सहारा-बिड़ला की ओर से मुख्यमंत्रियों नौकरशाहों को रिश्वत देने के पक्के सबूत – जस्टिस एपी शाह

दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज (जस्टिस) ए पी शाह ने मुख्यमंत्रियों (इनमें पीएम नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं। आरोप है कि गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के दौरान उन्होंने रिश्वत ली। ) को सहारा और बिड़ला समूह की ओर से रिश्वत देने के मामले की जांच की मांग की है। जस्टिस शाह ने इस मामले की जांच के लिए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के चेयरमैन को चिट्ठी लिखी है। सिटीजन्स व्हिसलब्लोअर फोरम (सीडब्ल्यूएफ) की ओर से लिखी चिट्ठी में कहा गया है कि मुख्यमंत्रियों को सहारा और बिड़ला समूहों की तरफ से भुगतान में रिश्वत और भ्रष्टाचार के गंभीर सबूत हैं। इसकी क्रिमिनल इनवेस्टिगेशन होनी चाहिए। फोरम की ओर सीबीडीटी को लिखी चिट्ठी में कहा गया है कि सीबीडीटी सेटलमेंट कमीशन की ओर से सहारा के पक्ष में दिए गए संदिग्ध फैसले को भी चुनौती दे।

Justice AP Shah
 
जस्टिस शाह ने कहा है कि जो दस्तावेज मौजूद हैं उनसे देश के कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों समेत राजनेताओं और नौकरशाहों को कारोबारी घरानों ( सहारा, बिड़ला) की ओर से व्यवस्थित तरीके से रिश्वत दिए जाने के सबूत मिले हैं। सीडब्ल्यूएफ की ओर से लिखी चिट्ठी में दावा किया  गया है उसके पास वह अप्रैजल रिपोर्ट हैं, जिसमें रिश्वत देने के दस्तावेजी सबूत हैं।
 
जस्टिस शाह की इस चिट्ठी को यहां पढ़ा जा सकता है may be read here.
 
पत्र में कहा गया है- सीडब्ल्यूएफ को पता चला है कि सीबीआई (बिड़ला के मामले में) और आयकर विभाग (सहारा के मामले में) को जांच के दौरान दस्तावेज, नोट्स, लैपटॉप और बड़ी तादाद में नकदी मिली है।

पांच जनवरी को सबरंग इंडिया ने (Sabrangindia had reported ) ने यह रिपोर्ट छापी थी कि राजनेताओं को जिस तरह से व्यवस्थित तरीके से घूस दी गई उस मामले में आयकर विभाग की आकलन रिपोर्ट को किस कदर पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया  गया। उसी दिन सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद अखबारों ने खबर छापी थी कि किस कदर इनकम टैक्स सेटलमेंट कमीशन ने तुरत-फुरत  (आईटीएससी) सहारा को टैक्स विवाद में माफी दे दी थी। जबकि इससे पहले इसी टैक्स सेटलमेंट कमशन ने माफी के लिए सहारा के आवेदन को खारिज कर दिया था। 5 सितंबर, 2016 को अचानक कंपनियों की उस दलील को मान लिया गया कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की ओर से जब्त कागजी सबूत असली दस्तावेज नहीं हैं।
 
आईटीएससी का आदेश और इस तरह की घूसखोरी के सबूत दिखाने वाले दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को ( सहारा और बिड़ला के खिलाफ रिश्वत देने का कोई मामला नहीं बनता) चुनौती देने वाली याचिका का हिस्सा हैं। आईटीएससी ने लूज शीट्स और कंप्यूटर प्रिंट आउट समेत उन दस्तावेजों को आसनी से खारिज कर दिया है, जिनमें सहारा की ओर से 14  राजनीतिक दलों के 100 नेताओं को रिश्वत देने का ब्योरा दर्ज है। पिछले साल नवंबर में सामने आए इस मामले ने खलबली मचा दी थी। हालांकि कुछ अखबारों में इसकी खबरें आईं लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इसे नजरअंदाज करना ही बेहतर समझा।
 
बहरहाल शाह की चिट्ठी में कहा गया है कि आयकर विभाग ने अपने अप्रैजल रिपोर्ट में सहारा और बिड़ला की इन दलीलों बकवास करार दिया है कि जब्त दस्तावेज सही नहीं हैं। विभाग का कहना है कि ये दस्तावेज पूरी तरह से सही और वास्तविक हैं।
 
सहारा समूह के यहां से जब्त तीन एक्सेल शीट में दस महीने के अंदर 115 करोड़ रुपये की नकदी हासिल होने और 113 करोड़ की नकदी के पेमेंट का ब्योरा है। पहली शीट 4 मार्च, 2014 तक की है और दूसरी सीट क्रमशः 22 फरवरी, 2014 और 12 नवंबर 2013 की है। तीन शीट्स की एंट्री मिलती हैं। इससे साफ पता चलता है कि देश के कुछ अहम नेताओं को नकदी दी गई। एक्सेल शीट में इस बात पूरा ब्योरा दर्ज है कि किसे, कितना और किसके जरिये भुगतान किया गया है। इसलिए अगर इन ब्योरों को गलत या अवास्तविक बताया जा रहा है तो इसकी जांच जरूरी है।   
 
बिड़ला के मामले में इनकम टैक्स विभाग ने समूह के समूह के डीजीएम (अकाउंट्स) आनंद सक्सेना समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों से पूछताछ की है।

आयकर विभाग के अप्रैजल रिपोर्ट के मुताबिक सक्सेना ने कथित तौर पर पांच साल से अनकाउंटेंड ट्रांजेक्शन का ब्योरा मेंटेन किया हुआ था। इस अकाउंट में कुछ आंगड़ियों से पैसा आता रहा था। वह जेके तुलस्यान, आरके कासलीवाल और एएन अग्रवाल से ऐसी रकम हासिल करने के लिए संपर्क में थे। (ये आदित्य बिड़ला समूह की अलग-अलग कंपनियों के कर्मचारी हैं)।
 
रिश्वत की जो रकम रिकार्ड में दर्ज है वो बिड़ला की कई परियोजनाओं को मंजूरी देने के एवज में दी गई है। इनमें 750 मेगावाट के पावर प्लांट के लिए महान कोल ब्लॉक से कोयला निकालने की मंजूरी शामिल है। इस चिट्ठी में यह भी लिखा गया है कि 8 नवंबर 2011 से 17 जून 2013 के बीच तत्कालीन पर्यावरण और वन मंत्री के कार्यकाल में आदित्य बिड़ला समूह के 13 प्रोजेक्ट पास किए  गए।

इन सारे दस्तावेजों में सबसे विवादास्पद वह एंट्री है, जिसमें गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी को 55 करोड़ रुपये देने का जिक्र है।
 
जस्टिस ए पी शाह सिटीजन्स व्हिसलब्लोअर फोरम (सीडब्ल्यूएफ) के अध्यक्ष हैं। अन्य संस्थापक सदस्य हैं जस्टिस संतोष हेगड़े ( पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज), एडमिरल  रामदास ( पूर्व नेवी चीफ) वजाहत हब्बीबुल्लाह ( पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त) डॉ. ईएएस सरमा ( पूर्व सचिव, भारत सरकार), अरुणा राय ( सामाजिक कार्यकर्ता), जगदीप छोकड़ (प्रमुख, एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और पूर्व प्रोफेसर आईआईएम, अहमदाबाद) और प्रशांत भूषण (वरिष्ठ वकील, सुप्रीम कोर्ट)।

 

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