SIMI | SabrangIndia News Related to Human Rights Mon, 08 Mar 2021 06:40:00 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png SIMI | SabrangIndia 32 32 Surat Court acquits 122 alleged SIMI members after 20 years!  https://sabrangindia.in/surat-court-acquits-122-alleged-simi-members-after-20-years/ Mon, 08 Mar 2021 06:40:00 +0000 http://localhost/sabrangv4/2021/03/08/surat-court-acquits-122-alleged-simi-members-after-20-years/ They were arrested in December 2001 and booked under UAPA, for allegedly being part of Students’ Islamic Movement of India

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Simi Member

The district court of Chief Judicial Magistrate, AN Dave, acquitted 122 persons arrested for being members of the banned outfit Students’ Islamic Movement of India (SIMI), giving them the benefit of doubt, as per some media reports.

LiveLaw reported that in its order, the court said that the prosecution had failed to produce “cogent, reliable and satisfactory” evidence to establish that the accused persons belonged to the SIMI and had gathered to promote the activities of the banned outfit.

As many as 127 persons were arrested on December 28, 2001, under various sections of the UAPA for allegedly being members of the banned outfit SIMI and organising a meeting at a hall in the city’s Sagrampura to promote and expand the organisation’s activities, according to The Wire. While the court acquitted 122 persons, 5 persons have died over the span of 20 years.

They had reportedly contended that they did not belong to the SIMI and had gathered there to participate in a seminar organised under the banner of All India Minority Education Board. The accused belonged to different parts of Gujarat as well as from Tamil Nadu, West Bengal, Maharashtra, Madhya Pradesh, Karnataka, Rajasthan, Uttar Pradesh and Bihar.

SIMI, which was founded in 1977 in Aligarh, was banned by the Indian Government in 2001, shortly after the 9/11 attacks in the United States of America. The Government stated that the ban is justified as SIMI supports claims for the secession of a part of the Indian territory from the Union and that it works for an “Islamic International Order”.

In 2019, the Government had extended the ban for another five years, on grounds that it has been “indulging in activities, which are prejudicial to the security of the country and have the potential of disturbing peace and communal harmony and disrupting the secular fabric of the country.”  

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Kerala High Court acquits 5 convicted under the SIMI camp case, 2006

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Why be shy about SIMI?

The Politics of a Ban

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Kerala High Court acquits 5 convicted under the SIMI camp case, 2006 https://sabrangindia.in/kerala-high-court-acquits-5-convicted-under-simi-camp-case-2006/ Mon, 15 Apr 2019 05:58:14 +0000 http://localhost/sabrangv4/2019/04/15/kerala-high-court-acquits-5-convicted-under-simi-camp-case-2006/ Five persons in Kerala were arrested and convicted of holding a meeting of SIMI ( Students Islamic Movement of India) a banned organisation in 2006. The special court for the National Investigation Agency had sentenced them to RI (rigorous imprisonment. ) Image from keralakaumudi.com And now after 12 years, the High Court of Kerala has […]

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Five persons in Kerala were arrested and convicted of holding a meeting of SIMI ( Students Islamic Movement of India) a banned organisation in 2006. The special court for the National Investigation Agency had sentenced them to RI (rigorous imprisonment. )


Image from keralakaumudi.com

And now after 12 years, the High Court of Kerala has acquitted all the five persons citing lack of evidence to prove the conspiracy charges levelled against them.

The five persons acquitted are Shaduly, alias Haris Abdul Karim, a native of Erattupetta, Abdul Rasik of Erattupetta, Anzar Nadvi of Aluva, Nizamuddin of Panayikulam and Shammas of Erattupetta.

Of these 5 persons Shaduly and Rasik were sentenced to 14 years of RI while the other for 12 years and convicted them under 124 (a) sedition and under the Unlawful activities (Preventions) Act. The High Court had however allowed the 5 accused to challenge the verdict of the NIA special court. And their case had begun on March 18, 2019 which was covered by TwoCircles: Trial begins in 2006 Independence Day seminar case in Kerala High Court

And after hearings and failure of the prosecution to produce evidence that the 5 persons mentioned above indulged in seditious speeches and distribution of anti- India materials inciting hatred;  the bench comprising Justice A.M. Shaffique and Justice Ashok Menon has acquitted the 5 on 12th April, 2019 , Friday.

The bench also observed that the NIA special court has committed a serious error in convicting the accused.

No compensation has been announced for the 5 persons who were falsely convicted.

Courtesy: Two Circle
 

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राजीव यादव –सिमी के पहले हिन्दू कार्यकर्ता! https://sabrangindia.in/raajaiva-yaadava-saimai-kae-pahalae-hainadauu-kaarayakarataa/ Fri, 11 Nov 2016 05:51:18 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/11/11/raajaiva-yaadava-saimai-kae-pahalae-hainadauu-kaarayakarataa/ राजीव यादव यूपी में सामाजिक व राजनीतिक संगठन ‘रिहाई मंच’ के सक्रिय नेता हैं. मानव अधिकारों के उल्लंघन के मुद्दों को पूरी सक्रियता के साथ उठाते रहे हैं. भोपाल में कथित सिमी कार्यकर्ताओं के कथित एनकाउंटर पर भी इन्होंने ज़ोर-शोर से सवाल उठाएं और विरोध में लखनऊ में प्रदर्शन का ऐलान किया. अभी प्रदर्शन की […]

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राजीव यादव यूपी में सामाजिक व राजनीतिक संगठन ‘रिहाई मंच’ के सक्रिय नेता हैं. मानव अधिकारों के उल्लंघन के मुद्दों को पूरी सक्रियता के साथ उठाते रहे हैं. भोपाल में कथित सिमी कार्यकर्ताओं के कथित एनकाउंटर पर भी इन्होंने ज़ोर-शोर से सवाल उठाएं और विरोध में लखनऊ में प्रदर्शन का ऐलान किया. अभी प्रदर्शन की तैयारी ही कर रहे थे कि पुलिस ने इन्हें पकड़ लिया और मारते-पीटते पुलिस चौकी ले गई. राजीव यादव की मानें तो पुलिस ने सड़क पर तो पीटा ही, पुलिस चौकी के अंदर भी ढ़ाई घंटे तक सिमी आतंकी, मुसलमान, कटुआ और पाकिस्तानी एजेंट बताकर उन्हें पीटा गया और लगातार फ़र्ज़ी एनकाउंटर में मारने की धमकी देते रहें.

SIMI Hindu
Rajeev Yadav. Picture credit: TwoCirclesTV/YouTube 

TwoCircles.net ने राजीव यादव से खुलकर बातचीत की. इस बातचीत में राजीव यादव बताते हैं कि –‘मेरे पिटाई की घटना के दूसरे ही दिन उत्तर प्रदेश के प्रमुख गृह सचिव देबाशीष पण्डा एक शासनादेश जारी कर बताया कि भोपाल ‘एनकाउंटर’ के मुद्दे पर पूरे यूपी में कोई धरना-प्रदर्शन नहीं कर सकता. यह शासनादेश लोकतंत्र के विरोध था. जब रिहाई मंच ने इसका विरोध किया तो तीसरे दिन मीडिया में ख़बर दी गई कि यूपी के क़रीब 300 सिमी सदस्यों में से 40 अभी भी सक्रिय हैं. इस ख़बर में स्पष्ट तौर पर लिखा गया कि सिमी सदस्यों की निगरानी कर रही एटीएस की पड़ताल में यह खुलासा हुआ है कि अब भी 40 संदिग्ध सोशल मीडिया व मीटिंग के ज़रिए लोगों को संगठन से जोड़ने का काम कर रहे हैं. भोपाल एन्काउंटर कांड के बाद इनकी सक्रियता और बढ़ी है.’

