Modi Bhakt | SabrangIndia News Related to Human Rights Fri, 27 Jan 2017 09:38:35 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png Modi Bhakt | SabrangIndia 32 32 भक्तों दा जवाब नहीं! गांधीजी का ‘विलोपन’: तीन ‘आसान’ किश्तों में ! https://sabrangindia.in/bhakataon-daa-javaaba-nahain-gaandhaijai-kaa-vailaopana-taina-asaana-kaisataon-maen/ Fri, 27 Jan 2017 09:38:35 +0000 http://localhost/sabrangv4/2017/01/27/bhakataon-daa-javaaba-nahain-gaandhaijai-kaa-vailaopana-taina-asaana-kaisataon-maen/ ..जो शख्स तुम से पहले यहाँ तख़्त नशीन था….  उसको भी खुदा होने पे इतना ही यकीन था – हबीब जालिब      भक्तगणों का – अर्थात वही बिरादरी जो ढ़ाई साल से लगातार सुर्खियों में रहती आयी है –  जवाब नहीं !   अपने आराध्य को इस कदर नवाज़ते रहते हैं गोया आनेवाली पीढ़ियों […]

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..जो शख्स तुम से पहले यहाँ तख़्त नशीन था…. 
उसको भी खुदा होने पे इतना ही यकीन था

– हबीब जालिब 
 
Modi Bhakt 

भक्तगणों का – अर्थात वही बिरादरी जो ढ़ाई साल से लगातार सुर्खियों में रहती आयी है –  जवाब नहीं !
 
अपने आराध्य को इस कदर नवाज़ते रहते हैं गोया आनेवाली पीढ़ियों को लगने लगे कि ऐसा शख्स कभी हुआ न हो। वैसे टेक्नोलोजी की तरक्की ने उनके लिए यह बेहद आसान भी हो गया है कि वह फोटोशॉप के सहारे दिखाए कि कथित 56 इंची सीने के बलबूते वह कुछ भी कर सकते हैं।

मिसाल के तौर पर वह बाढ़ के हवाई सर्वेक्षण के लिए निकलें और धुआंधार बरसते पानी में उनकी आंखों के सामने समूचा शहर नमूदार हो जाए। यह अलग बात है कि उनकी इस कवायद में कई बार उनके इस हीरो की हालत हिन्दुओं के एक पवित्रा कहे जाने वाले एक ग्रंथ में नमूदार होते नारद जैसी हो बना दी जाती है, जिसे इस बात का गुमान ही न हो कि उसने कैसा रूप धारण किया है और उनका यह आराध्य दुनिया भर में अपने आप को मज़ाक का निशाना बना दे। 
 
हम याद कर सकते हैं अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ओबामा की अगवानी का प्रसंग जब दिन में तीन तीन बार ड्रेस बदलने या अपना खुद का नाम अंकित किया दस लाख या करोड़ रूपए का सूट पहनने की उनके आराध्य की कवायद विश्व मीडिया में सूर्खियांे में रही, उसका जबरदस्त मज़ाक उड़ा और इसी दौरान मीडिया ने इस तथ्य को उजागर किया था कि इसके पहले ऐसी आत्ममुग्धता भरी हरकत मिस्त्र के अपदस्थ तानाशाह होसनी मुबारक ने की थी।
 
अब चूंकि आलम यह है कि फिलवक्त़ मुल्क में भक्तों एवं उनके आंकाओं की ही तूती बोलती है लिहाजा वे कुछ भी करने के लिए आज़ाद है। कमसे कम आने वाले ढाई साल तक भारतीय लोकतंत्रा को ऐसे कई नज़ारे देखने को मिलेंगे, और वह सभी लोग, जमातें जो संविधान के बुनियादी मूल्यों की हिफाजत की बात करते हैं उन्हें ऐसी विपरीत परिस्थितियों से बार बार रूबरू होना पड़ेगा और उन्हें लोहिया की उस उक्ति को विस्मृति से बचाना होगा जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘जिन्दा कौमें पांच साल तक इन्तज़ार नहीं करतीं।’
 
बहरहाल, कभी कभी भक्तगण भी अति कर देते हैं जैसा कि पिछले दिनों देखने को मिला, जब किसी अलसुबह लोगों ने खादी ग्रामोद्योग आयोग के कैलेण्डर पर गांधी के बजाय वजीरे आज़म नरेन्द्र मोदी की तस्वीर देखी। पहले तो लोगों का यकीन भी नहीं हुआ कि उनके देखने में कुछ गलती हो रही हो, मगर जब बारीकी से देखा तब लोगों को पक्की तौर पर यकीन हुआ महज यह दृष्टिभ्रम नहीं है। अपने फकीरी या सन्तनुमा अन्दाज़ में बैठ कर सूत कातते गांधी को मोदी की तस्वीर ने प्रतिस्थापित किया है। सियासी दलों, गणमान्यों की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया आयीं मगर इसके पहले मोदी द्वारा गांधी के इस अलग ढंग से प्रतिस्थापन को लेकर सोशल मीडिया में इसे लेकर कई फोटोशॉप्ड इमेजेस शेअर की गयीं जिसमें भारतीय इतिहास के इस ‘पुनर्लेखन’ का जम कर मज़ाक उड़ा। भारत के इतिहास की कई अविस्मरणीय घटनाओं में शामिल शख्सियतों के स्थान पर मोदी की तस्वीर चस्पां करके लोगों ने इस प्रयास की धज्जियां उड़ा दीं, फिर चाहें दांडी मार्च की तस्वीर में दिखाए जो रहे ‘मोहनदास करमचंद मोदी’ हों या आज़ादी के वक्त भारत की अवाम को संबोधित करते नेहरू के स्थान पर नज़र आते मोदी हो, किसी शरारती व्यक्ति ने खादी ग्रामोद्योग के बाद अब किंगफिशर कैलेण्डर पर भी जनाब मोदी की तस्वीर चस्पां कर दीं। (https://scroll.in/article/826756/modi-fying-history-social-media-photoshops-modi-into-the-freedom-struggle-and-kingfisher-calendar) तस्वीर की कई अंगों से विवेचना भी हुई जिसमें एक पहलू यह था कि बारह पन्ने के समूचे कैलेण्डर में महिलाएं लगभग अनुपस्थित हैं या अगर नज़र भी आ रही हैं तो बेहद धुंधली नज़र आ रही हैं।
 
भाजपा की असमावेशी राजनीति की मुखालिफत करनेवाली तमाम पार्टियों ने, समूहों ने इस भोंडे प्रयास की जम कर आलोचना की, कई जगहों पर प्रदर्शन हुए। अब कायदन होना यही चाहिए था कि कैलेण्डर को वापस लिया जाता और जनता से माफी मांगी जाती कि जो कुछ हुआ वह खेदजनक था और जिसके लिए उपर से अनुमति नहीं ली गयी थी । मगर हुआ बिल्कुल उल्टा। भाजपा की तरफ से आधिकारिक तौर पर यही कहा गया कि गांधी उनके लिए आदर्श हैं और उन्हें प्रतिस्थापित करने का उनका कोई इरादा नहीं है। और इस बयान के विपरीत पूरी कवायद यही की गयी कि मामले को औचित्य प्रदान किया जाए। कई मंुहों से कई बात की जाए। 
 
खादी आयोग के हवाले से बताया गया कि किस तरह मोदी खादी के लिए बड़ा ब्राण्ड बन गए हैं, वह किस तरह यूथ के आइकन हैं, गुजरात भाजपा की तरफ से कहा गया कि किस तरह मुख्यमंत्राी पद के दिनों में जनाब मोदी ने खादी को बढ़ावा दिया था आदि। हरियाणा भाजपा नेता और कैबिनेट मंत्राी अनिल विज इस मामले में सबसे आगे निकले। अंबाला में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि ‘खादी गांधी के नाम पेटेण्ट नहीं हुई है। खादी उत्पादों के साथ गांधी का नाम जुड़ने से ही उसकी बिक्री में गिरावट आयी। वही हाल रूपये का भी हुआ है। जिस दिन गांधी रूपये की तस्वीर पर अवतरित हुए तभी से उसका अवमूल्यन शुरू हुआ है। धीरे धीरे रूपए के नोट से भी उनको हटा दिया जाएगा। मोदी गांधी से बड़ा ब्राण्ड बन चुके हैं।’ 
 
उधर ब्राण्ड मोदी को लेकर राहुल गांधी का संक्षिप्त बयान आया:  ‘हमें नहीं भूलना चाहिए कि हिटलर और मुसोलिनी भी बड़े ब्राण्ड बने थे।’
 
2.
 
