Sedition Charges against JNU Students | SabrangIndia News Related to Human Rights Wed, 17 Aug 2016 08:22:14 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png Sedition Charges against JNU Students | SabrangIndia 32 32 Sedition Charges Used to Instill Fear & Crush Dissent: Petition in SC https://sabrangindia.in/sedition-charges-used-instill-fear-crush-dissent-petition-sc/ Wed, 17 Aug 2016 08:22:14 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/08/17/sedition-charges-used-instill-fear-crush-dissent-petition-sc/ Sedition charges, which involve the misuse and misapplication of section 124A of the Indian penal Code (IPC-sedition law/sections, by both Central and State governments, are leading to the persistent persecution of students, journalists and intellectuals involved in social activism. A petition, filed in the Supreme Court of India today, August 17, by anti-nuclear activist, Dr. […]

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Sedition charges, which involve the misuse and misapplication of section 124A of the Indian penal Code (IPC-sedition law/sections, by both Central and State governments, are leading to the persistent persecution of students, journalists and intellectuals involved in social activism. A petition, filed in the Supreme Court of India today, August 17, by anti-nuclear activist, Dr. S.P. Udayakumar (against whom such charges have been made and Common Cause, an organization of which advocate Prashant Bhushan is a founder) argues that these charges are framed with a view to instill fear and to scuttle dissent and are in complete violation of the scope of sedition as laid down by constitution bench judgment of Supreme Court in Kedar nath v State of Bihar [1962 Supp. (2) S.C.R. 769], which is the locus classicus on the interpretation of sedition. 

 
The issue is of immediate and particular relevance given the fact that several student leaders from the Jawaharlal Nehru University (JNU) were slapped by with sedition charges by the Delhi police which is directly under the central government and more recently, the sedition charge on Amnesty India for organizing a debate on Kashmir in Karnataka.

The petition argues that as per the constitution bench judgment in Kedarnath, only those acts which involve incitement to violence or violence constitute a seditious act. In the various cases that have been filed in the recent years, the charges of sedition against the accused have failed to stand up to judicial scrutiny.

The petitioner is therefore seeking a strict compliance of the Constitutional Bench judgment of Supreme Court in Kedar Nath in which the scope of sedition as a penal offence was laid down and it was held that the gist of the offence of sedition is “incitement to violence” or the “tendency or the intention to create public disorder”. Thus, those actions which do not involve violence or tendency to create public disorder, such as organization of debates/discussions, drawing of cartoons, criticism of the government etc do not constitute the offence of sedition.

The petition can be read here.

The petition also prays for directions from the court for the issuance of an appropriate writ, order or direction making it compulsory for the concerned authority to produce a reasoned order from the Director General of Police (DGP) or the Commissioner of Police, as the case maybe, certifying that the “seditious act” either lead to the incitement of violence or had the tendency or the intention to create public disorder, before any FIR is field or any arrest is made on the charges of sedition against any individual. Similarly, there is a prayer for a review of all pending sedition cases and for criminal complaints for sedition made before a Judicial Magistrate with a view to curb the misuse and misapplication of sedition law. The petition will be heard in the next few days.
 
 

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संघ और भाजपा का राष्ट्रवादी पाखंड https://sabrangindia.in/sangha-aura-bhaajapaa-kaa-raasataravaadai-paakhanda/ Tue, 08 Mar 2016 05:29:46 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/03/08/sangha-aura-bhaajapaa-kaa-raasataravaadai-paakhanda/ अफजल गुरु जेएनयू में आतंकवादी है, लेकिन भाजपा पीडीपी के साथ सरकार भी बना सकती है जो अफजल गुरु को 'शहीद' कहकर महिमामंडित करती है. संघ-भाजपा को यह पता है कि वे पूरी तरह फेल हैं और उनके लिए एकमात्र आशा उनके वे तूफानी घुड़सवार हैं जो किसी को विरोध नहीं करने दे सकते. देश […]

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अफजल गुरु जेएनयू में आतंकवादी है, लेकिन भाजपा पीडीपी के साथ सरकार भी बना सकती है जो अफजल गुरु को 'शहीद' कहकर महिमामंडित करती है. संघ-भाजपा को यह पता है कि वे पूरी तरह फेल हैं और उनके लिए एकमात्र आशा उनके वे तूफानी घुड़सवार हैं जो किसी को विरोध नहीं करने दे सकते. देश को उनका डरावना चेहरा नहीं दिखे इसलिए वे मीडियाकर्मियों पर हमले करते हैं.अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकताओं ने हैदराबाद और जेएनयू में ‘मुखबिर’ की तरह सक्रियता दिखाई. देश जानना चाहता है कि हरियाणा में 9 दिनों के उपद्रव के दौरान वे कहां थे? वे वहां जातीय झगड़े की आग को बुझाते हुए नहीं दिखे. क्या वे वहां भीड़ का हिस्सा थे? 


