December 2016 | SabrangIndia News Related to Human Rights Mon, 26 Dec 2016 13:16:27 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png December 2016 | SabrangIndia 32 32 भाजपा सरकार ने किया सैकड़ों मुस्लिम परिवारों को बेघर https://sabrangindia.in/bhaajapaa-sarakaara-nae-kaiyaa-saaikadaon-mausalaima-paraivaaraon-kao-baeghara/ Mon, 26 Dec 2016 13:16:27 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/26/bhaajapaa-sarakaara-nae-kaiyaa-saaikadaon-mausalaima-paraivaaraon-kao-baeghara/     मेवात। हरियाणा की बीजेपी शासित खट्टर सरकार ने हांड कंपा देने वाली सर्दी में सैकड़ों मुस्लिम परिवारों के घर तोड़कर उन्हे बेघर कर दिया है। मामला हरियाणा के मेवात जिले का है। जहां प्रशासन ने सीआरपीएफ कैंप के लिए टूंडलाका गांव में 80 घरों को तोड़ दिया।   घरों को तोड़े जाने की […]

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भाजपा सरकार ने किया सैकड़ों मुस्लिम परिवारों को बेघर
 

मेवात। हरियाणा की बीजेपी शासित खट्टर सरकार ने हांड कंपा देने वाली सर्दी में सैकड़ों मुस्लिम परिवारों के घर तोड़कर उन्हे बेघर कर दिया है। मामला हरियाणा के मेवात जिले का है। जहां प्रशासन ने सीआरपीएफ कैंप के लिए टूंडलाका गांव में 80 घरों को तोड़ दिया।
 
घरों को तोड़े जाने की वजह से सभी मुस्लिम परिवार खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। हांड कंपा देने वाली सर्दी को देखते हुए कुछ परिवारों ने टेंट और तंबू लगा लिए हैं लेकिन कुछ परिवारों को यह भी नसीब नहीं है।
 
पीड़ित लोगों का कहना हैं कि वह इस जमीन पर पिछले 40 वर्षों से रहते आएं हैं। प्रशासन ने उन्हें मकानों को तोड़े जाने से पहले सूचित भी नहीं किया जिससे वह अपने सामान और रहने की दूसरी व्यवस्था भी नहीं कर पाए। पीड़ितों ने बताया कि इस ठंडी के आलम वह खेतों में खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं, छोटे-छोटे बच्चे रातभर ठंड से कांपते हैं। सर्दी की हर रात उनपर किसी आपदा से कम नहीं है।

मेवात विकास सभा के अध्यक्ष उमर मोहम्मद ने बताया कि प्रशासन ने गलत तरीके से करीब 40 वर्षों से बने हुए मकानों को तोडा है। उन्होंने कहा कि चकबंदी के दौरान जो रक्बा बचा था वह किसानों कि पट्टी, शामलात और जुमला मालकान का है। मगर ग्राम पंचायत ने 1965 में इस जमीन का इंतकाल गलत तरीके से अपने नाम करा लिया था। जिसके बाद यह मामला कोर्ट गया और अब भी यह मामला जिला न्यायलय के समक्ष विचाराधीन है।
 
आपको बता दें कि मेवात जिले में सीआरपीएफ कैंप प्रस्तावित है। इसके लिए गांव की जमीन ली जा रही है। इस क्रम में प्रशासन ने 80 मुस्लिम परिवारों के घरों को ढहा दिया है। इस जमीन पर ये परिवार पिछले 40 सालों से रह रहे थे। वही प्रशासन का कहना है कि ये जमीन ग्राम समाज की है जबकि लोगों का कहना है कि ये जमीन उनकी है जिसको धोखे से ग्राम समाज की बना दिया गया।

Courtesy: Nationaldastak
 

 

