drought in india | SabrangIndia News Related to Human Rights Tue, 28 Jun 2016 06:15:02 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png drought in india | SabrangIndia 32 32 In June, 7 Drought-Hit States Short Of Water https://sabrangindia.in/june-7-drought-hit-states-short-water/ Tue, 28 Jun 2016 06:15:02 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/06/28/june-7-drought-hit-states-short-water/ Of 11 states ravaged by drought in 2016, seven—Karnataka, Andhra Pradesh, Telangana, Maharashtra, Gujarat, Jharkhand and Chhattisgarh—had less than average water in their reservoirs in June 2016.   Levels in dam reservoirs were no more than 10% of capacity for four of the 11 states as June ended, according to the reservoir data with the Central Water […]

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Of 11 states ravaged by drought in 2016, seven—Karnataka, Andhra Pradesh, Telangana, Maharashtra, Gujarat, Jharkhand and Chhattisgarh—had less than average water in their reservoirs in June 2016.
 
Levels in dam reservoirs were no more than 10% of capacity for four of the 11 states as June ended, according to the reservoir data with the Central Water Commission. This is despite the fact that eight of the 11 had normal rainfall in June; rains were 30% short of normal in Maharashtra, Chhattisgarh, Odisha and Jharkhand.
 
Telangana reservoirs are at 2% of capacity, Maharashtra’s at 5.6%, Andhra Pradesh and Karnataka at 9.5%, which means South Central India is particularly short on water. Maharashtra, with reservoirs at 5.6% of capacity and a 33% deficit in June rainfall, was the worst-hit state at the end of June.

 

 
The situation in 2016 is a reminder of the 2009 drought that wreaked havoc with India’s economy by pushing inflation to double digits. But much will depend, experts said, on how the monsoon progresses over the next three months.
 
Although reasonable rainfall was reported from Maharashtra’s central and southeastern Marathwada region, a traditionally drought-prone area, reservoir levels remain at 1% of capacity—as they have been since a month—an unprecedented situation.
 
Madhya Pradesh, Odisha, Rajasthan and Uttar Pradesh were four of 11 drought-hit states that reported more-than-average water in their reservoirs.
 
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Source: Central Water Commission
 
The southwest monsoon hit India eight days late, breaking over Kerala on June 8, 2016, instead of June 1. It reached Mumbai on June 20, 10 days later than normal.
 
Karnataka, Andhra Pradesh and Uttar Pradesh are the drought-hit states that received more than average June rainfall till June 23, according to India Meteorological Department data.
 
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Source: Hydromet, India Meteorological Department; unit – mm)
 
While monsoon rains are underway in southern and eastern India, and most of the central plains, Gujarat and Rajasthan have got little or no rain.
 
Despite higher-than-normal rainfall in June 2015, all states reported uniform shortfalls over the 2015 monsoon season, indicating that June rainfall is not a harbinger of what might happen.
 
 

Source: Hydromet, India Meteorological Department.
 
If the two water indicators—reservoir levels and rainfall (in June)—are taken together, Maharashtra, as we said, is the worst-affected state in India.
 
Andhra Pradesh and Karnataka, both equally affected by the drought and with water in their reservoirs at less than 10%, have benefitted from above-normal June rainfall.
 
Lowest water levels in Maharashtra reservoirs in eight years: Govt
 
While the CWC data covers only major reservoirs in Maharashtra, the state government water resources department puts water levels in Maharashtra dams at 9% of capacity, the lowest in eight years.
 

 

 
June rainfall in 2014 was a fourth of normal; in 2016, it was half of normal. The northern and eastern areas of the state, the Vidarbha region, were worst hit in 2009, sparking a wave of farmer suicides.
 
“If we consider the four-month rainfall—June, July, August and September—as important for agriculture, a delayed monsoon will undoubtedly reduce the June rainfall,” Ranjan Kelkar, former Director General of India Meteorological Department (IMD) told IndiaSpend. “That tells us nothing about rainfall in the remaining three months; it all depends on how strong the coming monsoon winds are.”
 
In April, the Met forecast above-normal monsoon rainfall for the June to September 2016 season, standing by its forecast in June. As Kelkar said, it all depends on the next three months.
 
(Waghmare is an analyst with IndiaSpend.)