प्रश्न उठता है कि गांधी का यह प्रतिस्थापन क्या खादी आयोग के स्थानीय अधिकारियों के अतिउत्साह का नतीजा था – जैसा कि मीडिया के एक हिस्से में कहा जा रहा है – या यह पूरी कोशिश एक व्यापक योजना का हिस्सा है। अगर बारीकी से पड़ताल करने की कोशिश करें तो देख सकते हैं यह सबकुछ ‘भूलवश’ नहीं हुआ और इसके पीछे एक सुचिंतित सोच, योजना काम कर रही है। और गांधीजी की छवि को अपने में समाहित करने या उसे अब ‘विलुप्त’ करने की यह कवायद कई चरणों से गुजरी है। खादी आयोग का कैलेण्डर तो महज एक टेस्ट केस है। 
 
यह सर्वविदित है कि 2014 में जबसे भाजपा की हुकूमत बनी है तबसे गांधी के हत्यारे आतंकी गोडसे के महिमामंडन की कोशिशें कुछ ज्यादा ही परवान चढ़ी हैं। हिन्दु महासभा के लोगों द्वारा गोडसे के मंदिर बनाने से लेकर समय समय पर दिए जानेवाले विवादास्पद वक्तव्य गोया काफी न हों, ऐसे उदाहरण भी सामने आए हैं जब सत्ताधारी पार्टी के अग्रणी नेताओं तक ने गोडसे की तारीफ में कसीदे पढ़े हैं। दिलचस्प हैं कि एक तरफ गांधी को अपने प्रातःस्मरणीयों में शामिल करने के बावजूद उसके हत्यारे गोडसे के महिमामंडन को लेकर न भाजपा और न ही संघ ने कभी आपत्ति दर्ज करायी या न ही उसके जैसे एक आतंकवादी की छवि को निखारे जाने को लेकर कुछ कार्रवाई भी की। एक घोषित आतंकी के महिमामण्डन के माध्यम से हिंसा को बढ़ावा देने के लिए किसी के खिलाफ प्रथम सूचना रपट तक दर्ज नहीं की गयी है। 
 
निश्चित ही यह कोई पहला मौका नहीं रहा है कि पुणे का रहनेवाला आतंकी नाथुराम विनायक गोडसे, जो महात्मा गांधी की हत्या के वक्त हिन्दु महासभा से सम्बद्ध था, जिसने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से की थी और जो संघ के प्रथम सुप्रीमो हेडगेवार की यात्राओं के वक्त उनके साथ जाया करता था, उसके महिमामण्डन की कोशिशें सामने आयी थी। महाराष्ट्र एवं पश्चिमी भारत के कई हिस्सों से 15 नवम्बर के दिन – जिस दिन नाथुराम को फांसी दी गयी थी- हर साल उसका ‘शहादत दिवस’ मनाने के समाचार मिलते रहते हैं। मुंबई एवं पुणे जैसे शहरों में तो नाथुराम गोडसे के ‘सम्मान’ में सार्वजनिक कार्यक्रम भी होते हैं। लोगों को यह भी याद होगा कि वर्ष 2006 के अप्रैल में महाराष्ट्र के नांदेड में बम बनाते मारे गए हिमांशु पानसे और राजीव राजकोंडवार के मामले की तफ्तीश के दौरान ही पुलिस को यह समाचार मिला था कि किस तरह हिन्दुत्ववादी संगठनों के वरिष्ठ नेता उनके सम्पर्क में थे और आतंकियों का यह समूह हर साल ‘नाथुराम हौतात्म्य दिन’ मनाता था। गोडसे का महिमामण्डन करते हुए ‘मी नाथुराम बोलतोय’ शीर्षक से एक नाटक का मंचन भी कई साल से हो रहा है।  
 
हम याद कर सकते हैं कि लोकसभा चुनावों के ठीक पहले 30 जनवरी को 2014 को महात्मा गांधी की हत्या के 66 साल पूरे होने के अवसर पर किस तरह गांधी के हत्यारे नाथुराम गोडसे की आवाज़ मंे एक आडियो वाटस अप पर मोबाइल के जरिए लोगों तक पहुंचाया गया। अख़बार के मुताबिक ऐसा मैसेज उन लोगों के मोबाइल तक पहुंच चुका था, जो एक बड़ी पार्टी से ताल्लुक रखते हैं और वही लोग इसे आगे भेज रहे थे। मेसेज की अन्तर्वस्तु गोडसे के स्पष्टतः महिमामण्डन की दिख रही थी, जिसमें आज़ादी के आन्दोलन के कर्णधार महात्मा गांधी की हत्या जैसे इन्सानदुश्मन कार्रवाई को औचित्य प्रदान करने की कोशिश की गयी थी। इतनाही नहीं एक तो इस हत्या के पीछे जो लम्बी चौड़ी सााजिश चली थी, उसे भी दफनाने का तथा इस हत्या को देश को बचाने के लिए उठाए गए कदम के तौर पर प्रस्तुत करने की कोशिश की गयी थी।
 
क्या गोडसे के महिमामंडन पर ‘आधिकारिक चुप्पी’ इसी बात का परिचायक थी कि उस प्रसंग के खुलते ही संघ परिवार के लिए कई सारे असहज करनेवाले प्रश्न खड़े हो जाते हैं ? हर अमनपसन्द एवं न्यायप्रिय व्यक्ति इस बात से सहमत होगा कि महात्मा गांधी की हत्या आजाद भारत की सबसे पहली आतंकी कार्रवाई कही जा सकती है। गांधी हत्या के महज चार दिन बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर पाबन्दी लगानेवाला आदेश जारी हुआ था -जब वल्लभभाई पटेल गृहमंत्राी थे – जिसमें लिखा गया था:
 
संघ के सदस्यों की तरफ से अवांछित यहां तक कि खतरनाक गतिविधियों को अंजाम दिया गया है। यह देखा गया है कि देश के तमाम हिस्सों में संघ के सदस्य हिंसक कार्रवाइयों मेंजिनमें आगजनी, डकैती, और हत्याएं शामिल हैंमुब्तिला रहे हैं और वे अवैध ढंग से हथियार एवं विस्फोटक भी जमा करते रहे हैं। वे लोगों में पर्चे बांटते देखे गए हैं, और लोगों को यह अपील करते देखे गए हैं कि वह आतंकी पद्धतियों का सहारा लें, हथियार इक्ट्ठा करें, सरकार के खिलाफ असन्तोष पैदा करे ..
 
27 फरवरी 1948 को प्रधानमंत्राी जवाहरलाल नेहरू को लिखे अपने ख़त में -जबकि महात्मा गांधी की नथुराम गोडसे एवं उसके हिन्दुत्ववादी आतंकी गिरोह के हाथों हुई हत्या को तीन सप्ताह हो गए थे – पटेल लिखते हैं:
 
सावरकर के अगुआईवाली हिन्दु महासभा के अतिवादी हिस्से ने ही हत्या के इस षडयंत्रा को अंजाम दिया है ..जाहिर है उनकी हत्या का स्वागत संघ और हिन्दु महासभा के लोगों ने किया जो उनके चिन्तन एवं उनकी नीतियों की मुखालिफत करते थे।’’ 
 
वही पटेल 18 जुलाई 1948 को हिन्दु महासभा के नेता एवं बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहायता एवं समर्थन से भारतीय जनसंघ की स्थापना करनेवाले श्यामाप्रसाद मुखर्जी को लिखते हैं: 
 
‘..हमारी रिपोर्टें इस बात को पुष्ट करती हैं कि इन दो संगठनों की गतिविधियों के चलते खासकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चलते, मुल्क में एक ऐसा वातावरण बना जिसमें ऐसी त्रासदी (गांधीजी की हत्या) मुमकिन हो सकी। मेरे मन में इस बात के प्रति तनिक सन्देह नहीं कि इस षडयंत्रा में हिन्दु महासभा का अतिवादी हिस्सा शामिल था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियां सरकार एवं राज्य के अस्तित्व के लिए खतरा हैं। हमारे रिपोर्ट इस बात को पुष्ट करते हैं कि पाबन्दी के बावजूद उनमें कमी नहीं आयी है। दरअसल जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है संघ के कार्यकर्ता अधिक दुस्साहसी हो रहे हैं और अधिकाधिक तौर पर तोडफोड/विद्रोही कार्रवाइयों में लगे हैं।"
 