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बदलता दौर: ‘मनुस्मृति दहन दिवस’ पर ओबीसी वर्ग के 5000 लोगों ने अपनाया बौद्ध धर्म https://sabrangindia.in/badalataa-daaura-manausamartai-dahana-daivasa-para-obaisai-varaga-kae-5000-laogaon-nae/ Mon, 26 Dec 2016 13:03:39 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/26/badalataa-daaura-manausamartai-dahana-daivasa-para-obaisai-varaga-kae-5000-laogaon-nae/     नागपुर। महाराष्ट्र की दीक्षाभूमि में 14 अक्टूबर 1956 में हुई ऐतिहासिक धर्मांतरण की यादें उस समय ताजा हो गई जब रविवार, 25 दिसंबर को मनुस्मृति दहन दिवस पर राज्य और बाहर के सैकड़ों ओबीसी वर्ग के लोगों एंव 'वी लव बाबासाहेब' संगठन के युवाओं ने दीक्षाभूमि पर बौद्ध धर्म स्वीकार किया। बौद्ध धम्म […]

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 बदलता दौर: 'मनुस्मृति दहन दिवस' पर ओबीसी वर्ग के 5000 लोगों ने अपनाया बौद्ध धर्म 
 

नागपुर। महाराष्ट्र की दीक्षाभूमि में 14 अक्टूबर 1956 में हुई ऐतिहासिक धर्मांतरण की यादें उस समय ताजा हो गई जब रविवार, 25 दिसंबर को मनुस्मृति दहन दिवस पर राज्य और बाहर के सैकड़ों ओबीसी वर्ग के लोगों एंव 'वी लव बाबासाहेब' संगठन के युवाओं ने दीक्षाभूमि पर बौद्ध धर्म स्वीकार किया। बौद्ध धम्म का संदेश देने वाले ओबीसी नेता हनुमंत उपरे के निधन के बाद उनके पुत्र ने लाखों ओबीसी बंधुओं को मूल धर्म में लौटने का आह्वान किया। 
 
राज्य के सभी जिलों के ओबीसी समाज ने धर्मांतरण समारोह के लिए पंजीयन कराया था। राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और गुजरात राज्यों के भी ओबीसी व अनुसूचित जाति के लोगो ने दीक्षाभूमि पर धर्मांतरण किया। इसके पहले सुबह 12 बजे संविधान चौक से धम्म रैली निकाली गई। 
 
रैली में सबसे आगे भिक्षु, उनके पीछे धम्मदीक्षा लेने वाले ओबीसी समाज के लोग तथा उपासक-उपासिकाएं चले। रैली में बहुत हर्षोल्लास का वातवरण देखा गया। गौरतलब है कि 2006 में साहित्यकार लक्ष्मण माने ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया था।
 
 

आपको बता दें कि धर्म ग्रहण करने का यह पहला चरण था। पहले चरण में ही हजारों लोगों बौद्ध धर्म में प्रवेश किया। इसके बाद चरणबद्ध ढंग से 3744 जातियों के 10 लाख ओबीसी समाज के लोग बौद्ध धर्म स्वीकार करेंगे। 
 
सत्यशेधक ओबीसी परिषद तथा सार्वजनिक धम्मदीक्षा परिषद दीक्षाभूमि द्वारा संयुक्त रूप से कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई के हाथों दोपहर 3 बजे धम्मदीक्षा समारोह प्रारम्भ हुआ। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर स्मारक समिति के कार्यवाहक सदानंद फुलझेले प्रमुखता से उपस्थित रहें। 
 
धर्मांतरण करने वालों को बुद्ध एंड हीज धम्म, धम्मविधि पूजा-पाठ, 22 प्रतिज्ञा तथा बुद्ध की मूर्ति भेंट की गई। संदीप हनुमंतराव उपरे एंव उनके परिवारजनो के साथ ओबीसी बंधुओं ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।

Courtesy: Nationaldastak

 

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SC Judgement on SC/ST Prevention of Atrocities Act, December 15, 2016 https://sabrangindia.in/sc-judgement-scst-prevention-atrocities-act-december-15-2016/ Fri, 23 Dec 2016 08:54:05 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/23/sc-judgement-scst-prevention-atrocities-act-december-15-2016/ SC Judgement on SC/ST Prevention of Atrocities Act, December 15, 2016 /sites/default/files/161215_national_campaign_on_dalit_hr_judgement.pdf?745

