JNU Dalit Students | SabrangIndia News Related to Human Rights Wed, 04 Jan 2017 07:24:56 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png JNU Dalit Students | SabrangIndia 32 32 जेएनयू के बहुजन छात्रों के समर्थन में गुजरात यूनिवर्सिटी के छात्रों का प्रदर्शन https://sabrangindia.in/jaeenayauu-kae-bahaujana-chaataraon-kae-samarathana-maen-gaujaraata-yauunaivarasaitai-kae/ Wed, 04 Jan 2017 07:24:56 +0000 http://localhost/sabrangv4/2017/01/04/jaeenayauu-kae-bahaujana-chaataraon-kae-samarathana-maen-gaujaraata-yauunaivarasaitai-kae/ गांधीनगर। वाइवा मार्क कम करने की मांग कर रहे जेएनयू से निष्कासित बहुजन छात्रों के समर्थन और जेएनयू प्रशासन के विरोध करने वालों का दायरा बढ़ता जा रहा है। जेएनयू में बढ़ रहे जातीय भेदभाव को लेकर अन्य यूनिवर्सिटी के छात्रों में भी रोष का माहौल है। सोमवार को गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय में अंबेडकर स्टूडेंट्स […]

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गांधीनगर। वाइवा मार्क कम करने की मांग कर रहे जेएनयू से निष्कासित बहुजन छात्रों के समर्थन और जेएनयू प्रशासन के विरोध करने वालों का दायरा बढ़ता जा रहा है। जेएनयू में बढ़ रहे जातीय भेदभाव को लेकर अन्य यूनिवर्सिटी के छात्रों में भी रोष का माहौल है। सोमवार को गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय में अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन और यूनाइटेड ओबीसी फोरम द्वारा निष्कासित बहुजन छात्रों के समर्थन में सयुंक्त रूप से प्रोटेस्ट किया गया।

JNU
 
हस्तक्षेप की खबर के अनुसार, इन संगठनों का कहना है कि छात्रों द्वारा की गयी तीनों मांगों को लागू किया जाये। अगर जेएनयू प्रशासन ऐसा नहीं करता है तो गाँव और दूर दराज़ के छात्रों के साथ भेद-भाव बढ़ेगा और उनको यूनिवर्सिटीज में पढ़ने से अप्रत्यक्ष रूप से रोकने जैसा होगा, जो कि पूरी तरह से असंवैधानिक है।
 

 
सभा को संबोधित करते हुए गांधीयन विचार अध्धयन केंद्र के शोधार्थी आकाश कुमार रावत ने कहा कि ओबीसी कैटेगरी आसमान से टपकी हुई कैटेगरी नहीं है। यह संविधान से निकली हुई कैटेगरी है। जो इसका विरोध करता है वह देश का विरोध करता है। अगर जेएनयू वास्तव में प्रगतिशील विचारधाराओ में विश्वास करता है तो उसे सभी समुदाय के लोगों को पढ़ने का मौका देना चाहिए। नहीं तो जेएनयू जिस चीज़ के लिए पुरे विश्व में जाना जाता है उसका अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा।
 
नैनो साइंस के शोधार्थी यशवंत राव ने कहा कि जे एन यू ने 50% लिखित और 50% इंटरव्यू का नियम इसलिए बनाया क्योंकि मजदूर, दलित, पिछड़ा, मुस्लिम और आदिवासी छात्रों को यूनिवर्सिटीज में पढ़ने से रोका जा सके। जब से बीजेपी सरकार आयी है उसने आदिवासियों की रिसर्च फ़ेलोशिप बंद कर दी जो कि पूरी तरीके से गरीब विरोधी निर्णय है। काफी मुश्किलों में मेहनत करके अगर हम क्लास में आ भी गए तो हमें येन-केन-प्रकरेण तरीके से सस्पेंड कर दिया जाता है जो न्याय और कानून संगत नहीं है। सिस्टम भाषणों में तो ट्रांसपेरेंसी और गुड गवर्नेंस की बात करता है लेकिन प्रैक्टिकल में ट्रांसपरेंसी नाम की चीज दिखती नहीं है, जो समाज के लिए घातक है।
 
गांधीयन विचार अध्धयन केंद्र के शोधार्थिनी बिरेन्द्री ने कहा कि पढ़ने-लिखने के बाद भी हमारी कास्ट, हमारा रिलिजन हमारा रीजन आदि चीजों से हम बाहर नहीं निकल पा रहे है। हमे इससे बाहर आना चाहिए। आज छात्रों के बातों को दबाया जा रहा है जो सोचनीय है।
 