Courtesy: IndiaSpend.com
 

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प्रकृति ने कोई भेद नहीं किया पर मराठवाड़ा में दलितों के हिस्से हरबार ज्यादा सूखा आता है https://sabrangindia.in/parakartai-nae-kaoi-bhaeda-nahain-kaiyaa-para-maraathavaadaa-maen-dalaitaon-kae-haisasae/ Mon, 06 Jun 2016 06:36:32 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/06/06/parakartai-nae-kaoi-bhaeda-nahain-kaiyaa-para-maraathavaadaa-maen-dalaitaon-kae-haisasae/ सावरगांव ग्रामीण मराठवाड़ा में सूखे से जुड़ी प्रतिनिधि कहानियां कहता है और यह भी बताता है कि कैसे दलित इन कहानियों के सबसे दुखियारे पात्र हैं   नांदेड़ जिले के हदगांव तालुके में 7000 की आबादी वाला सावरगांव. गांव में सुबह के छह बज रहे हैं. पानी भरने के लिए आ रहे लोगों की कतार […]

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सावरगांव ग्रामीण मराठवाड़ा में सूखे से जुड़ी प्रतिनिधि कहानियां कहता है और यह भी बताता है कि कैसे दलित इन कहानियों के सबसे दुखियारे पात्र हैं


 
नांदेड़ जिले के हदगांव तालुके में 7000 की आबादी वाला सावरगांव. गांव में सुबह के छह बज रहे हैं. पानी भरने के लिए आ रहे लोगों की कतार लंबी होती जा रही है. बबन जोगदंड उनींदी आंखों के साथ घर लौट रहे हैं. कुओं के पास लोग जमा हो चुके हैं. अब बबन कुओं की सुरक्षा की परवाह किए बगैर घर जा कर आराम से सो सकते हैं.

गांव के सूख चुके तालाब में सात गड्ढे खोदे गए हैं. इनकी गहराई 15 फीट से अधिक नहीं है. इन गड्ढों, जिन्हें कुआं कहा जा रहा है, में जमीन से मटमैला पानी रिसकर इकठ्ठा होता है. गांव का एक तबका जो निजी टैंकरवाला पानी नहीं खरीद सकता, अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए इसी पानी पर निर्भर है. इसी की पहरेदारी में बबन जोगदंड रातभर जागते रहे थे.
 

गांव में 60 फीसदी आबादी आंद आदिवासियों की है. तालाब में खोदे गए सात में से चार कुओं पर इन्हीं का कब्ज़ा है. इसके बाद लिंगायत, मराठा और दलितों के पास एक-एक कुएं की हिस्सेदारी बचती है

सावरगांव एक तरह का ‘जमीनी टापू’ है. यहां से बाहर निकलने या यहां पहुंचने के लिए आपको कम के कम 8-10 किमी पैदल तो चलना ही पड़ता है. नीमगांव से नौ किलोमीटर का सफ़र पूरा करके आप जैसे ही सावरगांव में दाखिल होते हैं आपको गांव के एक सिरे पर सार्वजनिक जलापूर्ति के मकसद से बनी दो टंकियां दिखाई देंगी. ग्रामीणों के हिसाब से पुरानी टंकी की उम्र 40 साल से अधिक है. उसके बिल्कुल बगल में खड़ी निर्माणाधीन टंकी बस आठ साल पहले बनी है.

पुरानी टंकी में गांव के तालाब से पानी चढ़ाया जाता था. इससे गांव में छह नल कनेक्शन हैं. पिछले 10 सालों से इन नलों का पानी जैसी किसी चीज से कोई साबका नहीं पड़ा है. दूसरे टंकी में नौ किलोमीटर दूर नीमगांव से पाईपलाइन बिछा कर पानी लाने की योजना थी. इसके लिए आठ साल पहले 78 लाख रुपये आवंटित हुए थे. आज यहां एक चार इंच की पाइपलाइन के अवशेषभर मौजूद हैं. टंकी का काम अभी-भी पूरा नहीं हुआ और इसका इतिहास देखते हुए कहा भी नहीं जा सकता कि इसमें कब तक पानी आएगा. लेकिन इससे पहले यह सवाल जेहन में आता है कि जब गांव के तालाब से पानी इकठ्ठा कर गांव में सप्लाई करने के लिए पहले से टंकी मौजूद है तो नौ किलोमीटर दूर से पानी लाने की जरूरत क्यों पड़ी? इसके लिए हमें 22 साल के माधव मुलेकर और एक साल के दीपक कराले की बेवक्ती मौत के कारणों को समझना पड़ेगा.

