Unha | SabrangIndia News Related to Human Rights Thu, 21 Jul 2016 12:25:03 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png Unha | SabrangIndia 32 32 Ban Gau Rakshaks, Demands JD(U) Leader Sharad Yadav https://sabrangindia.in/ban-gau-rakshaks-demands-jdu-leader-sharad-yadav/ Thu, 21 Jul 2016 12:25:03 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/07/21/ban-gau-rakshaks-demands-jdu-leader-sharad-yadav/ Makes a Powerful Speech in Parliament on Dalit Atrocities that have seen a 19 per cent increase since 2010 In a powerful 26 minute speech in Parliament today, senior and veteran leader of the Janata Dal United (JDU), Sharad Yadav demanded a ban on ‘Gau Rakshaks’ who are taking lives into their own hands attacking […]

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Makes a Powerful Speech in Parliament on Dalit Atrocities that have seen a 19 per cent increase since 2010

In a powerful 26 minute speech in Parliament today, senior and veteran leader of the Janata Dal United (JDU), Sharad Yadav demanded a ban on ‘Gau Rakshaks’ who are taking lives into their own hands attacking innocents, Dalits and Muslims. He also strongly condemned the shameful remarks against BSP leader, Mayavati by BJP leader Dayashankar Singh. Singh has since been removed from influential party posts in Uttar Pradesh.

Sharad Yadav also said that ‘Dalits are being attacked with impunity and Government is using cow activism as a political tool for a Dalit Mukt Bharat’. He condemned the incident of Rohith Vemula where a young and bright intellectual and researcher was forced to commit suicide because of the humiliation suffered made worse by the university administration under Vice Chancellor Appa Rao, suspended and re-instated.

The Indian Parliament should discuss the Taliban like atrocities perpetuated in the name of caste. He strongly condemned the suicide of a youth in Junagadh, a Dalit youth. He demanded a full fledged issue on Caste Atrocities and Caste Order in Parliament, Sharad Yadav demanded.

He strongly condemned the remarks against Mayawati, leader of the Bahujan Samaj Party by a senior BJP leader in Uttar Pradesh and said we need to condemn and examine where this caste prejudice and hatred comes from.

He recalled  how in 1974, India’s 5th Lok Sabha when he had first entered Parliament, there had been a ghastly incident near Latur of a young Dalit man’s eyes being gauged out.

In a far reaching statement that gave statistics on continuing Dalit atrocities, Sharad Yadav presented these: Murders on the increase  —Dalit murders increased from 570 in 2010, to  673 in 2011, 661 in 2012, 676 in     2013, and  744 in 2014. As far as rapes of Dalit women are concerned 1349 rapes in 2010, to 2011 1557, 2012 1576, 2013 2073, 2014 –you tell us –2014 half of Modi : 2252 sharp increase. Total atrocities against Dlits have seen a 19 per cent increase in atrocities since 2010: there were total 33,712 total Dalit atrocities in 2010; there were 33719 Dalit atrocities in 2011; there were 33655 Dalit atrocities in 2012; there were 39,408 Dalit atrocities in 2013 and a shocking 47,064   of Dalit atrocities in 2014.

One fourth of our population is living facing violence, discrimination and humiliation, he said. Dr Babasaheb’s Ambedkar stands vindicated in his demand for separate electorates, said Sharad Yadav..

Who are these Gau Rakshaks, Ban them, said Sharad Yadav. The Government Must Ban them. Mayawati was right next to Sharad Yadav when he delivered this historic speech. This could signal a unique opportunity of opposition unity.

Watch this Video where he makes a powerful speech, hear the full speech on the spiralling anti-Dalit violence spreading in Gujarat.

The Speech Can be Heard Here

 
 

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गुजरात मॉडल और हिंदू राष्ट्र के दलित https://sabrangindia.in/gaujaraata-maodala-aura-haindauu-raasatara-kae-dalaita/ Thu, 21 Jul 2016 06:24:53 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/07/21/gaujaraata-maodala-aura-haindauu-raasatara-kae-dalaita/ पिछले कई बरसों से हम गुजरात मॉडल , इसके झूठ और अधूरे सच से जुड़ी कहानियां सुन-सुन कर थक चुके हैं। यह बात याद रखना जरूरी है राज्य में 2002 के जघन्य मुस्लिम नरसंहार के  दाग मिटाने के लिए 2007 के बाद इस मॉडल की बिक्री और और मार्केटिंग शुरू हुई। ऐसा नहीं है कि […]