प्रश्न उठता है कि गांधी के हत्यारे अपने इस आपराधिक काम को किस तरह औचित्य प्रदान करते हैं। उनका कहना होता है कि गांधीजी ने मुसलमानों के लिए अलग राज्य के विचार का समर्थन दिया और इस तरह वह पाकिस्तान के बंटवारे के जिम्मेदार थे, दूसरे, मुसलमानों का ‘अड़ियलपन’ गांधीजी की तुष्टिकरण की नीति का नतीजा था, और तीसरे, पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर किए गए आक्रमण के बावजूद, गांधीजी ने सरकार पर दबाव डालने के लिए इस बात के लिए अनशन किया था कि उसके हिस्से का 55 करोड़ रूपए वह लौटा दे।
 
ऐसा कोईभी व्यक्ति जो उस कालखण्ड से परिचित होगा बता सकता है कि यह सभी आरोप पूर्वाग्रहों से प्रेरित हैं और तथ्यतः गलत हैं। दरअसल, साम्प्रदायिक सद्भाव का विचार, जिसकी हिफाजत गांधी ने ताउम्र की, वह संघ, हिन्दु महासभा के हिन्दु वर्चस्ववादी विश्वदृष्टिकोण के खिलाफ पड़ता था और जबकि हिन्दुत्व ताकतों की निगाह में राष्ट्र एक नस्लीय/धार्मिक गढंत था, गांधी और बाकी राष्ट्रवादियों के लिए वह इलाकाई गढंत था या एक ऐसा इलाका था जिसमें विभिन्न समुदाय, समष्टियां साथ रहती हों।
 
दुनिया जानती है कि किस तरह हिन्दु अतिवादियों ने महात्मा गांधी की हत्या की योजना बनायी और किस तरह सावरकर एवं संघ के दूसरे सुप्रीमो गोलवलकर को नफरत का वातावरण पैदा करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिसकी परिणति इस हत्या में हुई। सच्चाई यह है कि हिन्दुत्व अतिवादी गांधीजी से जबरदस्त नफरत करते थे, जो इस बात से भी स्पष्ट होता है कि नाथुराम गोडसे की आखरी कोशिश के पहले चार बार उन्होंने गांधी को मारने की कोशिश की थी। (गुजरात के अग्रणी गांधीवादी चुन्नीभाई वैद्य के मुताबिक हिन्दुत्व आतंकियों ने उन्हें मारने की छह बार कोशिशें कीं)। 
 
अगर हम गहराई में जाने का प्रयास करें तो पाते हैं कि उन्हें मारने का पहला प्रयास पुणे में (25 जून 1934) को हुआ जब वह कार्पोरेशन के सभागार में भाषण देने जा रहे थे। उनकी पत्नी कस्तुरबा गांधी उनके साथ थीं। इत्तेफाक से गांधी जिस कार में जा रहे थे, उसमें कोई खराबी आ गयी और उसे पहुंचने में विलम्ब हुआ जबकि उनके काफिले में शामिल अन्य गाडियां सभास्थल पर पहुंचीं जब उन पर बम फेंका गया। इस बम विस्फोट ने कुछ पुलिसवालों एवं आम लोग घायल हुए।
 
महात्मा गांधी को मारने की दूसरी कोशिश में उनका भविष्य का हत्यारा नाथुराम गोडसे भी शामिल था। गांधी उस वक्त पंचगणी की यात्रा कर रहे थे, जो पुणे पास स्थित एक हिल स्टेशन है (मई 1944) जब एक चार्टर्ड बस में सवार 15-20 युवकों का जत्था वहां पहुंचा। उन्होंने गांधी के खिलाफ दिन भर प्रदर्शन किया, मगर जब गांधी ने उन्हें बात करने के लिए बुलाया वह नहीं आए। शाम के वक्त प्रार्थनासभा में हाथ में खंजर लिए नाथुराम गांधीजी की तरफ भागा, जहां उसे पकड़ लिया गया।
 
सितम्बर 1944 में जब जिन्ना के साथ गांधी की वार्ता शुरू हुई तब उन्हें मारने की तीसरी कोशिश हुई। जब सेवाग्राम आश्रम से निकलकर गांधी मुंबई जा रहे थे, तब नाथुराम की अगुआई में अतिवादी हिन्दु युवकों ने उन्हें रोकने की कोशिश की। उनका कहना था कि गांधीजी को जिन्ना के साथ वार्ता नहीं चलानी चाहिए। उस वक्त भी नाथुराम के कब्जे से एक खंजर बरामद हुआ था।
 
गांधीजी को मारने की चौथी कोशिश में (20 जनवरी 1948) लगभग वही समूह शामिल था जिसने अन्ततः 31 जनवरी को उनकी हत्या की। इसमें शामिल था मदनलाल पाहवा, शंकर किस्तैया, दिगम्बर बड़गे, विष्णु करकरे, गोपाल गोडसे, नाथुराम गोडसे और नारायण आपटे। योजना बनी थी कि महात्मा गांधी और हुसैन शहीद सुरहावर्दी पर हमला किया जाए। इस असफल प्रयास में मदनलाल पाहवा ने बिडला भवन स्थित मंच के पीछे की दीवार पर कपड़े में लपेट कर बम रखा था, जहां उन दिनों गांधी रूके थे। बम का धमाका हुआ, मगर कोई दुर्घटना नहीं हुई, और पाहवा पकड़ा गया। समूह में शामिल अन्य लोग जिन्हें बाद के कोलाहल में गांधी पर गोलियां चलानी थीं, वे अचानक डर गए और उन्होंने कुछ नहीं किया।
 
उन्हें मारने की आखरी कोशिश 30 जनवरी को शाम पांच बज कर 17 मिनट पर हुई जब नाथुराम गोडसे ने उन्हें सामने से आकर तीन गोलियां मारीं। उनकी हत्या में शामिल सभी पकड़े गए, उन पर मुकदमा चला और उन्हें सज़ा हुई। नाथुराम गोडसे एवं नारायण आपटे को सज़ा ए मौत दी गयी, (15 नवम्बर 1949) जबकि अन्य को उमर कैद की सज़ा हुई। इस बात को नोट किया जाना चाहिए कि जवाहरलाल नेहरू तथा गांधी की दो सन्तानों का कहना था कि वे सभी हिन्दुत्ववादी नेताओं के मोहरे मात्रा हैं और उन्होंने सज़ा ए मौत को माफ करने की मांग की। उनका मानना था कि इन हत्यारों को फांसी देना मतलब गांधीजी की विरासत का असम्मान करना होगा जो फांसी की सज़ा के खिलाफ थे। ..
 
3.
 
बहरहाल गांधीजी के नाम की इस कदर लोकप्रियता थी कि संघ या उसके प्रचारकों के लिए इससे आधिकारिक तौर पर दूरी बनाए रखना लम्बे समय तक मुमकिन नहीं था, लिहाजा उन्होंने उनके नाम को अपने प्रातःस्मरणीयों में शामिल किया, अलबत्ता वह इस नाम से तौबा करने या उसके न्यूनीकरण करने की कोशिश में लगातार मुब्तिला रहे।
 
अटलबिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल की दो घटनाओं पर रौशनी डालना इस सन्दर्भ में समीचीन होगा, जो बताती हैं कि किस तरह अपने लिए एक ‘सूटेबल’ /अनुकूल गांधी गढ़ने की उनकी पुरजोर कोशिश रही है। उदाहरण के तौर पर उन दिनों गांधी जयंति पर सरकार की तरफ से एक विज्ञापन छपा था, जिसमंे गांधी के नाम से एक वक्तव्य उदध्रत किया गया था, जो तथ्यत‘ गलत था अर्थात गांधीजी द्वारा दिया नहीं गया था और दूसरे वह हिन्दुत्व की असमावेशी विचारधारा एवं नफरत पर टिकी कार्रवाइयों को औचित्य प्रदान करता दिखता था। जब उस वक्तव्य पर हंगामा मचा तब सरकार की तरफ से एक कमजोर सी सफाई दी गयी।
 