यह 2014 की जुलाई की बात है. माधव को अचानक दोपहर में उल्टियां होने लगीं. शाम होते-होते उन्हें दस्त लगने भी शुरू हो गए. तब तक आसपास के लोग स्थिति की गंभीरता नहीं समझे थे और उनका इलाज घरेलू नुस्खों से करने की कोशिश की गई. सुबह होते-होते माधव की स्थिति यह थी कि वे खाट से उठकर खड़े नहीं हो सकते थे. 11 बजे के लगभग उन्हें नांदेड़ में भर्ती करवाने के लिए ले जाने की कवायद शुरू हुई. ग्रामीण बताते हैं कि माधव को गांव के चौराहे तक ही ला पाए थे कि उसने दम तोड़ दिया. इस चौराहे से उस नई टंकी की झलक साफ-साफ दिखती है.

सावरगांव में पानी सप्लाई के लिए आठ साल पहले एक टंकी का निर्माण शुरू हुआ था लेकिन यह आज तक नहीं बन पाई
सावरगांव में पानी सप्लाई के लिए आठ साल पहले एक टंकी का निर्माण शुरू हुआ था लेकिन यह आज तक नहीं बन पाई

दीपक प्रकाश कराले की उम्र महज एक साल की थी. पिछले साल हुई बारिश के बाद ऐसे ही एक दिन उसकी तबीयत बिगड़ गई. सावरगांव जो एक जमीनी टापू है, से दीपक के पिता प्रकाश कराले ने नौ किलोमीटर पैदल सफ़र तय किया. वे दीपक को नीमगांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर पहुंचे. लेकिन तब तक दीपक दम तोड़ चुका था. दीपक सहित गांव में पिछली बारिश में मरने वालों की संख्या चार थी. यह वही नीमगांव था जहां से पानी उस टंकी में पहुंचना था, जिसे गांव के मुख्य चौराहे से साफ-साफ देखा जा सकता है.

इन दो घटनाओं का जिक्र बस यह बताने के लिए किया गया है कि हर साल सावरगांव में मॉनसून मौत ले कर आता है. माधव के भाई विजय मुलेकर बताते हैं, ‘हमारे गांव के तालाब के पास बेशरम और दूसरी जहरीली झाड़ियां हैं. इनका तालाब के पानी पर भी असर पड़ता है. बारिश के समय पूरे गांव में लोग दस्त और उल्टी से परेशान हो जाते हैं. कई लोग और जानवर हर साल मरते हैं. ये टंकी इसलिए बनाई जा रही है कि हमें नीमगांव का साफ़ पानी मिल सके, लेकिन पिछले आठ साल में एक लोटा पानी नसीब नहीं हुआ.’

बहरहाल हम वापस तालाब की ओर मुड़ते हैं जिसकी तलहटी में सात कुएं खोदे गए हैं. इन कुओं की संख्या सात यूं ही नहीं है. वैसे तो भारतीय संस्कृति में ‘सात’ का अंक बड़ा महत्वपूर्ण है और कई मामलों में शुभ माना जाता है लेकिन इन सात कुओं की पृष्ठभूमि में सांवरगांव की सामाजिक संरचना का अहम योगदान है.

गांव में 60 फीसदी आबादी आंद आदिवासियों की है. सात में से चार कुओं पर इन्हीं का कब्ज़ा है. इसके बाद लिंगायत, मराठा और दलितों के पास एक-एक कुएं की हिस्सेदारी बचती है. कई दशकों से तालाब के पेंदे में ये कुएं इसी तरह से मौजूद हैं. हर साल तालाब में पानी सूख जाने के बाद इन्हें फिर से खोदा जाता है. 45 वर्षीय नंदकुमार मेतकर बताते हैं, ‘हमारा गांव पहाड़ पर बसा है. यहां हर साल पानी की किल्लत रहती है. हमारे से पिछली पीढ़ी के लोगों ने पानी की वजह से हो रहे झगड़ों को रोकने के लिए अलग-अलग कुएं खोद लिए थे. आज भी वही परंपरा कायम है. इससे हर घर को अपने हिस्से का पानी मिल जाता है और गांव में झगड़े जैसी स्थिति नहीं बनती.’