राजीव यादव कहते हैं कि –‘मतलब जो सोशल मीडिया पर मेरे पीटे जाने की वीडियो शेयर व वायरल कर रहे थे. जो मेरे पक्ष में लिख रहे थे. यूपी पुलिस उन्हें सिमी कार्यकर्ता मान रही है. ये पुलिस का धमकी देने का अंदाज़ था कि लोग मेरे ऊपर हुए ज़ुल्म पर न लिखें. वो इनके विरोध में उठने वाले इन आवाज़ों को दबाना चाहते थे. गंभीर बात यह है कि इनके द्वारा यह बात भी प्रचारित की गई कि जो लड़का सिमी के समर्थन के आरोप में पकड़ा गया है, वो मुसलमान नहीं, हिन्दू है.’

TwoCircles.net ने राजीव यादव से लंबी बातचीत की. इस बातचीत का एक वीडियो क्लिप आप यहां देख सकते हैं, जिसमें वो अपने पीटने की दास्तान सुना रहे हैं.

बताते चलें कि 30 साल के राजीव यादव उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में जन्में हैं. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की है. पढ़ाई के दौरान वो ऑल इंडिया स्टूडेन्ट एसोसियशन (आईसा) के सक्रिय नेता रहें. उनकी सक्रियता को देखते हुए उन्हें इलाहाबाद आईसा का सचिव भी बनाया गया. इसके बाद राजीव दिल्ली इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्यूनिकेशन (आईआईएमसी) से पत्रकारिता की पढ़ाई की. इस दौरान वो ‘रिहाई आन्दोलन’ से जुड़ें.

पत्रकारिता की पढ़ाई मुकम्मल होने के बाद कुछ दिनों तक पत्रकारिता में सक्रिय रहें. उसके बाद उन्होंने डॉक्यूमेंट्री फ़िल्मों के बनाने की ओर ध्यान दिया. ‘सैफ़रन वार: ए वार अगेंस्ट टेरर’ और ‘पार्टिशन रिवीजीटेड’ नाम की डॉक्यूमेंट्री बनाई. सैफ़रन वार यूपी की सियासत में काफी चर्चित डॉक्यूमेंट्री रहा है. खुद गोरखपुर सांसद योगी आदित्यनाथ ने इस डॉक्यूमेंट्री के विरोध में राजीव यादव को इस्लामिक फंडेड व नक्सलियों का समर्थक बताया. बावजूद इसके राजीव यादव पूरी बहादुरी के साथ पूर्वांचल में साम्प्रदायिकता के सवाल को उठाते रहें. मुज़फ़्फ़रनगर दंगे के बाद संगीत सोम जैसे नेताओं के ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज करवाया. राजीव यादव ने 2015 में मानवाधिकार कार्यकर्ता शाहनवाज़ आलम के साथ मिलकर ‘ऑपरेशन अक्षरधाम’ नामक पुस्तक भी लिखा.

यहां यह भी स्पष्ट रहे कि 2007 में शुरू हुए ‘रिहाई आन्दोलन’ 2012 में ‘रिहाई मंच’ में तब्दील हो गया और राजीव यादव इसके महासचिव बनाए गएं. राजीव यादव ने हाशिमपुरा के मामले पर एक सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें इन पर दंगा भड़काने की कोशिश का आरोप लगाकर यूपी पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज कराया. एक रिसर्च के दौरान राजीव गुजरात के अहमदाबाद में भी डिटेन किए गएं, लेकिन पूछताछ के बाद इन्हें छोड़ दिया गया. इस तरह से राजीव यादव लगातार सुरक्षा एजेंसियों के निशाने पर रहे हैं.
 


(This article was first published on TwoCircles.net.)

Also read: भोपाल मुठभेड़ कांड के स्क्रिप्ट राइटरों – आपकी कहानी में कई बड़ी खामियां हैं
Also read: ‘Victory of secular forces’

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क्या शिवराज सरकार ने भोपाल मुठभेड़ कांड में सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की ? https://sabrangindia.in/kayaa-saivaraaja-sarakaara-nae-bhaopaala-mauthabhaeda-kaanda-maen-sauparaima-kaorata-kai/ Mon, 07 Nov 2016 10:32:53 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/11/07/kayaa-saivaraaja-sarakaara-nae-bhaopaala-mauthabhaeda-kaanda-maen-sauparaima-kaorata-kai/ भोपाल में आतंकवादी गतिविध‌ियों के आरोप में जेल में बंद आठ विचाराधीन कैदियों को कथ‌ित मुठभेड़ में मार गिराने की घटना इस तरह की फर्जी मुठभेड़ों के लंबे इतिहास का एक और नया और ताजा उदाहरण है। यह घटना इसल‌िए भी ज्यादा परेशान करती है क‌ि राज्य सरकार और इसके मुख्य कर्ता-धर्ताओं की दिलचस्पी ‌इस […]

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भोपाल में आतंकवादी गतिविध‌ियों के आरोप में जेल में बंद आठ विचाराधीन कैदियों को कथ‌ित मुठभेड़ में मार गिराने की घटना इस तरह की फर्जी मुठभेड़ों के लंबे इतिहास का एक और नया और ताजा उदाहरण है। यह घटना इसल‌िए भी ज्यादा परेशान करती है क‌ि राज्य सरकार और इसके मुख्य कर्ता-धर्ताओं की दिलचस्पी ‌इस बात का दावा करने में नहीं है कि यह मुठभेड़ असली है। बल्क‌ि वे इस बात पर गर्व करने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं उनकी पुलिस ने सही काम किया है। भले ही इसके लिए कानून और गवर्नेंस की कितनी भी अनदेखी क्यों न की गई हो।


 
इस कथित मुठभेड़ के बारे में काफी कुछ कहा जा चुका है। इसके वीडियो और दूसरे सबूत पब्लिक डोमेन में आ चुके हैं और इसके बारे में ज्यादा टिप्पणी की जरूरत नहीं है। हालांक‌ि इस घटना के बारे में राज्य सरकार के रवैये के बारे में काफी कुछ कहने की जरूरत है। मुठभेड़ के बारे में पुलिस जो कह रही है उस गंभीर सवाल उठ रहे थे। शक को पुख्ता करने के पर्याप्त सबूत थे। लेकिन राज्य सरकार ने ऐलान कर दिया कि मुठभेड़ की जांच की जरूरत नहीं है। पुलिस ने बहुत अच्छा काम किया है और आतंकी गत‌िव‌िध‌ियों के आरोपियों ( या आरोपी, जैसा क‌ि राज्य सरकार और मीडिया के एक बड़े वर्ग ने पहले ही उन्हें यह नाम दे दिया था।) को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए। जेल में उन्हें रख कर चिकन बिरयानी ही तो ख‌िलाई जा रही थी। राज्य सरकार और मुख्यमंत्री इस मामले में राजनीतिक जिम्मेदारी दिखाने के बजाय राजनीतिक लंपटता दिखा रहे हैं। दुर्भाग्य से इस तरह की घटनाएं सामान्य होती जा रही हैं।
 
पिछले सप्ताह मध्य प्रदेश सरकार ने जो किया, वह मौकापरस्ती से भी आगे की चीज है। पहले तो उसने इस घटना की जांच से ही इनकार कर दिया। उसने घटना की सीआईडी जांच के तुरंत आदेश नहीं दिए। साथ ही कथित मुठभेड़ को अंजाम देने वालों पुलिस अधिकारियों को तुरंत इनाम देने का भी ऐलान कर दिया।
 
ऐसा करना सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश का साफ उल्लंघन था, जिनमें इस तरह की मुठभेड़ों में उठाए जाने वाले जरूरी कदमों का जिक्र है। पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी मुठभेड़ों के मामले में ईनाम-इकराम घोषित करने के संबंध में विस्तृत दिशा निर्देश दिए थे। इनमें साफ कहा गया था ऐसी मुठभेड़ों के संबंध में शासन को क्या करना चाहिए।