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SC Judgement on SC/ST Prevention of Atrocities Act, December 15, 2016

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SC Indictment: Both Centre & States have Failed Dalits https://sabrangindia.in/sc-indictment-both-centre-states-have-failed-dalits/ Fri, 23 Dec 2016 08:46:12 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/23/sc-indictment-both-centre-states-have-failed-dalits/ The Supreme Court has directed the National Legal Services Authority to formulate appropriate schemes to spread awareness and provide free legal aid to members of the Scheduled Castes and Scheduled Tribes. It is rare that the Courts give a pronouncement that is both decisive and revealing. The moot question lies regarding implementation. On December 15, […]

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The Supreme Court has directed the National Legal Services Authority to formulate appropriate schemes to spread awareness and provide free legal aid to members of the Scheduled Castes and Scheduled Tribes.

It is rare that the Courts give a pronouncement that is both decisive and revealing. The moot question lies regarding implementation. On December 15, 2016, disposing of a petition filed by the National Campaign nine years before in 2006, a three member bench led by Chief Justice T.S.Thakur, DY Chandrachud and L Nageshwar Rao pulled up the Centrak Government and all state governments for a complete and abject failure to implement squarely and fairly the provisions of the SCST Prevention of Atrocities Act.

The Supreme Court, while refusing to monitor the implemention of this specially enacted law aimed to prevent increasing atrocities against India’s Dalits,  has rapped the Centre and states for failing to safeguard the interests of the downtrodden Dalits. It said the laudable intent with which the Scheduled Castes and Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act was enacted has not been achieved. The Act was even amended through efforts made between 2009-2014 that finally came to fruition in 2015 under the Modi regime.

Expressing anguish over the continued failure on part of the Centre and sates to protect dalits, a three-judge bench — comprising Chief Justice T.S. Thakur and Justices D.Y. Chandrachud and L. Nageswara Rao — said the ever increasing number of cases of crimes committed against the community is also an indication of total failure on the part of the authorities in complying with the provisions of the Act and the Rules. It said the object with which the Act was made stands defeated by the indifferent attitude of the authorities.

Disposing of a writ petition filed by National Campaign on Dalit Human Rights in 2006, the bench said it is true that the state governments are responsible for carrying out the provisions of the Act. At the same time, the central government has an important role to play in ensuring the compliance of the provisions of the Act. The constitutional goal of equality for all the citizens of this country can be achieved only when the rights of the SC and ST are effectively protected.

The bench pointed out that the Act provides protection to the SC and ST for various atrocities affecting social disabilities, properties, malicious prosecution, political rights and economic exploitation. The Act also provides for enhanced punishment for commission of offences against the SC and ST.

Writing the judgment, Justice Rao said the abundant material on record proves that the authorities concerned are guilty of not enforcing the provisions of the Act. The travails of the members of the Scheduled Castes and the Scheduled Tribes continue unabated. The bench, therefore, directed the Centre and state governments to strictly enforce the provisions of the Act. The National Commissions are also directed to discharge their duties to protect the Scheduled Castes and Scheduled Tribes. The court asked the National Legal Services Authority to formulate appropriate schemes to spread awareness and provide free legal aid to members of the Scheduled Castes and Scheduled Tribes. The judgement may be read here.

