Bombay Mumbai Monsoon | SabrangIndia News Related to Human Rights Tue, 14 Jun 2016 12:41:14 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png Bombay Mumbai Monsoon | SabrangIndia 32 32 मुंबईः बरसात में भी बेघरों को कोई पनाह नहीं https://sabrangindia.in/maunbaih-barasaata-maen-bhai-baegharaon-kao-kaoi-panaaha-nahain/ Tue, 14 Jun 2016 12:41:14 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/06/14/maunbaih-barasaata-maen-bhai-baegharaon-kao-kaoi-panaaha-nahain/ अप्रैल की उमस और नमी से भरी हुई गर्मी के बाद लोग मानसून के मजे का इंतजार करते हैं। सोशल मीडिया पर पहले ही 'मुंबई रैन्स' नाम से हैशटैग चल रहे थे और यही ट्रेंड कर रहा था, लोग सुहाने वाली शानदार लफ्जों और तस्वीरों के साथ मौजूद थे। लेकिन वे लोग कौन हैं जो […]

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अप्रैल की उमस और नमी से भरी हुई गर्मी के बाद लोग मानसून के मजे का इंतजार करते हैं। सोशल मीडिया पर पहले ही 'मुंबई रैन्स' नाम से हैशटैग चल रहे थे और यही ट्रेंड कर रहा था, लोग सुहाने वाली शानदार लफ्जों और तस्वीरों के साथ मौजूद थे।

लेकिन वे लोग कौन हैं जो बरसात का इंतजार नहीं करते हैं? यह गांव के इलाकों में रहने वाले किसानों के लिए वरदान है। जिस मुंबई में चौहत्तर लाख से ज्यादा लोग हर रोज लोकल ट्रेन से सफर करते हैं, उनमें से ज्यादातर के लिए यह एक बड़ी राहत होगी।

लेकिन मुंबई के 57,416 (2011 की जनगणना के मुताबिक) बेघरों और उनकी दुर्दशा के प्रति बेरहम स्थानीय प्रशासन ने आंखें मूंद रखी हैं। नियमों के मुताबिक हर एक लाख की आबादी पर एक स्थायी आश्रय-स्थल या रैन-बसेरा होना चाहिए। 2011 की जनगणना के मुताबिक मुंबई की आबादी 12,442,373 है। इस संदर्भ में घर बचाओ, घर बनाओ आंदोलन ने आरटीआई के तहत जो तथ्य उजागर किए, एमसी यानी बृहन्नमुंबई नगरपालिका को उसकी कोई फिक्र नहीं है। जबकि दिशा-निर्देशों के मुताबिक मुंबई में कम से कम 124 सामुदायिक आश्रय-स्थल होने चाहिए। लेकिन न तो महाराष्ट्र सरकार को न ग्रेटर मुंबई के नगर निगम को इस बात की चिंता है कि तमाम बेघर बरसात के दौरान खुले में किस जोखिम के साथ अपनी जिंदगी जीते हैं।

देश के सु्प्रीम कोर्ट और कई राज्यों के हाईकोर्ट ने अनेक मौकों पर यह साफ किया है कि आश्रय-स्थल जीने के अधिकार का ही एक हिस्सा है। जाहिर है, किसी निराश्रित को आश्रय नहीं देना उसके जीने के अधिकार का हनन है।

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में थोड़ी-सी जगह हासिल करने की जद्दोजहद काफी भयानक और विभिन्न सेवाओं की पहुंच भी काफी सीमित रही है। हाल ही में जारी मुंबई के विकास की योजना के साथ ही नागरिक समूहों ने यह सुनिश्चित करने के लिए सुझाव और आपत्तियां भेजनी शुरू कर दी हैं कि ज्यादा से ज्यादा जगह और संसाधन पब्लिक डोमेन में हों और खासतौर पर गरीब लोगों सहित जनता के ज्यादातर हिस्से के हित में उसका उपयोग किया जाए।

इस लिहाज से देखा जाए तो गरीब और इनमें भी खासतौर पर बेघर इससे पूरी तरह वंचित हैं। उनके लिए कोई आवाज भी नहीं है, क्योंकि कोई ऐसा स्पष्ट नियम नहीं है जो उनके लिए आश्रय के अधिकार को सुनिश्चित करता हो। यही वजह है कि बेघर नागरिकों के प्रति सरकार आसानी से अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है। लेकिन सच यह है कि इस मामले सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से राज्य सरकारों को अनिवार्य रूप से बेघरों के लिए आश्रय-स्थल बनाने के लिए कहा है। लेकिन क्या सरकारों को इसकी फिक्र है?

केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक ताजा हलफनामे में बताया गया है कि मौजूदा वित्त वर्ष में स्थायी आश्रय-स्थल बनाने के मद में महाराष्ट्र को 15272.72 लाख रुपए दिए गए हैं। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि महाराष्ट्र सरकार ने इस पूरी आबंटित राशि में से एक रुपए भी खर्च नहीं किए हैं।

एक बच्ची की मां प्रेम किशोर गायकवाड़ की उम्र पच्चीस साल के आसपास है और तकरीबन बीस साल पहले अपने मां-पिता की मौत के बाद से ही वह फुटपाथ पर रह रही है। वह अपने गुजारे के लिए साल भर गटर की सफाई करती है। गायकवाड़ कहती है- 'मैंने फुटपाथ पर ही किसी तरह प्लास्टिक तान कर रहना शुरू किया था, लेकिन बरसात के दिनों में इससे बुरी तरह पानी रिसता है। इसलिए हम सोने के लिए नजदीक के एक पुल के नीचे चले जाते हैं।' सांताक्रूज हाइवे पर उस फुटपाथ पर बीस से
ज्यादा परिवारों ने पनाह ली हुई है।

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत बेघरों को आश्रय मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है। साफ है कि इस फैसले पर अमल नहीं करके और आबंटित राशि से आश्रय मुहैया नहीं करा कर महाराष्ट्र अदालती आदेशों की अवमानना कर रही है। वह 'जीने के अधिकार' का भी हनन कर रही है, जिसके लिए सरकार जवाबदेह है।

अब सवाल है कि बरसात के तीन महीने का इंतजार कर रहे मुंबईवासी यहां के बेघरों के लिए एक सम्मानजनक घर या आश्रय स्थल की उपलब्धता, जगह और संसाधनों के वाजिब बंटवारे के अभियान में शामिल होंगे? बरसात बहुतों के लिए समस्या है, लेकिन बेघरों के लिए भयानक है और इसके जोखिम में वहां के बच्चे, अनाथ, वयस्क और बीमार अपनी जिंदगी गुजारते हैं।
क्या कोई सुन रहा है?
 

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