कोर्ट के मुताबिक इन कदमों को कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। साथ ही शासन को यह देखना होगा कि पुलिस मुठभेड़ों में इस तरह की हर मौत और गंभीर तौर पर घायल होने के मामले में भारत के संविधान की धारा 141 का पालन किया गया है या नहीं। पीयूसीएल की याचिका पर इस तरह की मुठभेड़ों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए थे। कुछ मुख्य निर्देश इस तरह हैं-

  1. अगर आतंकवाद या इससे जुड़ी घटनाओं के बारे में कोई गुप्त सूचना या जानकारी मिलती है तो उसे पुलिस डायरी में दर्ज किया जाना चाहिए ताकि मुठभेड़ के बारे में सच्चाई या सूचना के दावे की पुष्टि की जा सके। अचानक हुई मुठभेड़ के मामले के बारे में यह जानकारी नहीं मिल पाती है कि इस निर्देश का पालन हुआ है नहीं।  
  2.  इस तरह की हत्याएं, जो ‘मुठभेड़’ करार दी जाती हैं, उनके बारे में सुप्रीम कोर्ट का निर्देश साफ है। इसमें कहा गया है कि अगर पुलिस ने इन मुठभेड़ों में पिस्तौल का इस्तेमाल किया है और इसकी वजह से मौतें हुई है तो तुरंत एक एफआईआर दर्ज हो और इसे तुरंत धारा 157 के तहत अदालत को भेजी जाए। राज्य की सीआईडी इस एफआईआर की जांच करे। या इसकी जांच दूसरे पुलिस थाने के अधिकारी करें। साथ ही वह मुठभेड़ में शामिल पुलिस दल के सदस्यों से भी पूछताछ करे और हालातों की जांच करे। लेकिन भोपाल मुठभेड़ कांड में इस निर्देश का बिल्कुल पालन नहीं हुआ।
  3. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक जांच के लिए मुठभेड़ में इस्तेमाल हथियार जमा करने जरूरी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, मुठभेड़ में हिस्सा लेने वाले पुलिस अफसरों को अपने हथियार जमा करना होगा ताकि उनका बैलेस्टिक एनालिसिस हो सके। संविधान के अनुच्छेद 20 के अधीन मिले अधिकारों के तहत इन हथियारों और पुलिस जांच टीम की ओर से मांगी गई 31 चीजों को भी सौंपना जरूरी होगा। चूंकि भोपाल मुठभेड़ कांड में जांच की कोई घोषणा नहीं हुई थी इसलिए इन चीजों को भी जमा करने की कोई जरूरत नहीं समझी गई।
  4. मुठभेड़ के तुरंत बाद बहादुरी पुरस्कार या आउट ऑफ टर्न प्रमोशन का ऐलान नहीं किया जाएगा। मुठभेड़ में शामिल पुलिस कर्मियों या अफसरों के लिए इस तरह का कोई भी पुरस्कार या प्रमोशन तभी घोषित किया जाए, जब उनकी बेदाग छवि पूरी तरह स्थापित हो जाए। लेकिन भोपाल कांड में बगैर इस प्रक्रिया के पहले ही पुलिस दल में शामिल अफसरों और कर्मियों के लिए पुरस्कार की घोषणा हो चुकी है। 
  5. मुठभेड़ में मारे गए लोगों की लाशों के पोस्मार्टम की वीडियोग्राफी जरूरी होगी। इसे दो डॉक्टर करेंगे। भोपाल मुठभेड़ के मामले में ऐसा कुछ हुआ है, इसकी जानकारी नहीं है। 
  6. ऐसे मुठभेड़ों की मजिस्ट्रेटी जांच जरूरी है और जांच की निष्पक्षता पर  अगर कोई संदेह है तो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को शामिल करना होगा। लेकिन भोपाल में हुई कथित मुठभेड़ में न्यायिक जांच की घोषणा में काफी देर हुई। हालांकि न्यायिक जांच में यह स्थापित नहीं हो पाया है कि जांच के दौरान सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन किया गया है नहीं।

 
सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल साफ कर दिया है कि ये निर्देश बाध्यकारी हैं और उन्हें हर राज्य को लागू करना होगा। मगर भोपाल कांड में इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन किया गया।

निर्देश में साफ है कि अगर जांच टाली गई या मुठभेड़ में शामिल पुलिस वालों के लिए तुरंत पुरस्कार की घोषणा की गई तो यह कोर्ट की अवमानना होगी।

हालांकि इस तरह के निर्देशों का उल्लंघन कोर्ट की अवमानना होगी या नहीं है, यह सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के इन निर्देशों को देखें तो पता चलता है कि ऐसे मामलों में राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्रियों को इस आदेश के उल्लंघन की थोड़ी सी भी इजाजत नहीं है। लेकिन भोपाल के कथित मुठभेड़ कांड में जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना हुई उससे साफ है कि शिवराज सरकार ने भारतीय संविधान की अवहेलना की।

सरीम नवेद वकील हैं और दिल्ली में रहते हैं।
 

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Bhopal Encounter: Court had found Evidence ‘not believable’ in a Case related to 3 SIMI Men https://sabrangindia.in/bhopal-encounter-court-had-found-evidence-not-believable-case-related-3-simi-men/ Sat, 05 Nov 2016 08:31:14 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/11/05/bhopal-encounter-court-had-found-evidence-not-believable-case-related-3-simi-men/ More than a year before the killing of eight SIMI activists in a purported encounter following a jailbreak in Bhopal, a Khandwa court had acquitted one of the undertrials in a 2011 case, and had held evidence in the 2011 case against three of them “not believable”, reported The Indian Express. Image credit: Patrika.com In […]

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More than a year before the killing of eight SIMI activists in a purported encounter following a jailbreak in Bhopal, a Khandwa court had acquitted one of the undertrials in a 2011 case, and had held evidence in the 2011 case against three of them “not believable”, reported The Indian Express.

Khandwa court SIMI
Image credit: Patrika.com

In its judgement, the court had come down heavily upon Madhya Pradesh police and had acquitted Akeel Khilji, on September 30, 2015, who was booked under the stringent Unlawful Activities (Prevention) Act (UAPA), while the other two – Amzad Ramzan Khan and Mohammed Saliq were declared “proclaimed offenders” by then, according to the report. The court had reportedly questioned the jurisdiction of the investigation officer to carry out the probe under UAPA, and had slammed police for not sending key pieces of evidence for forensic analysis.
 
The court had also acquitted Abdullah – brother of Zakir Hussain who was also killed in Monday’s encounter, and Khilji’s son Mohammad Jaleel in the same case, who were booked under various sections of UAPA and IPC sections 153(A), pertaining to “promoting enmity between two groups”; 153(B) relating to imputations and assertions deemed harmful to national integration; and, 124 (A) on sedition.
 
The police chargesheet reportedly claimed that Khilji along with other few people had assembled at Khilji’s house to plan execution of a big attack in 2011. Police had purportedly raided his house to confiscate “SIMI literature” and CDs that were termed as “provocative”.
 
After a four-year trial, the Khandwa court had acquitted all the accused charged under the UAPA.
 
On purported SIMI literature and “provocative” CDs submitted by police, the court had ruled, “The evidence produced before the court is not clear whether it supports or contradicts the message and picture in the CD. There is no evidence to establish what was the message in the CD. In case of a book, especially objectionable text or conversation, if the entire context is laid out along with the evidence, then it cannot be concluded these are objectionable or provocative towards society, religion or nation. They might be provocative in nature, but the prosecution has not presented any clear evidence in this regard.”
 
The court had also observed that the investigating officer did not have sufficient powers to probe the case, according to the Express report.

The last rites of four of the eight SIMI activists killed this week were conducted in Khilji’s house in Khandwa on Thursday. Khilji had been awaiting trial in Bhopal’s Central Jail after being charged in at least three cases — two under the UAPA and another “for promoting enmity”.
 