फोटो- अमरजीत ‌स‌िंह

संघ-भाजपा की ‘राष्ट्रवादी’ सरकार सभी ‘राष्ट्रविरोधियों’ को प्रताड़ित कर रही है लेकिन इन ‘राष्ट्रवादी’ भारतीयों को लेकर कुछ तथ्यों पर गौर करना चाहिए. देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल के मुताबिक, यह आरएसएस और हिंदू महासभा जैसे हिंदुत्ववादी संगठन थे जो गांधी की हत्या के जिम्मेदार थे. यह कुनबा आज भी उनकी हत्या को वध कहकर महिमामंडित करता है. 14 अगस्त 1947 को आरएसएस के मुखपत्र ‘आर्गेनाइजर’ ने लिखा था, ‘बदकिस्मती से जो लोग सत्ता में आए हैं, वे हमारे हाथों में तिरंगा पकड़ा देंगे लेकिन हिंदू इसे कभी स्वीकृति व सम्मान नहीं देंगे. तीन अपने आप में अशुभ है और तिरंगे में तीन रंग हैं जो निश्चित तौर पर बुरा मनोवैज्ञानिक असर छोड़ेंगे. यह देश के लिए हानिकारक होगा.’ जिन्होंने गांधीजी को मारा, जिन्होंने आजादी के बाद तिरंगे की तौहीन की, वे ‘राष्ट्रवादी’ हैं और जो युवा भारतीय चाहते हैं कि भारतीय राष्ट्र-राज्य सबके लिए मूलभूत अधिकारों और नीति निदेशक तत्वों पर अमल करे, उनकी अदालत के फैसले से पहले ही ‘आतंकवादी’ के रूप में ब्रांडिंग की जा रही है.

संघ भाजपा के जो कार्यकर्ता वंदेमातरम गा रहे हैं, उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ इसे कभी नहीं गाया. उन्होंने 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकारें बनाई थीं जबकि कांग्रेस पर प्रतिबंध लगा था. जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस सेना बनाकर भारत को आजाद कराने का प्रयास कर रहे थे तब हिंदुत्ववादी संगठनों ने मिलकर अंग्रेजी सेना के लिए ‘भर्ती कैंप’ लगाए थे. अब ये ‘राष्ट्रवादी’ लोग लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए वंदेमातरम का इस्तेमाल कर रहे हैं. 

बंटवारा करना संघ-भाजपा नेताओं और उनकी हिंदूवादी राजनीति के जीन में है. अपनी क्रूर राष्ट्रविरोधी विचारधारा के साथ वे न सिर्फ मुस्लिमों, ईसाइयों और दलितों के खिलाफ हैं बल्कि वे बहुसंख्यक समुदाय की भी एकजुटता के लिए खतरा हैं. हरियाणा के इतिहास में यह पहली बार है जब हम देख रहे हैं कि जाट और पंजाबी के बीच गहरे तक ध्रुवीकरण हुआ है. डॉ. आंबेडकर ने बहुत पहले कहा था कि ‘हिंदुत्व की राजनीति सिर्फ लोगों को बांटती है, इस तरह वह भारत का विनाश कर रही है.’ 