तालाब की तलहटी में खोदा गया एक कुआं
तालाब की तलहटी में खोदा गया एक कुआं

नंदकुमार छुआछूत की बात से साफ़ इंकार करते हैं, ‘हमारे गांव में मुस्लिम समाज के तीन, कसार समाज (पिछड़ा वर्ग) के पांच, सुथार समाज (पिछड़ा वर्ग) के पांच और राजपूतों के 10 घर हैं. ये लोग भी मराठा और आंद समाज के कुएं से ही पानी भरते हैं. अगर छुआछूत जैसी कोई बात होती तो हम इन्हें अपने कुएं से पानी क्यों भरने देते? ऐसा तो है नहीं कि अगल-अलग कुओं का रिवाज सिर्फ तालाब में है. गांव में पहले से हर समाज के अपने अलग-अलग कुएं हैं.’

नंदकुमार के बयान से आपको पहली नजर में लगेगा कि यह मामला छुआछूत से ज्यादा सर्वाइवल का है. जब पानी जीवन की सबसे बड़ी जद्दोजहद के रूप में उभर रहा है तो रोज-रोज की लड़ाई से बेहतर है कि लोग अपने कुएं अलग कर लें. गांव के लोग बराबर दावा करते हैं कि यह आपसी सहमति से लिया गया फैसला है.

नंदकुमार मेतकर बयान के सामानांतर सदानंद सोनाले का बयान है जो आपको 16 साल पीछे खींच ले जाता है. यह जून 2000 की बात है. गांव में सालाना पानी की किल्लत का दौर था. कुछ दलित मराठा जाति से आने वाले मारुतराव क्षीरसागर के कुएं पर खड़े होकर पानी के लिए इंतजार कर रहे थे. तब यह रोज की कहानी हुआ करती थी. अक्सर लोगों को पानी लेने के लिए किसी ऊंची जाति के आदमी का इंतजार करना होता था. वही पानी निकालकर उन्हें देता था. उस दिन काफी देर इंतजार करने के बाद भी जब पानी भरने के लिए कोई नहीं आया तो कुछ लोगों ने साहस करके खुद कुएं से पानी खींचना शुरू कर दिया. इस बात को लेकर गांव में मारपीट की स्थितियां बन गई. इसके विरोध जब अंबेडकरवादी कार्यकर्ता अपना विरोध जताने गांव में पहुंचे तो उन्हें गांव में घुसने नहीं दिया गया.

इस मामले में स्थानीय पत्रकार सदानंद सोनाले पर एफआईआर दर्ज हुई थी. वे बताते हैं, ‘हम मोर्चा लेकर गांव की तरफ बढ़ रहे थे. हमारे साथ 500 से ज्यादा लोग थे तभी बीच में पुलिस इंस्पेक्टर अशोक जुग्टे ने हमें बताया कि पहाड़ियों में लिंगायत, आंद और मराठा समुदाय के लोग घेरा डालकर बैठे हुए हैं. उनके पास तलवार, मिर्च पाउडर, फरसे और लाठियां हैं और अगर हम गांव की तरफ बढ़ेंगे तो कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है. उस समय गांव के अंदर रह रहे दलित समुदाय को लेकर हम और ज्यादा चिंतित हो गए थे. हालांकि बाद में पुलिस ने हालात काबू में कर लिया था.’
 

नारायण बताते हैं, ‘हमारी बस्ती में जिस आदमी के टैंकर आते हैं वो गांव का ही लिंगायत है. हम बारिश के बाद उसके खेत में काम करके पानी का पैसा चुकाते हैं'
 

वे आगे कहते हैं, ‘आपको पहली नजर में सबकुछ एकदम ठीकठाक दिखेगा. लेकिन यहां छुआछूत समाज के बहुत गहरे में मौजूद है. यहां हर साल गुड़ीपडवा के दिन ब्रह्मदेव की यात्रा निकलती है. दलितों के लिए ब्रह्मदेव के मंदिर में जाना आज भी वर्जित है. यात्रा में शामिल दलित समाज के लोगों को ब्रह्मदेव के मंदिर से नीचे की तरफ बने मरीआई नाम की देवी के मंदिर तक ही जाने दिया जाता है. यात्रा के बाद होने वाले सामूहिक भोजन में भी दलितों की पंगत अलग से लगती है. ये मैं आपको सिर्फ उदहारण के तौर पर बता रहा हूं. छुआछूत यहां के जीवन की सच्चाई है और वह हर जगह है.’