For full story by The Indian Express, click here.
 
 

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In failing to follow SC Guidelines on Encounters, has MP Govt committed Contempt of Court? https://sabrangindia.in/failing-follow-sc-guidelines-encounters-has-mp-govt-committed-contempt-court/ Sat, 05 Nov 2016 05:17:09 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/11/05/failing-follow-sc-guidelines-encounters-has-mp-govt-committed-contempt-court/ The recent purported encounter in Bhopal of eight men who were undergoing trial in cases related to accusations of participation in terrorist activities is not merely one more encounter in the long history of such dubious encounters. This encounter is made more disturbing by the fact that the State government and its chief functionaries did […]

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The recent purported encounter in Bhopal of eight men who were undergoing trial in cases related to accusations of participation in terrorist activities is not merely one more encounter in the long history of such dubious encounters. This encounter is made more disturbing by the fact that the State government and its chief functionaries did not really seem interested in claiming that the encounter was genuine but seemed more interested in boasting that their police had carried out an act of justice, the process of law and governance be damned.

Bhopal encounter SIMI undertrial
Image credit: Hindustan Times

Much has been said about this alleged encounter. The videos and witness testimonies are in the public domain and need no further comment. What needs further and continuing commentary is, however, the subsequent attitude of the State government. The State government, despite evidence that raised serious doubts about the police version, chose to declare that the encounter needed no inquiry, that the police had done an absolutely fine job and further that terror accused (or terrorists, as the State government and wide swathes of the media have christened them) need not be given much heed to as they while away their time in jail, eating chicken biryani. At a crucial stage of events, the State government and the Chief Minister chose political pandering over political responsibility. This is, unfortunately, a state of events that has become all too common.

In doing what they have done over the past week, the Madhya Pradesh government may, however, have committed an act much more serious than displaying crass opportunism. In refusing to (initially) order an inquiry, in not ordering an immediate investigation with the State CID and also in announcing a reward for the police personnel involved in the alleged encounter, the State Government has deliberately refused to follow the directions of the Supreme Court regarding encounter cases and the necessary steps that have to be taken thereto. This two-year old judgment of the Supreme Court was pronounced in a petition by the People’s Union for Civil Liberties where the Court has laid down, in detail, the steps that must be taken in case of an alleged. Encounter. The Judgement can be read here.

These steps are, as per the Court, are to be strictly followed and "must be strictly observed in all cases of death and grievous injury in police encounters by treating them as law declared under Article 141 of the Constitution of India". These guidelines are many, but the main guidelines are as follows:

1. If there is a secret tip-off/information, the same must be reduced to writing in the police diary so that if there is an eventual encounter, the truth of the police claim of a tip-off can be judged. In the instant case, there is no information as to whether this was followed.

2. If the there is a killing pursuant to an ‘encounter’, the Supreme Court says where “the firearm is used by the police party and as a result of that, death occurs, an FIR to that effect shall be registered and the same shall be forwarded to the court under Section 157 of the Code without any delay." This FIR shall then be investigated by the state CID or a team from another police station by a police officer to the head of the police party who headed the encounter. This has not been done.

3. Weapons used in the encounter have to be surrendered for investigation. The Court states that "The police officer(s) concerned must surrender his/her weapons for forensic and ballistic analysis, including any other 31 material, as required by the investigating team, subject to the rights under Article 20 of the Constitution." Since no investigation is happening, this has clearly not been done.

4. "No out-of-turn promotion or instant gallantry rewards shall be bestowed on the concerned officers soon after the occurrence. It must be ensured at all costs that such rewards are given/recommended only when the gallantry of the concerned officers is established beyond doubt." Rewards have already been announced for members of the police party.

5. Post mortem has to be videographed and carried out by two doctors. No information if the same has been done.

6. A magisterial inquiry must be conducted and the NHRC must be involved if there are doubts about the impartiality of the investigation. A judicial inquiry has been ordered after much delay but a judicial inquiry finds no mention in the Supreme Court’s formulation of response to an encounter case.

The Supreme Court had made it very clear that these guidelines were binding and that they were to be implemented by all the states. Flagrant disregard of the Court’s order, specifically the act of avoiding investigation and announcing rewards for the police personnel involved in the encounter, could amount to contempt of court. Whether or not it amounts to contempt of court is, of course, a matter best left to the Supreme Court itself but it is obvious that the State Government, its minsters and the chief ministers could not be bothered to even show a modicum of respect to the Supreme Court’s judgment. This is a disturbing development and all the more necessary to be highlighted frequently and clearly, to show the government’s disregard for the Constitution of India.

 


 *Afternoon news on Friday said that a judicial probe had been ordered.

(Sarim Naved is a Delhi-based lawyer.)

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भोपाल मुठभेड़ कांड के स्क्रिप्ट राइटरों – आपकी कहानी में कई बड़ी खामियां हैं https://sabrangindia.in/bhaopaala-mauthabhaeda-kaanda-kae-sakaraipata-raaitaraon-apakai-kahaanai-maen-kai-badai/ Fri, 04 Nov 2016 10:32:53 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/11/04/bhaopaala-mauthabhaeda-kaanda-kae-sakaraipata-raaitaraon-apakai-kahaanai-maen-kai-badai/ जैसे-जैसे इस कहानी के ब्योरे आ रहे हैं, एक फिल्मकार होने के नेता मैं पुलिस वालों, मुख्यमंत्री और टीवी पर आने वाले बीजेपी के प्रवक्ताओं की ओर से पेश की जा रही इसकी स्क्रिप्ट, स्क्रीन प्ले और डायलॉग का विश्लेषण करने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूं। सबसे पहले तो मैं उस बुनियाद […]

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जैसे-जैसे इस कहानी के ब्योरे आ रहे हैं, एक फिल्मकार होने के नेता मैं पुलिस वालों, मुख्यमंत्री और टीवी पर आने वाले बीजेपी के प्रवक्ताओं की ओर से पेश की जा रही इसकी स्क्रिप्ट, स्क्रीन प्ले और डायलॉग का विश्लेषण करने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूं।

सबसे पहले तो मैं उस बुनियाद के बारे में बता दूं, जिस पर सिनेमा टिका होता है। और वह यह  कि सिनेमा में आप खुद को किसी अविश्वसनीय चीज के समर्पित कर देते हैं। मसलन, दर्शकों को यह मान लेना पड़ता है कि फिल्म में अभिनय करने वाला कोई सुपरस्टार एक साथ पचास लोगों को पीट सकता है । या फिर वह अपनी ओर चलाई गई गोली को दांतों से पकड़ सकता है। वह अगर अपने चेहरे पर मूंछें लगा ले तो उसकी मां भी उसे पहचान नहीं पाएगी। कहने का मतलब आप इन अविश्वसनीय चीजों पर स्वेच्छा से विश्वास करने को तैयार रहते हैं। 

लेकिन मेरे प्यारे बीजेपी के समर्थकों और एमपी पुलिस वाले, बॉलीवुड से अभिभूत इस देश में आप सिमी मुठभेड़ कांड से जुड़ी जो कहानी और डायलॉग पेश कर रहे हैं वह बेहद घटिया दर्जे की है। आपके अंधभक्तों और कैडरों के सिवा कोई भी दूसरा शख्स इस तरह की अविश्वसनीय चीजों को स्वीकार नहीं करेगा।

पब्लिक तो सवाल करेगी ही (जैसा की अमर्त्य सेन ने ऑर्ग्यूमेंटेटिव इंडियन्स में कहा है।) वह आपकी ओर से पेश कहानी को खारिज कर सकती है और इसे जो मोड़ आप देना चाहते हैं उसे भी नामंजूर कर सकती है। भारतीय संविधान के तहत उसे कई मौलिक अधिकार मिले हुए हैं। लेकिन इस देश के नागरिक अगर मौलिक अधिकारों का इस्तेमाल करते हैं तो अपने कर्तव्य भी निभाते हैं। यही लोकतंत्र का असली चरित्र है।

