Dalits and media | SabrangIndia News Related to Human Rights Wed, 01 Feb 2017 07:06:26 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png Dalits and media | SabrangIndia 32 32 मीडिया की जाति और बहुजन राजनीति https://sabrangindia.in/maidaiyaa-kai-jaatai-aura-bahaujana-raajanaitai/ Wed, 01 Feb 2017 07:06:26 +0000 http://localhost/sabrangv4/2017/02/01/maidaiyaa-kai-jaatai-aura-bahaujana-raajanaitai/ अनूप पटेल कह रहे हैं कि अखिलेश यादव ने तो दैनिक भास्कर की यूपी वेबसाइट का अपने निवास पर उद्धाटन किया था। उसे शानदार पत्रकारिता करने वाला बताया था। अब जब चुनाव आ गया, तो दैनिक भास्कर यूपी के लोगों को "अखिलेश से क्लेश" से मुक्ति दिलाने के लिए प्रचार कर रहा है। बात सही […]

The post मीडिया की जाति और बहुजन राजनीति appeared first on SabrangIndia.

]]>
अनूप पटेल कह रहे हैं कि अखिलेश यादव ने तो दैनिक भास्कर की यूपी वेबसाइट का अपने निवास पर उद्धाटन किया था। उसे शानदार पत्रकारिता करने वाला बताया था।

Dilip mandal

अब जब चुनाव आ गया, तो दैनिक भास्कर यूपी के लोगों को "अखिलेश से क्लेश" से मुक्ति दिलाने के लिए प्रचार कर रहा है।

बात सही है। सारे तथ्य सही हैं। अखिलेश द्वारा वेबसाइट का उद्घाटन भी और दैनिक भास्कर का यादव विरोधी प्रचार भी।

लेकिन सवाल उठता है कि गैर-सवर्ण बिरादरियों से आने वाले नेताओं के पास विकल्प क्या है?

उत्तर भारत में पूरा मीडिया सवर्णों और उसमें भी एक जाति ब्राह्मणों के कंट्रोल में है।

अगर नेता उन्हें पटाकर, खिला-पिलाकर, पुरस्कार देकर, ज़मीन बाँटकर काम चलाने की कोशिश करते हैं, तो यह अनैतिक तो है, लेकिन उपाय क्या है?

मिसाल के तौर पर अखिलेश यादव ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को उसकी यूनिवर्सिटी के लिए अरबों रुपए की ज़मीन दे दी। फ़ाइल तूफ़ानी रफ़्तार से दौड़ाकर यूनिवर्सिटी को मान्यता भी दे दी। अपने हाथ से उद्घाटन कर दिया। करोड़ों के विज्ञापन उसे हर महीने दिए।

साढ़े चार साल टाइम्स ऑफ़ इंडिया और टाइम्स नाऊ समेत पूरा ग्रुप अखिलेश के लिए गाता रहा।

अब जब चुनाव आया तो टाइम्स नाऊ ने ओपिनियन मेकिंग पोल निकालकर बीजेपी को विजेता दिखा दिया। उनका पूरा अख़बार और चैनल अखिलेश विरोधी ख़बरों से भरे हैं।

लेकिन इन नेताओं के पास रास्ता क्या है?

दक्षिण की तरह इनके पास अपना मीडिया नहीं है।

आप बताएँ?

यह सिर्फ अखिलेश की समस्या नहीं है।

बिहार में सरकार सबसे बड़ी विज्ञापनदाता है। लेकिन 2015 के चुनाव के समय 11 ओपिनियन पोल आए और सबने नीतीश और लालू को पीछे दिखा दिया।

भारत में ओपिनियन पोल के इतिहास में वह पहला ओपिनियन पोल नहीं आया है, जिसमें बीएसपी को बढ़त दिखाई गई हो। उनकी यूपी में चार बार सरकार बन चुकी है।

अखिलेश सरकार का इस वित्तीय साल का सूचना विभाग का अनुपूरक बजट 850 करोड़ रुपए का था ताकि सरकार के कामकाज की प्रशंसा हो। अब इतना माल खिलाकर भी अगर मीडिया मैनेज नहीं हो रहा है, तो अखिलेश क्या कर लें?

तो, रास्ता क्या है?
 

The post मीडिया की जाति और बहुजन राजनीति appeared first on SabrangIndia.

]]>