In the concluding paragraphs of the 27 page judgement, Para 12, the Judges state that,
                                                   “We have carefully examined the material on record and we are  of  the opinion that there  has  been  a  failure  on  the  part  of  the  concerned authorities in                                                          complying with the provisions  of  the  Act  and  Rules. The laudable object with which  the  Act  had  been  made  is  defeated  by  the indifferent  attitude                                                          of  the  authorities.  It  is  true  that  the  State Governments are responsible for carrying out the provisions of  the  Act  as contended by the counsel for the                                                            Union of  India.  At  the  same  time,  the Central Government has an important role to play in ensuring the  compliance of the provisions of the Act. Section                                                        21 (4)  of  the  Act  provides  for  a report  on  the  measures  taken  by  the  Central  Government   and   State Governments for the effective implementation                                                        of the Act to be placed  before the Parliament every year. The constitutional goal of equality for  all  the citizens of this country can  be  achieved  only  when                                                      the rights  of  the Scheduled Castes and Scheduled Tribes are protected. The  abundant  material on record proves that the authorities concerned are guilty of                                                        not  enforcing the provisions of the Act. The travails of  the  members  of  the  Scheduled Castes and the Scheduled Tribes continue unabated.  We  are                                                                  satisfied  that the Central Government and State Governments should be directed to  strictly enforce the provisions of the Act and we do  so.  The  National                                                          Commissions are also directed to discharge their duties to protect the Scheduled  Castes and Scheduled Tribes. The National Legal Services Authority is                                                              requested  to formulate appropriate schemes to spread awareness  and  provide  free  legal aid to members of the Scheduled Castes  and  Scheduled  Tribes.  
                                                    Acknowledging a chronic failure on the part of governments, the para  goes on  further to read,
                                                    “…A  similar situation arose before this Court in Safai Karamchari Andolan  v.  Union  of India, (2014) 11 SCC 224.  The Petitioners therein  filed  a  Writ                                                           Petition seeking  enforcement  of  the  provisions  of  the  Employment   of   Manual Scavengers and Construction of Dry Latrines (Prohibition) Act,  1993.                                                        
                                                    This Court held as under:
                                                    “24. In the light of various provisions of the Act  referred  to  above  and the Rules in addition to various directions issued by this Court, we  hereby
                                                     direct all  the  State  Governments  and  the  Union  Territories  to  fully implement the same and take appropriate  action  for  non-implementation  as
                                                     well as violation of the provisions contained in the Act 2013.  Inasmuch  as the 2013 Act occupies the entire field, we are of the view that  no  further
                                                     monitoring is required by this Court. However, we once again reiterate  that the duty is cast on all the  States  and  the  Union  Territories  to  fully
                                                     implement and to take action  against  the  violators.  Henceforth,  persons aggrieved are permitted to approach the authorities concerned at  the  first
                                                     instance and thereafter the High Court having jurisdiction.”
 
                                                    13.   The Petitioners are at liberty to approach the  concerned  authorities and thereafter the High Courts for redressal of their  grievances,  if  any.
                                                    In view of the aforesaid, the writ petition is disposed of. No cost.”
 

It said the object with which the Act was made stands defeated by the indifferent attitude of the authorities.

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नोटबंदी के बाद अमित शाह से जुड़े सहकारी बैंक पर ईडी का छापा https://sabrangindia.in/naotabandai-kae-baada-amaita-saaha-sae-jaudae-sahakaarai-baainka-para-idai-kaa-chaapaa/ Fri, 23 Dec 2016 07:11:04 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/23/naotabandai-kae-baada-amaita-saaha-sae-jaudae-sahakaarai-baainka-para-idai-kaa-chaapaa/  नोटबंदी के तीन दिन बाद ही अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव बैंक में 500 करोड़ जमा करने की खबर के बाद ईडी ने इस पर छापा मारा था। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इस बैंक के निदेशकों में शामिल हैं।   नोटबंदी के ऐलान के चंद घंटों के बाद ही आश्रम रोड के अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव […]

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 नोटबंदी के तीन दिन बाद ही अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव बैंक में 500 करोड़ जमा करने की खबर के बाद ईडी ने इस पर छापा मारा था। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इस बैंक के निदेशकों में शामिल हैं।

 
नोटबंदी के ऐलान के चंद घंटों के बाद ही आश्रम रोड के अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव बैंक में 500 करोड़ की बड़ी रकम जमा करने की खबर मिली। इस बैंक के डायरेक्टर बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह हैं। 19 दिसंबर को ईडी और इनकम टैक्स अफसरों ने इस बैंक में छह घंटे तक छापेमारी की कार्रवाई की। यह इस बैंक पर दूसरी कार्रवाई है।
 

