अदालतों में अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यकों की भागीदारी की निरंतर उपेक्षा का नतीजा इस रूप में सामने आया है कि इस समय सुप्रीम कोर्ट में एक भी मुस्लिम न्यायाधीश नहीं है। विविधता भरे देश भारत में स्वाभाविक रूप से अपेक्षा की जाती है कि इसकी सबसे बड़ी अदालत में तो सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों का समुचित प्रतिनिधित्व हो ही, जबकि स्थिति इसके एकदम विपरीत है।
सर्वोच्च न्यायालय में इस साल केवल दो मुस्लिम न्यायाधीश ही थे जो सेवानिवृत्त हो गए। इस तरह से पिछले 11 वर्षों में पहली बार ये स्थिति बनी है कि देश की सबसे बड़ी अदालत में एक भी न्यायाधीश मुस्लिम नहीं है।
हालाँकि, इसके पहले भी कोई बहुत अच्छी स्थिति नहीं रही और मुस्लिम न्यायाधीशों की संख्या सर्वोच्च न्यायालय में नाममात्र की ही रही, लेकिन अब वो नाममात्र की मौजूदगी भी समाप्त हो जाना देश की न्यायिक भर्ती प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े करती है। सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हो चुके 196 और मौजूदा 28 न्यायाधीशों में कुल 17 यानी 7.5 प्रतिशत जज ही मुस्लिम रहे हैं। इससे पहले अप्रैल 2003 से सितंबर 2005 तक सुप्रीम कोर्ट में कोई भी मुस्लिम न्यायाधीश नहीं था।
आखिरी बार 2012 में दो मुस्लिम न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे और न्यायमूर्ति एमवाई इकबाल और न्यायमूर्ति फकीर मोहम्मद को सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बनने का मौका मिला था। उसके बाद से अब तक एक भी मुस्लिम न्यायाधीश को सुप्रीम कोर्ट लायक नहीं समझा गया।
न्यायाधीशों के चयन के लिए कॉलेजियम प्रणाली हो या न्यायिक आयोग हो, इसको लेकर विवाद और अब भी सरकार और कॉलेजियम के बीच विवाद के कारण न्यायाधीशों के पदों पर चयन नहीं हो पा रहा है। इस वजह से भी मुस्लिम न्यायाधीशों के भी चयनित होने में देरी हो रही है।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में 28 न्यायाधीश हैं, जबकि कुल पद 31 हैं। चार न्यायाधीश इस साल के आखिर तक सेवानिवृत्ति हो जाएँगे और कुल न्यायाधीश 24 ही बचेंगे।
देश के उच्च न्यायालयों में मुस्लिम न्यायाधीशों की ओर नजर डालें तो दो बिहार और हिमाचल प्रदेश में मुख्य न्यायाधीश मुस्लिम हैं। बिहार के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति इकबाल अहमद अंसारी अगले साल अक्टूबर में रिटायर होंगे। हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मंसूर अहमद मीर अगले साल अप्रैल में ही रिटायर हो जाएँगे।
अगर इन दोनों को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया जाता है, तो इनके सेवाकाल को भी विस्तार मिल जाएगा क्योंकि उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिटायर होने की उम्र 62 और उच्चतम न्यायालय में 65 साल है।