हमारे माननीय गृह राज्य मंत्री लगता है कि ‘अज्ञानता के अंधकार लोक’ में विचरण करते हैं। अपने पार्टी कार्यकर्ताओं की तरह वह भी अंध राष्ट्रवाद के नशे में रहते हैं। शायद इसीलिए वह बयान देते हैं कि सरकार से सवाल करना आपकी देशभक्ति पर प्रश्नचिह्न लगा सकता है। लगता है कि विपक्ष में रहते हुए उन्होंने सवाल न करने की कला में महारत हासिल कर ली है।

…. तो आइए देखते हैं कि शिवराज सिंह सरकार की पुलिस ने जिस भोपाल ‘मुठभेड़’ को अंजाम दिया है, उसकी परत दर परत असलियत क्या है।

जैसे-जैसे इस कथित ‘मुठभेड़’ के वीडियो सामने आ रहे हैं, वैसे-वैसे इसकी स्थिर तस्वीर (स्टिल पिक्चर्स) से सचाई भी सामने आ रही है।

इन चित्रों को देखने से पता चलता है क यह संयोग ही है कि हत्यारे और उनके शिकार दोनों एक ही तरह के और एक की कलर के जूते पहने हुए हैं। इसमें चौंकने वाली क्या है बात है। शायद कुछ भी नहीं।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जेल में कैदियों को बेल्ट, जूते और घड़ियां पहनने को नहीं दी जाती। सिमी के लोगों ने आखिर यह कहां से और कैसे हासिल कर ली। क्या जंगल में भागने से पहले उन्होंने बेहद सुरक्षा वाले तीन गेटों को पार कर जूते हासिल किए होंगे। या फिर इन जूतों को पहुंच कर जेल के वाच टावर पर चढ़ गए होंगे। या फिर वे जेल से एटीएस स्कवायड ऑफिस तक पहुंच कर छापा मारा होगा और वहां से उनके जूतों की सप्लाई से जूते ले लिए होंगे। फिर वहां से एक साथ वे पहाड़ी की चोटी पर पहुंच कर मारे जाने का इंतजार कर रहे होंगे।

अब आप कोई और सवाल न करें। जिन आठ लोगों को मार गिराया गया उनमें से से दो के पास देसी पिस्तौलें थीं। आखिर ये पिस्तौलें उन्हें कहां से मिलीं। उनके पास चाकू कहां से आए। क्या कुछ भ्रष्ट जेल कर्मचारियों ने उनके पास ये हथियार पहुंचाए।

या फिर सिमी के इन कथित आतंकवादियों को ये हथियार सड़क पर पड़े मिले।  या फिर उनका कोई आदमी रास्ते में उन्हें यह हथियार देने के लिए खड़ा था। मारे गए लोग इतने मूर्ख क्यों थे कि कुछ सौ मील भागने के लिए न तो उन्होंने किसी एसयूवी का सहारा लिया और न ही किसी वैन का। राज्य से बाहर भागने या इसके लिए स्टेशन पहुंचने या फिर लंबी दूरी की कोई ट्रेन पकड़ने के लिए वह इनका सहारा ले सकते थे।

मिडिया रिपोर्टों के मुताबिक पुलिस की रिपोर्ट में कहा गया गया है के इन भगोड़े आतंकवादियों ने पुलिस वालों पर दो राउंड गोलियां चलाईं। जबकि पुलिस वालों ने जवाबी कार्रवाई में 27 राउंड गोलियां चलाईं। तो क्या कैदियों को दो पिस्तौलों में सिर्फ एक-एक गोली थी। कैसे मूर्ख थे वे कैदी।

एक वीडियो में एक पुलिस वाला मारे गए एक कैदी की कमर से एक पांच-छह इंच का चमकदार चाकूनुमा हथियार निकाल रहा है। वह शख्स जींस पहने है। आश्चर्य है कि इसे अपनी कमर में खोंस कर भागने वाले शख्स की कमर में इससे जरा सी खरोंच भी नहीं आई। जरा आप ऐसा करके तो देखिये। किचन में इस्तेमाल होने वाले अपने चाकू को जरा कमर में खोंस कर चल कर तो देखिये।

जेल तोड़ने की कहानी भी शोले की जय-बीरू की कहानी बन गई  है। अंग्रेजों के जमाने के जेलर की कहानी की तरह। आइए देखते हैं कि इस कहानी की पटकथा सीन दर सीन कैसे लिखी गई।
 
दृश्य – 1– जेल ड्यूटी के दौरान रमाशंकर यादव पर सिमी के विचाराधीन कैदी हमला करते हैं। वे रमाशंकर की धारदार प्लेट से गला रेत देते हैं। लेकिन रमाशंकर यादव के सहयोगी और कथित गवाह चंदन अहीरवार को छोड़ दिया जाता है । उसे एक सेल में बंद कर दिया जाता है।

यह स्पष्ट नहीं कि सिमी के कितने हमलावरों ने यादव पर हमला किया। उस पर कैसे हमला हुआ। कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि हमलावर सभी आठ लोग एक कोठरी या एक बैरक में बंद नहीं थे। ये भोपाल सेंट्रल जेल में अलग-अलग बांट कर रखे गए थे। आठ में से तीन को एक अलग सेल में रखा गया। अन्य तीन को दूसरी और दो अन्य को तीसरी सेल में रखा गया था। चलिये, इस थ्योरी के आधार पर मान लेते हैं कि तीन लोगों के एक गिरोह ने यादव पर हमला किया।

अब अगला सवाल यह है कि हमला आखिर हुआ कैसे। इस बारे में कोई विस्तृत जानकारी नहीं है और न ही जेल अधिकारियों ने कोई ब्योरा दिया है। जेल के अन्य कैदियों की भी कोई गवाही नहीं है। किन कैदियों के सामने यादव पर हमला हुआ।   

लेकिन चलिये, पहले बगैर जांच के एमपी पुलिसकर्मियों के स्क्रीनप्ले के पहले दृश्य को मंजूर कर लेते है। इस दृश्य के मुताबिक कैदियों ने वार्डन पर हमला किया। उन्होंने उसके पास की चाबियां चुरा कर ताला खोला और अपने साथियों को छुड़ा लिया।

लेकिन वह नजदीक की जेल में कैद अपने लीडर अबु फैसल उर्फ डॉक्टर को छुड़ाना भूल गए। कैसे नौसिखिये और नासमझ थे वे। फिर भी चलिये मान लेते हैं कि वे बेहद जल्दबाजी में थे इसलिए ऐसा नहीं कर सके।

अगर यह माना जाए कि आठों कैदी एक साथ बैरक में बंद नहीं थे तो यह कहानी और भी दिलचस्प हो जाती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या उन्होंने एक बैरक तोड़ी फिर पूरी जेल में दौड़-दौड़ कर दूसरी बैरकों में बंद कैदियों छुड़वाया। क्या अलग-अलग बैरकों में हमले के दौरान उन्हें जेल के किसी कर्मचारी या गार्ड ने रोकने की कोशिश नहीं की। उन्हें सभी कोठिरयां की चाबी कहां से और कैसे मिली। किसने उन्हें सभी बैरकों और कोठिरयों की चाबी मुहैया करवाईं।

दृश्य 2 – लेकिन यहां से वे कैसे भागे? अंदर के जेल कर्मचारियों के पास पूरी जेल और उसकी एंट्री या मेन या बीच की दरवाजों की चाबी नहीं होती। उनके पास सिर्फ अपनी-अपनी सेलों की चाबी होती है। क्या सिनेमा प्रेमी इस थ्योरी के बारे में बता सकता है।

तो फिर कैदियों ने गेट नंबर 1, 2 और 3 को कैसे पार किया होगा। क्या इन गेटों पर कोई सुरक्षाकर्मी या हथियाबंद जेलकर्मी तैनात नहीं था।

