मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दावा करते हैं कि मध्य प्रदेश अब बीमारू राज्य नहीं रहा। उनका दावा केवल इस मायने में सही कहा जा सकता है कि मध्य प्रदेश अब बीमारू राज्य से भी निचले किसी ऐसे स्तर पर पहुँच चुका है, जिसके लिए फिलहाल कोई विशेषण चुना नहीं गया है। मिसाल इसकी स्वास्थ्य सेवाएँ और अस्पताल हैं।
बात करते हैं शहडोल की जहाँ सांसद दलपत सिंह परस्ते के निधन के बाद लोकसभा सीट पर उपचुनाव होना है। इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत यह है कि लोगों ने 108 एंबुलेंस सेवा का नाम तक नहीं सुना है। अनूपपुर जिले के आदिवासी मरीजों को “मचिया” पर लाते और ले जाते हैं।
मचिया एक तरह की देशी व्यवस्था है जिसमें एक बड़ी मज़बूत लकड़ी के बीच में काँवर की तरह मरीज को बैठने की व्यवस्था की जाती है और दो लोग इसे अपने कंधे पर लादकर ले जाते हैं। इसी मचिया रूपी एंबुलेंस के सहारे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विकास का दावा करते हुए शहडोल लोकसभा उपचुनाव जीतना चाहते हैं।
अनूपपुर जिले का सबसे पिछड़ा आदिवासी बहुल गाँव राजेन्द्रग्राम है, जहाँ उल्टी-दस्त, पेट दर्द से पीड़ित शुक्ला बैगा को इलाज कराने मचिया पर लाया गया। अधिकतर मरीज 25-30 किलोमीटर पैदल चलकर ही इलाज कराने आते हैं। शुक्ला बैगा और उसके परिवार वाले बताते हैं कि उन्हें किसी 108 एंबुलेंस का नाम तक नहीं सुना है।
खास बात यह भी है कि बैगा आदिवासी, एक विलुप्त हो रही जनजाति है। इस जनजाति के संरक्षण के लिए बैगा विकास के नाम पर एकीकृत आदिवासी परियोजना में अरबों रूपये की राशि रोड, मकान, बिजली, पानी, स्वास्थ सुविधा के नाम पर खर्च की जाती है, लेकिन ये सुविधाएँ दरअसल केवल कागज पर ही रहती हैं और सारी रकम मंत्री और अफसर चटकर जाते हैं।
जिले के दूरदराज के गाँवों में किसी तरह के इलाज की कोई सुविधा नहीं है। ज्यादातर आदिवासी तो झाड़-फूंक के सहारे ही रहते हैं और अपनी जान गंवाते रहते हैं। इनकी हालत सुधारने में न सरकार की रुचि है और न अफसरों की। इनके विकास के लिए इसी तरह से अरबों रुपए आते रहें, इसके लिए आदिवासियों की दयनीय हालत में रखना ज़रूरी समझा जाता है।