गांधीजी की रचनाओं के ‘पुनर्सम्पादन’ की उनकी कोशिश भी उन्हीं दिनों उजागर हुई थी, जिसके बेपर्द होने पर तत्कालीन सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे। इकोनोमिक एण्ड पोलिटिकल वीकली जैसी स्थापित पत्रिका में गांधी विचारों के जानकार विद्वान त्रिदिप सुहरूद ने इसे लेकर एक लम्बा लेख भी लिखा था।  ( http://www.epw.in/journal/2004/46-47/commentary/re-editing-gandhis-collected-works.html#sthash.8LRVLB1x.dpuf) जिसमें उन्होंने तथ्यों के साथ यह बात प्रमाणित की थी कि 

महात्मा गांधी की संकलित रचनाओं के पुनर्सम्पादन की यह कवायद अपारदर्शी और दोषपूर्ण है और एक ऐसी अकार्यक्षमता और बेरूखी का प्रदर्शन करती है जिसके चलते संशोधित प्रकाशन को स्टेण्डर्ड सन्दर्भ ग्रंथ नहीं माना जा सकेगा। इस नए संस्करण को खारिज किया जाना चाहिए और मूल संकलित रचनाओं को गांधी की रचनाओं एवं वक्तव्यों के एकमात्रा और सबसे आधिकारिक संस्करण के तौर पर बहाल किया जाना चाहिए।
 
या हम याद कर सकते हैं कि ‘‘क्लीेन इंडिया’ के नाम पर 2014 को गांधी जयंति पर शुरू की गयी मुहिम को जिसमें भी बेहद स्मार्ट अंदाज़ में गांधीजी की छवि का एक अलग न्यूनीकरण सामने आया था। चन्द विश्लेषकों ने इस बात की तरफभी बखूबी इशारा किया था कि उपनिवेशवाद और हर किस्म के सम्प्रदायवाद के खिलाफ उनकी तरफ से ताउम्र चले संघर्ष को लगभग भूला देते हुए महात्मा गांधी की विरासत को इस अभियान के तहत महज ‘सफाई’ तक न्यूनीक्रत किया गया था और अतीत के असुविधाजनक दिखनेवाले पन्नों की भी ‘सफाई’ करने की कोशिश की गयी थी। यशस्वी कहे गये प्रधानमंत्राी की अगुआई में शुरू इस अभियान के जरिए एक अलग किस्म के साफसुथराकरण अर्थात सैनिटायजेशन से हम सभी रूबरू थे, जिसके जरिए हमारे समाज के एक समरस चित्र प्रस्तुत करने की कोशिश हो रही थी जिसमें सफाई या उसका अभाव ‘भारत माता’ की तरफ हमारे ‘कर्तव्य’ को ही उजागर करता दिख रहा था।
 
दिलचस्प है कि न्यूनीकरण की या समाहित करने की ऐसी कोशिशें महज गांधीजी के साथ नहीं चली हैं। डा अम्बेडकर, जिन्होंने ताउम्र हिन्दू धर्म की बर्बरताओं की मुखालिफत की और हिन्दु राष्ट के निर्माण को आज़ादी के लिए खतरा बताया, उन्हें भी इसी तरह हिन्दुत्व के असमावेशी दर्शन एवं व्यवहार का पोषक साबित किया जा रहा है। यह अकारण नहीं कि बीते छह दिसम्बर को डा अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर प्रकाशित सरकारी विज्ञापनों में कुछ स्थानों पर अम्बेडकर की तुलना में अपने आप को ‘अम्बेडकर का शिष्य’ बतानेवाले जनाब मोदी की तस्वीर बड़ी दिखाई दी थी।
 
लेकिन वह किस्सा फिर कभी !
 
 

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A से अच्छे दिन, B से भक्त.. देखिए क्या-क्या है नई ए बी सी डी में https://sabrangindia.in/sae-acachae-daina-b-sae-bhakata-daekhaie-kayaa-kayaa-haai-nai-e-bai-sai-dai-maen/ Thu, 05 Jan 2017 06:30:39 +0000 http://localhost/sabrangv4/2017/01/05/sae-acachae-daina-b-sae-bhakata-daekhaie-kayaa-kayaa-haai-nai-e-bai-sai-dai-maen/ नई दिल्ली। बीते साल सरकार और उनकी नीतियों ने बचपन में पढ़े ए बी सी डी के मायने को बदलकर रख दिया। पूरे साल पीएम मोदी और सरकार की नीतियों की ही चर्चा होती रही। सोशल मीडिया पर पूरे साल लोगों ने देश के तमाम मुद्दों को अलग-अलग नजरिए से देखा और उन पर कटाक्ष […]

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नई दिल्ली। बीते साल सरकार और उनकी नीतियों ने बचपन में पढ़े ए बी सी डी के मायने को बदलकर रख दिया। पूरे साल पीएम मोदी और सरकार की नीतियों की ही चर्चा होती रही। सोशल मीडिया पर पूरे साल लोगों ने देश के तमाम मुद्दों को अलग-अलग नजरिए से देखा और उन पर कटाक्ष किया। ऐसा ही एक कटाक्ष जनसत्ता ने अपनी खबर के माध्यम से किया है। आइए पढ़ते हैं क्या हैं ए बी सी डी के नए मायने…

Acche din

क्या इनमें से कुछ मुद्दे साल 2017 पर भी असर डालेंगे? यह देखना दिल्चस्प होगा…
 
A- ए से अच्छे दिन। अच्छे दिन जो ‘भक्तों’ (देखें B) की पहुंच से अब तक दूर हैं। अगर आप भक्त नहीं हैं तो आप A से एंटी-नेशनल साबित किए जा सकते हैं।

B- बी से भक्त। जिनके लिए उनकी आस्था ही दुनिया का सबसे बड़ा सच है। भक्त तार्किक विचारों से चिढ़ जाते हैं और ऊल-जुलूल हरकतें करने लगते हैं। आप चाहें तो बी से ब्लैक मनी भी पढ़ सकते हैं लेकिन इससे आप आयकर के शिकंजे में फंस सकते हैं इसलिए बचें तो बेहतर। बीते बात बी का मतलब बीफ भी रहा लेकिन इससे गोरक्षक आपकी जान के दुश्मन हो सकते हैं। अगर आप ब्रिटिश टच चाहते हैं तो बी से ब्रेक्जिट पढ़ सकते हैं।

C- सी से कैश। कैश यानी नकद जिससे हर भारतीय को प्यार है, खासकर गुजरातियों को। साल 2016 में सी से कैशलेस भी हो गया। साल 2016 से पहले कैशलेस होना गरीबी का प्रतीक था लेकिन अब ये राष्ट्रसेवा बन चुका है।

D- डी से डीमोनेटाइजेशन। डीमोनेटाइजेशन (विमुद्रीकरण/नोटबंदी) एक ऐसा जादुई शब्द है जिससे आम लोगों की जेब पैसे निकलकर बैंक में पहुंच गए। ये पैसे उसी जादुई तरीके से एक दिन वापस आपके मोबाइल वैलेट में पहुंच जाएंगे।

E- ई से इकोनॉमी। भारतीय राजनीति में सालों साल तक ई से इलेक्शन ही रहा है कि लेकिन अब पश्चिमी देशों की तरह भारत में ई से इकोनॉमी भी होने लगी है। जाहिर है ये भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता की निशानी है।

F- एफ से फार्मर (किसान)। वही किसान जिनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के कष्ट सहने के लिए तारीफ की। ये अलग बात है कि नोटबंदी के कारण खेती में मददगार सहकारी बैंक पर सरकार की तिरछी नजर के कारण किसानों को बुआई में काफी मुश्किल झेलनी पड़ी। कहना न होगा किसानी अब अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी नहीं रही। साल 2016 में एफ से एफसीआरए भी रहा। बीते साल ये पता चला कि केंद्र सरकार जब चाहे जिसका विदेशी चंदा बंद करा सकती है। बस राजनीतिक पार्टियों का छोड़कर।

G- जी फॉर ग्रोथ (विकास)। नोटबंदी से पहले इस शब्द को लगभग मिथकीय दर्जा प्राप्त हो गया था। बीते साल जी से गोस्वामी (अरनब गोस्वामी) भी रहा। टीवी की सबसे ऊँची आवाज। अब वो अपने टीवी चैनल रिपब्लिक के साथ वापस आने वाले हैं।

H- एच से हैदराबाद यूनिवर्सिटी। बीते साल एंटी-नेशनल होने के मामले में हैदराबाद यूनिवर्सिटी जेएनयू से आगे निकल गई। 16 जनवरी को रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद देश की राजनीति में एक नई चेतना का बीज पड़ा।

