Charkha | SabrangIndia News Related to Human Rights Mon, 30 Jan 2017 07:51:08 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png Charkha | SabrangIndia 32 32 अहिंसा, हिन्‍दू-मुसलमान एका, छूआछूत खात्‍मा और गांधी जी का करामाती चरखा https://sabrangindia.in/ahainsaa-hainadauu-mausalamaana-ekaa-chauuachauuta-khaatamaa-aura-gaandhai-jai-kaa/ Mon, 30 Jan 2017 07:51:08 +0000 http://localhost/sabrangv4/2017/01/30/ahainsaa-hainadauu-mausalamaana-ekaa-chauuachauuta-khaatamaa-aura-gaandhai-jai-kaa/ गांधी जी के लिए चरखा अहिंसा, स्‍वराज्‍य, एकता की रूहानी ताकत थी गांधी जी की ख्‍वाहिश थी कि हर घर से चरखा का संगीत सुनाई दे. गांधी जी का यही चरखा पिछले दिनों खूब सुर्खियों में रहा. गांधी जी की रूहानी ताकत चरखे में थी. इसीलिए जब वे चरखा की बात करते हैं तो वह […]

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गांधी जी के लिए चरखा अहिंसा, स्‍वराज्‍य, एकता की रूहानी ताकत थी

Gandhi charkha

गांधी जी की ख्‍वाहिश थी कि हर घर से चरखा का संगीत सुनाई दे. गांधी जी का यही चरखा पिछले दिनों खूब सुर्खियों में रहा. गांधी जी की रूहानी ताकत चरखे में थी. इसीलिए जब वे चरखा की बात करते हैं तो वह सिर्फ सूतकताई या खादी तक नहीं सिमटा है.

गांधी जी के लिए चरखा गरीबों की ओर समाज का ध्‍यान करने का जरिया है. छोटे और घरेलू उद्योगों की वापसी का रास्‍ता है. आर्थिक तकलीफ दूर करने का कुदरती तरीका है. शोषण से मुक्ति का रास्‍ता है. इंसानियत की सेवा है. उत्‍पादन और वितरण का विकेन्‍द्रीकरण करने का विचार है. आर्थिक रूप से मजबूत होने का साधन है. गांवों को बचाने और आत्‍मनिर्भर बनाने का जरिया है.

ले़किन सबसे दिलचस्‍प और अहम बात है कि गांधी जी के लिए चरखा अपनाना अहिंसाहिन्‍दू-मुस्लिम एकता छुआछूत खात्‍मा स्‍त्री सम्‍मान के लिए जरूरी शर्त है. 1921 में मद्रास की एक सभा में वे कहते हैंचरखा इस बात की सबसे खरी कसौटी है कि हमने अहिंसा की भावना को कहां तक आत्‍मसात किया है. चरखा एक ऐसी चीज है जो हिन्‍दू और मुसलमानों को ही नहींबल्कि भारत में रहने वाले अन्‍य धर्माव‍लम्बियों को भी एक सूत्र में बांध देगा. चरखा भारतीय नारी के सतीत्‍व का प्रतीक है… हमने अछूत मानकर अभी तक जिनका तिरस्‍कार करने का पाप किया है चरखा उनके लिए सांत्‍वना का स्रोत है.

गांधी जी पहले बड़े ऐसा नेता हैं जिन्‍होंने स्‍वराज की राह में अंदरूनी रुकावट को सबसे बेहतर तरीके से समझा था. इसलिए उनका मानना था कि स्‍वराज के लिए भारत के दो बड़े धार्मिक समुदायों के बीच नफरत की दीवार गिरनी चाहिए. छूआछूत खत्‍म होना चाहिए. इस काम के लिए चरखा और खादी की ताकत पर उनका भरोसा जबरदस्‍त था. वे कहते थे तुम मेरे हाथ में खादी दो और मैं तुम्‍हारे हाथ में स्‍वराज्‍य रख दूंगा. अंत्‍यज्‍यों की तरक्‍की भी खादी के तहत आता है और हिन्‍दू-मुस्लिम एकता भी खादी के बल पर टिकी रहेगी. यह अमन की हिफाजत का भी जबरदस्‍त जरिया है.

