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समझौता काण्ड : हिंदुत्व का नया विधिशास्त्र


 
​कानून / न्याय की सामान्य रूटीन में लगी पुलिस को लेकर आतंकवादियों और हिन्दुत्ववादियों की सोच में बहुत फर्क नहीं मिलेगा | एक आतंकी, उसका रास्ता काटने वाले पुलिसकर्मी को भौतिक रूप से निशाना बनाएगा, जबकि हिन्दुत्ववादी उसकी प्रतिष्ठा को राजनीतिक रूप से कलंकित करेगा | दोनों के लिए अपना मकसद हल करने की सनक में यह एक अनिवार्य रणनीति जैसा है | देश में, 2006-07 में मुस्लिम ठिकानों को लक्ष्य कर हुए आतंकी हमलों में संघ व अन्य हिन्दू संगठनों से जुड़े आरोपियों को लेकर यही रणनीति उजागर हो रही है | उन्हें अदालतों से बरी कराने के फेर में मोदी सरकार ने जांच एजेंसियों और जाँचकर्ताओं को शक के घेरे में लाने की मुहिम छेड़ रखी है | इस क्रम में वर्तमान एनआइए प्रमुख शरद कुमार को ‘अनुकूल’ सेवा देते रहने के लिए एक वर्ष का सेवा विस्तार दिया गया है |   

पानीपत के निकट फरवरी 2007 में समझौता ट्रेन को निशाना बनाकर हुए आतंकी काण्ड में दो डब्बे पूरी तरह जल गए थे और पाकिस्तान जा रहे यात्रियों में से अड़सठ की जानें चली गयी थीं | कुछ ही दिनों में पाकिस्तान के विदेश मंत्री कसूरी द्विपक्षीय वार्ता के लिए दिल्ली आने वाले थे और ऐसे में आशंका स्वाभाविक थी कि कोई न कोई जिहादी आतंकी गिरोह बातचीत को पटरी से उतारना चाहता है |

पाकिस्तान की कुख्यात आइएसआइ की अपनी सरकार से स्वतंत्र दखलंदाजी, लश्करे तैयबा जैसे संसाधन वाले आतंकी संगठन की भारत में घुसपैठ और बदनाम सिमी की देश में व्यापक गतिविधियों के दौर के चलते, शक की सुई उनकी ओर ही घूमनी थी | ऐसे में यह जांचकर्ताओं के लिए अविश्वसनीय जैसा रहा जब अनुसन्धान में इस कायराना हमले के तार असीमानंद के नेतृत्व में हिन्दुत्ववादियों से जुड़ते चले गए |

काण्ड की रात, कुछ घंटों में ही मैं दीवाना रेलवे स्टेशन के पास घटना स्थल पर पहुँच गया था | जल्द ही अनुसन्धान के लिए मेरे नेतृत्व में एक एसआइटी गठित की गयी | मोटे तौर पर कह सकते हैं कि एसआइटी ने 2007 और 2008 तक स्वतंत्र रूप से सक्रिय अनुसन्धान कार्य किया | इसके बाद, इस जघन्य अपराध के अंतर्राज्यीय विस्तार के चलते, सीबीआइ ने अन्य आतंकी मामलों के साथ इसकी भी मॉनिटरिंग शुरू की | जुलाई 2010 में केस आतंकी मामलों की जांच के लिए बनी विशेष केन्द्रीय एजेंसी एनआइए को सुपुर्द हो गया | एनआइए ने 2012 तक कई हिन्दुत्ववादी आतंकियों को गिरफ्तार कर लिया था और बाद में उनके विरुद्ध आरोपपत्र दाखिल करने का सिलसिला शुरू हुआ |

