धार्मिक सत्ताओं के तहत चलने वाले देशों को तानाशाही के रूप में खुद को बनाए रखने के लिए धार्मिक खुराकों की जरूरत पड़ती रहती है। पाकिस्तान बनने के बाद से ही यह लगातार देखा जा सकता है कि वहां तानाशाही के लिए धार्मिक और भाषाई आधार पर महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लोकतांत्रिक अधिकारों में कटौती की गई। सबसे बुरे तानाशाह मुहम्मद जिया-उल-हक़ (1978-88) ने घोषणा की कि बतौर एक इस्लामी राज्य पाकिस्तान 'निजाम-ए-मुस्तफा' (मुहम्मद के नियमों) से शासित होगा। इसके बाद इस्लामी कानूनों के दौर में महिलाओं और ईसाई, हिंदू, शिया और अहमदिया जैसे अल्पसंख्यकों के लिए पाकिस्तान एक साक्षात नरक बनता गया।
दिलचस्प है कि जिस खूंखार ईश-निंदा कानून को जिया-उल-हक़ ने मजबूती दी, उसे तथाकथित रूप से लोकतांत्रिक तौर पर चुने गए एक शासक, जुल्फि़कार अली भुट्टो (1971-77) ने पेश किया था। भुट्टो ने ही हुदूद कानून लागू किया, जिसने महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदायों को दोयम दर्जे के इंसान में तब्दील कर दिया। लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई बेनजीर भुट्टो (1988-90 और 1993-96) भी इस्लामवाद से चिपकी रहीं और पाकिस्तान को धार्मिक खुराक मिलती रही। यानी इन सभी ने पाकिस्तान को वैसा ही देश बनाए रखने में अपनी भूमिका निभाई। पाकिस्तान में धार्मिक सत्ता के निर्माण के बाद के स्वाभाविक नतीजे आज भी सामने हैं। उसी इस्लामवाद की ताजा धार्मिक खुराक एक आधिकारिक धार्मिक एजेंसी (सीआईआई यानी काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियोलॉजी) की ओर से इस मांग के रूप में सामने आई है कि मुसलमान मर्दों को अपनी पत्नियों को पीटने का हक मिलना चाहिए।
त्रासद प्रहसन यह है कि इस तरह की अपमानजनक मांग एक ऐसे दस्तावेज के तहत की गई है, जिसे सीआईआई ने 'महिला सुरक्षा बिल' का नाम दिया है। इस काउंसिल ने यह प्रस्ताव सामने रखा कि अगर पत्नी अपने पति के नियंत्रण की अनदेखी या उपेक्षा करती है और उसकी मर्जी के मुताबिक कपड़े पहनने से इनकार करती है, बिना किसी 'उचित धार्मिक' कारण के सेक्स से मना करती है, सेक्स या माहवारी के बाद नहाती नहीं है तो पति को यह हक मिलना चाहिए कि वह अपनी पत्नी को 'थोड़ा-बहुत' पीटे। वैसी हालत में भी पिटाई की इजाजत मिलनी चाहिए जिसमें एक औरत हिजाब नहीं पहनती है, अनजान लोगों से बात करती है, ऊंची आवाज में बोलती है। ऐसी और भी स्थितियां हैं।
लेकिन ठहरिए। आप पूरी तरह गलतफहमी में हैं अगर आप मानते हैं कि यह केवल एक धार्मिक देश पाकिस्तान में हो रहा है। भारत में हिंदुत्व के नाम पर चलने वाले संगठन भी पूरे जोशो-खरोश से देश को एक हिंदू धार्मिक देश में तब्दील कर देने के लिए काम कर रहे हैं, जिसमें वे हिंदू महिलाओं को मारने-पीटने का समर्थन करते हैं। हालांकि उनका तरीका थोड़ा बारीक और संगठित है। दुनिया का एक सबसे बड़ा संगठन हिंदी और अंग्रेजी में स्वामी रामसुखदास की जो किताब बांट रहा है उसका शीर्षक है- 'गृहस्थ में कैसे रहें'। सवाल-जवाब की शक्ल में यह किताब हिंदू जीवन के अभ्यासों के बारे में बताती है।
मसलन, एक सवाल है- 'अगर पति मारता है या मुश्किल में डालता है तो पत्नी को क्या करना चाहिए?' इसका जवाब है- 'पत्नी को यह सोचना चाहिए कि वह अपने पूर्वजन्म का कर्ज उतार रही है और इस तरह उसके पाप कट रहे हैं और वह पवित्र हो रही है। …उसे धीरज के साथ अपने पति से पिटाई को बर्दाश्त करना चाहिए। इससे वह पापों से मुक्त होगी और संभव है कि उसका पति उसे फिर से प्यार करना शुरू कर दे।' ऐसी ही और बातें किताब में दर्ज हैं।
यह किताब 1990 में आई और हिंदी और अंग्रेजी में अब तक इसके पचास संस्करण आ चुके हैं, 1.2 मीलियन प्रतियां वितरित की जा चुकी हैं। दिलचस्प यह है कि विदेशों में रहने वाले एनआरआइ यानी आप्रवासी भारतीयों के बीच यह सबसे लोकप्रिय किताब है। इस किताब के प्रकाशकों के पास महिलाओं पर ऐसे ही दस और दूसरी किताबें भी हैं, जिन्हें देश भर में सैकड़ों और एक सौ दस रेलवे स्टेशनों पर गीता प्रेस की दुकानों पर बेचा जा रहा है। रेलवे स्टेशनों पर गीता प्रेस को केंद्र सरकार मुफ्त जगह मुहैया कराती है।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में 'हिंदुत्व के भाईचारे' का यह काम पाकिस्तान के इस्लामवादियों के मुकाबले चुपचाप शांति से चल रहा है और इसका कोई प्रचार नहीं हो रहा है। दरअसल, इस्लामवादी और हिंदुत्व के दावे करने वाले भले एक दूसरे के खिलाफ दिखें या खुद को एक दूसरे के खिलाफ पेश करें, लेकिन सच यह है कि महिलाओं को गुलाम बनाए रखने के लिए वे एक दूसरे का हित साधते हैं।