हिंदी विभाग के शोधार्थी संतोष यादव ‘अर्श’ ने कहा कि इंटरव्यू बहुजन समाज को सलेक्शन देने के लिए नहीं बल्कि बाहर करने के लिए किया जाता है। जेएनयू को तीसरी दुनिया का सबसे प्रगतिशील विश्वविद्यालय कहा जाता है। लेकिन जेएनयू के प्रगतिशीलता का अंदाजा हम इस बात से लगा सकते है कि वहाँ एक भी ओबीसी प्रोफेसर नहीं है। इस मुद्दे पर जेएनयू की 47 साल की प्रगतिशीलता कहाँ चली गई। अगर वहाँ एक भी ओबीसी प्रोफेसर नहीं है तो जहन्नूम में जाये तुम्हारा वामपंथ और जहन्नूम में जाये तुम्हारा दक्षिणपंथ। हमें हमारा हक़ चाहिए। यह देश हमारा है। इस देश को हम चलाते है। इस देश को हम साफ करते हैं। खेती-किसानी हम करते हैं तो हम प्रोफ़ेसर बनना चाहते हैं तो हम बनेंगे। आप हमे रोक नहीं सकते। हम तब तक लड़ेंगे जब तक जीतेंगे नहीं। हम हार-हार कर लड़ेंगे। लड़-लड़ कर जीतेंगे।
 
इंटरनेशनल रिलेशन के शोधार्थी सुमेध पराधे ने जेएनयू प्रशासन के निष्कासन पर सवाल उठाते हुए कहा कि कैम्पस से किसी छात्र को निष्कासित करने का एक प्रोसिजर होता है। अगर जेएनयू प्रशासन का ये निष्कासन सही है तो वे किस नियम के तहत निष्कासन किये है उसे बताये और उसके मिनिट्स को ओपन करें। अगर कोई छात्र गलत है तो पहले कोई जाँच कमिटी बैठानी चाहिए जो कि जेएनयू प्रशासन ने नहीं किया।
 
 
गांधीयन विचार अध्धयन केंद्र के शोधार्थी आकाश कुमार ने कहा कि जबसे एकेडमिक में रिजर्वेशन पॉलिसी लागू किया गया तब से आरक्षित श्रेणी के छात्रों का रिप्रेजंटेशन बढ़ा है। लोग पढ़े-लिखे-समझे फिर गलत चीज़ो को चुनौती देना शुरू किया। यह बात एलीट क्लास से पच नहीं रही है। अभी जेएनयू में चाहे इंटरव्यू का नंबर बढ़ाना हो या फीस हाईक करना हो या ऐसी अनेक गतिविधियां चल रही हैं कि बहुजनों को कैसे रोका जाय? जो समाज विरोधी है।
 
हिंदी विभाग के शोधार्थी सियाराम मीना ने कहा कि जेएनयू से जो 12 साथी निकाले गए हैं, वे अपने लिए नहीं लड़ रहे थे। वे भविष्य में आने वाले पीढ़ियों के लिए लड़ रहे थे। आखिर लोगों को अपना हक पाने के लिए क्यों लड़ना पड़ रहा है? क्यों कि सत्ता पर खास लोगों का कब्ज़ा है और वे लोग ग्रामीण अंचल से आये छात्र, दलित आदिवासी ओबीसी और माइनारिटी को बाहर करना चाहते हैं।
 
गांधीयन विचार अध्धयन केंद्र के शोधार्थिनी सुमन यादव ने कहा कि समाज के सभी समस्याओं का समाधान किसी एक ही विचारधारा से नहीं हो सकता। जेएनयू प्रशासन से अपना हक मांगने वाले छात्रों का निष्काषन दुर्भाग्यपूर्ण है। किसी कार्य के लिए तार्किक दृष्टिकोण का होना जरूरी है और इसी के आधार पर सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़नी चाहिए।

Courtesy: National Dastak
 

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जेएनयू में रोहित वेमुला कांड दोहराने की कोशिश कर रहा प्रशासन- निष्कासित छात्र https://sabrangindia.in/jaeenayauu-maen-raohaita-vaemaulaa-kaanda-daoharaanae-kai-kaosaisa-kara-rahaa-parasaasana/ Fri, 30 Dec 2016 05:57:54 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/30/jaeenayauu-maen-raohaita-vaemaulaa-kaanda-daoharaanae-kai-kaosaisa-kara-rahaa-parasaasana/ नई दिल्ली। जेएनयू से बगैर जांच कराए निष्काषित किए गए 15 दलित, मुस्लिम और आदिवासी छात्रों ने प्रेस कांफ्रेंस कर विवि प्रसाशन और केंद्र सरकार पर निशाना साधा। इन्होंने कहा कि जेएनयू प्रसाशन विवि में भेदभाव की जड़ें गहराई से पोषित कराने की फिराक में है। वे वाइवा के नंबरों में कटौती की मांग कर […]