कहा जा रहा है कि नोटबंदी के तीन दिन बाद ही यानी 8 से 12  दिसंबर, 2016  को एक को-ऑपरेटिव बैंक में 500 करोड़ रुपये जमा किए गए। बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह इस बैंक के निदेशकों में एक हैं। अब ईडी और आयकर विभाग के अधिकारी इस मामले की जांच कर रहे हैं। यह बैंक अहमदाबाद आश्रम रोड पर स्थित है। हालांकि इस छापेमारी के बारे में मीडिया में चुप्पी रही। या कहिये कि इस खबर को ब्लैक आउट कर दिया गया। मीडिया में तमिलनाडु के मुख्य सचिव पी रामा मोहन रेड्डी और जे शेखर रेड्डी के यहां छापेमारी की तो खूब चर्चा हुई लेकिन उस को-ऑपरेटिव बैंक में छापे को मीडिया में दबा दिया गया, जिसके निदेशक अमित शाह हैं।  


 
बुधवार यानी 21 दिसंबर को आयकर अधिकारियों ने चेन्नई के पॉश इलाके अन्नानगर में तमिलनाडु ‌ के मुख्य सचिव के घर से 30 लाख की नकदी और पांच किलो सोना बरामद करने का दावा किया। इसके अलावा उनके और सात अन्य ठिकानों पर छापे मारने का दावा किया गया। आयक विभाग के सूत्रों के मुताबिक मुख्य सचिव के बेटे विवेक राव और आंध्रप्रदेश के चित्तूर और चेन्नई में उनके कुछ  रिश्तेदारों के भी यहां छापे मारे गए। इससे पहले आयकर अधिकारियों ने तमिलनाडु के तीन बिजनेसमैन के यहां छापे मार कर 100 किलो सोना, 96 करोड़ रुपये मूल्य के 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट और 34 करोड़ रुपये की नई करेंसी बरामद की। जिन व्यापारियों के यहां छापे मारे गए उनमें से एक जे शेखर रेड्डी भी था, जिसके तमिलनाडु के मुख्य सचिव के बेटे विवेक राव से कारोबारी संबंध बताए जा रहे हैं। जे शेखर रेड्डी को बुधवार को गिरफ्तार कर लिया गया था।
 
लेकिन इन छापों की तुलना में १९ दिसंबर को अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव बैंक में पड़े ईडी और आयकर विभाग के छापे पर मिडिया में कमोबेश चुप्पी छाई रही। सिर्फ आउटलुक हिंदी ने इस खबर को छापी। इस सहकारी बैंक में जो 500  करोड़ रुपये जमा हुए थे, उसका ज्यादातर हिस्सा नोटबंदी के ऐलान की रात ही जमा किया गया था। इस बैंक की १९० शाखाएं हैं। लेकनि इतनी बड़ी रकम सिर्फ आश्रम रोड स्थित बैंक के मुख्यालय में ही जमा की गई। दरअसल 8 नवंबर की रात से बैंक में पैसा आना शुरू हो गया था। इस सहकारी बैंक के ज्यादातर ग्राहक और डिपोजिटर छोटे वेंडर और किसान हैं। आयकर विभाग अब इस बैंक से हासिल सीसीटीवी के विजुअल खंगाल रहा है। गुजरात के दूसरे सहकारी बैंकों में भी इसी तरह के अवैध नोट काफी बड़ी मात्रा में जमा किए गए हैं। सबरंगइंडिया ने अहमदाबाद  डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव बैंक के मैनेजर से बात करने की कोशिश की लेकिन मैनेजर श्री बहेड़िया से बातचीत नहीं हो पाई। बिजली न होने की वजह से बैंक हमारे कॉल ट्रांसफर नहीं कर पाया।
 