गांव के मुख्य चौराहे से बाईं तरफ 31 टीन की छत वाले मकान हैं. इन मकानों पर अशोक चक्र वाला नीला झंडा लगा हुआ है. ये सभी दलितों के घर हैं. नारायण लोखंडे का परिवार भी यहां की एक छत के नीचे रहता है. अपने परिवार की जरूरतों के लिए वे रोज स्थानीय टैंकर व्यवसायी से 40 रुपये के हिसाब से 200 लीटर (एक ड्रम) पानी खरीदते हैं. हर साल जनवरी में तालाब सूखने की कगार पर आ जाता है. अब चूंकि तालाब में दलितों के नाम का सिर्फ एक ही ‘कुआं’ हैं और उसमें भी कोई इतना पानी नहीं होता कि गांव के सारे दलितों को हर रोज पानी मिल जाए. लिहाजा नारायण के पास साल की शुरुआत से मॉनसून आने तक पानी खरीदने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता.

जिस जमीन पर नारायण का टीन की छत वाला घर खड़ा है, उसके अलावा उनके पास संपत्ति के नामपर कुछ भी नहीं है. वे और उनकी पत्नी खेत मजदूर का काम करती हैं. नारायण के पास इस समय टैंकर वाले को देने के लिए पैसे नहीं है. उनको इस पानी की कीमत बारिश के बाद खेत में काम करके चुकानी पड़ेगी. तब 200 रुपये की मजदूरी के हिसाब से वे हर दिन पांच ड्रम पानी कमा पाएंगे.

नारायण बताते हैं, ‘हमारी बस्ती में जिस आदमी के टैंकर आते हैं वो गांव का ही लिंगायत है. हम बारिश के बाद उसके खेत में काम करके पानी का पैसा चुकाते हैं. अगर उसके खेत में इतना काम नहीं लगता तो वो हमसे दूसरों के खेत में काम करवा कर अपना पैसा भर लेता है. ये जगह सूखी है और बारिश के मौसम में चार महीने काम मिलता है. उसमें से हर साल मेरी एक महीने की मजदूरी पानी का पैसा चुकाने में चली जाती है. क्या करें साहब, पानी के बिना जिंदा भी तो नहीं रह सकते ना.’
 

सामाजिक-आर्थिक पिरामिड में सबसे नीचे होने की वजह से प्राकृतिक आपदा के समय सबसे ज्यादा बोझ भी दलितों पर ही पड़ता है

इस गांव के ज्यादातर दलितों की कहानी नारायण से अलग नहीं है. और बड़े स्तर पर देखें तो पूरे मराठवाड़ा के ग्रामीण इलाकों में यही स्थितियां हैं. सामाजिक-आर्थिक पिरामिड में सबसे नीचे होने की वजह से प्राकृतिक आपदा के समय सबसे ज्यादा बोझ भी दलितों पर ही पड़ता है.

विकट स्थितियों में सामाजिक भेदभाव दलितों की जिंदगी किस तरह मुहाल कर सकता है, यह उसका उदाहरण है लेकिन समाज की कई परतों में छिपे इस भेदभाव की कोई औपचारिक शिकायत नहीं की जा सकती. स्थानीय पुलिस स्टेशन पर असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर एमडी भोसले काफी देर कागज पलटने के बाद बताते हैं कि पिछले पांच साल में सावरगांव से दलित उत्पीड़न के किसी मामले का आधिकारिक रिकॉर्ड मौजूद नहीं है. टैंकर माफिया के खेत में नारायण के काम को भी आधिकारिक तौर पर बेगार नहीं कहा जा सकता. क्योंकि यह 40 रुपये प्रति ड्रम के एवज में 200 रुपये प्रति दिन का किया गया भुगतान है.

इसबीच सावरगांव को तकरीबन दो हफ्ते बाद आनेवाले मॉनसून का इंतजार है. ग्रामीणों को उम्मीद है कि बारिश शुरू होने के बाद उनके लिए पानी की दिक्कत उतनी बड़ी नहीं रहेगी, हां लेकिन इस दौरान तालाब के जहरीले पानी से फिर किसी की मौत होने का खतरा जरूर शुरू हो जाएगा.