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नई दिल्ली। जेएनयू से बगैर जांच कराए निष्काषित किए गए 15 दलित, मुस्लिम और आदिवासी छात्रों ने प्रेस कांफ्रेंस कर विवि प्रसाशन और केंद्र सरकार पर निशाना साधा। इन्होंने कहा कि जेएनयू प्रसाशन विवि में भेदभाव की जड़ें गहराई से पोषित कराने की फिराक में है। वे वाइवा के नंबरों में कटौती की मांग कर रहे थे इसके उलट प्रशासन ने रिटेन ही खत्म कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि वाइवा में दलित पिछड़े माइनॉरिटी और आदिवासियों के साथ भेदभाव किया जाता है इसीलिए इसमें कटौती कर रिटेन के पूर्णांक में बढ़ोत्तरी की जाए। 

JNU suspended students

निष्काषित किए गए छात्रों ने कहा कि प्रशासन ने उनके साथ दोहरा मापदंड अपनाया है। नजीब को पीटने और गायब करने वालों पर जांच तक नहीं बिठाई गई जबकि उन्हें बगैर किसी कारण के निष्कासित कर दिया गया। 
 
जेएनयू के वीसी को निलंबित किए जाने की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि हमारा सस्पेंशन रद्द कर वाइवा वाली मांगें भी मानी जाएं। छात्रों ने वीसी के खिलाफ 'हिटलर शाही नही चलेगी का जैसे नारा भी लगा गए'।
 
बहुजन छात्रों ने इस जातिवाद पक्षपात के मामले को मोदी सरकार और आरएसएस की साजिश बताई। हालांकि यह मामला मेनस्ट्रीम मीडिया में भी सिरे से गायब है। जातीय तौर पर हर जगह इन छात्रों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। छात्रों का आरोप है कि जेएनयू प्रशासन एक और रोहित वेमुला की बलि लेना चाहता है। उनके लिए सेल्टर देने वालों को भी धमकी दी जा रही है।

Courtesy: National Dastak

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जेएनयू: सामाजिक न्याय के लिए लड़ रहे दलित, पिछड़े, मुसलमान छात्रों को वीसी ने दिया निष्कासन का तोहफा https://sabrangindia.in/jaeenayauu-saamaajaika-nayaaya-kae-laie-lada-rahae-dalaita-paichadae-mausalamaana/ Wed, 28 Dec 2016 07:08:28 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/28/jaeenayauu-saamaajaika-nayaaya-kae-laie-lada-rahae-dalaita-paichadae-mausalamaana/ नई दिल्ली। जेएनयू एक ऐसा विश्वविद्यालय जो न सिर्फ देश में बल्कि विश्व में अपने एकेडमिक प्रदर्शन तथा यहाँ की छात्र राजनीति के लिए जाना जाता है। दुनियाभर में इस संस्थान के छात्र अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते आये हैं।    यह कैम्पस न सिर्फ पढ़ाई के लिए अपितु समय-समय पर छात्रों द्वारा विभिन्न मुद्दों […]

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नई दिल्ली। जेएनयू एक ऐसा विश्वविद्यालय जो न सिर्फ देश में बल्कि विश्व में अपने एकेडमिक प्रदर्शन तथा यहाँ की छात्र राजनीति के लिए जाना जाता है। दुनियाभर में इस संस्थान के छात्र अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते आये हैं। 


 
यह कैम्पस न सिर्फ पढ़ाई के लिए अपितु समय-समय पर छात्रों द्वारा विभिन्न मुद्दों पर अपना प्रतिरोध शांतिपूर्वक दर्ज करवाने में भी सबसे आगे रहा है फिर चाहे वह कैम्पस का मुद्दा हो या फिर देश की राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक मामलों से जुड़ी कोई अन्य बात।
 

 
लेकिन बीते कुछ दिनों से यहाँ के माहौल में काफी बदलाव आया है और जेएनयू प्रशासन और सरकार का हस्तक्षेप यहाँ के विद्यार्थियों और उनके आंदोलनों के प्रति लगातार प्रतिकूल ही रहा। फिर वह चाहे पूर्व छात्र अध्यक्ष कन्हैया कुमार की पिटाई का मामला हो या फिर नजीब के गायब होने का मामला। 
 
जेएनयू पर लगातार यह आरोप लगते रहे हैं कि इस संस्थान में भी दलित-पिछड़े और आदिवासी तथा मुस्लिम छात्रों के साथ भेदभाव होता रहा है। जिसे लेकर समय-समय पर यहाँ के छात्र आन्दोलन भी करते रहे हैं। 
 

