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सरकार को आईना दिखाने वाले एनडीटीवी इंडिया का प्रसारण बंद करने का फरमान

3 नवंबर की देर शाम आई इस खबर से एक बार फिर इस बात का बखूबी अहसास हुआ कि संघ के इशारे पर चल रही मोदी सरकार के शासन में यह अघोषित इमरजेंसी का दौर है। बृहस्पतिवार को मोदी सरकार ने जिस तरह से पठानकोट हमले की कवरेज के दौरान ‘रणनीतिक तौर पर संवेदनशील’ जानकारी दिखाए जाने के आरोप में एनडीटीवी इंडिया को एक दिन ऑफ एयर करने की सिफारिश की है उससे यह धारणा और मजबूत हुई है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अंतर मंत्रालय कमेटी ने चैनल के प्रसारण को एक दिन के लिए बंद करने की यह सिफारिश की है।

न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक मंत्रालय एनडीटीवी इंडिया को 9 नवंबर को एक दिन लिए अपना प्रसारण बंद करने के लिए कहेगा। सूत्रों के मुताबिक आतंकवादी हमले के कवरेज के मामले में किसी चैनल का प्रसारण बंद करने की सिफारिश करने का यह पहला मामला होगा। लेकिन क्या सचमुच यह फैसला पठानकोट हमले के कवरेज के दौरान कथित लापरवाही की सजा है। या फिर सरकार रवीश कुमार के एनडीटीवी इंडिया पर दिखाए जाने वाले प्राइम टाइम की तल्ख सच्चाइयों की आंच बरदाश्त नहीं कर पा रही है। चाहे वन रैंक वन पेंशन का मामला हो या फिर भोपाल सेंट्रल जेल में बंद विचाराधीन कैदियों की फर्जी मुठभेड़ में नृशंस हत्या का मामला। रवीश कुमार ने इन घटनाओं पर अपने बेबाक विश्लेषण और खबरों से सचाई सामने रखी है। यह अलग बात है कि सरकार इन सचाइयों का सामना नहीं कर पा रही है। उससे अपनी किरकिरी बर्दाश्त नहीं हो पा रही है।  लिहाजा चैनल का प्रसारण बंद करने जैसे फैसले लिए जा रहे हैं। सबरंगइंडिया यहां चैनल के पिछले दिनों के कुछ कवरेज आपके लिए पेश कर रहा है। दूसरे चैनल इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं।

Today, November 3, 2016

भोपाल में हुए एनकाउंटर पर लगातार उठ रहे हैं सवाल…


Image credit: India.com

भोपाल में हुए एनकाउंटर पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. इसमें मारे गए मुजीब के परिवारवालों और गुजरात के कुछ संगठनों ने फर्जी मुठभेड़ का आरोप लगाकर इसकी जांच की मांग की है. आपको बता दें कि मुजीब शेख 2008 में अहमदाबाद में हुए सीरियल बम धमाकों में भी आरोपी है

Yesterday, November 2, 2016 this is what NDTV India had on Prime Time

प्राइम टाइम : पूर्व सैनिक ने क्यों की आत्महत्या ?


Image credit: The Indian Express

सेना में 30 साल काम करने वाले रामकिशन जी ने सबको जमा किया कि हम सबकी लड़ाई लड़ेंगे. उनके साथ रेगुलर आर्मी के पूर्व सैनिक भी 1 नवंबर को दिल्ली आए, लेकिन वे सभी जंतर मंतर की तरफ चले थे कि रामकिशन जी ने आत्महत्या कर ली. चूंकि वे सीनियर थे इसलिए वे इस लड़ाई का नेतृत्व कर रहे थे.

On November 1, 2016, the Day Before Yesterday it was

प्राइम टाइम : क्या फरार कैदी पकड़े नहीं जा सकते थे?

इस घटना ने जेल के सिस्टम को एक्सपोज़ किया है इसलिए भागे जाने को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि कोई बिना किसी प्रतिरोध के इतनी बड़ी संख्या में कैसे भाग गया, वो भी एक जवान की हत्या करके। जेल मंत्री ने श्रीनिवासन जैन के साथ बातचीत में माना कि उनकी ज़िम्मेदारी बनती है, लेकिन वो डेढ़ महीना पहले जेल मंत्री बनी हैं. ये बात भी ठीक है. मंत्री को हटा देने से सवालों के जवाब नहीं मिल जाते हैं, क्योंकि जेल का
निर्माण तो डेढ़ महीने पहले नहीं हुआ है.