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पिछले कई बरसों से हम गुजरात मॉडल , इसके झूठ और अधूरे सच से जुड़ी कहानियां सुन-सुन कर थक चुके हैं। यह बात याद रखना जरूरी है राज्य में 2002 के जघन्य मुस्लिम नरसंहार के  दाग मिटाने के लिए 2007 के बाद इस मॉडल की बिक्री और और मार्केटिंग शुरू हुई।

ऐसा नहीं है कि दूसरी सरकारों और राजनीतिक पार्टियों के दौर में सरकार में बैठे बड़े लोग और सत्ता के केंद्र रहे संस्थान अल्पसंख्यक विरोधी पूर्वाग्रह से अछूते थे। 1969 में अहमदाबाद , 1970 और  1984  में बांबे-भिवंडी , 1983 में नेली, 1987 में हाशिमपुरा  और 1989 में भागलपुर  के बर्बर दंगों के दौरान राजनीतिक संस्थानों के पूर्वाग्रह दिख चुके हैं।  लेकिन  2002 में गुजरात में जो हुआ वह 1984 में दिल्ली के सिख दंगों के दौरान भी नहीं हुआ था। उस दौरान गुजरात में दंगाइयों और राज्य के बीच हद दर्जे की मिलीभगत दिखी। इस मिलीभगत ने ही इस बड़े दंगे को फैला दिया। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट और अभी भी चल रहे जाकिया जाफरी केस (20 जुलाई से इसके फिर शुरू होने की उम्मीद है) इसके सबूत हैं।

 पिछले साल गुजरात मॉडल एक बार फिर बेपर्दा हुआ, जब एक युवा और बिल्कुल अनुभवहीन लेकिन राजनीतिक तौर पर ताकतवर पटेल समुदाय से जुड़े नेता हार्दिक पटेल ने सरकार को चुनौती दी। हार्दिक के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शनों ने गुजरात के मॉडल की पोल खोल दी। देेश में पिछले कुछ साल से चले आ रहे नव उदारवादी नीतियों की वजह से रोजगार की रफ्तार कम रही है। गुजरात इस ग्रोथ मॉडल का प्रतीक बन कर उभरा है। हां, इस मॉडल में कुछ लोगों और कॉरपोरेट घरानों ने अकूत संपत्ति बनाई है।

 गुजरात के इस विकास मॉडल के बावजूद ओबीसी पटेल जाति के लोगों में हताशा और बेरोजगारी है। उनके पास नौकरियां नहीं हैं। क्या देश को इसी गुजरात मॉडल की जरूरत है? क्या अगले साल चुनाव का सामना करने जा रहे उत्तर प्रदेश, पंजाब या फिर गुजरात को विकास का यही मॉडल चाहिए।

पिछले एक सप्ताह से गुजरात सचमुच जल  रहा है। यह भयानक आग सौराष्ट्र के उना से शुरू हुई। मरे हुए जानवरों की खाल उतारने के आरोप में चार दलित युवकों को लोहे की छड़ों से पीटा गया। कार की जंजीर से बांध कर पुलिस स्टेशन तक घसीटा गया। हमला करने वालो ं ने उनका वीडियो बना  कर उसे वायरल कर दिया। हमलावरों ने उन पर गोहत्या का आरोप लगाया। हमला करने वाले  दरबार जाति के लोग थे। उनका  आरोप था कि ये लोग गाय को मार उसकी खाल निकाल  रहे थे। जबकि सौराष्ट्र में रहने वाले दलितों के अपने बोन मिल हैं और जहां मरे हुए जानवरों का चमड़ा उतारा जाता है । राज्य में गो-हत्या और बीफ बेचना अपराध है। लेकिन मरे हुए जानवरों की खाल उतारना अपराध नहीं है। फिर भी बेकसूरों को इसकी सजा दी गई।