इस मामले से जाहिर होता है कि बीजेपी से नजदीकी संबंध रखने वालों ने नोटबंदी के बाद बड़ी मात्रा में अपना पैसा इन सहकारी बैंकों में जमा किया है। गुजरात के १८ सहकारी बैंकों में से १७ का प्रबंधन और प्रशासन बीजेपी के हाथ में है।

गुजरात के एक सहकारी बैंक के पास 200 करोड़ रुपये का डिपोजिट आया। इस बैंक के चेयरमैन गुजरात के एक मंत्री शंकर भाई चौधरी हैं।
 
क्या नोटबंदी एक फरेब है। एक तरफ गुजरात के सहकारी बैंकों का इस्तेमाल बीजेपी के लिए अपने काले धन को ठिकाने लगाने में किया जा रहा है। दूसरी ओर, सरकार केरल और दूसरे राज्यों के सहकारी बैंकों को बरबाद करने में तुली है।

आरबीआई के निर्देश के मुताबिक आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय ने गुजरात के संदिग्ध सहकारी बैंकों की छानबीन शुरू कर दी है।
 
अहमदाबाद मिरर के मुताबिक प्रवर्तन निदेशालय ने सोमवार को आश्रम रोड स्थित एक सहकारी बैंक के आश्रम रोड स्थित ब्रांच में सात घंटे तक तलाशी ली और वहां से कुछ दस्तावेज बरामद किए। अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव (एडीसी) बैंक की वेबसाइट में कहा गया है कि इसके निदेशकों में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी शामिल हैं। प्रवर्तन निदेशालय के जोनल दफ्तर से जुड़े एक अधिकारी ने 19 तारीख की कार्रवाई की पुष्टि करते हुए बताया कि 500 और 1000 के नोटों को बदलने और उन्हें जमा लेने के रिकार्ड में गड़बड़ी के शक के बाद छानबीन करने का फैसला किया गया। मुख्यालय से आदेश मिलने के बाद छापेमारी की गई।

नोटबंदी के ऐलान के बाद अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव बैंक में यह दूसरी छापेमारी थी। बैंक अधिकारियों ने सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार किया कि वे प्रवर्तन निदेशालय के कर्मचारियों से पूरा सहयोग कर रहे हैं। चेयरमैन अजय पटेल ने कहा – प्रवर्तन निदेशालय के कर्मचारी सोमवार को रूटीन चेकिंग के लिए आए थे। वे शाम छह बजे चले गए। हालांकि सूत्रों का कहना था कि बैंक में तलाशी अभियान सात घंटे तक चला। उन्होंने कई दस्तावेजों की जांच की और सीसीटीवी फुटेज खंगाले। गौरतलब है कि नोटबंदी के फैसले के ऐलान में मोदी सरकार ने जिला सहकारी बैंकों में 500 और 1000 नोटों को बदलने और जमा करने पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद गुजरात के सहकारी बैंक इन नोटों को जमा करने और बदलने में कैसे सफल रहे। जबकि देश की आम जनता को बैंकों की लंबी लाइनों में लगना पड़ रहा है।
 
अहमदाबाद के सहकारी बैंक पर पहली छापेमारी की खबर मीडिया में आई थी। पूर्व बीजेपी विधायक यतीन ओझा ने इसके बारे में लोगों को जानकारियां दी थी। वेब पोर्टल और पीएम को लिखी खुली चिट्ठी के जरिये इस मामले के बारे में लोगों को बताया गया था। 18 नवंबर को सबरंगइंडिया ने इस मामले की रिपोर्ट प्रकाशित की थी। सबरंगइंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक – यतीन ओझा ने पीएम नरेंद्र मोदी पर देश को मूर्ख बनाने का आरोप लगाया था।