Article First Published in: Satyagrah.scroll.in

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समझ, संकल्प और इक्छाशक्ति का अकाल – योगेन्द्र यादव https://sabrangindia.in/samajha-sankalapa-aura-ikachaasakatai-kaa-akaala-yaogaenadara-yaadava/ Wed, 01 Jun 2016 04:46:20 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/06/01/samajha-sankalapa-aura-ikachaasakatai-kaa-akaala-yaogaenadara-yaadava/ – जल-हल-पद यात्रा के समापन पर  योगेन्द्र यादव ने कहा: बुंदेलखंड में पशुओ के लिए चारा , पानी का संकट सरकार उदासीन । – तमाम  गुनजाईशो के बाबजूद बुन्देखंड में राशन व्यवस्था ठप , भषटाचार के चुंगल में जकड़ी । – 21 मई को मराठवाड़ा के लातूर से चली जल-हल पदयात्रा का समापन आज बुंदेलखंड […]

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– जल-हल-पद यात्रा के समापन पर  योगेन्द्र यादव ने कहा: बुंदेलखंड में पशुओ के लिए चारा , पानी का संकट सरकार उदासीन ।

– तमाम  गुनजाईशो के बाबजूद बुन्देखंड में राशन व्यवस्था ठप , भषटाचार के चुंगल में जकड़ी ।

– 21 मई को मराठवाड़ा के लातूर से चली जल-हल पदयात्रा का समापन आज बुंदेलखंड के महोबा में।

मराठवाड़ा और बुंदेलखण्ड के सूखा प्रभावित गाँवों में पदयात्रा का नेतृत्व कर रहे योगेन्द्र यादव ने रखी रिपोर्ट, कहा बुंदेलखंड में चल रहा सुखा जानवरों के लिए अकाल में बदल चूका है। हर रोज़ हजारो  जानवर भूख और प्यास से दम तोड़ रहे हैं। चारे की भारी किल्लत से जंगली जानवर भी पानी और भोजन के आभाव में दम तोड़ रहे हैं।  सरकार की चारा वितरण की योजना कागजो तक सीमीत है। इस त्रासदी को और विकराल रूप धारण करने से रोकने के लिए सरकार और समाज दोनों को आपात कदम युद्ध स्तर  पर उठाने होंगे। यह निष्कर्ष जल-हल-पद यात्रा का नेतृतव कर रहे योगेन्द्र यादव ने महोबा में इस यात्रा के समापन समारोह में  व्यक्त किया। इस अवसर पर जाने माने किसान नेता और जनआन्दोलन के राष्ट्रीय समन्वयक के संयोजक डॉ सुनीलम और एकता परिषद् के पी . वी .राजगोपाल भी उपस्थित थे ।

सुप्रीम कोर्ट के आदेशो की अबहेलना करने पर सरकार को आड़े हात लेते हुए  डॉ सुनीलम ने कहा किसान के कर्ज माफ़ी और बिजली का बिल माफ़ी की मांग की । गांधीवादी कार्यकार्ता श्री पी . वी .राजगोपाल ने कहा सिर्फ सरकार तक निर्भर रहने के बजाय लोकशक्ति के निर्माण पर भी बल दिया जाये। इस जन सभा में पहुँच कर जिलाधिकारी श्री सुरेश कुमार  ने सरकार का पक्ष रखा 
। सूखा राहत की सरकारी प्रयासों को गिनाते हुए उन्होंने माना  की खाद वितरण व्यवस्था में सुधार की गुन्जाइश है और बड़ी जोत  के किसानो को मुआवजा राशी देने के लिए राज्य सरकार से फण्ड नहीं मिले हैं।

पिछले 5 दिनों से मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश में रही पद- यात्रा से सूखे को भयावहा स्तिथि उजागर हुई। अधिकांश गाँव में पानी की भारी किल्लत है। टीकमगढ़ और छत्तरपुर में यह कमी अब संकट का रूप धारण कर चुकी है। दोनों राज्यों में फासले बर्बाद होने के कारण खद्यान की भीषण कमी है। म.प्र. में खाद्य सुरक्षा कानून पहले लागू होने के बाबजूद बड़ी संख्या में लोग राशन के अंनाज से वंचित हैं। उत्तर प्रदेश में लोग पूरी खाद्यान्न वितरण व्यवस्था चौपट है। ताकतवर और भ्रष्ट अफसरो और नेताओ की मिली भगत के चलते ज्यादर कोटा गरीबो तक पहुचने से पहले ही बेच दिया जाता है।  यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश की राशन व्यवस्था में हर प्रकार की खामी –उजागर हुई। 