तो फिर जेल तोड़ कर भाग रहे कैदियों ने कैसे गेट नंबर 1, 2 और 3 को पार कर किया। क्या इन गेटों पर कोई सुरक्षाकर्मी या हथियारबंद गार्ड नहीं था। पुलिसवालों की स्क्रीन-प्ले के मुताबिक कैदियों ने लकड़ी और मेटल चम्मचों की चाबियां बना ली थीं। क्या चाबियां भागने के दिन बनाई गई थी या पहले तैयार की गई थीं। या फिर जेल स्टाफ भागने के दौरान इन कैदियों खड़े-खड़े देखते रहे। क्या कैदी जब इन चाबियों को ट्राई कर रहे थे तब क्या इन्हें देखते रहे।.. और आखिरकार फिर इन कैदियों को जाने दिया। कैदियों ने यही तरीका गेट नंबर 2 और 3 पर भी दोहराया।

जो भी हो, बॉलीवुड की किसी भी फिल्म में जेल तोड़ने वाली किसी पटकथा में यह तरकीब नहीं आजमाई गई।

दृश्य 3 – पटकथा के मुताबिक कैदी 32 फीट ऊंची बाहरी दीवार बेडशीट के सहारे बनी सीढ़ियों के सहारे भाग गए। कल्पना कीजिये कि कोई शख्स इसके सहारे 32 फीट ऊंची दीवार की मुंडेर पर पहुंच गया और वहां से स्पोट् र्स शू में सही-सलामत नीचे छलांग भी लगा दी। आश्चर्य है कि ऐसी हरकत के दौरान किसी पुलिस गार्ड या स्टाफ ने उन्हें नहीं देखा। न ही वाच टावर से कोई उन्हें देख पाया। किसी सीसीटीवी कैमरे में ओलंपिक खेलों की तरह किए गए इस प्रयास को कैप्चर नहीं किया जा सका।
‘फर्स्टपोस्ट’ के मुताबिक मुंडेर में तार की बाड़बंदी होती है, जिसमें करंट प्रवाहित होता है। आश्चर्य है कि कैसे कैदी करंट से बच गए। क्या वे हैवल्स कंपनी का शॉकप्रूफ उपकरण अपनी जिंस और शर्ट में छिपाए हुए थे।

बॉलीवुड मूवी के हिसाब से भी यह बेहद बकवास स्क्रिप्ट है। अजय देवगन, रवीना टंडन, अनुपम खेर और परेश रावल भी इसे खारिज कर देते। लेकिन यह पटकथा मंजूर हो गई।
 
दृश्य चार  – कैदी आईएसओ सर्टिफाइड भोपाल सेंट्रल जेल से भागे। इसके बाद उन्होंने क्या किया। उन्होंने टहलते हुए डेढ़ घंटे की दूरी सात-आठ घंटों में तय की। शायद उन्हें जल्दी नहीं थी। सब साथ थे। उन्होंने चार-चार के समूह में भी बंटने की नहीं सोची। या अलग दिशा में भी भागने के बारे में नहीं सोचा ताकि पकड़े न जा सकें। सब एक ही साथ भागे। क्या उनमें इतना विश्वास था कि वे पकड़े नहीं जाएंगे। या फिर वे मूर्खता कर रहे थे। अगर ऐसा था तो ‘दुर्दांत आतंकवादी’ कहे जाने वाले वे बड़े ही नौसिखिये या मूर्ख किस्म के थे। क्या ऐसे में उन्हें ‘मास्टरमाइंड’ कहा जा सकता है।

क्या स्क्रिप्ट लिखने वालों ने शॉसेंक रिडंप्शन, इस्केप टु विक्टरी जैसी कोई फिल्म देखी है या फिर फिर सीन कोनेरी, टीम रॉबिन्सन या फिर ट्रेवोल्टा स्केप के भागने के दृश्यों को देखा है। या फिर उन्होंने अपने अमित जी या शत्रुघ्न सिन्हा के पर्दे पर जेल तोड़ कर भागने के दृश्यों पर गौर फरमाया है। अगर ऐसा किया होता तो वे इतनी घटिया सिक्रप्ट नहीं लिखते।

दृश्य पांच- इस पटकथा में यह कहा जा रहा है कि आतंकवादियों ने खुद को रात को हथियारों से लैस किया। उनके पास दो देसी गन के अलावा चाकू थे। क्या सुरक्षा गार्डों से वे आमने-सामने की लड़ाई चाहते थे। आईजीपी चौधरी कहते हैं कि उनके लोग घायल हुए लेकिन शायद गोलियों से नहीं। उन पर शायद चाकू से हमला किया गया। शायद पुलिस की ओर से चली गोली में एक कैदी मारा गया होगा और एटीएस का एक बंदा यह देखने गया होगा कि उसे गोली लगी या नहीं। लाश का हाथ उठा होगा और उन पर गोली चला दी गई होगी। कैसी वाहियात स्क्रिप्ट है।

जीत का जश्न मना रहे आईजीपी योगेश चौधरी ने कैमरे के सामने कहा कि कैसे उनके लोगों ने आतंकियों का सामना किया। कैसे उनके लोगों ने 8 आतंकियों को ‘न्यूट्रलाइज’ किया। भले ही वे विचाराधीन कैदी हों और किसी भी कोर्ट की ओर से आतंकवादी गतिविधि के दोषी न करार दिए गए हों।

मध्य प्रदेश के गृह मंत्री ने अनजाने में ही यह स्वीकार किया कि आतंकवादियों के पास बंदूकें नहीं थीं। उन्होंने बरतनों से चाकूनुमा हथियार तैयार कर लिए थे। उनका यह बयान आतंकवादियों को मुठभेड़ में मार गिराने की पूरी कहानी की बखिया उधेड़ देता है।

जब यह ड्रामा हो रहा था तो उस दौरान एक स्थानीय सरपंच की ओर से बनाए जा रहे वीडियो में यह साफ दिख रहा था कि सादे कपड़ों में एक पुलिसकर्मी एक कैदी की बॉडी से एक छोटी कटार जैसा हथियार बरामद कर रहा है। जबकि कोई ऑफस्क्रीन गाली देते हुए कह रहा है कि अरे इसका वीडियो बन रहा है। एक आवाज कह रही है- इसकी छाती में गोली मारो।

इस कथित मुठभेड़ की कई वीडियो यू ट्यूब पर पड़ी हैं। इन सबमें में विचाराधीन कैदियों को पहाड़ी की चोटियों पर दिखाया गया और इनमें से किसी के भी आसपास कोई हथियार या बंदूक नहीं है।

इस घटना के चश्मदीद स्वतंत्र पत्रकार ने सीएम शिवराज सिंह चौहान को लिखा- कैदियों के पास भागने का कोई रास्ता नहीं था। कैदी थोड़ा से भी आगे बढ़ते तो नीचे सैकड़ों फीट गहरा गड्ढा था। वे घिर गए थे। वे आत्मसमर्पण करना चाहते थे। लेकिन उन्हें घेर कर बर्बर तरीके से मार डाला गया।

 

…और आखिर में

मध्य  प्रदेश सरकार, एटीएस और पुलिस वालों आपको बेहतर स्क्रिप्ट राइटरों की जरूरत है। आपकी स्क्रिप्ट में कोई बड़े झोल हैं। आपको गुजरात मॉडल से तो कुछ सीखना चाहिए। 20-30 मुठभेड़ें, साफ-सुथरे तरीके से अंजाम दिए गए और स्पिन मैनेजमेंट का तरीका।  सब कुछ सीखने लायक है। इसके अलावा उन्होंने जो इतिहास बनाया है वह भी दिखना चाहिए। गुजरात एक ऐसा राज्य है, जहां फर्जी मुठभेड़ों के मामले में सबसे ज्यादा आईएएस और आईपीएस अफसर जेल में बंद रहे। एक और अहम बात यह कि अपने गृह मंत्री को कभी मुठभेड़ों को मॉनिटर न करने दें। इसमें वह सीधे जेल की हवा खा सकते हैं।