इस घटनाक्रम के प्रकाश में आज एनआइए की भाव-भंगिमा से लगता है जैसे हिंदुत्व के दबाव में देश में एक नया विधिशास्त्र लिखा जा रहा है ! मास्टर माइंड असीमानंद को बचाने को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दबाव केन्द्रीय सरकार और जांच एजेंसी पर साफ नजर आता है | गवाहों को अदालत में पलटाया जा रहा है, अभियोजकों पर दबाव बनाया जा रहा है कि अभियोजन को कमजोर करें और सबसे बढकर स्वयं एनआइए की मिलीभगत से अदालत को भ्रमित करने वाले तथाकथित ‘दस्तावेज’ आतंकियों के बचाव में उद्धृत किये जाने लगे हैं | यूएन और अमेरिका के सन्दर्भ से ऐसे-ऐसे कागजों का हवाला दिया जा रहा है जो असीमानंद गिरोह की संलिप्तता को ख़ारिज करते हैं | यह सब सरकार और एनआइए स्तर की मिलीभगत के बिना संभव नहीं |

अनुसन्धान की अब तक की धारा के उलट भाजपा / आरएसएस का मानना है कि कोई हिन्दू, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हो ही नहीं सकता | हाल में एक टी वी शो पर भाजपा प्रवक्ता के मुंह से मुझे उनकी नयी पार्टी लाइन सुनने को मिली कि हिन्दू आतंकी गिरोह की बात कहने की जुर्रत करने वाले पुलिस अधिकारी, दाऊद इब्राहीम के पे रोल पर होते हैं | इस तर्क को आगे बढ़ाएं तो इन पार्टी प्रवक्ताओं से पूछना पड़ेगा कि भारत में कानून का शासन है या दाऊद का ? क्या, मेरे जैसे समझौता काण्ड के अनुसन्धानकर्ता की पेंशन दाऊद के रहमो करम पर चल रही है और मुम्बई आतंकी हमलों में शहीद हुए पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे, जिन्होंने 2008 के मालेगांव धमाकों से हिन्दू गिरोह के तार जोड़े, को भी वेतन दाऊद की कृपा से ही मिलता रहा ?

शो में उपस्थित आरएसएस प्रवक्ता ने भी एक अन्य टी वी चैनल का समर्थन किया, जिसने हाल में समझौता अनुसन्धान के निष्कर्षों पर मुझसे लिए साक्षात्कार के एकदम विपरीत सिमी का हाथ होने की मनगढ़ंत कहानी प्रसारित की | उस चैनल की स्क्रिप्ट का सार था – हरियाणा एसआइटी ने समझौता मामले में सही दिशा में अनुसन्धान कर सिमी को गुनहगार ठहराया था लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने अनुसन्धान कार्य एनआइए के हवाले कर हिन्दुओं को झूठा फंसा दिया | चैनल की यह फरेबी कहानी मेरे साक्षात्कार से धराशायी हो जाती, लिहाजा उसे शो में शामिल ही नहीं किया गया | एंकर ने कुछ समय तक अनुसन्धान से जुड़ी रही एक एसआइटी सदस्य के मुंह से तीन अलग-अलग सवालों के जवाब में निकले ‘सिमी और अन्य ग्रुप’, ‘इंदौर’, ‘सही रास्ते पर थे’ को जोड़ कर अपना मनमाना निष्कर्ष सुना दिया कि हरियाणा एसआइटी ने इंदौर में सक्रिय सिमी को समझौता काण्ड के लिए जिम्मेदार ठहराया था |

आइये उन चरणों को देखें जिनसे गुजरकर अनुसन्धान के दौरान समझौता काण्ड में हिन्दुत्ववादियों की भूमिका तय हो सकी | ये चरण क्रमशः हरियाणा एसआइटी, महाराष्ट्र एटीएस, सीबीआई और एनआइए ने 2007 से 2012 के बीच तय किये | हरियाणा एसआइटी को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने मामले के इंदौर सम्बन्ध को उजागर किया और इस झांसे में नहीं पड़े कि जेल में बैठे प्रमुख सिमी कैडर को आनन-फानन में गिरफ्तार कर वाहवाही लूटें | उसी वर्ष हैदराबाद के मक्का मस्जिद विस्फोट के तुरंत बाद स्थानीय पुलिस ने अंधाधुंध मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी कर अपनी जम कर किरकिरी कराई | जबकि समझौता मामले में धैर्य पूर्ण जांच के फलस्वरूप पहली बार शक की सुई हिन्दुत्ववादी आतंकी तत्वों की ओर घूमी और अंततः यह प्रक्रिया असीमानंद के नेतृत्व के पर्दाफाश तक पहुँची |

