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स्वच्छ भारत सिर्फ दलितों की जिम्मेदारी नहीं है, अब साफ करो संघियों

गौ – आतंकवाद नहीं चलेगा. गुजरात में भी नहीं चलेगा

UPDATE:

– पूरे प्रदेश में तूफान. कई जगहों पर लोगों ने ट्रैफिक रोका. बसों में तोड़फोड़, सड़कों पर टायर जलाए गए
– सुरेंद्रनगर कलेक्टर ऑफिस में तीन ट्रक भरकर गायों के शव पहुंचाने के बाद, कई और कार्यालयों में गायों के अवशेष पहुंचाए गए
– बहन मायावती ने मामला राज्य सभा में उठाया, राज्यसभा की कार्यवाही रोकी गई
– देश के तमाम राष्ट्रीय चैनलों ने साधी चुप्पी
– गुजराती चैनलों ने जनता से शांति बनाए रखने की अपील की
– गुजरात में इंटरनेट पर लग सकती है रोक
– राज्य सरकार ने सीआईडी जांच के आदेश दिए
– गिरफ्तार गो – तालीबान की संख्या नौ हुई
– सस्पेंड होने वाले पुलिस अफसर तीन
– मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल पर इस्तीफे के लिए दबाव, फैसला संघ करेगा

अभी-अभी
 विश्व हिंदू परिषद, गुजरात प्रदेश ने गाय की खाल उतार रहे दलितों पर अत्याचार की निंदा की है…. कड़े शब्दों में:

मोहन भागवत अपनी मां का अंतिम संस्कार कर लें, फिर इस पर विचार किया जा सकता है.

विश्व हिंदू परिषद को मालूम है कि जिस दिन दलितों और पिछड़ों ने गुलामी छोड़ दी उस दिन सवर्ण हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे. मुसलमानों से तीन प्रतिशत कम.
मोहन भागवत अपनी गोमाता का अंतिम संस्कार कर लें, फिर इस पर विचार किया जा सकता है.

और अब राजकोट हाईवे पर गोमाताओं की लाश रखकर ट्रैफिक जाम और प्रदर्शन…पूरा गुजरात उबल रहा है. मुख्यमंत्री को तत्काल इस्तीफा देना चाहिए. पीड़ित दलितों को 50 लाख करके मुआवजा, सरकारी नौकरी. गौ-आतंकवादियों पर धारा 307 और दलित उत्पीड़न निवारण एक्ट के तहत मुकदमा. फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई

यह सवर्ण जुल्मों के खिलाफ दलित – बहुजन प्रतिरोध की सुनामी है. ताजा तस्वीर गुजरात के जामनगर से.

गुजरात के एक नगरपालिका ऑफिस में सजावट का सामान लाते दलित. स्वच्छ भारत सिर्फ दलितों की जिम्मेदारी नहीं है. कल दोपहर की तस्वीर…. यह गाय-आतंकवाद संघ को बहुत महंगा पड़ेगा.
अब साफ करो संघियों
 

गुजरात जल रहा है. दलितों पर गौ-तालीबान के अत्याचार के विरोध में शहर के शहर बंद हैं. सड़कें जाम हैं.

लेकिन राष्ट्रीय मीडिया, चैनल और अखबार मुंह में दही जमाए बैठे हैं. अंतरराष्ट्रीय मीडिया में यह खबर है. BBC पढ़िए. राष्ट्रीय मीडिया, संपादक, एंकर सब सदमे में हैं, मानों गोमाता का अंतिम संस्कार करने उन्हें ही जाना है.
पूरा राष्ट्रीय मीडिया एक पवित्र धागे से बंधा है.

शुक्र है कि सोशल मीडिया है. बहुजन पब्लिक स्फीयर अब चैनलों और अखबारों का मोहताज नहीं है.

राष्ट्रपुरोहित मोहन भागवत गुजरात में सड़क पर पड़ी अपनी माता का अंतिम संस्कार करने में आनाकानी कर रहे हैं…. दो दिन हो गए. आप लोग उन्हें समझाते क्यों नहीं?

यह तो गंदी बात है.
संघ के त्योहार गुरु पूर्णिमा पर रोहित वेमुला और डेल्टा मेघवाल को याद करते हुए, जिन्हें उनके गुरु ही खा गए.

साल की शुरुआत में रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर का आंदोलन, फिर राजस्थान में डेल्टा मेघवाल की हत्या की देश भर में जबर्दस्त प्रतिक्रिया और अब गुजरात में दलितों का शानदार प्रतिरोध….

 

मेरे लिए इसके तीन मायने हैं.

1. दलितों ने जुल्म सहने से मना कर दिया है .
2. दलितों को समाज के तमाम न्यायप्रिय तबकों का समर्थन मिल रहा है. खासकर दलित और मुसलमानों की एकता के मजबूत सूत्र उभरे हैं .
3. चैनल और अखबार इनके आंदोलन की अनदेखी करते थे. इसलिए फेसबुक, WhatsApp, और इंटरनेट पर इन्होंने अपना ताकतवर मीडिया बना लिया है. ये आंदोलन किसी चैनल और अखबार के मोहताज नहीं हैं.

जब तक नागपुर से आवाज न आए, तब तक मैं किसी दलित-बहुजन आंदोलन को राष्ट्रीय नहीं मान पाता…. नागपुरवालों, गुजरात के साहसी लोगों का स्वागत नहीं करोगे?
पहली तस्वीर नागपुर की. दूसरे में गुजरात.
ये लो एक और.
तुम्हारी अम्मा, तुम करो अंतिम संस्कार!
गुजरात के सरकारी दफ्तर में गोमाताओं की लाश पहुंचाई जा रही है.

 
 
 
 
 
 

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