There is More…

प्राइम टाइम इंट्रो : वन रैंक, वन पेंशन पर क्यों आ रही है मुश्किल?

पूर्व सैनिक रामकिशन गेरेवाल ने मंगलवार को दिल्ली में ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली. हरियाणा के भिवानी ज़िले के बामला गांव के रहने वाले रामकिशन ने ज़हर खाने से पहले किसी को नहीं बताया. रामकिशन ने ज़हर खाने के बाद अपने बेटे को भी फोन किया कि मैंने ज़हर खा ली है. अपनी पत्नी से भी बात करने की इच्छा ज़ाहिर की और बेटे से कहा कि उनके साथ आए साथियों को बता दे कि ऐसा हो गया है. रामकिशन गेरेवाल ने छह साल टेरिटोरियल आर्मी में सेवा दी थी.

इनके साथी जगदीश जी ने बताया कि रामकिशन ने 105 इंफैंट्री बटालियन में 6 साल नौकरी की और उसके बाद डिफेंस सर्विस कोर चले गए. 2004 में सूबेदार मेजर के पद से रिटायर हुए. डिफेंस सर्विस कोर से रिटायर हुए जवानों को पेंशन मिलती है, लेकिन जगदीश जी ने फोन पर बताया कि वे टेरिटोरियल आर्मी से रिटायर हुए हैं. इस अंग को वाजपेयी सरकार के समय पहली बार मान्यता दी गई लेकिन उन्हें वन रैंक वन पेंशन का लाभ नहीं मिला है. सेना में 30 साल काम करने वाले रामकिशन जी ने सबको जमा किया कि हम सबकी लड़ाई लड़ेंगे. उनके साथ रेगुलर आर्मी के पूर्व सैनिक भी 1 नवंबर को दिल्ली आए, लेकिन वे सभी जंतर मंतर की तरफ चले थे कि रामकिशन जी ने आत्महत्या कर ली. चूंकि वे सीनियर थे इसलिए वे इस लड़ाई का नेतृत्व कर रहे थे. उन्होंने रक्षा मंत्री के नाम एक आवेदन पत्र भी लिखा- आज मेरी तरह हज़ारों सैनिक ऐसे हैं जिन्होंने इस प्रकार दोनों सर्विस की है. और उनको छठे और सातवें वेतन आयोग और वन रैंक वन पेंशन की बढ़ोतरी नहीं मिली है. आपसे निवेदन है कि इन सभी कमियों को पूरा किया जाए. हम आपको आभारी होंगे. मैं, मेरे देश के लिए, मेरी मातृभूमि के लिए एवं मेरे देश के वीर जवानों के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर रहा हूं.

रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री कई बार वन रैंक वन पेंशन की बात कर चुके हैं. हाल ही में प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में कहा था कि पिछली सरकार ने वन रैंक वन पेंशन के लिए 500 करोड़ दिया था, लेकिन मौजूदा सरकार ने करीब 5500 करोड़ की पहली किश्त भी जारी कर दी है. प्रधानमंत्री ने कहा कि वन रैंक, वन पेंशन के रूप में 10,000 करोड़ का बजट है, मैंने प्रधानमंत्री बनने के बाद फैसला कर लिया, कब रिटायर होगा, किस साल रिटायर होगा, कुछ नहीं, सबको वन रैंक वन पेंशन मिलेगा. 10,000 करोड़ में से साढ़े पांच हज़ार करोड़ की राशि दी जा चुकी है. यानी आधी राशि बंट चुकी है. पूर्व सेनाध्यक्ष और अब केंद्रीय मंत्री वीके सिंह का भी बयान आया है. वीके सिंह ने कहा कि अफसर लेवल पर 90 फीसदी से ज्यादा मांगें पूरी हो चुकी है. जवानों के स्तर पर कुछ दिक्कत है. फिर कोई जवान आत्महत्या क्यों करेगा. सवाल है कि क्या सभी को वन रैंक, वन पेंशन मिल चुका है. हमारे सहयोगी अरशद जमाल यूपी के इटावा के सैनिक कल्याण बोर्ड के दफ्तर गए. राज्य सरकार की यह संस्था है, जिसका काम होता है भूतपूर्व फौजियों के विवादों को संबंधित विभागों से मिलकर निपटाना. मैंने भी दिल्ली से दो तीन सैनिकों से बात की कि वन रैंक, वन पेंशन के बारे में जो कहा जा रहा है, क्या उन्हें मिल रहा है.