I- आई से इंडियन। एक ऐसा जीनियस जिसे लेकर दुनिया को गलतफहमी है। उसने प्लास्टिक सर्जरी और हवाई जहाज बनाया लेकिन कभी उसका श्रेय नहीं लिया। बाद में वो हालात के हाथों मजबूर हो गया जिसके लिए मार्क्सवादी, माओवादी, नेहरू और गांधी जिम्मेदार हैं।

J- जे से जुमला। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनावी जीत हासिल करने में जुमले ने जो भूमिका निभायी है उससे इसका महत्व अभूतपूर्व ढंग से बढ़ गया है। बीते साल जे से जेएनयू भी रहा जो देश की राजधानी दिल्ली में एंटी-नेशनल का मजबूत गढ़ है। जे से बीते साल जवान भी रहा जो देश की रक्षा में जान देता रहा। ये अलग बात है कि नोटबंदी के बाद क़तार में लगे जवान को तकलीफ भी सहनी पड़ी।

K- के से कश्मीर। हमेशा की तरह। आजादी के बाद से भारतीय शब्दकोश में K का यही मतलब रहा है। पिछले साल कश्मीर कुछ ज्यादा ही खबरों में रहा। ज्यादातर बुरी खबरों में।

L- एल से लॉन्ड्रिंग। लॉन्ड्रिंग वो कला है जिससे पलक झपकते ही पैसे का रंग बदल जाता है। वो काले से सफेद हो जाता है। भारत में पिछले ढाई दशकों से एल से लिबरलाइजेशन हुआ करता है लेकिन अब ये कमजोर पड़ने लगा है शायद इसलिए क्योंकि इसका जन्म कांग्रेसी शासनकाल में हुआ था।

M- एम से मोबाइल। अब यह आपका बैंक भी है, बटुआ भी। हो सकता है कि आने वाले वक्त में आपके पास केवल मोबाइल बैंक और मोबाइल बटुआ ही बचे इसलिए इसे लेकर जागरूक बनें।

N- एन से नेशनलइज्म (राष्ट्रवाद)। भारत में एक मात्र मान्यताप्राप्त विचारधारा। बीते साल एन से नेहरू भी रहा जो नोटबंदी को छोड़कर इस देश में होने वाली हर चीज के लिए जिम्मेदार ठहराए गए।

O- ओ से आह। गरीब, बीमार, मजबूर लोगों की आह जो क़तारों में लगे रहे। ओ से ओलंपिक या पैराओलंपिक भी जिससे भारतीयों को दिल्ली सरकार के ऑड-ईवन के खेल से ज्यादा खुशी मिली।

P- पी से पाकिस्तान और पुतिन। बीते साल दोनों ने एशिया की राजनीति में अपनी पुरानी चाल नहीं बदली। पी से पाकिस्तानी एक्टर भी हो सकते हैं जिन्हें भारत में एंटी-नेशनल घोषित कर दिया गया है। पी से पैलेट गन भी रहा जिन्हें सैकड़ों नागरिकों को सहना पड़ा। लेकिन बीते साल का सबसे बड़ा पी रहा पेटीएम जिसने नोटबंदी का सबसे ज्यादा जश्मन मनाया। पी से पतंजलि भी रहा। हमारा अपना देसी वालमार्ट। पी से प्रॉहिबिशन (शराबबंदी) भी।

Q- क्यू से क्यू (क़तार)। क़तार जिसमें देश के हर जरूरतमंद को लगना पड़ा। करीब 100 नागरिकों की क़तार में खड़े होने के दौरान जान चली गई। कई जगह मारपीट हो गई। देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली में क़तार में बने रहने के दौरान अनुशासन  की तारीफ की।

R- आर से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया। एक समय काफी सम्मानित लेकिन नोटबंदी के बाद सवालों के घेरे में।

S- एस से सर्जिकल स्ट्राइक। केंद्र सरकार द्वारा लोकप्रिय बनाया गया जुमला।  लेकिन आठ नवंबर को नोटबंदी लागू होने के बाद लोग इसे भूलने लगे हैं।

T- टी से टैक्समैन (टैक्स अधिकारी)। इस साल टी से टैक्सवाले सबसे ज्यादा चर्चा में रहे। पीएम मोदी ने वादा किया है कि ये टैक्सवाले इस साल भी लोगों का पीछा करते रहेंगे। बीते साल टी से ट्रंप और टाटा भी रहे।

U- यू से उर्जित पटेल। भारतीय रिजर्व बैंक के मौजूदा गवर्नर जिनके कार्यकाल में नोटबंदी जैसा ऐतिहासिक फैसला लिया गया। यू से यूएसएसडी (अनस्ट्रक्चर्ड सप्लिमेंट्री सर्विस डाटा) भी जिससे फोनवाले वित्तीय सेवाओं का उपयोग कर सकेंगे।

V- वी से वेनेजुएला। लातिन अमेरिकी देश जिसने भारत के बाद नोटबंदी का फैसला लिया लेकिन जनता के उग्र विरोध के बाद इसे वापस ले लिया।

W- वी से वेडिंग। भारतीय शादियां जिन पर नोटबंदी की गहरी मार पड़ी। कुछ की शादी टूट गई, कुछ की टल गई तो कुछ की ज्यों-त्यों पूरी की गई।

X- एक्स से प्लैनेट एक्स। नेप्चून के आकार का ग्रह जो प्लूटो के कक्षा में परिक्रमा करता है। कैलटेक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बीते साल इसे खोजने का दावा किया।

Y- वाई से यस्टरडे (बीता हुआ कल)। ऐसा दिन जहां हमारी सारी मुश्किलें पीछे छूट चुकी होती हैं।  वाई से यादव परिवार भी रहा जिसने अपना नाटकीय घटनाक्रमों से टीवी धारावाहिकों को चुनौती दी है।  वाई से सबसे अहम है यू (आप) जिसके विचार और फैसलों से देश का भविष्य तय होना है।

Z- जेड़ से ज़िप (बंद करना)। बीते साल चुप रहने को राष्ट्रवाद की सबसे बड़ी पहचान माना गया। अगर आप चुप रहते हैं तभी माना जाएगा कि आप एंटी-नेशनल नहीं हैं।

(इनपुट- जनसत्ता)
 

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चाइनीस फ़ोन यूज़ करने पर भक्तों ने साइना को देशद्रोही बनाया, कहा खेलना बंद करो, पहले देशभक्ति साबित करो! https://sabrangindia.in/caainaisa-phaona-yauuja-karanae-para-bhakataon-nae-saainaa-kao-daesadaraohai-banaayaa-kahaa/ Wed, 14 Dec 2016 10:28:37 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/14/caainaisa-phaona-yauuja-karanae-para-bhakataon-nae-saainaa-kao-daesadaraohai-banaayaa-kahaa/ नई दिल्ली। जिस बैडमिंटन खिलाडी साइना नेहवाल ने भारत के लिए कई मेडल जीतकर देश को गोरान्वित किया आज वही साइना नेहवाल देशद्रोह के कटघरे में खड़ी हो गई। साइना पर देशद्रोही का आरोप किसी और ने नही बल्कि उनके प्रशंसको ने ही लगाए है।   दरअसल देश में इस समय चाइना के बने उत्पादों […]

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नई दिल्ली। जिस बैडमिंटन खिलाडी साइना नेहवाल ने भारत के लिए कई मेडल जीतकर देश को गोरान्वित किया आज वही साइना नेहवाल देशद्रोह के कटघरे में खड़ी हो गई। साइना पर देशद्रोही का आरोप किसी और ने नही बल्कि उनके प्रशंसको ने ही लगाए है।

saina nehwal
 
दरअसल देश में इस समय चाइना के बने उत्पादों का बहिष्कार करने की कवायद चल रही है इसी बीच साइना नेहवाल ने चाइना के फ़ोन के साथ फोटो सोशल मीडिया पर डाल दी जिसके बाद से ही वह लोगो के निशाने पर आ गई। 
 
आपको बता दें कि साइना ने फेसबुक पर अपने नये फ़ोन के साथ एक फोटो डाली। उस फोटो में उन्होंने लिखा था। 'मेरा नया Honor 8 फोन, यह फोन और इसका कलर मुझे काफी अच्छा लगता है। साइना द्वारा Honor 8 की तारीफ लोगों को रास नहीं आई।
 
