गुजरात की भाजपा सरकार ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का अपना निर्णय वापस ले लिया है। पाटीदार समुदाय के आरक्षण आंदोलन से परेशान पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने निर्णय लिया था कि 6 लाख से कम सालाना आय वाले सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा।
इस आरक्षण को निलंबित करने की अधिसूचना सभी सरकारी विभागों को जारी कर दी गई है।
गुजरात उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय की एक पीठ भी सवर्णों को आरक्षण दिए जाने को असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर चुकी है। फिलहाल ये मामला उच्चतम न्यायालय की वृहद पीठ के सामने लंबित था। सरकार ने पहले कहा था कि सवर्णों के 10 आरक्षण देने के अपने निर्णय के पक्ष में वह पूरी ताकत से लड़ेगी लेकिन अब उसने पलटी मारते हुए ये निर्णय पलट दिया है।
विपक्ष के नेता शंकर सिंह वाघेला और कांग्रेस प्रवक्ता शक्तिसिंह गोहिल ने कहा है कि भाजपा सरकार ने जनता को गुमराह करने के लिए सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण का चारा फेंका था, जबकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि यह संवैधानिक नहीं है। आरक्षण आर्थिक आधार पर दिया ही नहीं जा सकता।
कांग्रेस ने कहा है कि अगर सरकार सचमुच इस मामले में गंभीर है तो उसे विधानसभा में विधेयक लाना चाहिए।
पाटीदार अनामत समिति के नेता हार्दिक पटेल और अतुल पटेल पहले ही सरकार के इस आरक्षण के प्रस्ताव को खारिज कर चुके थे। अब इन नेताओं ने कहा है कि सरकार राज्य की तीन करोड़ सवर्ण आबादी के साथ खिलवाड़ कर रही है।