गांधी जी हिन्‍दू-मुसलमानों की एका की पुरजोर वकालत करने वाले ऐसे नेता थे जो इस राह से पसंगा भर डिगने को तैयार नहीं थे. यह बात उनकी सियासी जिंदगी से आखिरी वक्‍त तक अटूट थी. यही उनकी हत्‍या की वजह भी बनी. सन 1922 में हकीम अजमल खां को लिखी उनकी चिट्ठी गौर करने लायक है… बिना हिन्‍दू- मुस्लिम एकता के हम अपनी आजादी प्राप्‍त नहीं कर सकते. … हिन्‍दू-मुस्लिम एकता को हमें ऐसी नीति के रूप में ग्रहण कर लेना चाहिए जो किसी भी काल अथवा परिस्थिति में त्‍यागी न जा सके. साथ ही ऐसा भी नहीं होना चाहिए यह एकता पारसी यहूदी अथवा बलशाली सिख जैसी दूसरी अल्‍पसंख्‍यक जातियों के लिए त्रासदायक बन जाए. यदि हम इनमें से किसी एक को भी कुचलने का विचार करेंगे तो किसी दिन हम आपस में ही लड़ मरना चाहेंगे. … मेरी राय में तो हम लोग जब तक अहिंसा को ठोस नीति के रूप में नहीं स्‍वीकारेंगे तब तक हिन्‍दू-मुस्लिम एकता स्‍थापित होना मुमकिन नहीं है.

और ये धार्मिक समुदाय एक कैसे होंगे इसका सूत्र उन्‍होंने चरखा में तलाशा. वे इसी खत में आगे लिखते हैं:

… मेरी नजर में तो सारे हिन्‍दुस्‍तान की ऐसी एकता का जीता जागता नमूना और इसीलिए हमारे राजनीतिक मकसद को पाने के लिए अहिंसा को अनिवार्य जरिया मानने की भी जीती निशानी बिना शक अगर कुछ है तो वह चरखा यानी खादी ही है. केवल वही लोग जो अहिंसावृत्ति के विकास और हिन्‍दू-मुसलमानों में चिरस्‍थायी एकता कायम करने के कायल होंगे नियम और निष्‍ठा के साथ चरखा कातेंगे.

गांधी जी ने खिलाफत आंदोलन के दौरान हिन्‍दू-मुसलमानों को एक मंच पर लाने की कोशिश चरखा के जरिए ही की. वे चरखा और खादी अपनाने पर न सिर्फ जोर देते हैं बल्कि इसे एकता के लिए जरूरी मानते हुए मजहबी फर्ज तक कह डालते हैं. हकीम अजमल खां के तुरंत बाद वे मौलाना अब्‍दुल बारी को एक खत लिखते हैं. वे उनसे कहते हैं… खुद मैं बहुत गहराई से सोचने पर इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि ऐसी एक ही चीज है जिसे हिन्‍दू-मुस्लिम एकता का साफ और असरदार निशानी माना जा सकता है और वह है इन दोनों समुदायों के आम लोगों में चरखे का और हाथ के कते सूत से हाथ करघे पर बुनी शुद्ध खादी को अपनाना. … जब तक स्‍वराज्‍य हासिल नहीं हो जाता है तब तक हर एक मर्द औरत और बच्‍चे को अपना मजहबी फर्ज समझकर रोज चरखा चलाना चाहिए.

बतौर कांग्रेस अध्‍यक्ष गांधी जी 1924 में मोहम्‍मद अली को एक खत लिखते हैं. इस खत में भी एकता की बात वे दोहराते हैं और दो टूक लफ्जों में कहते हैं… यह बिल्‍कुल साफ है कि हिन्‍दू मुसलमान पारसी ईसाई तथा दूसरी जातियों की एकता के बिना स्‍वराज्‍य की बात करना ही व्‍यर्थ है…. यदि हमें आजादी हासिल करनी है तो विभिन्‍न समुदायों को मित्रता के अटूट बंधन में बांधना ही होगा… अगर हम देश में बढ़ती मुफलिसी की हालत के बारे में सोच सकते हैं तो सोचें और यह समझें कि चरखा ही इस रोग की अकेली दवा है तो वही एक काम हमें (आपस में) लड़ने के लिए फुरसत नहीं मिलने देगा.