नेहवाल को कुछ लोग सोशल मीडिया पर ‘देशद्रोही’ करार दे रहे हैं। साइना ने लिखा था, ‘मेरा नया Honor 8 फोन, यह फोन और इसका कलर मुझे काफी अच्छा लगता है।’ 
एक ने लिखा, ‘साइना तुम चीन के प्रोडक्ट को क्यों बढ़ावा दे रही हो। इन चाइना के प्रोडक्ट को यहां से बाहर करो।’ 
 
दूसरे ने लिखा, ‘चीन के फोन को इस्तेमाल करना बंद कर दो, हम तुमसे जबतक नफरत करते रहेंगे जबतक तुम दूसरा भारतीय फोन नहीं खरीद लेतीं, मोदीजी को सपोर्ट करो।’
 
तीसरे ने लिखा, ‘मैंने यह फोन इसलिए नहीं लिया क्योंकि यह चीन का है। इस फोन का इस्तेमाल करना बंद कर दो।’ 
 
चौथे ने लिखा, ‘इस फोन को प्रमोट करने के लिए कितने पैसे लिए? मिस साइना जी। लोगों को लगने लगा है कि तुम पैसों के लिए भारत की धरती पर पाकिस्तान का झंडा भी फहरा दोगी।’ 
 
अगले ने लिखा, ‘तुम भारतीय हो या नहीं… तुम चीन के प्रोडक्ट को क्यों प्रमोट कर रही हो?’
 
गौरतलब है कि चीन का विरोध दिवाली के पहले से शुरू हुआ था। चीन के समान का विरोध करने की एक नहीं कई प्रमुख वजह थीं। जिसमें न्यूक्लीयर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत की एंट्री का समर्थन ना करना, मसूद अजहर को आतंकी मानने पर चीन की मनाही शामिल है। इसके अलावा पाकिस्तान के लिए चीन के मन में जो ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ है वह भी चीन के प्रति गुस्से का कारण है।
 
हालांकि इसके बाद भी देश का चीन से बिज़नेस काफी बड़ा है। ज्यादातर मोबाइल कंपनियां चीन की हैं जिनका भारत की मॉर्केट में काफी व्यापार होता है। अभी कुछ दिन पहले खबर आई थी कि जिस ई-वॉलेट पेटीएम के द्वारा देश की अर्थव्यवस्था को कैशलेश बनाने की बात की जा रही है उसका संबध चीन की बड़ी कंपनी अलीबाबा से है। इसके अलावा भी देश में ज्यादातर इलेक्ट्रॉनिक मॉर्केट में चीन के ही सामान दिखाई देते हैं।

Courtesy: National Dastak

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तो ABP का ‘भक्त’ ऐंकर चाहे केजरीवाल की मौत ! https://sabrangindia.in/tao-abp-kaa-bhakata-ainkara-caahae-kaejaraivaala-kai-maauta/ Wed, 07 Dec 2016 07:53:58 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/07/tao-abp-kaa-bhakata-ainkara-caahae-kaejaraivaala-kai-maauta/ यह ट्वीट एबीपी नयूज़ के ऐंकर अनुराग मुस्कान का है। 5 दिसंबर को तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के लगभग पौन घंटे पहले उन्होंने लिखा कि ऊपरवाले को किसी मुख्यमंत्री की ज़रूरत है तो तमिलनाडु जाने की क्या ज़रूरत है…आशय यह कि आसपास ही है वह जिसे भगवान के पास जाना चाहिए। कौन है..? […]

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यह ट्वीट एबीपी नयूज़ के ऐंकर अनुराग मुस्कान का है। 5 दिसंबर को तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के लगभग पौन घंटे पहले उन्होंने लिखा कि ऊपरवाले को किसी मुख्यमंत्री की ज़रूरत है तो तमिलनाडु जाने की क्या ज़रूरत है…आशय यह कि आसपास ही है वह जिसे भगवान के पास जाना चाहिए। कौन है..? क्या अरविंद केजरीवाल ? अनुराग ने नाम तो नहीं लिखा, लेकिन केजरीवाल के ख़िलाफ़ उनकी लगातार टिप्पणियों  को देखते हुए कम से कम आम आदमी पार्टी समर्थकोें को कोई शक नहीं रहा कि निशाने पर कौन हैं। उन्होंने अनुराग की लानत मलामत की जिसके बाद यह ट्वीट हटा लिया गया। लेकिन मसला गंभीर था तो इसका स्क्रीन शॉट मौजूद था और ख़ुद उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ऐसे ही एक जवाब को रीट्वीट किया। 

ABP Tweet
 
 
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आम आदमी पार्टी की नाराज़गी स्वाभाविक है। अनुराग पहले भी एक ट्वीट में केजरीवाल और मौत का रिश्ता जोड़ चुके हैं ।

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नोटबंदी के ख़िलाफ़ केजरीवाल के अभियान को अनुराग किस तरह निशाना बनाते रहे, वह भी सामने है।  यही नहीं वह सोशल मीडिया में एक विकट मोदीभक्ति की हैसियत पा  चुके हैं..
 
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anurag-more-tweet

अनुराग के पुराने ट्वीट भी उनकी दिमाग़ी हालत बताने के लिए काफ़ी हैं। उन्हें प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दुष्चरित्र होने पर कोई शक़ नहीं है और मोदी विरोधी नेताओं के लिए उनके पास एक से बढ़कर एक तीर हैं-

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सवाल यह नहीं है कि मोदी का समर्थन या केजरीवाल का विरोध करना गुनाह है। लेकिन एक बड़े चैनल के ऐंकर से इतनी तो उम्मीद की ही जानी चाहिए कि वह विरोध नीतियों का करेगा और उसके तर्क भी देगा। विपक्ष  के तर्क भी समझने की कोशिश करेगा। भाषा की मर्यादा का हमेशा ख़्याल रखेगा और कम से कम किसी की मृत्यु की कामना से ख़ुद को नहीं जोड़ेगा। वैसे, अनुराग मुस्कान ख़ुद को ऐंकर के साथ ऐक्टर भी बताते हैं…ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि वे किस की लिखी स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं..संपादकों की या फिर राजनेताओं की..!

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Courtesy: Media Vigil
 

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नोटबंदी पर मोदी भक्त ने क्यों ली दोस्त की जान! https://sabrangindia.in/naotabandai-para-maodai-bhakata-nae-kayaon-lai-daosata-kai-jaana/ Fri, 02 Dec 2016 10:09:48 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/02/naotabandai-para-maodai-bhakata-nae-kayaon-lai-daosata-kai-jaana/ नई दिल्ली। नोटबंदी को आज 24वां दिन है, लेकिन आज भी लोगों को पूरी तरह से पैसे नहीं मिल पा रहे है। केंद्र सरकार के फैसले से लोगों में गुस्सा है तो कई लोगों ने इसका समर्थन भी किया। बता दें कि नोटबंदी के चलते कई लोग अपनी जान भी गंवा चुके है। लेकिन क्या […]

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नई दिल्ली। नोटबंदी को आज 24वां दिन है, लेकिन आज भी लोगों को पूरी तरह से पैसे नहीं मिल पा रहे है। केंद्र सरकार के फैसले से लोगों में गुस्सा है तो कई लोगों ने इसका समर्थन भी किया। बता दें कि नोटबंदी के चलते कई लोग अपनी जान भी गंवा चुके है। लेकिन क्या नोटबंदी के चलते कोई किसी की जान भी ले सकता है?