एक सप्ताह पहले ऐसी ही एक घटना पोरबंदर के सोधना गांव में हुई जहां दबंग जाति की एक उग्र भीड़ ने रामा सिंगराखिया  नाम के एक दलित की गला रेत कर हत्या कर दी। जाने-माने दलित आंदोलनकारी और सीनियर एडवोकेट वालजीभाई पटेल ने सबरंगइंडिया को बताया कि पिछले कुछ महीनों के दौरान दलितों पर ऐसे कई हमले हुए हैं लेकिन राज्य के राजनीतिक नेतृत्व या सरकार ने अब तक इन घटनाओं की कड़ी निंदा नहीं की है।

पिछले दो-तीन दिन से उना की घटना का भारी विरोध हो रहा है। लेकिन कथित राष्ट्रीय अखबारों में इसका आंशिक कवरेज ही दिखा है। कश्मीर के मामले में एक्सपोज हो चुके टीवी एंकर चुप हैं। साफ है कि यह राष्ट्रीय नहीं कारोबारी (कॉमर्शियल मीडिया है) मीडिया है। 

अब इंडियन एक्सप्रेस औैर कैच न्यूज की कुछ खबरों ने इस घटना के एक खतरनाक पहलू को उजागर किया है। उनकी खबरों में कहा गया है कि दलितों पर हमला करने वाले आरोपियों में से एक मुस्लिम युवक के पिता ने कहा कि हमलावरों ने पिटाई करने के लिए उसके बेटे पर दबाव डाला ताकि लोगों को यह पता चले कि गौ-रक्षकों के साथ मुसलमान भी हैं।

इन घटनाओं के बाद ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत हिंदुओं के सिपाहियों के बचाव में कूद पड़े। गुजरात में विश्व हिंदू परिषद की इकाई ने भी दलितों की इस बर्बर पिटाई की निंदा की। आखिर क्यों? 2002 में राज्य में मुसलिमों के खिलाफ हमले में दलितों को ही मोहरा बनाया गया था। सांप्रदायिक ताकतों ने अपनी गंदी साजिश को अंजाम देने के लिए दलितों का ही इस्तेमाल किया था।  उस दौरान हिंदुत्व के सिपाहियों की तरह उन्हीं का इस्तेमाल किया गया था।  मेहसाणा, आणंद, दाहोद और पंचमहल जिलों में मुस्लिमों पर हमले करने वाले पटेल समुदाय के लोग थे। लेकिन शहरी इलाकों में हिंसा के लिए दलितों का इस्तेमाल किया गया।

बहरहाल, इस घटना के पीछे की असली साजिश मुद्दे को एक बार फिर मुस्लिम विरोधी बना देना है। दलितों  की पिटाई के मामले में पूरे राज्य में आंदोलन  उठ खड़ा हुआ है। ट्रैफिक रोका गया, बसें तोड़ी गईं, टायर जलाए गए। सुरेंद्रनगर कलेक्ट्रेट समेत कई आला अफसरों  के दफ्तरों  में गाय के कंकाल फेंके गए। बीएसपी प्रमुख मायावती ने संसद में मामला उठाया।  गुजराती टीवी चैनलों ने शांति की अपील की।  इसके बावजूद  पिटाई के लिए गिरफ्तार किए गए नौ लोगों को दलितों  ने गौ तालिबान का सदस्य कहा। आखिर इस पर हमारे कॉमर्शियल टेलीविजन ने बिल्कुल चुप्पी क्यों साध ली?

अब इस बात को खुले तौैर पर स्वीकार करने का वक्त आ गया है कि इस हमारा कॉमर्शियल टीवी मीडिया देश के लोगों के राजनीतिक सरोकारों की नुमाइंदगी नहीं करता।  कश्मीर में विरोध प्रदर्शन और फिर उसके दमन के मामले में हम इस मीडिया की खामी देख चुके हैं। यह मीडिया सिर्फ पहले से तय राजनीतिक और और कॉरपोरट सुर अलाप रहा है। यह राष्ट्रीय शर्म का मामला है।      

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Dalits in the Hindu Rashtra, A Close Look at the Gujarat Model https://sabrangindia.in/dalits-hindu-rashtra-close-look-gujarat-model/ Wed, 20 Jul 2016 04:42:50 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/07/20/dalits-hindu-rashtra-close-look-gujarat-model/   For years now, we have been fed with stories, lies and half-truths about the Gujarat Model. We should not ever forget that this model began to be ‘sold’ and ‘marketed’ post 2007, in the wake of India’s worst ever genocidal pogrom against Muslims, in 2002. It is not that under other governments and political […]