हमारी बात

एटीएस चीफ संजीव शामी ने भी कन्फर्म किया कि भाग रहे विचाराधीन कैदियों के पास कोई बंदूक नहीं थी (एनडीटीवी के श्रीनिवासन जैन के सामने उन्होंने बार-बार यह बात दोहराई)। एनडीटीवी के मुताबिक, शमी ने कहा कि उन्होंने दो दिन पहले जिन कैदियों के मुठभेड़ में मारे जाने की बात कही थी, उनके पास हथियार नहीं थे। पुलिस और कुछ अन्य सरकारी अफसरों ने उनकी इस बात का खंडन किया है। उन्हें इसके बारे में पता है लेकिन वे अपनी बात पर कायम हैं।

हालांकि शमी ने इन्हें मुठभेड़ में मार गिराने का समर्थन किया क्योंकि ये दुर्दांत अपराधी थे। मुख्यमंत्री, आईजीपी चौधरी और केंद्रीय मंत्रिमंडल के अन्य मंत्री अपने-अपने तरीके से मुठभेड़ को सही ठहरा रहे हैं। बीजेपी, मोदी और संघ भक्त इस पर सवाल उठाने वालों की भयंकर तरीके से ट्रॉलिंग कर रहे हैं। वेंकैया नायडू ने कहा कि इस बारे में सवाल उठाना देशभक्ति के खिलाफ है।

लेकिन इस प्रक्रिया में शीर्ष पुलिस अफसर और नेता सुप्रीम कोर्ट की ओर से फर्जी मुठभेड़ के बारे में दिए गए फैसले को नजरअंदाज कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में कथित रूप से फर्जी मुठभेड़ के 1528 मामलों में जुलाई, 2016 को दिए फैसले में कहा- इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुठभेड़ का शिकार कोई उग्रवादी, आतंकवादी या आम आदमी था या फिर हमलावर कोई आम आदमी या राज्य था। कानून दोनों पर समान रूप से लागू होता है। दोनों पर समान कानून लागू करना डेमोक्रेसी के लिए लाजिमी है।, मणिपुर के इन कथित फर्जी मुठभेड़ों को कहीं पुलिस ने तो कहीं आर्मी ने अंजाम दिया था। एक फैसले में तो ऐसे मुठभेड़ों को अंजाम देने वाले पुलिस वालों के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी । इसे न्यूरमबर्ग के नाजी युद्ध अपराधियों की करतूत के बराबर माना गया था, जिन्होंने अपना अपराध अपने से ऊपर के अधिकारियों को दोषी बता कर छिपाना चाहा था।

सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई, 2011 को प्रकाश कदम बना रामप्रसाद विश्वनाथ गुप्ता मामले में कहा था जिन फर्जी मुठभेड़ों के मामले में पुलिसकर्मियों के खिलाफ अपराध साबित हो जाता है, उन्हें रेयरेस्ट ऑफ रेयर मान कर मौत की सजा दी जानी चाहिए। फर्जी मुठभेड़ कानून के रखवालों की ओर से की गई जघन्य हत्या के सिवा और कुछ नहीं है।

2011 के इस फैसले को लिखने वाले जस्टिस काटजू ने भोपाल मुठभेड़ कांड पर टीवी पर कहा कि दोषियों को फांसी की सजा दी जाए।

बहरहाल, यह कहानी अब खत्म हो चुकी है। बाकी है सिर्फ भारत के लोकतंत्र, इसकी न्यायिक प्रणाली, एनआचआरसी जैसे इसके सांस्थानिक निकायों और भारत के लोगों को कसौटी पर कसे जाने की कवायद।

मैंने मालेगांव विस्फोट के मामले में गिरफ्तार निर्दोष मुस्लिमों से विस्तार से बातचीत की थी ( इनमें से दो डॉक्टर थे)। उन्होंने साढ़े पांच साल जेल में बिताए थे। इस दौरान उन पर असहनीय अत्याचार हुए। उन्हें नार्को टेस्ट से गुजारा गया और कई बार गलती स्वीकारने के लिए अदालत में पेश किया। अगर वह किसी मुठभेड़ में मारे जाने या फांसी की सजा से बच गए तो इसलिए कि उस समय हेमंत करकरे जैसे एक न्यायप्रिय पुलिस अधिकारी ने एटीएस की जिम्मेदारी संभाली थी और मालेगांव विस्फोट की कलई खोल दी थी। 2008 के इस मामले में साध्वी प्रज्ञा, स्वामी असीमानंद और कर्नल पुरोहित जैसे कट्टरपंथी हिंदू गिरफ्तार हुए थे। इसके बाद भी इस मामले में निर्दोष मुस्लिम 2011 तक जेल में सड़ते रहे। आखिर में 2016 मई में इन लोगों को मकोका के स्पेशल कोर्ट से राहत मिली।

आप इस पर हैरत जता सकते हैं कि मालेगांव और भोपाल मुठभेड़ कांड को मिलाने का क्या तुक है। लेकिन आप देख रहे हैं दोनों मुठभेड़ों में एटीएस का दावा रहा है कि मारे गए लोग सिमी से जुड़े थे। सिमी यानी आतंकियों का पर्याय। कोई आश्चर्य नहीं कि बीजेपी के लिए दोनों एक ही हैं।

(लेखक मशहूर डॉक्यूमेंट्री फिल्म–मेकर हैं। गुजरात में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए 2002 के दंगों पर इनकी डॉक्यूमेंट्री फिल्म फाइनल सॉल्यूशन खासी चर्चित रही है। )

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मारे गए सिमी सदस्यों के पास हथियार नहीं थे- एटीएस चीफ संजीव शमी https://sabrangindia.in/maarae-gae-saimai-sadasayaon-kae-paasa-hathaiyaara-nahain-thae-etaiesa-caipha-sanjaiva/ Fri, 04 Nov 2016 05:45:49 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/11/04/maarae-gae-saimai-sadasayaon-kae-paasa-hathaiyaara-nahain-thae-etaiesa-caipha-sanjaiva/ भोपाल सेंट्रल जेल से फरार हुए 8 सिमी सदस्यों के एनकाउंटर का मामले के फेक होने के पक्ष में एक और सबूत सामने आ रहा है।  मामले की जाँच कर रहे मध्य प्रदेश एटीएस चीफ संजीव शमी ने कहा है कि जिन 8 सिमी सदस्यों को स्पेशल टास्क फोर्स ने मुठभेड़ में मारा था उनके […]

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भोपाल सेंट्रल जेल से फरार हुए 8 सिमी सदस्यों के एनकाउंटर का मामले के फेक होने के पक्ष में एक और सबूत सामने आ रहा है।  मामले की जाँच कर रहे मध्य प्रदेश एटीएस चीफ संजीव शमी ने कहा है कि जिन 8 सिमी सदस्यों को स्पेशल टास्क फोर्स ने मुठभेड़ में मारा था उनके पास कोई हथियार नहीं था। 

Bhopal Encounter

इससे पहले भोपाल पुलिस के आईजी योगेश चौधरी ने कहा था कि मारे गए लोगों के पास चार देसी पिस्तौलें थीं और वे पुलिस पर फायरिंग कर रहे थे। खास बात ये भी है कि संजीव शमी के टीम के सदस्य भी एनकाउंटर करने वाली टीम के करीब थे। एनडीटीवी की खबर के मुताबिक शामी ने कहा, “मैं अपने बयान पर कायम हूं और सिर्फ तथ्यों पर बात करता हूं।”

मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार और केंद्र सरकार ने भी यही बयान दिए थे कि विचाराधीन सिमी आतंकियों को इसलिए मारा गया क्योंकि वे पुलिस पर फायरिंग कर रहे थे। मध्य प्रदेश के गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह ने दावा किया था कि जेल से फरार हुए सिमी के सदस्य एक बड़े आतंकी हमले की फिराक में थे।

म.प्र. की भाजपा सरकार खुलकर तो स्वीकार नहीं कर सकती लेकिन जनता के बीच यही इंप्रेशन देना चाहती है कि उसने ही जान-बूझकर सिमी आतंकियों को मारा है। ऐसा करके उसे उम्मीद है कि उसे उसी तरह का फायदा होगा जिस तरह का फायदा गुजरात में नरेंद्र मोदी लेते रहे हैं। हालाँकि भाजपा की पूरी प्लानिंग में दिक्कत हेड गार्ड रमाशंकर की हत्या से सामने आ रही है।

अगर फर्जी एनकाउंटर साबित होता है तो भाजपा राजनीतिक फायदा तो उठाने की कोशिश कर लेगी, लेकिन फिर रमाशंकर यादव की हत्या का आरोप जेल अधिकारियों और सरकार पर आ जाएगा।

Source: newslive24.in
 

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जेल की खामियों के बारे में दो साल पहले बता दिया था- पूर्व आईजी (जेल) https://sabrangindia.in/jaela-kai-khaamaiyaon-kae-baarae-maen-dao-saala-pahalae-bataa-daiyaa-thaa-pauurava-aijai/ Thu, 03 Nov 2016 08:02:15 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/11/03/jaela-kai-khaamaiyaon-kae-baarae-maen-dao-saala-pahalae-bataa-daiyaa-thaa-pauurava-aijai/ भोपाल की सेंट्रल जेल से 8 सिमी कार्यकर्ता फरार हुए या भगाए गए, इस विवाद के बीच, पूर्व आईजी (जेल) ने खुलासा किया है कि जेल की सुरक्षा कमजोरियों और कर्मचारियों की दुखद हालत के बारे में उन्होंने दो साल पहले, 2014 में ही सरकार को बता दिया था। पूर्व आईजी (जेल) जी के अग्रवाल […]

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भोपाल की सेंट्रल जेल से 8 सिमी कार्यकर्ता फरार हुए या भगाए गए, इस विवाद के बीच, पूर्व आईजी (जेल) ने खुलासा किया है कि जेल की सुरक्षा कमजोरियों और कर्मचारियों की दुखद हालत के बारे में उन्होंने दो साल पहले, 2014 में ही सरकार को बता दिया था। पूर्व आईजी (जेल) जी के अग्रवाल ने बताया है कि 26 जून 2014 को उन्होंने राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव एंटनी डिसा को पत्र भी लिखा था। श्री अग्रवाल का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और खुफिया ब्यूरो को भी इस बात की जानकारी थी, लेकिन कोई सावधानी नहीं बरती गई।

Bhopal Jail

श्री अग्रवाल ने यह भी बताया कि माँग की थी कि अधिकारियों के साथ एक बैठक की जाए और उसमें भोपाल या अन्य जेलों में होने वाली इस तरह की घटनाओं को रोकने के तरीकों पर विचार किया जाए, लेकिन सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला।

श्री अग्रवाल ने अपने पत्र में लिखा था कि अभी अन्य जेलों से सिमी आतंकियों को भोपाल सेंट्रल जेल में रखा गया है, लेकिन जेल की इमारत कमजोर है। यहां कि सुरक्षा व्यवस्था में कमी है और कर्मचारियों की स्थिति चिंतनीय है।

सेवानिवृत जेल अधिकारी ने स्टाफ की कमी का भी मसला उठाया था, और कर्मचारियों पर काम के दबाव और तनाव का भी मसला उठाया था।

जेल के मुख्य गार्ड रमाशंकर यादव की बेटी ने भी कहा है कि उनके पिता के हार्ट पेशेंट होने पर भी, और डॉक्टर के मना करने के बावजूद उनकी नाइट ड्यूटी लगाई गई, और अधिकारियों ने ऐसी हालत में भी रात को उनकी अकेले की ड्यूटी लगाई।

पूर्व आईजी (जेल) के इस खुलासे और शहीद गार्ड रमाशंकर यादव की बेटी सोनिया यादव के सवाल के बाद अब मध्य प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान फिर से बुरी तरह से घिर गए हैं।

 सेंट्रल जेल से फरार सभी 8 सिमी कार्यकर्ताओं को एनकाउंटर में मार दिया गया था। पुलिस का कहना है कि ये कैदी हेड कॉन्सटेबल रमाशंकर यादव को मार कर फरार हुए थे।

Source: Khaskhabar.com

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भोपाल जेल ब्रेक कांड : हार्ट पेशेंट गार्ड को मजबूर किया नाइट ड्यूटी के लिए https://sabrangindia.in/bhaopaala-jaela-baraeka-kaanda-haarata-paesaenta-gaarada-kao-majabauura-kaiyaa-naaita/ Thu, 03 Nov 2016 06:13:56 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/11/03/bhaopaala-jaela-baraeka-kaanda-haarata-paesaenta-gaarada-kao-majabauura-kaiyaa-naaita/ भोपाल जेल ब्रेक में सिमी कार्यकर्ताओं के हाथों मारे बताए जा रहे हेड गार्ड रमाशंकर यादव की बेटी सोनिया ने सवाल उठाया है कि सिमी के खतरनाक आतंकियों की सुरक्षा में उसके पिता को अकेले ही क्यों तैनात किया गया था। इससे ज्यादा शर्मनाक बात क्या होगी कि जेल प्रशासन का एक भी अफसर उनके […]

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भोपाल जेल ब्रेक में सिमी कार्यकर्ताओं के हाथों मारे बताए जा रहे हेड गार्ड रमाशंकर यादव की बेटी सोनिया ने सवाल उठाया है कि सिमी के खतरनाक आतंकियों की सुरक्षा में उसके पिता को अकेले ही क्यों तैनात किया गया था। इससे ज्यादा शर्मनाक बात क्या होगी कि जेल प्रशासन का एक भी अफसर उनके घर सांत्वना देने नहीं आया।

Bhopal Jail Break

रमाशंकर दो साल बाद सेवानिवृत्त होने वाले थे। दोनों बेटों के सेना में नियुक्त होने के बाद बेटी की शादी करके अपने सभी दायित्वों से वे निवृत होना चाहते थे। 31 अक्टूबर से उनकी छुट्टी मंजूर हो चुकी थी, लेकिन 30-31 अक्टूबर की दरमियानी रात उनकी हत्या कर दी गई।

रमाशंकर यादव के बेटे प्रभुनाथ सेना में हिसार में तैनात हैं। उनका कहना है कि रमाशंकर नाइट ड्यूटी नहीं लगाने की गुहार लगा चुके थे। वे दो वर्ष पहले हार्ट पेशेंट हो गए थे। उनका इलाज चल रहा था। डॉक्टरों ने उन्हें रात में ड्यूटी न करने की सलाह दी थी। इसके लिए उसके पिता डॉक्टर के लिए परचे लेकर आईजी, डीआईजी जेल से मिले, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।

रमाशंकर के बड़ा भाई शंभूनाथ यादव भी सेना में हैं और गोहाटी में पदस्थ हैं। सोनिया तीन भाई बहनों में सबसे छोटी है। उसकी शादी 9 दिसंबर को होनी है। उसकी तैयारियों को लेकर घर में खुशी का माहौल था। इस घटना से न सिर्फ उनके घर में बल्कि अहिल्या नगर बस्ती में मातम पसर गया है।

 सीएम शिवराज सिंह चौहान ने रमाशंकर यादव के परिजनों को 10 लाख रुपए की अनुग्रह राशि और पांच लाख रुपए बेटी की शादी के लिए देने की घोषणा की है।

Source: Newslive24

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