इसके पहले कोलकाता से निकलने वाले माकपा के मुखपत्र गणशक्ति में 8 नवंबर को यह रिपोर्ट छापी गई थी कि किस तरह बीजेपी के नेता पीएम मोदी के नोटबंदी के फैसले से पहले ही 500 और 1000 के नोटों को गैरकानूनी तौर पर बैंकों में जमा किया था। यह बताया गया था कि बीजेपी के एक खाते में किस तरह रहस्यमय तरीके से एक करोड़ रुपये जमा हो गए।

​​​​​​​असली सवाल है कि पश्चिम बंगाल में जो हुआ क्या वह दूसरे राज्यों में भी हुआ। और इससे भी बढ़ कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के दूसरे सहयोगी संगठन का खातों का क्या हुआ।
नोटबंदी का फैसला लागू हुए 43 दिन हो चुके हैं। इस दौरान छोटे और बड़े डिपोजिटरों को बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। मोदी सरकार की ओर से बगैर सोचे-समझे इस फैसले को लागू करने से आम लोगों की दिक्कतों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है।
 
 
 
 

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Centre wakes up to Ground Reality after 90 Days of Blockade: Manipur https://sabrangindia.in/centre-wakes-ground-reality-after-90-days-blockade-manipur/ Thu, 22 Dec 2016 08:26:27 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/22/centre-wakes-ground-reality-after-90-days-blockade-manipur/ The Union government has finally woken up to the dangerous situation in Manipur and has sent 4000 central paramilitary troops to control ethnic tension which has been building over weeks and are now threatening to spiral out of control. It should have done this at least a month ago when as a consequence of an […]

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The Union government has finally woken up to the dangerous situation in Manipur and has sent 4000 central paramilitary troops to control ethnic tension which has been building over weeks and are now threatening to spiral out of control. It should have done this at least a month ago when as a consequence of an indefinite blockade on the lifelines of Manipur by a Naga civil organisation, United Naga Council, UNC, over the anticipated creation of two new administrative districts, and signs of retaliation from those at the receiving end of the blockade began showing.

Violence erupted in an unprecedented way last Sunday when a mob of locals in the Khurai area — an outlying Imphal East township — overpowered a small detachment of police escorting a convoy of vehicles to Ukhrul district while staging a counter-blockade. After making the passengers dismount, the mob burned the vehicles along with the passengers’ belongings. In all, 21 vehicles were destroyed. Thankfully, no humans were targeted giving hope that the bitterness of the unfolding ethnic venom is still not beyond redemption.
 
Ever since Sunday’s violence, curfew has been clamped in the two Imphal districts both of which have mix populations. In the capital Imphal West, it is night curfew and in the outlying Imphal East, it is indefinite 24-hour curfew. As a precautionary measure, the government has also suspended mobile internet services to prevent spread of inflammatory rumours with the potential of escalating the tension.

The UNC blockade began nearly a month and a half on November 1, but Sunday’s incident still took everyone by surprise, even though many commentators have been foreboding such a cataclysm if the UNC blockade continued and common folks were put under livelihood pressures over and above the difficulties heaped on them by demonetisation.
The UNC blockade began over the possibility that the Manipur government would bifurcate Senapati district to give its SADAR Hills subdivision (Selected Area Development and Administrative Region), a full-fledged district status, acceding to a long standing demands of the residents of this sub-division, predominantly Kukis, but also Nepalis. SADAR Hills is located in the scenic extended foothills in the north of the Imphal valley, with arms along the narrower foothills in the east and west of the valley, touching virtually every district of the state.
 
The mountain ranges in the Eastern Himalayas generally run north to south therefore the foothills in the Imphal valley are much wider and deeper in the north and south, than in the east and west. These foothills are flatter and better irrigated than the mountains further away, therefore more suitable for wet rice agriculture. For reasons that have partly to do with the Nagas’ love for the higher mountains and partly politics of the colonial times, these foothills are generally inhabited by Kukis and aligned tribes.
The mutual ethnic cleansing campaigns between Kukis and Nagas in the mid-1990s following a quit notice served to Kukis in the hills, on that occasion again by the UNC, have also ensured the concentration of Kukis in the region adjoining the valley.