सैनिक कल्याण बोर्ड के एक सदस्य ने बताया कि इटावा में 6,491 भूतपूर्व फौजी हैं. इस दफ्तर के सूत्रों ने बताया कि ज़िले में सिर्फ 30 से 40 प्रतिशत सैनिकों को ही वन रैंक, वन पेंशन की पहली किश्त मिली है. हर दिन कोई न कोई पूछने आता है कि पेंशन की कोई सूचना आई. यहां आने वाले बड़ी संख्या में सैनिक बताते हैं कि बहुतों को पेंशन ऑर्डर नहीं मिला है. एक सैनिक ने कहा कि पचास फीसदी सैनिको को वन रैंक, वन पेंशन की राशि नहीं मिली है. प्रतिशत में भले अंतर हो मगर बातों से लगा कि आधे से भी ज्यादा रिटायर सैनिकों को वन रैंक, वन पेंशन की किश्त नहीं मिली है.

आत्महत्या करने वाले रामकिशन जी के साथ आए साथी सैनिक ने भी यही बात कही थी. किसी को मिला है किसी को नहीं मिला है. इटावा के एक व्यक्ति ने अपने पिता का आर्मी नंबर देते हुए कहा कि लखनऊ के ग्राम पोस्ट गढ़ी चुनौटी के रहने वाले हवलदार भीखम सिंह को वन रैंक, वन पेंशन की किश्त नहीं मिली है. मिलेगी भी या नहीं, इसकी कोई सूचना उन तक नहीं पहुंची है. उनके बेटे ने अपने पिता का आर्मी नंबर 2947955 बताया. कहा कि 89 में रिटायर हुए थे और 11,000 पेंशन मिल रही है, जबकि वन रैंक, वन पेंशन की राशि का अभी तक पता नहीं.

केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने कहा कि जवानों को लेकर दिक्कतें आ रही हैं, लेकिन अफसरों की 90 फीसदी मांगें पूरी हो गई हैं. देखिये यहां भी अफसर का काम पहले होता है, जवानों का काम बाद में होता है. उसी तरह इलेक्ट्रॉनिक मैकेनिकल इंजीनियर से रिटायर हुए हवलदार बलराम ने फोन पर बताया कि वे 2012 में रिटायर हुए थे. अभी तक वन रैंक, वन पेंशन की कोई किश्त नहीं आई है. उनके कुछ साथियों की पेंशन आ गई है.

वन रैंक, वन पेंशन के तहत नई पेंशन राशि क्या होगी, कितने की किश्त मिलेगी, इसके लिए पेंशन ऑर्डर नहीं मिला है. जिनके खाते में पैसा आया है, उन्हें भी कोई पेंशन ऑर्डर नहीं मिला है कि कितना मिलना चाहिए और कितना दिया जा रहा है. कम से कम हमने जितनों से बात की, सबने ये बात कही है. यूपी के औरैया के एक्स सूबेदार गंभीर सिंह को भी मैंने फोन लगाया जो 2003 में लखनऊ के आर्मी मेडिकल कोर से रिटायर हुए थे. गंभीर सिंह ने बताया कि 2003 में रिटायर होने के बाद उन्हें 25,506 रुपये पेंशन के तौर पर मिल रही थी. उन्हें तीन तीन हज़ार की दो किश्त यानी 6000 की रकम तो मिली है, लेकिन कोई पेंशन ऑर्डर नहीं मिला है कि वन रैंक, वन पेंशन के तहत नई राशि क्या होगी. मगर 6,000 रुपया किस हिसाब से दिया गया यही पता नहीं हैं. गंभीर सिंह ने बताया कि उनके बाद अलग-अलग यूनिट और रैंक से रिटायर हुए कुछ साथियों के खाते में 16,000 की राशि आई है, तो किसी के खाते में 21,000 की राशि. मगर सबका कहना है कि किसी के पास ये लिखित नहीं है कि उनकी नई पेंशन क्या होगी, 16,000 क्यों दिया जा रहा है. ज़्यादातर साथियों के खाते में तो पेंशन की कोई नई राशि नहीं आई है.