गांधी जी के लिए चरखा आपस में लड़ने से बचने का रास्‍ता है. तो दूसरी ओर यह गांव और गरीब से जुड़ने का जरिया भी है. पटना में खिलाफत सम्‍मेलन में गांधी जी लोगों को खद्दर अपानाने को कहते हैं क्‍योंकि … हिन्‍दू- मुसलमान दोनों के लिए गांव के गरीबों द्वारा काते गए सूत से बने खद्दर को छोड़कर अन्‍य वस्‍त्र धारण करना पाप है. …भारत के गांवों में ऐसे लाखों हिन्‍दू और मुसलमान हैं जिन्‍हें दोनों वक्‍त खाना भी नसीब नहीं होता है. … गांव में भूखे मरने वालों की खातिर खादी और चरखे को अपनाएं… खद्दर को अपनाने से दो उद्देश्‍य सिद्ध होंगे. एक तो आपको अपने लिए कपड़ा मिल जाएगा दूसरे आप गांवों के लाखों भूखे गरीबों की सहायता कर सकेंगे. खुदा के वास्‍ते और गांवों के लाखों गरीबों के वास्‍ते आप सब आज ही बल्कि इसी क्षण से चरखा और कताई को अपना लें.

ऐसा नहीं है कि गांधी जी महज रणनीति के तहत हिन्‍दू-मुसलमान एकता के नाम पर चरखा अपनाने की बात कह रहे हैं. गांधी जी के लिए यह यकीन का सवाल था. उन्‍हें यकीन था कि चरखा ही सभी लोगों को एक साथ जोड़ेगी. एकता की ऐसी शिद्दत भारत के किसी दूसरे नेता में नहीं दिखाई देती है. बकौल गांधी जी… जब तक हम सूत कातने की इस साधना को नहीं अपनाएंगे तब तक प्रेम की गांठ नहीं बंधेंगी। यदि समस्‍त जगत को आप प्रेम की गांठ से बांध लेना चाहते हैं तो दूसरा उपाय ही नहीं है. हिन्‍दू मुसलमान प्रश्‍न के लिए भी दूसरा कोई उपाय नहीं है…

… मेरी इस प्रार्थना को समझकर रोज आधा घंटा चरखा अवश्‍य चलाएं. उससे आपकी कोई हानि नहीं है और उससे देश की दरिद्रता दूर होगी. यदि आप अस्‍पृश्‍यता दूर न कर सकें तो धर्म का नाश हो जाएगा… आज तो वैष्‍ण्‍व धर्म के नाम पर अंत्‍यजों का नाश हो रहा है… असपृश्‍यता निवारण हिन्‍दू-मुस्लिम एक्‍य और खादी यह मेरी त्रिवेणी है.

उत्‍पादन के किसी औजार का ऐसा समाजवादी तसव्‍वुर किसी नेता नहीं किया जैसा गांधी जी ने चरखा का किया है. गांधी जी चरखे के जरिए हर तरह के विभेद को खत्‍म करने की बात करते हैं. उनके लिए चरखा कई तरह की गैर बराबरियों परेशानियों का एकमात्र इलाज है. चरखा वह मंच है जिसका चक्र घुमाते ही सब एक जैसे हो जाते हैं. इसलिए वे एक जगह लिखते हैं… काम ऐसा होना चाहिए जिसे अपढ़ और पढ़े-लिखे, भले और बुरे बालक, और बूढ़े, स्‍त्री और पुरुष, लड़के और लड़कियां , कमजोर और ताकतवर – फिर वे किसी जाति और धर्म के हों- कर सके. चरखा ही एक ऐसी वस्‍तु है जिसमें ये सब गुण हैं. इसलिए जो कोई स्‍त्री या पुरुष रोज आध घंटा चरखा कातता है वह जन समाज की भरसक अच्‍छी से अच्‍छी सेवा करता है…

शायद इसी लिए गांधी जी के लिए जो‍ सिद्धांत जिंदगी में न उतारा जा सके वह बेकार है. वे जो कहते हैं उसे अपना कर दिखाते हैं. इसलिए वह सत्‍याग्रहियों से भी यही चाहते हैं कि चरखा और अहिंसा को जीवन में अपनाएं. यंग इंडिया में छपी एक टिप्‍पणी में वे कहते हैं… मैंने जीवन में सदा यही माना है कि सच्‍चा विकास तो भीतर से ही होता है. यदि भीतर से ही प्रतिक्रिया न हो तो बाहरी साधनों का प्रयोग बिल्‍कुल निरर्थक है.