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For years now, we have been fed with stories, lies and half-truths about the Gujarat Model. We should not ever forget that this model began to be ‘sold’ and ‘marketed’ post 2007, in the wake of India’s worst ever genocidal pogrom against Muslims, in 2002. It is not that under other governments and political parties, deep rooted anti-minority prejudice was not allowed to fester and infiltrate within positions and institutions of power. Ahmedabad 1969, Bhiwandi-Bombay 1970 and 1984, Nellie 1983, Hashimpura 1987, Bhagalpur 1989 are brute historic testimonies to this all pervasive institutional prejudice. But never before until 2002 Gujarat, not even with Sikhs in Delhi in 1984, had utter and complete state complicity  been the vehicle of a massacre. The report of the National Human Rights Commission (NHRC) and now the ongoing Zakia Jafri case—that will hopefully resume hearing today, on July 20, are testimony to this.

In 2015 the Gujarat Model stood exposed when a young, raw leader of the state’s otherwise politically powerful Patels, Hardik Patel, led a protest that showcased the hollowness of the claims. Jobs are hard to come by in any case over past years under neo liberal India, but Gujarat epitomizes ‘jobless’ growth. A few select individuals and corporate houses amass disproportionately high assets; they also fund and feed their select man and men in the political class, but even communities like the Patels who are among the OBCs in Gujarat, bear the heat and anger of frustration, unemployment, joblessness. Is this the model the country wants or needs? Is this the development that Uttar Pradesh, or Punjab, or even Gujarat that go to the polls next year want?

Over the past week, Gujarat has been burning. Literally. It began with a horrific incident at Unha, Saurashtra. Four Dalit youths who skin dead animals for a living were thrashed with iron rods, chained to a car and dragged to a police station, their ordeal captured on video by their assaulters who accused them of slaughtering a cow. The victims were targeted assaulters from the Darbar caste that accused them of killing a cow for the purpose of selling beef when all that the Dalit youths had done was skin a cow that was already dead.  Dalits from Una town in Saurashtra owned a Bone Mill and had been skinning animals for that purpose. While slaughtering cows and selling or consuming beef is banned in the state, skinning of dead animals is not illegal.

This incident comes fast on the heels of another gruesome attack on Dalits about a week ago: Rama Singrakhiya, a Dalit, was allegedly hacked to death by a dominant caste mob in Sodhana village of Porbandar district. Leading Dalit campaigner and senior advocate Valjibhai Patel told Sabrangindia that there had been a series of such attacks in past months and yet no words of sharp condemnation from the state’s political leadership.

In the latest attack on July 12, reportedly, a vigilante group pounced on the four, beat them up with iron rods and sticks and chained them to their car before leaving them at Una police station. The car had the nameplate of a Shiv Sena member.

The accused also filmed the assault. The video taken by the assaulters themselves has since gone viral on social media. Though a large crowd had gathered at the place, no one seemed to forward to rescue the Dalits. A video is said to have gone viral on the social media.

Since yesterday protests have been raging all over the state, newspapers have  covered them partially (though not in the ‘national’ editions) and yet television anchors –already exposed for their irresponsible role in Kashmir – have been silent. This is not a national but a commercial media. Now we have confessions reported by The Indian Express and Catch news that tell an even more sinister tale. The father of one of the nine people arrested in Una, Gujarat, for the assault on Dalits they accused of cow slaughter, alleged on Tuesday that his son, a Muslim, had been forced by the others to beat up the Dalit men to prove Muslims are just as anti-beef as gau rakshaks.

 The boy's father reportedly said: "I had sent my son out to buy bananas from a shop near the bus station. But as he reached there, Pramodgiri Goswami and others came there in their car and pulled the four Dalits out of the vehicle and tied them to the car. My son stopped there out of curiosity. While he was watching from a distance, others in the gau rakshak group asked him to take a turn to beat up the Dalits and thereby show that Muslims also stood against cow slaughter… Pramodgiri thrust a strip in his hands and exhorted him to beat up the Dalits."

In a nutshell, this innocent bystander was compelled by a set of hoodlums—out to protect the cow mother –to beat and thrash Dalits. How cynical can you get? The boy's father said he had evidence on video to prove his claim. The boy is 17 years old, says The Indian Express. He was arrested on Monday night and sent to Rajkot's Observation Home for Boys. The man said: "I admit that he has beaten up the Dalit brothers and, therefore, he is guilty. But he was made to be part of the conspiracy without him knowing what it would mean."