संघ-भाजपा के शासकों को यह महसूस हो रहा है कि वे जनता के बड़े हिस्से का समर्थन खो चुके हैं. वे अपने विरोधियों का ध्यान दूसरी तरफ केंद्रित करना चाहते हैं. यह भी एक तरह का राष्ट्रविरोधी कार्य है. वे अपना पुराना हिंदुत्ववादी एजेंडा पुनर्जीवित कर रहे हैं

कोई नहीं जानता कि हरियाणा और भारत हिंदुत्व की राजनीति के साथ कैसे रहेंगे. उन्होंने जेएनयू को राष्ट्रद्रोहियों का अड्डा घोषित कर दिया, लेकिन हरियाणा के बारे में क्या कहेंगे जहां पर बड़े पैमाने पर लोगों की जानें गईं और संपत्तियों को तहस-नहस किया गया. जेएनयू के राष्ट्रविरोधी हरियाणा में नहीं हैं और यह सब संघ-भाजपा के शासन में हो रहा है. इतिहास हरियाणा के हिंदूवादी शासकों को कभी माफ नहीं करेगा जिन्होंने हरियाणवी लोगों को जाट, पंजाबी और सैनी आदि में बांट दिया. हमारी सेना, जो हमारे देश का गौरव है, जिसका काम सीमा की सुरक्षा करना है, वह अपने ही लोगों पर गोलियां चला रही है. 

अफजल गुरु जेएनयू में आतंकवादी है, लेकिन भाजपा पीडीपी के साथ सरकार भी बना सकती है जो अफजल गुरु को ‘शहीद’ कहकर महिमामंडित करती है. संघ-भाजपा को यह पता है कि वे पूरी तरह फेल हैं और उनके लिए एकमात्र आशा उनके वे तूफानी घुड़सवार हैं जो किसी को विरोध नहीं करने दे सकते. देश को उनका डरावना चेहरा नहीं दिखे इसलिए वे मीडियाकर्मियों पर हमले करते हैं. उन्होंने बाबरी मस्जिद ध्वंस के समय भी ऐसा ही किया था. वे भाड़े के गुंडे जो मीडिया, छात्रों और अध्यापकों पर हमले करते हैं, ‘राष्ट्रवादी’ भावना की बातें करते हैं. 

जिन हिंदुत्ववादी अपराधियों ने गांधी जी को मारा, जिन्होंने मुस्लिम लीग के साथ 1942 में तब सरकार चलाई जब ब्रिट्रिश शासन ने कांग्रेस को प्रतिबंधित कर दिया था, नेताजी जब सेना गठित कर भारत को आजाद कराने की कोशिश कर रहे थे तब अंग्रेजी सेना के लिए भर्ती कैंप चलाए, भारतीय जेल से इस्लामिक आतंकी अजहर मसूद को कंधार छोड़ने गए, नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे और एमएम कलबुर्गी की हत्या की, शहीदे आजम के नाम पर बन रहे एयरपोर्ट का नाम बदलकर एक आरएसएस के बिचौलिये के नाम पर रख दिया और अफजल गुरु को शहीद घोषित करने वाली पीडीपी के साथ जम्मू और कश्मीर में सरकार चला रहे हैं, वे ‘राष्ट्रवादी’ हैं. यदि ये अपराधी ‘राष्ट्रवादी’ हैं तो एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक भारत के राजनीतिक भाग्य का अंत हो चुका है. 

संघ-भाजपा के शासकों को यह महसूस हो रहा है कि वे जनता के बड़े हिस्से का समर्थन खो चुके हैं. वे अपने विरोधियों का ध्यान दूसरी तरफ केंद्रित करना चाहते हैं. यह भी एक तरह का राष्ट्रविरोधी कार्य है. वे अपना पुराना हिंदुत्ववादी एजेंडा पुनर्जीवित कर रहे हैं. उनके गुरु गोलवलकर ने अपनी किताब ‘बंच ऑफ थॉट्स’ में लिखा था कि मुस्लिम, ईसाई और वामपंथी इस देश के एक, दो और तीन नंबर के दुश्मन हैं. 