… अच्‍छा तो अब ऐसे विकास के लिए न्‍यूनतम कार्यक्रम क्‍या हो सकता है मैं बराबर कहता आया हूं कि वह है चरखा और खादी तमाम धर्मों की एकता और हिन्‍दुओं द्वारा छुआछूत का परित्‍याग. … मैं तो राष्‍ट्र के तमाम कार्यकर्ताओं को सलाह दूंगा कि ये चरखा कातने एकता बढ़ाने और जो हिन्‍दू हों वे छुआछूत दूर करने में ही अपनी सारी ताकत लगा दें.

गांधी जी को कुछ चीजें लगातार परेशान करती रहीं. इसलिए वे बार-बार उन चीजों पर बात करना नहीं भूलते थे. वे हर मौके पर वे चीजें दोहराते थे. जैसे, 1924 में वे कहते हैं… थोड़ा ख्‍याल करके ही हम देख सकते हैं कि हमारे अमली कार्य में बाधा डालने वाली सबसे बड़ी वस्‍तु है हिन्‍दू-मुसलमान के बीच में अंतर पड़ जाना. सर्व साधारण को एकत्र करने में बाधा डालने वाली वस्‍तु चरखा और खद्दर के प्रति हमारी उदासीनता और हिन्‍दू जाति को नष्‍ट करने वाली वस्‍तु असपृश्‍यता है. इस त्रिदोष को जब तक हम नहीं मिटाते तब तक मेरी अल्‍पमति मुझको यही कहती है कि हमारे भाग्‍य में अराजकता हमारी परतंत्रता और हमारी कंगाली बदी हुई है….

देश बंट चुका है. आजादी मिल चुकी है. गांधी जी अंदर से काफी टूटे हैं. मगर जिस चीज का यकीन उन्‍हें 40 साल पहले थे वह डिगा नहीं था. वह था चरखे की रूहानी और करामाती ताकत पर यकीन. 13 दिसम्‍बर 1947 यानी हत्‍या से डेढ़ म‍हीना पहले मारकाट के माहौल के बीच प्रार्थना सभा में जो बात वे कहते हैं वह गांधी जी के लिए ही मुमकिन था. वे कहते हैंचरखे में बड़ी ताकत है. वह ताकत अहिंसा की ताकत है… हमने चरखा चलाया पर उसे अपनाया नहीं… आज जो हालत है वह होने वाली नहीं थी. अगर हमें अहिंसक शक्ति बढ़ानी है तो फिर से चरखे को अपनाना होगा और उसका पूरा अर्थ समझना होगा. तब तो हम तिरंगे झंडे का गीत गा सकेंगे. … पहले जब तिरंगा झंडा बना था तब उसका अर्थ यही था कि हिन्‍दुस्‍तान की सब जातियां मिल-जुलकर काम करें और चरखे के द्वारा अहिंसक शक्ति का संगठन करें. आज भी उस चरखे में अपार शक्ति भरी है… अगर सब भाई-बहन दुबारा चरखे की ताकत को समझकर अपनाएं तो बहुत काम बन जाए. … अहिंसा बहादुरी की पराकाष्‍ठा है आखिरी सीमा है. अगर हमें यह बहादुरी बताना हो तो समझ बूझ से बुद्धि से चरखे को अपनाना होगा.

हिंसा समुदायों के बीच नफरत, दलितों के साथ भेदभाव, स्त्रियों के साथ गैरबराबरी आज भी हमारे स्‍वराज्‍य की सबसे बड़ी चुनौती है. इसलिए आज गांधी जी को याद करने का मतलब है उस चरखे की तलाश है जिसके इस्‍तेमाल से अहिंसा एका की ताकत मिलती हो गैरबराबरियां दूर होती हों… क्‍योंकि गांधी जी के लिए चरखा अहिंसा, स्‍वराज्‍य, एकता की रूहानी ताकत थी. आर्थिक बदलाव का मजबूत औजार था. उनके इस करामती चरखे की तलाश के लिए गांधी जी की नजर वाली एनक पहननी पड़ेगी. उनके चरखा-दर्शन को जिंदगी में उतारना पड़ेगा. 

