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संघ की एक और चाल – अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई बंद हो

आरएसएस के सहयोगी संगठन शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने मानव संसाधन मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट में अंग्रेजी में शिक्षा देने की व्यवस्था खत्म करने की सिफारिश की है। उसकी यह सिफारिश दलितों और हाशिये के समुदायों को और पीछे धकेलने की कोशिश है।

English Teaching

आरएसएस के एक सहयोगी संगठन ने अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई खत्म करने की सिफारिश की है। देश भर के दलित स्कॉलर्स और कार्यकर्ताओं ने संघ के इस कदम का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने इस सिफारिश को विकास विरोधी करार दिया है। दलितों का कहना है कि यह सिफारिश उनकी तरक्की को रोकने के लिए की गई है।

इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक आरएसएस के सहयोगी संगठन शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने मानव संसाधन मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट भेजी थी। नई शिक्षा नीति तैयार करने से पहले भेजी गई इस रिपोर्ट में शिक्षा के माध्यम के तौर पर अंग्रेजी हटाने के लिए कहा गया है। मातृभाषा में पढ़ाई कराने और अंग्रेजी हटाने की सिफारिश के साथ न्यास ने कहा है कि भारतीय भाषाओं के विकल्प के तौर पर विदेशी भाषाएं न पढ़ाई जाएं। सभी रिसर्च ‘राष्ट्रीय हित’ से जुड़ी होनी चाहिए। भारतीय संस्कृति, समाज या विचार के किसी भी ‘गलत व्याख्या’ को हटा देना चाहिए।

भारिपा बहुजन महासंघ के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर ने सबरंगइंडिया से कहा कि साफ है कि संघ दलितों को टारगेट कर रहा है। लेकिन अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई पर रोक लगाने की सिफारिश गरीबों को भी बुरी तरह प्रभावित करेगी। संघ के सहयोगी संगठन का यह कदम पुरानी व्यवस्था को बरकरार रखना है। प्रकाश अंबेडकर ने कहा कि ज्ञान का दायरा लगातार बढ़ रहा है और ग्लोबल होता जा रहा है लेकिन संघ के पैरोकार इसे लोकल बनाने की मांग कर रहे हैं। यह हास्यास्पद है।

प्रकाश अंबेडकर ने सलाह दी कि आरएसएस को दूसरों को सलाह देने के बजाय अपने संस्थानों में न्यास की सिफारिशों को लागू करना चाहिए। ऊंची जातियों के बच्चे अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़ते हैं। क्या वे अपने बच्चों को इन अंग्रेजी माध्यम स्कूले से निकाल लेंगे? संघ को अपने कैडरों में मातृभाषा में शिक्षा का नियम लागू करना चाहिए। वो इसके नतीजे देखें फिर इसे देश की शिक्षा व्यवस्था पर लागू करने की बात सोचें।

प्रकाश अंबेडकर ने इस सिफारिशों के लागू होने की संभावनाओं को खारिज करते हुए कहा कि लोग इस पिछड़े कदम को नहीं स्वीकार करेंगे। अगर अंग्रेजी हटाई गई तो लोग विरोध पर उतर आएंगे। ऐसा लगता है कि अगर संघ का यह रवैया जारी रहा तो सत्ता उसके हाथ से निकल जाएगी।

इन सिफारिशों को आड़े हाथ लेते हुए दलित अधिकार कार्यकर्ता और मशहूर लेखक कांचा इलैया शेफर्ड ने सबरंगइंडिया से कहा कि संघ के सहयोगी संगठन को सबसे पहले तो सभी इंग्लिश मीडियम स्कूल और कॉलेजों को बंद करने का फरमान सुनाना चाहिए, चाहे इसका मालिकाना हक किसी के पास क्यों न हो। सबसे पहले तो अंग्रेजी आरएसएस की ओर से संचालित सरस्वती विद्या मंदिरों से हटाई जाए। संघ यह भी सुनिश्चत करे कि भारत अंग्रेजी बोलने वाले देशों को अपने सामानों का निर्यात नहीं करेगा। साथ ही उसे संकल्प लेना चाहिए कि शिक्षा को बढ़ावा देने के नाम पर वह ऐसे देशों से एक पैसा भी नहीं लेगा। तभी संघ का मकसद सही तरीके से पूरा होगा।

कांचा इलैया ने कहा कि संघ का यह कदम अंग्रेजी स्कूलों और प्रगतिशील माहौल में पढ़ने वाले पिछड़े समुदाय के छात्रों को हाशिये पर धकेलने की कोशिश है। इससे दलितों के विकास को बुरी तरह झटका लगेगा।

संघ की इस कोशिश का समर्थन करते हुए मुंबई भाजपा की प्रवक्ता आरती साठे ने सबरंगइंडिया से कहा कि उन्हें इस बारे में मालूम नहीं है कि इन सिफारिशों को कैसे और किस तरह पर लागू करने की योजना चल रही है। लेकिन उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि अगर सिलेबस मातृभाषा में हो बच्चा इसे ज्यादा अच्छी तरह समझ सकता है। हालांकि मैं अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा देने के खिलाफ नहीं हूं। 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक न्यास के संस्थापक सचिव ने दावा किया है कि मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कई सिफारिशों की तारीफ की है। उन्होंने कहा है कि वह निश्चित तौर पर इस पर विचार करेंगे।

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