गोलवलकर की किताब ‘वी आर आवर नेशनहुड डिफाइंड’ के मुताबिक, राष्ट्र पांच निर्विवादित तत्वों- देश, जाति, धर्म, संस्कृति और भाषा से बनता है. हालांकि, सावरकर की तरह उन्होंने भी संस्कृति को धर्म के साथ जोड़ा और इसे हिंदुत्व कहा. उनके अनुसार हिंदू एक महान तथा विशिष्ट राष्ट्र थे क्योंकि हिंदुओं की धरती हिंदुस्तान में रहने वाले केवल हिंदू यानी कि आर्य नस्ल के लोग थे. दूसरे, हिंदू एक ऐसी नस्ल से थे जिसके पास एक ऐसे समाज की विरासत थी जिसमें एक साझा रीति-रिवाज, साझा भाषा, गौरव और विनाश की साझा स्मृतियां थीं. संक्षेप में यह एक समान उद्भव स्रोत वाली ऐसी आबादी थी जिसकी एक साझा संस्कृति है. इस प्रकार की जाति राष्ट्र के लिए एक महत्वपूर्ण अवयव है. यहां तक कि अगर वे विदेशी मूल के भी थे तो भी वे निश्चित रूप से मातृ नस्ल में घुलमिल गए थे. उन्हें मूल राष्ट्रीय नस्ल के साथ न केवल इसके आर्थिक-सामाजिक जीवन से अपितु इसके धर्म, संस्कृति तथा भाषा के साथ एकरूप हो जाना चाहिए, नहीं तो ऐसी विदेशी नस्लें कुछ निश्चित परिस्थितियों के तहत एक राजनैतिक उद्देश्य से एक साझा राज्य की सदस्य ही मानी जा सकती हैं; लेकिन वे कभी भी राष्ट्र का अभिन्न हिस्सा नहीं बन सकतीं. यदि मातृ नस्ल अपने सदस्यों के विनाश या अपने अस्तित्व के सिद्धांतों को खो देने के कारण नष्ट हो जाती है तो स्वयं राष्ट्र भी नष्ट हो जाता है. नस्ल राष्ट्र का शरीर है और इसके पतन के साथ ही राष्ट्र का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है. इस प्रकार सावरकर और उन्हीं की तर्ज पर गोलवलकर नस्ली शुद्धता को हिंदू राष्ट्र निर्माण का आवश्यक साधन मानते थे. उनके राष्ट्रवाद में नस्लों के मिलन या अंतर्संबंधों के लिए कोई जगह नहीं थी. 

गोलवलकर के अनुसार, ‘हम वह हैं जो हमें हमारे महान धर्म ने बनाया है. हमारी नस्ली भावना हमारे धर्म की उपज है और हमारे लिए संस्कृति और कुछ नहीं बल्कि हमारे सर्वव्यापी धर्म का उत्पाद है, इसके शरीर का अंग जिसे इससे अलग नहीं किया जा सकता. एक राष्ट्र एक राष्ट्रीय धर्म और एक संस्कृति को धारण करता है तथा उसे कायम रखता है क्योंकि ये राष्ट्रीय विचार को संपूर्ण बनाने के लिए आवश्यक हैं.’  

गोलवलकर की हिंदू राष्ट्रीयता का सबसे महत्वपूर्ण अवयव नस्ल या नस्ली भावना थी, जिसे उन्होंने ‘हमारे धर्म की संतान’ के रूप में परिभाषित किया. उनके अनुसार, ‘हिंदुस्तान में एक प्राचीन हिंदू राष्ट्र है और इसे निश्चित तौर पर होना ही चाहिए और कुछ और नहीं- केवल एक हिंदू राष्ट्र. वे सभी लोग जो राष्ट्रीय यानी कि हिंदू नस्ल, धर्म, संस्कृति और भाषा को मानने वाले नहीं होते वे स्वाभाविक रूप से वास्तविक ‘राष्ट्रीय’ जीवन के खांचे से बाहर छूट जाते हैं… केवल वही राष्ट्रीय देशभक्त हैं जो अपने हृदय में हिंदू नस्ल और राष्ट्र के गौरवान्वीकरण की प्रेरणा के साथ कार्य को उद्धृत होते हैं और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हैं. बाकी सभी या तो गद्दार हैं और राष्ट्रीय हित के शत्रु हैं या अगर दयापूर्ण दृष्टि अपनाएं तो बौड़म हैं.’ 
 

‘वे सभी लोग जो राष्ट्रीय यानी कि हिंदू नस्ल, धर्म, संस्कृति और भाषा को मानने वाले नहीं होते वे स्वाभाविक रूप से वास्तविक ‘राष्ट्रीय’ जीवन के खांचे से बाहर छूट जाते हैं… केवल वही राष्ट्रीय देशभक्त हैं जो अपने हृदय में हिंदू नस्ल और राष्ट्र के गौरवान्वीकरण की प्रेरणा के साथ कार्य को उद्धृत होते हैं और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हैं. बाकी सभी या तो गद्दार हैं और राष्ट्रीय हित के शत्रु हैं या अगर दयापूर्ण दृष्टि अपनाएं तो बौड़म हैं’
 