दरअसल, हमारी किस्मत अच्छी थी और अच्छी नहीं भी थी | दिल्ली स्टेशन पर, जहाँ से ट्रेन चली, सीसीटीवी कैमरे जाने कब से खराब पड़े थे जो हमारे किसी काम नहीं आये | लेकिन घटना स्थल से मिले दो साबुत अटैची बम डिवाइस, जो टाइम मिसमैच के कारण फटे नहीं, अनुसंधानकर्ताओं को इंदौर तक पहुँचाने में सहायक बने | ये मुख्यतः अग्निकांड डिवाइस थे न कि विस्फोटक आरडीएक्स वाले जैसे उन दिनों आतंकी वारदातों में आम प्रयुक्त होते थे | अग्निकांड डिवाइस के इस्तेमाल के पीछे सोच रही होगी कि भागती ट्रेन में आग ज्यादा कहर ढायेगी न कि विस्फोट | ये असीमानंद के घृणा बम भी थे – गोधरा ट्रेन अग्निकांड के आलावा, गुजरात के अक्षरधाम, जम्मू के रघुनाथ और वाराणसी के संकट मोचन मंदिरों पर आतंकी हमलों से पैदा नफरत इनके पीछे काम कर रही थी |

आरएसएस पृष्ठभूमि के सुनील जोशी की दिसम्बर 2007 में उसके दो साथियों कुलसान्ग्रे और डांगे ने हत्या कर दी और तब ये तीनों नाम समझौता काण्ड में प्रमुखता से आने लगे | बिजली के जानकार कुलसान्ग्रे और डांगे दोनों की बम बनाने में प्रमुख भूमिका थी और वे आज तक भी फरार चल रहे हैं | 2008 में महाराष्ट्र एटीएस ने मालेगांव बम काण्ड में प्रज्ञा सिंह ठाकुर की मोटर साइकिल बरामद की और तब हिन्दुत्ववादी गिरोह के तमाम अन्य नाम भी सामने आये | इनमें असीमानंद और कर्नल पुरोहित प्रमुख मास्टर माइंड थे | पता चला कि कमल चौहान, अमित चौहान, लोकेश शर्मा और राजेन्द्र पहलवान ने समझौता ट्रेन पर चार बम रखे थे | महाराष्ट्र एटीएस के मुखिया हेमंत करकरे उसी वर्ष नवम्बर में मुम्बई आतंकी हमलों में आतंकियों के हाथों शहीद हो गए थे | उनकी शहादत से करीब दस दिन पूर्व मेरी उनसे विस्तार से बात हुयी थी और उन्होंने भी असीमानंद के नेतृत्व में हिन्दुत्ववादियों की भूमिका की पुष्टि की थी |

2009 से सीबीआइ के समन्वय में उपरोक्त आतंकवादी गिरोह को पकड़ने के लिए सम्बंधित राज्यों की पुलिस द्वारा छापेमारी चलती रही | इस बीच मुंबई हमलों की पृष्ठभूमि में एनआइए के रूप में एक केंद्रीकृत जांच एजेंसी बन चुकी थी और एक एक कर तमाम आतंकी मामले, जिनमें समझौता भी शामिल था, इस एजेंसी को जांच के लिए दे दिए गए | इस तरह एनआइए समेत चार एजेंसियों की जांच के आधार पर असीमानंद व अन्य हिन्दुत्ववादियों की आतंकी कारगुजारियों के आयामों को अदालतों में दायर विभिन्न चार्ज शीट के रूप में देखा जा सकता है | लिहाजा, इन अनुसंधानों को लेकर संघी राजनीति को खुल कर खेलने के क्रम में, आतंकवाद के विरुद्ध कानूनी प्रक्रियाओं को निहित दलगत स्वार्थ के लिए भाजपा सरकार में कमजोर किया जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है |    

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References:
1. SIT received No Support from the Madhya Pradesh police, June 2016

(The author was the head of the Special Investigation Team (SIT) that had led to the first breakthrough in the 2007 train blast case. Vikash Narain Rai has also served in many important posts in the government, including as director of the National Police Academy, Hyderabad, from where he retired three years ago)
 
 
 

 

 

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