ज़्यादातर सैनिक इसकी भी शिकायत करते मिले कि सातवें वेतन आयोग का पैसा नहीं मिला है, जबकि नौकरशाही के कई अंगों को मिल चुका है. जान देने में तो हमारे सैनिक एक पल की नहीं सोचते तो क्या सरकार को उनकी पेंशन और वेतन का काम भी जल्दी-जल्दी नहीं कर देना चाहिए. एक ऐसे वक्त में जब हर दिन सेना के जवानों की बात हो रही है, उनके नाम पर सवालों को दबाया जा रहा हो, एक सैनिक की आत्महत्या की खबर सामान्य तो नहीं है. देखते देखते वेबसाइट से लेकर ट्विटर की टाइमलाइन पर यह ख़बर फैलने लगी. दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और आप के विधायक कमांडर सुरेंद्र सिंह राममनोहर लोहिया अस्पताल पहुंचे. पुलिस ने उन्हें वहां से डिटेन कर लिया और संसद मार्ग थाने पर ले गई. मुख्यमंत्री केजरीवाल से धक्कामुक्की हुई, जिससे उनका चश्मा टूट गया.

दोपहर में ही कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी अस्पताल पहुंचे. राहुल गांधी को भी अस्पताल के गेट पर रोक दिया. उसके बाद रामकिशन गेरेवाल के परिवार वाले बाहर आने लगे, लेकिन कुछ पता नहीं चला. राहुल गांधी परिवार के सदस्यों से मिलने की ज़िद करने लगे तो उन्हें भी डिटेन कर लिया गया. वहां से राहुल को मंदिर मार्ग थाने ले जाया गया. वहां जब कांग्रेसी नेता जुटे तो पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया.

राहुल गांधी अड़ गए कि परिवारवालों को रिहा किया जाए. मंदिर मार्ग थाने से निकलकर वे नई दिल्ली इलाके के थानों की चक्कर लगाने लगे. पहले साउथ एवेन्यू पुलिस चौकी गए, वहां से कनॉट प्लेस थाना गए, लेकिन जब मुलाकात नहीं हुई तो वहां से तुगलक रोड स्थित अपने घर चले गए. फिर जैसे ही जानकारी मिली कि रामकिशन गेरेवाल के परिवार वाले कनॉट प्लेस थाने पर हैं, तो राहुल वहां पहुंच गए. जहां उन्हें पुलिस ने दोबारा डिटेन कर लिया. तब तक कांग्रेस के तमाम नेता और कार्यकर्ता वहां पहुंच गए. अब पुलिस ने राहुल को बिठाकर थाने-थाने घुमाना शुरू कर दिया. पुलिस पहले उन्हें संसद मार्ग थाने ले गई, फिर तिलक मार्ग थाने, फिर कनॉट प्लेस थाने ले गई. वहां समर्थकों की भीड़ थी, तो वहां से फिर तिलक मार्ग थाने ले आई. पर सवाल उठता है कि राहुल को रामकिशन गेरेवाल के परिवार वालों से क्यों नहीं मिलने दिया गया. पुलिस अफसर एमके मीणा साहब इतने क्यों अड़े रहे. क्या मीणा साहब ने अस्पतालों के लिए नियम बना दिया है कि कोई नेता अस्पतालों में जाकर पीड़ित परिवार से नहीं मिलेगा. क्या ये नियम सबके लिए है. क्या यह खबर आम नहीं है कि एक पूर्व सैनिक रामकिशन गेरेवाल ने आत्महत्या की है. उनके बेटे मीडिया से बात तो कर ही रहे हैं, फिर इन लोगों की मुलाकात राहुल गांधी या मनीष सिसोदिया से हो जाती तो क्या हो जाता. बहरहाल शाम को राहुल को छोड़ दिया गया.

राइम टाइम इंट्रो : भोपाल जेल में रमाशंकर यादव की हत्या कैसे हो गई, बाकी सुरक्षाकर्मियों ने क्या किया?