Note Death
 
जी हां, एक शख्स ने नोटबंदी को लेकर हुए विवाद में पीएम मोदी को अपशब्द कहने पर अपने ही दोस्त की हत्या कर दी। बता दें कि मामले का खुलासा गुरुवार को तब हुआ जब आरोपी पुलिस की पकड़ में आया। उसे जेल भेज दिया गया है।
 
क्या था मामला
बता दें कि मामला शहर के मुजगहन थाना क्षेत्र के डूंडा इलाके का है। 28 नवंबर को वहां शिव ठाकुर कुमार ठाकुर (38) की लाश मिली थी। हत्या के बाद से ही आरोपी फरार था। लेकिन पिंटू सिंह (27) जब पकड़ा गया तो उसने पुलिस के सामने पूरी कहानी बताई।
 
प्राप्त जानकारी के मुताबिक 28 नवंबर की रात शिव कुमार ठाकुर (38) एक शराब दुकान पर शराब पी रहा था। बात करते-करते पिंटू सिंह वहां पहुंचा। दोनों में पुरानी जान-पहचान थी। लिहाजा वह भी साथ में शराब पीने बैठ गया।
 
इस मामले पर पिंटू का कहना है कि शराब पीते-पीते नोटबंदी पर चर्चा होने लगी। बात करते समय शिव नोटबंदी के नुकसान गिनाने लगा जबकि पिंटू पीएम के फैसले का समर्थन कर रहा था। जानकारी के अनुसार शिव एक पॉलिटिकल पार्टी से जुड़ा भी था, तो उसने आगे ये भी कह डाला कि अगली बार मोदी की जगह उसकी सरकार आएगी।
 
पिंटू का कहना है कि शिव नोटबंदी से हुई परेशानियों को लेकर पीएम मोदी को गालियां देने लगा तो उसे बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने पास ही पड़ा लकड़ी का पट्टा उठाया और शिव के सिर पर दे मारा और वहां से भाग निकला। बता दें कि घटना के एक घंटे बाद कुछ लोगों ने पुलिस को घायल व्यक्ति के सड़क किनारे होने की सूचना दी। उसे अंबेडकर अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।

Courtesy: National Dastak

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मोदी भक्ति: आज तक की एंकर अंजना ओम कश्यप ने अपना पूरा नाम बोला ‘अंजना ओम मोदी’, वीडियो वायरल https://sabrangindia.in/maodai-bhakatai-aja-taka-kai-enkara-anjanaa-oma-kasayapa-nae-apanaa-pauuraa-naama-baolaa/ Wed, 30 Nov 2016 07:53:58 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/11/30/maodai-bhakatai-aja-taka-kai-enkara-anjanaa-oma-kasayapa-nae-apanaa-pauuraa-naama-baolaa/ आजतक की एंकर अंजना ओम कश्यप ने अपना नाम लगभग अंजना ओम मोदी बोल दिया जिसके बाद सोशल मीडिया पर ये वीडियो वायरल हो गया है। अपने शो हल्ला बोल में अपने परिचय के दौरान ज़ुबान फिसलने का ये वीडियो ट्विटर और फेसबुक पर गैर-भाजपा के लोगों द्वारा खूब शेयर हो रहा है। नीचे दिए […]

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आजतक की एंकर अंजना ओम कश्यप ने अपना नाम लगभग अंजना ओम मोदी बोल दिया जिसके बाद सोशल मीडिया पर ये वीडियो वायरल हो गया है।

अपने शो हल्ला बोल में अपने परिचय के दौरान ज़ुबान फिसलने का ये वीडियो ट्विटर और फेसबुक पर गैर-भाजपा के लोगों द्वारा खूब शेयर हो रहा है।

अंजना ओम कश्यप

नीचे दिए गए वीडियो में आप देख सकते हैं किस तरह अंजना कह रहीं हैं, ” नमस्कार, आप देख रहे हैं हल्ला बोल आपके साथ मैं हूं अंजना ओम मोदी..हममम अंजना ओम कश्यप”

जैसे ही ये वीडियो शेयर हुआ सोशल मीडिया यूजर्स ने कहा,  ये मोदी भक्ति का नतीजा है।

ट्विटर यूर्जस ने ट्वीट करते हुए कहा, जैसे काम करते हुए आपके बॉस का नाम दिमाग में घूम रहा हो।

यूजर रोशन राय पहले थे जिन्होंने सबसे पहले इस बारे में ट्वीट किया।

यहां देखिए ट्विटर और फेसबुक यूजर्स के कुछ रिएक्शन

 
tweet
 
 

पढ़िए कुछ फेसबुक कमेंट-

ए पी सिंह चट्ठा: एक समय था जब आजतक की साख शीर्ष पर थी, लेकिन अब इन्होंने खुद को भाजपा के लिए खुद को बेच दिया।

जोस यूसुफ: क्षमा करें … ये उसकी गलती नहीं है। आजकल भारतीय इसी तरह बात करते हैं… केवल भक्ति और ना कोई तर्क।

राकेश चतुर्वेदी: पहले हर कोई आजतक पर भरोसा करता था है, लेकिन अब चैनल देख कर बदलना पसंद करता  है।

अजय सिंघल: वो आजतक में  एक ऐसी है जो निष्पक्ष है,यह जुबान का फिसलना हो सकता है।

मन्ना बरभुया: अंजना ओम मोदी .. बुरा नहीं वास्तव में

सोम्याकान्ता मिश्रा: इसे कहा दाता है मोदी मैनिया… हा हा हा …

Courtesy: Janta Ka Reporter
 

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Cannot Criticise De-Monetization, Hallo! This Woman Does It In Stark Style and Her Post Goes Viral https://sabrangindia.in/cannot-criticise-de-monetization-hallo-woman-does-it-stark-style-and-her-post-goes-viral/ Wed, 16 Nov 2016 06:34:00 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/11/16/cannot-criticise-de-monetization-hallo-woman-does-it-stark-style-and-her-post-goes-viral/ Chennai based Anupama Anamangad chose the stark route of analogy and comparison: “Coz if you can have sex, why can’t you get raped, right!?”—shaming those who are silencing critics of the Modi government’s manner and style of de-monetization –and her post has gone viral. In this FB post, which she seems to compare the government’s […]

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Chennai based Anupama Anamangad chose the stark route of analogy and comparison: “Coz if you can have sex, why can’t you get raped, right!?”—shaming those who are silencing critics of the Modi government’s manner and style of de-monetization –and her post has gone viral.

In this FB post, which she seems to compare the government’s decision to demonetize the Rs 500 and Rs 1000 notes to rape, has gone viral. Exasperated by comparisons between queues at movie theaters and Reliance stores (for buying Jio) and the queues that can now be seen snaking out of ATMs across the nation, Anupama Anamangad chose the following words to express her perception of the difference between these phenomena:
Anamangad explained that the people queuing up outside ATMs aren’t doing so because they want cash, but because they need it – and now have no choice but to get in line.

“As if the 73 old man who died in queue was standing in the Jio sim queue!” Anamangad wrote.

And before she was done, she used another metaphor to describe her views on the consequences of the ban: she suggested that temporarily inconveniencing the public to crack down on those who’d hoarded unaccounted wealth was akin to bombing a village to catch a criminal, and then asking people if they hadn’t seen fire before.

Here’s her post:

Anupam

Source: Times of India Blog
 

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Happy Birthday प्रधानमंत्री जी: एक अभक्त, अशक्त सिकुलर नागरिक https://sabrangindia.in/happy-birthday-paradhaanamantarai-jai-eka-abhakata-asakata-saikaulara-naagaraika/ Sat, 17 Sep 2016 11:02:43 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/09/17/happy-birthday-paradhaanamantarai-jai-eka-abhakata-asakata-saikaulara-naagaraika/ प्रिय प्रधानमंत्री जी, ये पत्र आपको जन्मदिन की बधाई देने के लिए लिख रहा हूं, सो सबसे पहले हैप्पी बर्थ़डे…अब आपकी तरह ट्विटर पर इतना बड़ा आदमी नहीं कि वहां लिख सकूं और लाखों लोग रीट्वीट करें, सो फेसबुक पर लिख रहा हूं… आपको पद ग्रहण कि2 साल से ज़्यादा हुए। आपने पद ग्रहण करने […]

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प्रिय प्रधानमंत्री जी,

ये पत्र आपको जन्मदिन की बधाई देने के लिए लिख रहा हूं, सो सबसे पहले हैप्पी बर्थ़डे…अब आपकी तरह ट्विटर पर इतना बड़ा आदमी नहीं कि वहां लिख सकूं और लाखों लोग रीट्वीट करें, सो फेसबुक पर लिख रहा हूं…

आपको पद ग्रहण कि2 साल से ज़्यादा हुए। आपने पद ग्रहण करने से पहले ही कहा था कि आप प्रधान सेवक हैं, आप देश के चौकीदार हैं। आप ने चुनाव अभियान में कुछ अहम मुद्दों पर बात की थी, जो इस प्रकार हैं…

महंगाई ख़त्म कर देंगे
काला धन वापस लाएंगे 
किसानों के अभाव और दिक्कतें खत्म होंगी 
महिलाओं पर हिंसा समाप्त होगी 
रोज़गार में बढ़ोत्तरी होगी 
देश की एकता पर बात होगी 
सभी वर्गों के लिए बेहतर माहौल होगा 
देश से आतंकवाद का खात्मा होगा 
आम आदमी की सरकार तक पहुंच बेहतर होगी 
कुल जमा अच्छे दिन आएंगे

