News anchors | SabrangIndia News Related to Human Rights Tue, 07 Feb 2017 06:56:07 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png News anchors | SabrangIndia 32 32 किताबों से दूर हैं ऐंकर और संपादक, पनवाड़ी जितना ज्ञान -दिलीप मंडल https://sabrangindia.in/kaitaabaon-sae-dauura-haain-ainkara-aura-sanpaadaka-panavaadai-jaitanaa-janaana-dailaipa/ Tue, 07 Feb 2017 06:56:07 +0000 http://localhost/sabrangv4/2017/02/07/kaitaabaon-sae-dauura-haain-ainkara-aura-sanpaadaka-panavaadai-jaitanaa-janaana-dailaipa/ यह अभागी लाइब्रेरी उदास है चलिए आपको आज एक बिल्डिंग में ले चलता हूं. अगर आप दिल्ली में हैं, तो बेर सराय यानी ओल्ड JNU कैंपस से दक्षिण दिशा में वसंत कुंज की तरफ जाएंगे, तो यह अरुणा आसिफ अली मार्ग है. इस पर लगभग डेढ़ किलोमीटर चलने पर दाईं ओर एक बिल्डिंग नजर आएगी. […]

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यह अभागी लाइब्रेरी उदास है

चलिए आपको आज एक बिल्डिंग में ले चलता हूं. अगर आप दिल्ली में हैं, तो बेर सराय यानी ओल्ड JNU कैंपस से दक्षिण दिशा में वसंत कुंज की तरफ जाएंगे, तो यह अरुणा आसिफ अली मार्ग है. इस पर लगभग डेढ़ किलोमीटर चलने पर दाईं ओर एक बिल्डिंग नजर आएगी. यह इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन यानी IIMC है.

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यहां भारत में पत्रकारिता, मीडिया और मास कम्युनिकेशन की देश की सबसे बड़ी लाइब्रेरी है. लगभग 40,000 किताबें इस विषय पर यहां बैठकर पढ़ी जा सकती हैं.

यहां आपको एक रैक पर चोम्सकी मिलेंगे, तो दूसरी पर एडवर्ड हरमन, तो कहीं बेन बेगडिकियान, तो कही मैकलुहान, तो कहीं वुडवर्ड. माखनलाल चतुर्वेदी से लेकर गणेश शंकर विद्यार्थी, श्योराज सिंह बेचैन और एसपी सिंह भी नजर आ जाएंगे, यहां इतिहास, राजनीति, समाजशास्त्र और इन विषयों से मीडिया के रिश्तों पर भी कई किताबें हैं, देश-विदेश की मीडिया की लगभग 100 पत्रिकाएं यहां आती हैं. एक एक पत्रिका की सब्सक्रिप्शन हजारों रुपए की है.

मैं तो आंख बंद करके इस लाइब्रेरी की गंध महसूस कर सकता हूं. वहां के बुक रैक्स और चेयर्स मुझे पहचानते हैं. मैं आपको अभी बता सकता हूं कि माइनॆरिटी एंड मीडिया या मीडिया मोनोपली या मैन्युफैक्चरिंग कंसेंट या मीडिया एंड पावर किताब या प्रेस कौंसिल की रिपोर्ट आपको किस रैक के किस कोने में मिलेगी. यह लाइब्रेरी बरसों से मेरे लिए दूसरे घर की तरह रही है, मैंने यहां बैठकर तीन किताबें लिखी हैं.

यूं भी शानदार जगह है. चाय-पानी की पास में व्यवस्था है. निकट ही दहिया जी के कैंटीन में दिल्ली के सबसे बेहतरीन सत्तू पराठे मिलते हैं. सस्ती फोटोकॉपी हो जाती है. एयर कंडीशंड है, स्टाफ भी अच्छा है.

लेकिन यह लाइब्रेरी बरसों से उदास है.

जानते हैं क्यों?

पिछले बीस साल में इस लाइब्रेरी में टीवी का कोई एंकर नहीं आया. मेरे अलावा शायद कोई संपादक भी यहां नहीं आया है, रिपोर्टर भी नहीं आते. यहां तक कि IIMC के टीचर्स को देखने के लिए भी यह लाइब्रेरी कई बार महीनों तरस जाती है.

यह मेरा इस लाइब्रेरी का पिछले 15 साल का अनुभव है. इसकी पुष्टि आप इस लाइब्रेरी के स्टाफ से कर सकते हैं.

आप सोच रहे होंगे कि पत्रकारिता की सबसे बड़ी लाइब्रेरी में आए बिना संपादकों, एंकरों का काम कैसे चल जाता है. पत्रकारिता के क्षेत्र में देश-दुनिया में क्या चल रहा है, किस तरह के डिबेट्स हैं, यह जानने के उन्हें जरूरत क्यों नहीं है?

और फिर जो लोग अपने प्रोफेशन के बारे में नहीं पढ़ते, वे इतने आत्मविश्वास से टीवी पर लबर-लबर जुबान कैसे चला लेते हैं. अखबार में इतनी-लंबी चौड़ी कैसे हांक लेते हैं?

अब तक यह होता रहा है. संपादक और एंकर अपने सामान्य ज्ञान और अनुभूत ज्ञान के बूते काम चलाता रहा है. उससे कभी पूछा ही नहीं गया कि आपने आखिरी किताब कौन सी पढ़ी थी और कितने साल पहले.

अनुभूत ज्ञान का महत्व है. एक किसान या मछुआरा या बढ़ई या मोटर मैकेनिक अपने अनुभूत ज्ञान से महत्वपूर्ण कार्य सिद्ध करता है.

लेकिन संपादक और एंकर भी अगर अनुभूत ज्ञान यानी पान दुकान से मिले ज्ञान से काम चलाना चाहता है, तो उसे भी समकक्ष आदर का पात्र होना चाहिए,

राजू मैकेनिक और एक संपादक के ज्ञान अर्जित करने की पद्धति में अगर फर्क नहीं है, तो दोनों का समान आदर होना चाहिए.

सिर्फ कोट और पेंट पहनने की वजह से संपादक और एंकर को ज्ञानी मानना छोड़ दीजिए.

वे अनपढ़, अधपढ़ और कुपढ़ है. वे पान दुकानदार के बराबर ही जानते हैं.

अज्ञान से भी आत्मविश्वास आता है, वह वाला आत्मविश्वास उनमें कूट-कूट कर भरा है,

इसलिए भारत में पत्रकारिता की सबसे बड़ी लाइब्रेरी उदास है.

यह पत्रकारों की नई पीढ़ी और खासकर SC, ST, OBC तथा माइनॉरिटी के युवा पत्रकारों पर है कि इन लाइब्रेरी पर अपना क्लेम स्थापित करें. किताबों से दोस्ती करें. इस लाइब्रेरी की उदासी दूर करें.

क्योंकि मीडिया पर अब तक जिनका कंट्रोल रहा है, उन्होंने यह काम किया नहीं है. उनका ज्ञान उनकी टाइटिल में है, पिता की टाइटिल में है. इसलिए स्वयंसिद्ध है. आपको इसका लाभ नहीं मिलेगा. पढ़ना पड़ेगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया विशेषज्ञ हैं।)
 

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