After these deadly clashes, which left over a thousand killed and multiple more displaced, SADAR Hills virtually became a district with headquarters at Kangpokpi, as Kukis found it uneasy to negotiate official matters at Senapati.

The UNC’s objection to SADAR Hills is that it believes this land forms part of the ancestral Naga homeland and that the Kukis, who they see as migratory, can at best be their tenants, occupying the place only so long as they enjoyed the pleasure of their landlords. They also see Manipur government’s move as an attempt to fracture this Naga homeland, also often referred to as Nagalim, echoing the vocabulary of the Naga underground group NSCN(IM), now in peace talks with the Government of India since 1997.

Together with SADAR Hills, Jiribam, another tiny enclave in the Assam border adjacent to Silchar in the Barak Valley, was to be given district status. Since it is predominantly inhabited by non-Schedule Tribe populations of Meiteis and Bengalis, Jiribam was till recently attached to the non-reserved Imphal East district 220km away as a sub-division, and not to adjacent Tamenglong, a reserved district for STs for that would have created immense administrative and legal problems in regards to land ownership and enfranchisement.

The Manipur government deferred the anticipated creation of these two districts in October end, but the UNC insisted on a definite official assurance that these districts will never be created without their consent and launched its indefinite blockades from November 1, the day Kut festivals of the Kukis is celebrated. This year it was an important date for the Meiteis too for on their traditional lunar calendar, this was also Ningol Chakkouba day, an endearing traditional festival when married women came home for a feast with siblings at their parental home.

In the meantime, those demanding SADAR Hills district also began threatening a blockade. This pressure group too have resorted to blockades in the past and there is no saying they would not have done it again had the government’s decision not been in their favour.

For whatever its wisdom, or the lack of it, after more than a month of the UNC blockade, on December 8 midnight, the government decided to go ahead to let the matter go in the latter group’s favour, creating not just SADAR Hills district, but six more, splitting seven of the state’s existing nine districts in the process.

The new districts are Kangpokpi (the new name for SADAR Hills) bifurcated from Senapati district, Noney from Tamenglong, Kamjong from Ukhrul, Tengnoupal from Chandel, Pherzawl from Churachandpur, Jiribam from Imphal East and Kakching from Thoubal. Predictably, the UNC hardened its blockade stance. In response counter-blockades began to be organised in the valley areas too.

These protests soon acquired the character of loose cannons hitting wrong targets, and the resultant damages have been immense. Instead of the government, those who ended up lashed are ordinary people many of whom have little or no concern on whether there should be more districts or less in the state, so long as they can eke out their meagre earnings and daily bread. The friction invariably began acquiring a communal hue too.

The valley especially became embittered. It had little stake in the politics in the hills over the new districts, except for the fact that the UNC’s insistence on consolidation and political autonomy of Nagalim corresponded with the NSCN(IM)’s pursuit of an exclusive sovereign Naga nation carved out of neighbouring states, including a huge chunk of Manipur, and merged with Nagaland. It is ironic that the NSCN(IM) and UNC who are pursuing grand themes of “shared sovereignty” and “shared competencies” with the Government of India are averse to any idea of shared homeland with tribes and communities who also have been inhabiting the same tracts of lands as them.

What has made the current crisis dangerous is, blockades embitter entire populations. The message is, I can throttle you to death if I please, and there is nothing you can do about it but submit. Unfortunately again, the message is now felt mostly in the valley. Counter-blockades therefore sprang up in the valley and they carry the same message, and reciprocal embitterment.

In the non-Naga districts of Churachandpur, Thoubal and Imphal East which too have become two each, the government’s new move met with warm welcome. In the Naga districts too, except SADAR Hills, this was the case initially, but whatever their compulsions, they have now begun retracting their warm embrace of the new districts.

Represntational Image: Narada News

(Pradip Phanjoubam is editor Imphal Free Press and author of The Northeast Question: Conflicts and Frontiers; a version of this article appeared also in The Indian Express today and has been published here with the author’s permission)

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