासन को क्या इस मसले पर सख्त कार्रवाई नहीं करनी चाहिए?
इस समूचे प्रकरण का जो वीडियो सामने आया है, उससे साफ जाहिर है कि यह कोई गुप्त गतिविधि नहीं थी, बल्कि सार्वजनिक रूप से इसका प्रदर्शन किया गया। बहुत छोटी घटनाओं तक के बारे में खुफिया सूचना रखने वाली पुलिस और प्रशासन को इस बात की भनक क्यों नहीं लगी कि ऐसे आयोजनों में क्या किया जा रहा है और इसका मकसद क्या है?
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर अगर यह हिंसा के जरिए धार्मिक आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश है तो क्या यह सिर्फ एक राजनीतिक मोर्चेबंदी तक सीमित रहेगी? प्रथम दृष्टया ही दो समुदायों के बीच नफरत फैलाने का खेल लगने वाली इस तरह की गतिविधियों का तात्कालिक फायदा भले भाजपा या किसी दल को मिले, लेकिन समाज और देश पर इसके स्थायी नतीजों और नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन सब कुछ देशभक्ति, राष्ट्रवाद और धर्म-रक्षा के नाम पर करने वाले समूहों के जरिए यह खिलवाड़ कौन कर रहा है और उसे छूट देने वाली ताकतें कौन हैं?