मंगलवार को भोपाल में हेड कांस्टेबल रमाशंकर यादव का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. रमाशंकर यादव यूपी के बलिया के रहने वाले थे, मगर इनका परिवार भोपाल में ही बस गया था. बच्चे भी यहीं पले बढ़े हैं. रमाशंकर यादव ने भोपाल सेंट्रल जेल के पीछे अहिल्या नगर में अपना मकान बनाया. यहीं से 9 दिसंबर को उनकी बेटी सोनिया यादव की शादी तय थी. रमाशंकर यादव के दो बेटे हैं. बड़ा बेटा हवलदार शंभुनाथ 36-37 साल का है, जो असम में है. छोटा बेटा लांसनायक प्रभुनाथ हिसार में तैनान है. दोनों बेटों की शादी हो गई है, लेकिन बेटी की शादी के बारे में परिवार फैसला करने की स्थिति में नहीं है कि 9 दिसंबर को ही होगी या इसे टाला जाए. सारी तैयारियां लगभग अंतिम चरण में ही थीं. जेल में रमाशंकर यादव चीफ वार्डर के पद पर तैनात थे. हिन्दी में इस पद को प्रधान प्रहरी कहा जाता है. रमाशंकर यादव की ड्यूटी अतिसुरक्षा वाले सेल में ही थी. दिवाली की रात सेंट्रल जेल से फरार हुए आतंक के मामलों के आठ आरोपियों ने उनकी हत्या कर दी थी. अहिल्या नगर में जेल के कई कर्मचारियों ने अपना घर बनाया है. हमारे सहयोगी सिद्धार्थ रंजन दास और नीता शर्मा से परिवार के सदस्यों ने बातचीत में बताया कि शरीर पर चोट के निशान बताते हैं कि रमाशंकर यादव ने फाइट किया था. बेटे ने कहा है कि उनके पिता की हत्या की जांच होनी चाहिए.

बेटे का भी सवाल है कि यह बात क्लियर होनी चाहिए कि पिता की हत्या कर वे कैसे भाग निकले. इस पूरे मामले में तीन प्रकार के सवाल उठ रहे हैं. पहला सवाल ये है कि रमाशंकर यादव की हत्या कैसे हो गई, बाकी सुरक्षाकर्मियों ने क्या किया, क्या उनका ध्यान बिल्कुल ही रमाशंकर पर नहीं गया. दूसरा सवाल ये है कि आतंक के मामले के आठ आरोपी कैसे भाग गए और तीसरा सवाल एनकाउंटर को लेकर उठ रहा है.

अहिल्या नगर जहां रमाशंकर यादव का घर है, वहां रमाशंकर यादव को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी अंतिम श्रद्धांजलि देने पहुंचे. उन्होंने अहिल्या नगर का नाम रमाशंकर नगर करने का एलान किया है. सम्मान राशि के रूप में दस लाख और बेटी को सरकारी नौकरी की पेशकश की है. शिवराज सिंह चौहान ने भी शव को उठाया. उनके जाने के बाद हाल ही में मंत्री बने स्थानीय विधायक विश्वास नारंग ने रमाशंकर यादव को कंधा दिया और वे श्मशान घाट तक गए. पुलिस के अधिकारी भी मौजूद थे. मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि सवाल नहीं होना चाहिए. लोग रमाशंकर यादव के लिए कम बोल रहे हैं, इन आतंकवादियों के लिए क्यों ज़्यादा बोल रहे हैं.

रमाशंकर यादव के साथ एक और सिपाही चंदन अहिरवार के भी घायल होने की ख़बर आई थी. इनके बारे में पता चला है कि भागने वाले प्रतिबंधित सिमी कार्यकर्ताओं ने रस्सी से बांध कर सेल में डाल दिया था. हमारे सहयोगी श्रीनिवासन जैन ने चंदन अहिरवार जी से भी बात करने का प्रयास किया, चंदन सदमे में हैं, बताया कि उनके पास हथियार नहीं था.

परिवारवालों ने बताया कि 58 साल के रमाशंकर यादव आतंकवादी सेल में तैनात थे और दोपहर से मध्य रात्रि की ड्यूटी पर थे. एक बैरक के भीतर कई सेल होते हैं. हर सेल का अपना दरवाज़ा होता है. उसके बाद बैरक के बाहर भी एक दरवाज़ा होता है जिस पर ताला लगा होता है. पहला सवाल इसी को लेकर उठा कि दो दरवाज़े तोड़ कर कोई कैसे बाहर आ गया. क्या लकड़ी की चाबी या चम्मच की चाबी की बात सही हो सकती है. हमारे सहयोगी श्रीनिवासन जैन ने हेड जेलर एस. के. एस. भदौरिया से भी बात की. भोपाल सेंट्रल जेल आई एस ओ प्रमाणित जेल है तब भी इसके मुखिया कह रहे हैं कि सिमी के इतने लोग बंद रहेंगे तो जेल ब्रेक की घटना हो सकती है. क्या इन्होंने सरकार से यह बात लिखित में कही थी. पुलिस से लेकर हेड जेलर तक सभी कह रहे हैं कि सभी अलग-अलग सेल में थे. सोमवार को आईजी योगेश चौधरी ने भी कहा था कि भागने वाले सभी क़ैदियों को अलग-अलग बैरक में रखा गया था, जो अलग-अलग सेक्टर में थे.