बेशक गोलवलकर की यह परिभाषा पूरी तरह से हिंदू राष्ट्र के सावरकर माडल पर आधारित है और मुस्लिमों, ईसाइयों, या अन्य गैर हिंदू अल्पसंख्यकों के हिंदू राष्ट्र का हिस्सा होने के दावे को पूरी तरह खारिज करती है. गोलवलकर के अनुसार, ‘वे सभी जो इस विचार की परिधि से बाहर हैं राष्ट्रीय जीवन में कोई स्थान नहीं रख सकते. वे राष्ट्र का अंग केवल तभी बन सकते हैं जब अपने विभेदों को पूरी तरह समाप्त कर दें, राष्ट्र का धर्म, इसकी भाषा व संस्कृति अपना लें और खुद को पूरी तरह राष्ट्रीय नस्ल में समाहित कर दें. जब तक वे अपने नस्ली, धार्मिक तथा सांस्कृतिक अंतर को बनाए रखते हैं वे केवल विदेशी हो सकते हैं, जो राष्ट्र के प्रति या तो मित्रवत हो सकता है या शत्रुवत. 

पूरी तरह से उनका हिंदूकरण या फिर नस्ली सफाया, भारत में अल्पसंख्यकों की समस्या से निपटने के लिए गोलवलकर ने यही मंत्र सुझाया था. 1925 में अपने निर्माण के बाद से ही आरएसएस ने कभी इसे अनदेखा नहीं किया. उनके अनुसार, मुस्लिमों और ईसाइयों को, जो कि बाहरी हैं, निश्चित तौर आबादी के प्रमुख जन, राष्ट्रीय नस्ल के साथ खुद को पूरी तरह समाहित कर देना चाहिए. उन्हें निश्चित तौर पर राष्ट्रीय नस्ल की संस्कृति और भाषा को अपना लेना चाहिए और अपने विदेशी मूल को भुलाकर अपने अलग अस्तित्व की संपूर्ण चेतना को त्याग देना चाहिए. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें राष्ट्र के रहमो-करम पर राष्ट्र की सभी संहिताओं और परंपराओं से बंधकर केवल एक बाहरी की तरह रहना होगा, जिनको किसी अधिकार या सुविधा की तो छोड़िए, किसी विशेष संरक्षण का भी हक नहीं होगा. विदेशी तत्वों के लिये बस दो ही रास्ते हैं, या तो वे राष्ट्रीय नस्ल में पूरी तरह समाहित हो जाएं और यहां की संस्कृति को पूरी तरह अपना लें या फिर जब तक राष्ट्रीय नस्ल अनुमति दे वे यहां उसकी दया पर रहें और राष्ट्रीय नस्ल की इच्छा पर यह देश छोड़कर चले जाएं. 

इन ‘राष्ट्रवादियों’ ने आजादी आंदोलन में अंग्रेजों का साथ दिया और भारत को हिंदू पाकिस्तान बनाने के लिए प्रतिबद्ध रहे. आज वे जेएनयू के छात्रसंघ अध्यक्ष और अन्य छात्रों के लिए सख्त सजा की बात करते हैं, लेकिन यही ‘राष्ट्रवादी’ उस समय कुंभकरण मोड में चले जाते हैं, जब देश के दूसरे हिस्से में हिंदुत्ववादी कैडर 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ‘वध’ का उत्सव मनाता है. बेशक, संघ और भाजपा के पाखंड को कोई भी मात नहीं दे सकता.

Courtesy: Tehelkahindi.com

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर हैं)
 

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Just listen to Kanhaiya! https://sabrangindia.in/just-listen-kanhaiya/ Mon, 07 Mar 2016 05:14:10 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/03/07/just-listen-kanhaiya/   The media calls him “idealistic” because he believes that the promise of the Constitution, not only as it was drafted but even as it was envisoned by Babasaheb Ambedkar, can actually be the basis of concrete transformative action to change India’s deeply divided and unequal society. Like most young activists who share this ideal, […]

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The media calls him “idealistic” because he believes that the promise of the Constitution, not only as it was drafted but even as it was envisoned by Babasaheb Ambedkar, can actually be the basis of concrete transformative action to change India’s deeply divided and unequal society. Like most young activists who share this ideal, Kanhaiya recognises that it is a long and difficult struggle but where he stands out among them is that he has got right to the heart of the problem as to how this change can be brought about democratically in contemporary India.