 Kiritkunar Joshi, deputy superintendent of police (SC, ST Cell), said: "The teenager is a friend of another accused named Deepak Shiyal. The boy had gone to Mota Samadhiyala riding pillion on Shiyal's motorbike. But, as of now, there is no evidence that the boy beat up the Dalits in Mota Samadhiyala also."

Quick to come to the rescue of the foot soldiers, Mohan Bhagwat of the RSS and even Gujarat’s Vishwa Hindu Parishad has condemned this ugly beating of Dalits. Why? As we saw in 2002, it is Dalits who have been used and abused to carry out the filthy designs of communal forces, against the state’s Muslims. They are the foot soldiers of the Hindu Rashtra. Except in the districts of Mehsana, Anand, Dahod and Panchmahals where many Patels were among the accused, in the urban areas it is Dalits (including Chharas) who were used as mobs for violent ends.

But what is truly conspiratorial and sinister about the fallout now, sinister designs to turn this issue into Muslim-bashing once again, that even despite agitations all over the state, despite the fact that traffic was stopped on highways, buses broken down, tyres burned, three truckloads of cow carcasses dumped at the Surendranagar Collectorate, carcarsses of cows dumped in other government offices; des[ite the fact that Mayawati, leader of the Bahujan Samaj party raised the issue in the Rajya Sabha and the upper house of Parliament was adjourned yesterday; despite the fact that Gujarati television channels appealed to people for peace; Nine persons were arrested in what Dalits are terming as part of the ‘Cow Taliban’ the commercial television media is utterly silent. Why?

It is time to loudly acknowledge that this television commercial media does not represent democratic concerns or the Indian people and in fact, as we have recently seen –in its coverage of the protests and subsequent repression in the Kashmir valley– is actually beating to pre-determined political and corporate drums. This is a matter of national shame.
 

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स्वच्छ भारत सिर्फ दलितों की जिम्मेदारी नहीं है, अब साफ करो संघियों https://sabrangindia.in/savacacha-bhaarata-sairapha-dalaitaon-kai-jaimamaedaarai-nahain-haai-aba-saapha-karao/ Wed, 20 Jul 2016 04:01:17 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/07/20/savacacha-bhaarata-sairapha-dalaitaon-kai-jaimamaedaarai-nahain-haai-aba-saapha-karao/ गौ – आतंकवाद नहीं चलेगा. गुजरात में भी नहीं चलेगा UPDATE: – पूरे प्रदेश में तूफान. कई जगहों पर लोगों ने ट्रैफिक रोका. बसों में तोड़फोड़, सड़कों पर टायर जलाए गए – सुरेंद्रनगर कलेक्टर ऑफिस में तीन ट्रक भरकर गायों के शव पहुंचाने के बाद, कई और कार्यालयों में गायों के अवशेष पहुंचाए गए – […]

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गौ – आतंकवाद नहीं चलेगा. गुजरात में भी नहीं चलेगा

UPDATE:

– पूरे प्रदेश में तूफान. कई जगहों पर लोगों ने ट्रैफिक रोका. बसों में तोड़फोड़, सड़कों पर टायर जलाए गए
– सुरेंद्रनगर कलेक्टर ऑफिस में तीन ट्रक भरकर गायों के शव पहुंचाने के बाद, कई और कार्यालयों में गायों के अवशेष पहुंचाए गए
– बहन मायावती ने मामला राज्य सभा में उठाया, राज्यसभा की कार्यवाही रोकी गई
– देश के तमाम राष्ट्रीय चैनलों ने साधी चुप्पी
– गुजराती चैनलों ने जनता से शांति बनाए रखने की अपील की
– गुजरात में इंटरनेट पर लग सकती है रोक
– राज्य सरकार ने सीआईडी जांच के आदेश दिए
– गिरफ्तार गो – तालीबान की संख्या नौ हुई
– सस्पेंड होने वाले पुलिस अफसर तीन
– मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल पर इस्तीफे के लिए दबाव, फैसला संघ करेगा

अभी-अभी
 विश्व हिंदू परिषद, गुजरात प्रदेश ने गाय की खाल उतार रहे दलितों पर अत्याचार की निंदा की है…. कड़े शब्दों में:

मोहन भागवत अपनी मां का अंतिम संस्कार कर लें, फिर इस पर विचार किया जा सकता है.