जेल की तीन दीवारों को समझना ज़रूरी है. जिस सेल में आतंकवादी रखे जाते हैं, पहली दीवार उससे सत्तर से अस्सी फीट दूर थी. ये दीवार करीब 35 फीट ऊंची थी. इसके बाद दूसरी दीवार 20 फीट की होती है. सबसे बाहर की दीवार जिसे हम बाउंड्री वाल कहते हैं, वो चार या पांच फीट की होती है. बाहरी चारदिवारी का दायरा दो किमी है. जेल के अंदर 42 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. आतंक के इन आरोपियों को बी और सी सेक्शन में रखा गया था, जिसके चार सीसीटीवी कैमरे काम नहीं कर रहे थे. हमारी सहयोगी नीता शर्मा का कहना है कि इनसे कुछ भी नहीं मिला है. अब यह साफ नहीं है कि एक बैरक जिसके भीतर कई सेल होते हैं, वहां चार ही सीसीटीवी कैमरे होते हैं या और भी अधिक होते हैं.
जेलर ने बताया कि जेल में 5-6 कैमरे 360 डिग्री पर घूमने वाले हैं. क्या इनसे भी आठों के आठों बच गए.

इस घटना ने जेल के सिस्टम को एक्सपोज़ किया है इसलिए भागे जाने को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि कोई बिना किसी प्रतिरोध के इतनी बड़ी संख्या में कैसे भाग गया, वो भी एक जवान की हत्या करके। जेल मंत्री ने श्रीनिवासन जैन के साथ बातचीत में माना कि उनकी ज़िम्मेदारी बनती है, लेकिन वो डेढ़ महीना पहले जेल मंत्री बनी हैं. ये बात भी ठीक है. मंत्री को हटा देने से सवालों के जवाब नहीं मिल जाते हैं, क्योंकि जेल का निर्माण तो डेढ़ महीने पहले नहीं हुआ है.

सीसीटीवी का फुटेज अब भागने वालों से ज्यादा रमाशंकर की हत्या का पता लगाने के लिए ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि अगर रमाशंकर की शहादत के नाम पर सवालों को संदिग्ध किया जा रहा है तो कम से कम उनकी हत्या का मामला ज़रूर खुलना चाहिए. जेल की पुलिस और राज्य की पुलिस दो अलग-अलग संस्थाएं हैं. मध्य प्रदेश के गृहमंत्री ने सोमवार को 'प्राइम टाइम' में बताया था कि 12 से 3 बजे के बीच घटना हुई और साढ़े चार बजे के करीब राज्य पुलिस को सूचना मिली. डेढ़ घंटे की देरी हुई. भागने वालों के पास इतने हथियार कैसे आ गए, अगर हथियार आए तो भागने के लिए गाड़ी भी मिल सकती थी, और जेल से सटे हाईवे की तरफ भी ध्यान जा सकता था. हमारी सहयोगी नीता शर्मा ने एनकाउंटर की जगह का मुआयना करते हुए दिखाया कि चोटी से थोड़ी दूर एक झोपड़ी है वहां पर पहले ये छिपे हुए बताये जा रहे थे. रात अंधेरे किसी सुरक्षाकमर्मी की हत्या कर भागेगा तो यहां इस झोपड़ी में क्यों छिपेगा. वो भी इनमें से तीन भागने वाले पहले भी खंडवा जेल से भाग चुके हैं. वो काफी लंबे समय तक फरार रहे थे और कथित रूप से कई तरह की आपराधिक और आतंकी गतिविधियों में इन पर शामिल रहने का आरोप भी लगा.

