स्तन ढकने के लिए संघर्ष करने वाली दलित महिला का पाठ्यक्रम CBSE ने हटाया

 

स्तन ढकने के लिए संघर्ष करने वाली दलित महिला का पाठ्यक्रम  CBSE ने हटाया
 

नई दिल्ली। केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद दलितों और महिलाओं पर लगातार अत्याचार बढ़ रहे हैं। यही नहीं बदलाव की आड़ में दलितों और महिलाओं के संघर्ष की लड़ाई का इतिहास भी दबाया जा रहा है। ऐसा ही कुछ करने की कोशिश की है भारत सरकार द्वारा संचालित केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने। सीबीएसई ने 19वीं सदी में दक्षिण भारत में अपने स्तनों को ढकने के हक के लिए लड़ाई लड़ने वाली नांगेली नाम की महिला की कहानी को पाठ्यक्रम से हटाने का फैसला किया है।
 
सीबीएसई में 2006-2007 में " Caste Conflict and Dress Change " नाम से पाठ्यक्रम के सेक्शन में इस आंदोलन को जोड़ा गया था। उस समय बहुत से सामाजिक संगठनों ने उस आंदोलन के बारे में किताबों में बताए जाने पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की थी। कई संगठनों का इस बारे में कहना था कि एक औरत के स्तनों को ढकने के लिए आंदोलन और उसके स्तन को काट लिए जाने की कहानी शर्मनाक है और बच्चों को नहीं पढ़ाई जानी चाहिए।
 
आपको बता दें कि नांगेली केरल के त्रावणकौर की एक दलित महिला थीं। जिन्होंने 19वीं सदी में वहां के राजा के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। ये लड़ाई थी तथाकथित दलित जाति की महिलाओं के लिए स्तन ढकने का अधिकार पाने की।
 

 
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि त्रावणकोर में नीची जातियों की महिलाओं को अपने शरीर का ऊपरी हिस्सा ढकने की इजाजत नहीं थी। यही नहीं महिलाओं को अपने स्तन ढंकने के लिए टैक्स देना पड़ता था। इस टैक्स को त्रावणकोर के राजा ने लगाया था। इस टैक्स को बहुत सख्ती से लागू किया गया था।
 
नांगेली भी एक तथाकथित नीची जाति की महिला थीं। उन्होंने राजा के इस अमानवीय टैक्स का विरोध किया। नांगेली ने अपने स्तन ढकने के लिए टैक्स नहीं दिया। मामला राजा तक पहुंचा तो सजा के तौर पर इस जुर्म के लिए त्रावणकोर के राजा ने नांगेली के स्तन कटवा दिए। जिससे उसकी मौत हो गई।
 
नांगेली की मौत ने दक्षिण भारत में एक सामाजिक आंदोलन की चिंगारी भड़का दी। सभी तथाकथित नीची जातियों के लोग इस अपमान भरे क़ानून के ख़िलाफ़ एक हो गए और बगावत का ऐलान कर दिया। नांगेली की शहादत के परिणाम स्वरूप दलित जातियों की महिलाओं के लिए ये काला कानून खत्म कर दिया गया।
 

 
सीबीएसई ने स्कूलों के पाठ्यक्रम से उस महिला की बग़ावत की कहानी हटाने का ये जो फ़ैसला लिया है यह बहुत ही ग़लत और शर्मनाक है। देश के इतिहास में यह स्थिति उस समय के समाज में व्याप्त जातिगत अपमान की, जातिगत उत्पीड़न की और नीचता की पराकाष्ठा थी।
 

सीबीएसई का यह फ़ैसला उस अपमानजनक इतिहास को मिटाने की, उन ब्राह्मण वादी सोच के लोगों की सोची समझी साज़िश है। वे ऊंची जातियों के लोग इतने क्रूर थे, इतने बदमाश थे कि अपनी कुंठित काम पिपासा को वे नीची जाति की स्त्रियों को नग्न रहने को मज़बूर करके पूरा किया करते थे।
 
एक तरफ जहां स्वतंत्र भारत में व्यक्ति के मान सम्मान की रक्षा मौलिक अधिकारों के रूप में की गई है, वहीं स्कूल के पाठ्यक्रम से इतिहास के इतने बड़े तथ्य को पूरी तरह से ग़ायब कर देना किसी भी रूप में देश के समग्र विकास के लिए ठीक नहीं है।

Courtesy:National dastak
 

Trending

IN FOCUS

Related Articles

ALL STORIES

ALL STORIES