Kanhaiya identifies education as the key to realising the constitutional goals of equality and social justice. But this is not just some vague do-gooder conception of how everyone should get the opportunity to be in school but a clear direction towards an education system which in its very establishment would challenge all forms of discrimination and inequality. Contrary to current “commonsense” and preference, Kanhaiya argues for a system of free and universal common schooling for all children in institutions where the son or daughter of the President studies in the same classroom together with the children of farmers, workers, the middle-class and the well-to-do. Caste, religious and gender oppression can be overcome only by this constant interaction at study and play among all children and by the state provision of a system of genuinely equal opportunity so that no child is systemically disadvantaged by the “facts of his birth” as Rohith Vemula so poignantly phrased it in his `suicide’ note.

Education cannot be privatised and commercialised, sold to the highest bidder and made available only to those with deep pockets and a sense of entitlement. Thus the importance of demanding adequate scholarships for all researchers at central and state universities, which is the goal of the “Occupy UGC!” struggle that he led as President of the Jawaharlal Nehru University Students Union (JNUSU). Thus the importance of institutions like the Jawaharlal Nehru University (JNU) which Kanhaiya repeatedly emphasises allows students like him from a household run on his mother’s income of three thousand rupees a month as an anganwadi-worker to be able to pursue his doctoral studies.

It is significant that Kanhaiya rejects private high-fee charging universities and professional institutions not only because they restrict access to those who can pay, but also because they put a market value on education reducing it to a system for the production of degrees and “skills” rather than its truly democratic role in promoting critical and independent thought. Thus Rohith is Kanhaiya’s icon and his struggle is a continuation of Rohith’s struggle. At the same time he can understand the frustration and injustice that limited the choices of the constable in Tihar jail who too had wanted to study further but was compelled by circumstances to forget his dreams and take up a job.

Kanhaiya sees freedom of speech, the inalienable right to think independently, as a necessary part of the struggle to protect both the autonomy of the universities and to enlarge the democratic space for dissent in wider society. The right to democratic dissent distinguishes modern democratic constitutional governance from all forms of authoritarian and even fascist governments. The political project of replacing this constitutionalism with what Kanhaiya pithily called a “patented” form of RSS/Sanghi “nationalism” places the State/government/ ruling party or “office” above the people who constitute the nation.

Kanhaiya’s view, as he himself recognises, belongs to the tradition of the freedom struggle, of the national movement against British imperialism with its great icons who contributed to the idea of a modern, egalitarian and democratic India like Jyotiba and Savitri Bai Phule, Rabindranath Tagore, Bhagat Singh, Gandhi, Periyar, Babasaheb Ambedkar, Nehru and Subhash Bose among others.

Delivering the Convocation Address at the Allahabad University in 1946, Jawaharlal Nehru had said: “A University stands for humanism, for tolerance, for reason, for progress, for the adventure of ideas and for the search for truth. . . . If the universities discharge their duty adequately, then, it is well with the nation and the people.” It seems fitting today, when democratic India is faced with perhaps its greatest threat, that a young man heading the students union in the university named after Nehru should be the one to articulate that vision with such force and clarity.

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My Life is Under Threat: Kanhaiya Kumar to NHRC https://sabrangindia.in/my-life-under-threat-kanhaiya-kumar-nhrc/ Tue, 01 Mar 2016 11:56:25 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/03/01/my-life-under-threat-kanhaiya-kumar-nhrc/ The president of the Jawaharlal Nehru University Students Union (JNUSU) Kanhaiya Kumar has written a four-page letter to the National Human Rights Commission (NHRC). The letter carries serious charges against the police that is required, under law, to follow due process. He has stated that the Delhi Police arrested him on February 12, 2016 from […]

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The president of the Jawaharlal Nehru University Students Union (JNUSU) Kanhaiya Kumar has written a four-page letter to the National Human Rights Commission (NHRC). The letter carries serious charges against the police that is required, under law, to follow due process. He has stated that the Delhi Police arrested him on February 12, 2016 from his hostel at the Jawaharlal Nehru University (JNU) without any warrant or a notice. In the letter, Kanhaiya also claims to have been under extreme mental pressure under detention even though he was not physically manhandled by the police.

Kanhaiya had been beaten brutally by men in black coats claiming to be lawyers on February 17, 2016 and had detailed his ordeal before the Court Commissioners appointed by the Supreme Court of India.


 

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