रमाशंकर यादव की हत्या, जेल प्रशासन की चूक इन दो सवालों के बाद आता है, एनकाउंटर का सवाल. कई तरह के आए बयानों और वीडियो फुटेज ने भी सवाल की गुंज़ाइश पैदा की है. एक बयान आया कि ये जेल से भागकर वारदात करने वाले थे. जब ये पता था कि वारदात करने वाले थे तो क्या ये पता नहीं लगा कि ये जेल से भी भागने वाले थे. यह बात भी सही है कि अगर इनका एनकाउंटर नहीं होता, या ये पकड़े नहीं जाते तो आज मध्य प्रदेश पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की हालत ख़राब होती. लेकिन इस तरह से एनकाउंटर का होना आप चाहें भी तो सवालों से नहीं बच सकते हैं. श्रीनिवासन जैन ने आई जी योगेश चौधरी से भी बात की. एनकाउंटर के चौबीस घंटे बाद भी आई जी योगेश चौधरी कह रहे हैं कि जो तीन जवान धारदार हथियार से घायल हुए हैं. फरार कैदियों की तरफ से पुलिस की ओर गोलियां चलाई गईं. फिर धारदार हथियार यानी शार्प वेपन से जवान कैसे घायल हो गए. क्या ये एनकाउंटर एकदम पास पास हो रहा था. तेज़ हथियार से घायल तो तभी होगा जब दोनों पक्ष एक दूसरे के करीब हों. गांव के सरपंच मोहन सिंह मीणा ने भी समाचार एजेंसी ए एन आई से बात की. मीणा के जवाब से मालूम पड़ता है कि वे पत्थर चला रहे थे. पुलिस कहती है कि उनके पास देसी बंदूकें थीं, मगर एनकाउंटर में जो तीन सिपाही घायल हुए हैं वो धारदार हथियार से घायल हुए हैं. क्या पत्थर भी शार्प वेपन में गिना जाता है.

कई लोग मारे गए आठ लोगों को आतंकवादी कह रहे हैं. हमें पत्रकारिता में सिखाया गया है कि साबित होने से पहले तक आरोपी या कथित रूप से आरोपी लिखना चाहिए. मगर सब आतंकवादी कह रहे हैं जबकि किसी को सज़ा नहीं हुई है. अतीत में कई ऐसे मामले हुए हैं, जिनमें आतंक के मामले में लोग दस बीस साल तक जेल में बंद रहे, उन्हें आतंकवादी ही कहा जाता रहा मगर उनके खिलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला और वे सुप्रीम कोर्ट से बरी हो गए. आतंक के आरोप में तमाम अदालतों से बरी हुए 24 ऐसे लोगों की कहानी संकलित कर जामिया टीचर्स सोलिडेरिटी एसोसिएशन ने एक किताब प्रकाशित की थी. किताब का नाम है Framed Dammed Aquitted. इस किताब में बरी हुए हर केस के पीछे मीडिया की क्लिपिंग भी है, जिसमें आप देख सकते हैं कि गिरफ्तारी के वक्त मीडिया कैसे आतंकवादी कहने लगता है. मीडिया ही नहीं, रिश्तेदार, दोस्त-यार सब दूरी बना लेते हैं.

आप हमारे स्क्रीन पर इस वक्त दो तस्वीरें देख रहे हैं. एक तस्वीर उस नौजवान की है, जब वो 20 साल था यानी 1994 की. एक तस्वीर 31 मई 2016, अब उम्र है 43 साल. इन दो तस्वीरों के बीच इस शख्स की ज़िंदगी के 8150 दिन जेल में गुज़रे हैं. 23 साल जेल में गुज़ारने के बाद एक दिन जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन बयानों के आधार पर निसार को आजीवन कारावास की सज़ा काटनी पड़ी है वो सबूत के तौर पर पर्याप्त नहीं हैं. जेल से बाहर आकर निसार को लगा कि अब वो सिर्फ एक ज़िंदा लाश की तरह बचा हुआ है. 23 साल तक बग़ैर किसी गुनाह के जेल में रहने के बाद जब घर आया तो अब्बा इस दुनिया से जा चुके थे. अपनी अम्मी से लिपटा तो रो पड़ा, शायद बहुत ही रोया होगा.