लेकिन आपको ये भी बताना ज़रूरी है कि आपके इन मुद्दों पर 2 साल से अधिक में हुआ क्या…

महंगाई खत्म होना तो बहुत दूर की बात है, महंगाई दिन पर दिन बढ़ती गई। दुनिया भर में तेल सस्ता होने के बावजूद न केवल आपके राज में भारत में महंगा होता गया, बल्कि बाकी सभी चीजें भी महंगी हो गई। गरीब दाल-रोटी तक खाने को मोहताज हो गया। यही नहीं आप बेहद चालाकी से रेल किराया महंगा कर के, उसे अंततः निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में हैं।

काला धन जुमला था, ये तो आपके भामाशाह अमित शाह भी बता चुके हैं और हाल ही में नकुल-सहदेव गडकरी वगैरह भी कह चुके हैं। काले धन को लेकर आपकी सरकार इतनी चिंतित है कि न केवल सुप्रीम कोर्ट में बेइज़्ज़ती करा चुकी है, बल्कि अब तो वह क़ानूनी रूप से काले धन को रखने वालों को उसे सफेद कर के बचाने का प्रस्ताव दे रही है। यानी कि कुछ फीसदी दो और बाकी बेईमानी का पैसा सफेद कर लो…सज़ा वगैरह तो गरीब के लिए है।

किसानों की हालत सिर्फ इस से बयान हो जाती है कि आपके कृषि मंत्री किसानों की आत्महत्याओं को नपुंसकता, असफल प्रेम वगैरह जैसे खानदानी दवाखाने के विज्ञापनों पर आधारित बता देते हैं। आपकी सरकार आने के बाद लगातार किसानों की आत्महत्याएं बढ़ती ही नहीं गई हैं, बल्कि नए राज्यों में फैलती गई हैं। वैसे गुजरात मॉडल में भी किसान सड़क पर ही हैं, या तो प्रदर्शन करते हुए, या गिड़गिड़ाते हुए। बाकी महाराष्ट्र, बुंदेलखंड, तेलंगाना का क्या ही कहा जाए…

आपकी सरकार के आने के बाद महिलाओं पर हिंसा के मामले तो जो हैं, सो तो हैं ही…लेकिन आपके अपने सांसद तक जिस तरह लगातार महिला विरोधी बयान देते रहे हैं और आप धृतराष्ट्र बन कर बैठे रहे हैं, उससे ये साफ है कि आपकी सरकार और खुद आपका महिलाओं को लेकर नज़रिया क्या है। आपके मानस गुरु मोहन भागवत महिलाओं को बच्चा पैदा करने की मशीन बताते हैं और उनके भाषणों का सरकारी प्रसारण माध्यमों पर लाइव टेलीकास्ट होता है।

रोज़गार के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना, उसके बारे में पूरा देश सच जानता है कि सिर्फ आपको और आपके मंत्रिपरिषद को ही रोज़गार मिला है। 2 साल में कितनी सरकारी नौकरियां निकली हैं, उसका सच गोरक्षकों की भीड़ में शामिल बेरोज़गार युवक और आपके आईटी सेल में झूठ फैलाने के लिए 3 हज़ार रुपए पर शामिल नौजवान ही सब बता देते हैं…

रही बात देश की एकता की, तो आप सफेद झूठ बोल रहे थे, क्योंकि आपकी पार्टी की राजनीति की राह में सबसे बड़ा रोड़ा ही एकता है। इसीलिए सरकार आते ही आपने देश को तोड़ने की अपनी राजनीति शुरु कर दी। भाजपा से जुड़े संगठनों के लोग लगातार देश की एकता में दरार डालने में लगे हैं। लव जिहाद से लेकर गो हत्या तक के मामलों में आप दुनिया भर में देश की फजीहत करा चुके हैं। हिंदू और मुस्लिम को एक दूसरे के खिलाफ भड़काया जा रहा है।

अब बात सभी की खुशहाली की…देश भर में पिछले 2 साल में लगभग सरकारी तौर पर न केवल अल्पसंख्यकों बल्कि दलितों पर हमलों में इज़ाफ़ा ही नहीं हुआ है। आरएसएस और उससे जुड़े बजरंग दल जैसे आतंकवादी संगठनों को लगभग खुली छूट मिल गई है कि वह धर्म के नाम पर कुछ भी करें। न केवल सरकारी संस्थानों, विश्वविद्यालयों में इन वर्गों के साथ अन्याय हो रहा है, सड़क पर कट्टरपंथियों की फौज इनको निशाना बना रही है और आप अभिनय में व्यस्त हैं।

महोदय, बात देश से आतंकवाद की…प्रभु ये बताएं कि एक आतंकवाद का खात्मा करते-करते आप दूसरा आतंकवाद कैसे शुरु कर सकते हैं? एक आम नागरिक को सीमापार से आने वाले किसी आतंकी से उतना ख़तरा नहीं है, जितना उसके शहर, मोहल्ले और गली में रहने वाले आतंकी से है। लेकिन आपकी सरकार आने के बाद आपके ही लोग पूरे देश में आतंक फैला रहे हैं। याद रखिएगा, जिस दिन आप इनके खिलाफ बोलेंगे, ये आपको भी नहीं छोड़ेंगे…

आपने कहा था कि आम आदमी की सरकार तक पहुंच होगी…आपको बताना चाहूंगा कि आपका कार्यालय जिसे पीएमओ के नाम से जाना जाता है, वह आरटीआई तक के जवाब नहीं देता है। आप डिजिटल इंडिया का जो नाटक रच रहे हैं, वह इस देश में कम्प्यूटर अशिक्षित गरीब को सरकार से और दूर कर देगा। आपकी शिक्षा नीति में खोट है, आप शिक्षा की जगह अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं। आरटीआई समेत किसी भी तरह से सरकार से कोई जवाब नहीं मांगा जा सकता है। हर आदमी सुप्रीम कोर्ट भी नहीं जा सकता है। और आप तो जनाब देश में रहते नहीं हैं…फिर कौन सी सरकार और किस आम आदमी के करीब???

हां, आपकी एक बात सच है कि अच्छे दिन आएंगे…बिल्कुल आए हैं….आपके आए हैं…आपके मंत्रियों के आए हैं…सारे अवसरवादियों के आए हैं…आपके हर चापलूस के आए हैं…पूंजीपतियों के आए हैं…यही नहीं आरएसएस, बजरंग दल, विहिप वगैरह के भी आए हैं…हर तरह के धार्मिक कट्टरपंथियों के आए हैं…महोदय आपने अगर उस वक्त ये भी बता दिया होता कि किसके अच्छे दिन आएंगे, तो आज हम ये दिन न देखते…हो सकता है कि आपको चुुनाव में धूल चटा कर, हम अपने जितने अच्छे दिन थे, उतने ही बचा पाते…हां, आपकी पीआर एजेंसी को मेरी ओर से बधाई दीजिएगा कि वह अपना झूठे प्रचार का काम ढंग से निभा पाए…मोहन भागवत मिलें, तो उनसे भी कहिएगा कि देश को बर्बाद करने का उनका सपना भी सही राह पर है…

इसलिए आपको अपने सपने के पूरे होते जाने पर बधाई…बधाई आपके जन्मदिन पर आपको कि आप देश को बेचे जा रहे हैं…बधाई कि आप इस देश को नर्क बनाने की राह पर 2 ही साल में 200 कदम आगे बढ़ गए हैं…बधाई कि आप इतिहास में याद रखे जाएंगे…क्योंकि इतिहास सिर्फ अच्छे और महान लोगों को ही याद नहीं रखता…निकृष्टतम और घटिया लोगों को भी याद रखता है…बधाई कि आपकी वजह से एक न एक दिन इस देश का गरीब और सोया हुआ तबका जाग जाएगा…बधाई कि मेरे जैसे लोगों की कही बात, जिसे सरकार के पहले लोग ग़लत समझते थे, आपने सही साबित की…बधाई कि आपके भाषणों और जुमलों की लम्बाई इतनी हो गई है कि आप बिना हवाई जहाज़ सिर्फ उन कागजों पर बैठ कर विदेश जा सकते हैं, जिन पर वो लिखे गए हैं…

एक बार फिर…जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएं…

आपका 
एक अभक्त, अशक्त सिकुलर नागरिक
 

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