 
ताज़ा मामला वाइबा के मार्क्स को लेकर आन्दोलन कर रहे छात्रों का है। बापसा के नेतृत्व में यूनाइटेड ओबीसी फोरम और अन्य संगठन तथा छात्र पीछे कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे थे। उनकी मांग थी कि वाइबा के मार्क्स को तीस अंको से घटाकर पन्द्रह या उससे कम किया जाए तथा ओबीसी रिजर्वेशन को पूरी तरह से लागू किया जाए।
 
दरअसल जेएनयू में एमफिल और पीएचडी के इंट्रेंस एग्जाम में सत्तर नंबर रिटेन के हैं और तीस वाइबा के। छात्रों का आरोप है कि जो भी दलित- पिछड़े छात्र रितें पास करके वाइबा तक पहुँचते हैं उन्हें वाइबा में इतना कम नंबर दिया जाता है कि वह प्रवेश ही नहीं पा सकते हैं। यही नहीं छात्रों का यह आरोप भी है कि बाद में इन सीटों पर सवर्ण जाति के छात्रों को प्रवेश दे दिया जाता है।
 

 
इन्हीं मुद्दों को लेकर तमाम संगठन और दलित, पिछड़े, आदिवासी, मुस्लिम छात्रों ने आज वीसी ऑफिस का घेराव किया और वीसी से मिलने की मांग कर रहे थे। इतना ही नहीं वो एसी मीटिंग को दुबारा  बुलाने के लिए भी प्रस्ताव रख रहे थे। उनका कहना था कि इन सभी मुद्दों पर दुबारा से विचार किया जाना चाहिए।
 
दलित- पिछड़े छात्रों के इस आरोप को देखने के लिए जेएनयू प्रशासन द्वारा अब्दुल नाफे नामक कमेटी का गठन किया था। जिसने अपनी रिपोर्ट में यह साफ़ किया कि छात्रों का आरोप सही है और वाइबा के द्वारा दलित, पिछड़े छात्रों के साथ भेदभाव होता है।
 

 
पिछले तीन दिनों के आन्दोलन को संज्ञान में लेने तथा छात्रों से बात करने की बजाय जेएनयू प्रशासन ने छात्र आन्दोलन में शामिल बारह मुख्य छात्रों को निष्काषित कर दिया है। प्रशासन द्वारा छात्रों को भेजे गए नोटिस में उनके निष्कासन का कारण प्रशासन ने एसी मीटिंग में छात्रों द्वारा फिजिकल वायलेंस और मीटिंग को डिस्टर्ब करना बताया है। इस आधार पर इन बारह छात्रों का एकेडमिक निष्कासन किया गया है तथा जांच कमेटी बिठाने की बात कही गई है।
 

 
बापसा के अध्यक्ष राहुल ने हमसे बात करते हुए बताया कि प्रशासन द्वारा लगाये गए सभी आरोप बेबुनियाद और गलत हैं। इसके अलावा छात्रों को सस्पेंड करने से पहले किसी भी तरह कि जांच कमेटी नहीं गठित की गई जो कि गलत है।
 
राहुल ने आगे कहा कि यह जानबूझ कर उठाया गया कदम है दरअसल इसी तीस तारीख से रजिस्ट्रेशन शुरू हो रहे हैं जो ग्यारह तक चलेंगे। अगर इस बीच जांच कमेटी अपनी रिपोर्ट नहीं देती है तो जितने भी छात्र निष्काषित किये गए हैं वे रजिस्ट्रेशन नहीं करवा पायेंगे। जिसके चलते उन सभी का यह सत्र बेकार हो जाएगा। 
 

 
निष्काषित बारह छात्रों में मुलायन सिंह यादव, दिलीप यादव, बिरेन्द्र कुमार, भोपाली कुसुम विट्ठल, दावा, मृत्युंजय, शकील और प्रशांत हैं। बापसा के अध्यक्ष राहुल के भी निष्कासन की ख़बरें हैं। हालांकि अभी तक राहुल को नोटिस नहीं मिला है इसलिए इस खबर की पुष्टि नहीं हो पाई है। इस पूरे मामले पर जेएनयूएसयू और बाकी लेफ्ट विंग पार्टियों की चुप्पी भी बहुत सारे सवाल और संदेह खड़े करती है। क्या इन पार्टियों द्वारा की गई सामाजिक न्याय की बातें सिर्फ हवाई ही हैं? या जमीन पर भी इनका कुछ असर है 
 
निष्कासित हुए सभी छात्र दलित, पिछड़े, मुस्लिम और आदिवासी हैं। पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से बहुजन छात्रों पर एकेडमिक हमले हुए हैं उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि देश अभी भी जातिवाद के दंश से बाहर नहीं आ पाया है। और इसका असर उच्च शिक्षण संस्थानों में भी दिखाई दे रहा है।

Courtesy: National Dastak
 

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