कई राज्यों की पुलिस ने निसार को कई बम धमाकों में आरोपी बनाकर 23 साल तक जेल में रखा मगर सुप्रीम कोर्ट ने यही कहा कि इकबालिया बयान पर्याप्त रूप से सबूत नहीं है. अब आप दर्शक तय करें. यह पूछा जा रहा है कि भोपाल के भागे सिमी कार्यकर्ताओं को कुछ लोग या कुछ पत्रकार आतंकवादी क्यों नहीं कह रहे हैं. इस सवाल का जवाब दिया जाना चाहिए और पूछने वाले बिल्कुल सही सवाल पूछ रहे हैं. मैं छोटा सा प्रयास करता हूं. सोशल मीडिया पर भद्दी गालियों के साथ सवाल पूछने वाले कह रहे हैं कि क्या इन्हें आतंकवादी इसलिए नहीं कहा जा रहा है क्योंकि ये मुसलमान हैं. अव्वल तो ज़्यादातर चैनल और अखबार आतंकवादी ही लिख रहे हैं, इसलिए ये शिकायत वाजिब नहीं है. शिकायत ये होनी चाहिए कि क्यों आतंकवादी लिख रहे हैं… पर ख़ैर. निसार का ही केस लीजिए. मुझे आप पर यकीन है. आप निसार की कहानी जानकर ये नहीं कहेंगे कि मुसलमान के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए. यही कहेंगे कि किसी भी भारतीय के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए, तो भोपाल मामले में जिन्हें आरोपी कहा जा रहा है, उन्हें आतंकी कहने की ज़िद क्यों हैं. हां, वो आतंक के आरोप में बंद ज़रूर हैं और एक सिपाही की हत्या करने का भी आरोप लगा है. एक केंद्रीय मंत्री ने भी इशारे में धर्म के कारण इनसे सहानुभूति की बात कही है. एनकाउंटर ने सबको सताया है. हिन्दू को भी, सिख को भी, आदिवासी को भी और न जाने किस-किस को. हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस में एक ख़बर छपी थी.


(आईएएस अफसर किंजल)

लखनऊ से मनीष साहू की ये स्टोरी है. ये आई ए एस अधिकारी किंजल हैं, जो स्टोरी लिखे जाने के वक्त बहराइच की डीएम थी. किंजल के पिता के पी सिंह यूपी पुलिस में डी एस पी थे. जब वो पांच साल की थी तब उसके पिता को पुलिस के ही लोगों ने एनकाउंटर कर दिया. एनकाउंटर साबित करने के लिए के पी सिंह के साथ साथ गांव के 12 लोगों को मार दिया. 31 साल तक बेटी ने ये मुकदमा लड़ा. इस बीच वो आई ए एस अफसर बन गई. मगर बाप अपराधियों की संगत में एनकाउंटर में मारा गया, कैसे बर्दाश्त कर सकती थी. 31 साल बाद कहानी ये निकली कि के पी सिंह खुद दो अपराधियों को पकड़ने गए थे, लेकिन पीछे खड़े सब इंस्पेक्टर आर बी सरोज ने उनकी छाती में गोली उतार दी. इंस्पेक्टर सरोज को आजीवन कैद की सज़ा हुई. 12 पुलिस अधिकारियों को सज़ा हुई. इनमें हिन्दू भी थे और मुसलमान भी. इसलिए पुलिस के एनकाउंटर पर सवाल उठते रहे हैं. इसका हिन्दू या मुसलमान से कोई लेना देना नहीं है.

इसका मतलब यह नहीं है कि भोपाल जेल से भागने वाले अपराधी निर्दोष हैं. जब तक आरोप साबित नहीं होता तब तक वे निर्दोष भी नहीं हैं, लेकिन एनकाउंटर पर सवाल क्यों नहीं किया जा सकता है. जेल से कैसे भागे, क्यों नहीं सवाल हो सकता, रमाशंकर यादव की हत्या कैसे हुई क्यों नहीं सवाल हो सकता. हमने यह भी देखा कि मालेगांव बम धमाके की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के बारे में मीडिया ने कैसे लिखा है. आरोपी लिखता है या आतंकवादी लिखता है. हम सारे अखबारों को तो खंगाल नहीं सके लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की हेडिंग में सीधे पूरा नाम लिखा है. हेडिंग में आरोपी भी नहीं लिखा है, आतंकवादी भी नहीं लिखा है.

बेहतर है कि आप सरकार और अदालत मिलकर तय कर लें कि अब से पुलिस जिसे भी पकड़ लेगी, वो चोर, डाकू, हत्यारा या आतंकवादी कहलाएगा. आरोपी या कथित रूप से आरोपी नहीं लिखा जाएगा. सबके लिए ये नियम बन जाना चाहिए. जबतक ये नियम न बन जाए, मुझे आरोपी लिखने में कोई दिक्कत नहीं है. शायद नासिर या आई ए एस अफसर किंजल को भी दिक्कत नहीं होगी.

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