कई  लोगो के पास किसी भी तरह का राशन कार्ड नहीं है। अगर हैं  तो परिवार के सभी लोगो का नाम नहीं हैं ,राशन कई महीनो तक मिलता  नहीं है, जब मिलता है तो पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलता है।  यात्रा के दौरान कई गांवों में खाद्य सुरक्षा पर्ची बनाने के नाम पर लोगो से 50 रुपया वसूल करने का भांडा फोड़ हुआ और रिश्वत का पैसा लोगो को वापस  दिलाया गया। 

हालाँकि मनरेगा के अंतर्गत रोज़गार देने में उत्तर प्रदेश का रिकॉर्ड मध्य प्रदेश से कही बेहतर है, फिर भी कई लोगो की पेमेंट में देरी की शिकायत सुनी गई।  महोबा जिले में सरकारी अधिकारियों ने पद – यात्रा के साथ जा कर लोगो की शिकायते सुनी और उनका निवारण करने का असवाशन दिया। याद रहे की जल-हल-यात्रा का आयोजन सुप्रीम कोर्ट के इतिहासिक निर्णय के सन्दर्भ में हुआ था।
सूखे की भयावह स्थिति और सरकार की उदासीनता को देखते हुए स्वराज अभियान ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने सूखा को आपदा घोषित करते हुए ऐतिहासिक फैसला दिया और केंद्र एवं राज्य की सरकारों को सूखा राहत के लिए काम करने का निर्देश दिया। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सूखा प्रभावित क्षेत्रों में सबको राशन मिले, मनरेगा के तहत रोजगार मिले, बच्चों को गर्मी की छुट्टियों में भी मिड-डे मील मिले और सप्ताह में कम से कम तीन दिन दूध या अंडा मिले। सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला जमीन पर उतरे और प्रभावी ढंग से लागू हो, यही सुनिश्चित करने के लिए स्वराज अभियान ने जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, जल बिरादरी और एकता परिषद के साथ मिलकर योगेन्द्र यादव के नेतृत्व में जल हल पदयात्रा शुरू की। 

21 मई को मराठवाड़ा में लातूर जिला के सोनवती गाँव से जल-हल पदयात्रा की शुरुआत हुई जिसमें जलपुरुष के रूप में प्रसिद्ध जल बिरादरी के राजेंद्र सिंह शामिल हुए। पदयात्रा महाराष्ट्र के तीन जिलों लातूर, उस्मानाबाद और बीड के गाँवों में 5 दिनों तक चली। 26 मई को भोपाल में एक राज्य स्तरीय जल-हल सम्मेलन हुआ जिसमें मेधा पाटकर ने भाग लिया। जनांदोलनों का राष्ट्रीय  के समन्वय के  राष्ट्रीय संयोजक डॉ. सुनीलम भी लगातार पदयात्रा के साथ चल रहे हैं। 

27 मई से पदयात्रा अपने दूसरे चरण में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में पहुँची। बुंदेलखंड के गाँवों में 5 दिनों की पदयात्रा के बाद आज 31 मई को जल हल पदयात्रा का समापन एक जनसभा के रूप में बुंदेलखण्ड के महोबा में हुआ। इस जनसभा में जल हल पदयात्रा का नेतृत्व कर रहे जय किसान आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक और स्वराज अभियान के संस्थापक सदस्य योगेन्द्र यादव ने 10 दिनों की पदयात्रा का रिपोर्ट पेश किया। इस जनसभा को एकता परिषद के राष्ट्रीय संयोजक पी. वी. राजगोपाल ने भी संबोधित किया। 

सूखे के गंभीर संकट से जूझ रहे देशवासियों को राहत दिलाने के लिए योगेंद्र यादव के नेतृत्व में स्वराज अभियान की टीम लगातार काम कर रही है। इस यात्रा के दौरान भी स्वराज अभियान के वॉलंटियर्स ने समस्या का समाधान निकालने और राहत पहुंचाने की भरपूर कोशिश की। जल-हल यात्रा से उजागर हुई सच्चाइयों को देश के सामने रखने के लिए योगेंद्र यादव बुधवार 1 जून को दिल्ली में एक प्रेस वार्ता को संबोधित करेंगे। 

योगेन्द्र यादव / अविक शाह-  स्वाराज अभियान
श्री राजेंद्र सिंह / संजय सिंह- जल बिरादरी
पी. वी .राजगोपाल- एकता परिषद
डॉ सुनीलम-   जनआन्दोलन का राष्ट्रीय समन्वय
 

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