 

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Mahatma’s Khadi to Modi’s Barbadi https://sabrangindia.in/mahatmas-khadi-modis-barbadi/ Tue, 17 Jan 2017 10:29:29 +0000 http://localhost/sabrangv4/2017/01/17/mahatmas-khadi-modis-barbadi/ Meet the PM (Prime Megalomaniac) of India, Mohandas Karamchand Modi. Meet the PM (Prime Megalomaniac) of India, Mohandas Karamchand Modi. Newer generations will be born to a newer India where instead of Gandhiwad, they will learn about Modiwad. The historic image of a thin, dhoti – wearing man with a stick will soon be replaced […]

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Meet the PM (Prime Megalomaniac) of India, Mohandas Karamchand Modi.

Meet the PM (Prime Megalomaniac) of India, Mohandas Karamchand Modi. Newer generations will be born to a newer India where instead of Gandhiwad, they will learn about Modiwad. The historic image of a thin, dhoti – wearing man with a stick will soon be replaced by a 56 inch chest wearing a Modi suit. But Modiji is a noble man and Gandhi’s ghost probably urged to be replaced in khadi. Although Mahatma Gandhi is the father of the nation,but he was obviously not good enough. Maybe Gandhi’s ghost realized that and sent Mahatma Modi to us, and a new ‘son of the nation’ is born! He shall be our salvation.

Every Gandhi photo should be replaced with Modiji’s and history textbooks will read his legacies. The extraordinary story of Acche Din.

People actually believe the Modi suit was made by machines and workers; little do they know that it was an original piece from the famous Charkha by Gandhi himself.

modi and gandhi_0.jpg

Image Courtesy: (left) Mid Day (Right) Mkgandhi.org

Courtesy: Newsclick.in

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‘बापू का चरखा’ टाइम पत्रिका की 100 सबसे प्रभावशाली तस्वीरों में शामिल https://sabrangindia.in/baapauu-kaa-carakhaa-taaima-pataraikaa-kai-100-sabasae-parabhaavasaalai-tasavairaon-maen/ Thu, 01 Dec 2016 07:16:54 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/01/baapauu-kaa-carakhaa-taaima-pataraikaa-kai-100-sabasae-parabhaavasaalai-tasavairaon-maen/ टाइम पत्रिका ने 100 सबसे प्रभावशाली तस्वीरों के अपने संकलन में चरखा के साथ महात्मा गांधी की वर्ष 1946 की एक तस्वीर को शामिल किया है। महात्मा गांधी की इस श्वेत-श्याम तस्वीर फोटोग्राफर मार्गरेट बौर्के-व्हाइट ने ली थी। तस्वीर में गांधी भूमि पर पतले गद्दे पर बैठकर खबर पढ़ते हुये नजर आ रहे हैं जबकि […]

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टाइम पत्रिका ने 100 सबसे प्रभावशाली तस्वीरों के अपने संकलन में चरखा के साथ महात्मा गांधी की वर्ष 1946 की एक तस्वीर को शामिल किया है।

charkha

महात्मा गांधी की इस श्वेत-श्याम तस्वीर फोटोग्राफर मार्गरेट बौर्के-व्हाइट ने ली थी। तस्वीर में गांधी भूमि पर पतले गद्दे पर बैठकर खबर पढ़ते हुये नजर आ रहे हैं जबकि उनके आगे उनका चरखा रखा है।

 

तस्वीर भारत के नेताओं पर एक लेख के लिए ली गई थी लेकिन इसके प्रकाशित होने के दो वर्ष से पहले और गांधी की हत्या के बाद इसे श्रद्धांजलि के रूप में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया था।

भाषा की खबर के अनुसार, टाइम पत्रिका ने कहा, ‘‘बहुत जल्द ही यह अमर हो चुकी एक तस्वीर बन गई थी।’’ टाइम के संकलन में 1820 के दशक से 2015 तक की अवधि में ली गई सबसे मशहूर और इतिहास को बदलने वाली 100 तस्वीरों को शामिल किया गया है।

जिस समय ये तस्वीरें ली गई थी उस समय यह लोगों के मन में रच-बस गई थीं।

Courtesy: Janta ka Reporter
 

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