विश्व हिंदू परिषद को मालूम है कि जिस दिन दलितों और पिछड़ों ने गुलामी छोड़ दी उस दिन सवर्ण हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे. मुसलमानों से तीन प्रतिशत कम.
मोहन भागवत अपनी गोमाता का अंतिम संस्कार कर लें, फिर इस पर विचार किया जा सकता है.

और अब राजकोट हाईवे पर गोमाताओं की लाश रखकर ट्रैफिक जाम और प्रदर्शन…पूरा गुजरात उबल रहा है. मुख्यमंत्री को तत्काल इस्तीफा देना चाहिए. पीड़ित दलितों को 50 लाख करके मुआवजा, सरकारी नौकरी. गौ-आतंकवादियों पर धारा 307 और दलित उत्पीड़न निवारण एक्ट के तहत मुकदमा. फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई

यह सवर्ण जुल्मों के खिलाफ दलित – बहुजन प्रतिरोध की सुनामी है. ताजा तस्वीर गुजरात के जामनगर से.

गुजरात के एक नगरपालिका ऑफिस में सजावट का सामान लाते दलित. स्वच्छ भारत सिर्फ दलितों की जिम्मेदारी नहीं है. कल दोपहर की तस्वीर…. यह गाय-आतंकवाद संघ को बहुत महंगा पड़ेगा.
अब साफ करो संघियों
 

गुजरात जल रहा है. दलितों पर गौ-तालीबान के अत्याचार के विरोध में शहर के शहर बंद हैं. सड़कें जाम हैं.

लेकिन राष्ट्रीय मीडिया, चैनल और अखबार मुंह में दही जमाए बैठे हैं. अंतरराष्ट्रीय मीडिया में यह खबर है. BBC पढ़िए. राष्ट्रीय मीडिया, संपादक, एंकर सब सदमे में हैं, मानों गोमाता का अंतिम संस्कार करने उन्हें ही जाना है.
पूरा राष्ट्रीय मीडिया एक पवित्र धागे से बंधा है.

शुक्र है कि सोशल मीडिया है. बहुजन पब्लिक स्फीयर अब चैनलों और अखबारों का मोहताज नहीं है.

राष्ट्रपुरोहित मोहन भागवत गुजरात में सड़क पर पड़ी अपनी माता का अंतिम संस्कार करने में आनाकानी कर रहे हैं…. दो दिन हो गए. आप लोग उन्हें समझाते क्यों नहीं?

यह तो गंदी बात है.
संघ के त्योहार गुरु पूर्णिमा पर रोहित वेमुला और डेल्टा मेघवाल को याद करते हुए, जिन्हें उनके गुरु ही खा गए.

साल की शुरुआत में रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर का आंदोलन, फिर राजस्थान में डेल्टा मेघवाल की हत्या की देश भर में जबर्दस्त प्रतिक्रिया और अब गुजरात में दलितों का शानदार प्रतिरोध….

 

मेरे लिए इसके तीन मायने हैं.

1. दलितों ने जुल्म सहने से मना कर दिया है .
2. दलितों को समाज के तमाम न्यायप्रिय तबकों का समर्थन मिल रहा है. खासकर दलित और मुसलमानों की एकता के मजबूत सूत्र उभरे हैं .
3. चैनल और अखबार इनके आंदोलन की अनदेखी करते थे. इसलिए फेसबुक, WhatsApp, और इंटरनेट पर इन्होंने अपना ताकतवर मीडिया बना लिया है. ये आंदोलन किसी चैनल और अखबार के मोहताज नहीं हैं.

जब तक नागपुर से आवाज न आए, तब तक मैं किसी दलित-बहुजन आंदोलन को राष्ट्रीय नहीं मान पाता…. नागपुरवालों, गुजरात के साहसी लोगों का स्वागत नहीं करोगे?
पहली तस्वीर नागपुर की. दूसरे में गुजरात.
ये लो एक और.
तुम्हारी अम्मा, तुम करो अंतिम संस्कार!
गुजरात के सरकारी दफ्तर में गोमाताओं की लाश पहुंचाई जा रही है.

 
 
 
 
 
 

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