उमा भारती के बाद अब विनय कटियार ने भी अपनाया बगावती रुख

कभी राम मंदिर आंदोलन के अगुवा नेताओं में शुमार रहे भाजपा नेता विनय कटियार भी अब बगावती रुख अपनाते दिख रहे हैं। राम मंदिर के सहारे केंद्र में पहली बार सत्ता में आई, और देशभर में विस्तार करने वाली भाजपा अब इस कार्यकाल में मंदिर की चर्चा तक नहीं करती, और मंदिर आंदोलन से जुड़े नेता भी किनारे पड़े हैं। ऐसे में विनय कटियार ने अयोध्या में रामायण संग्रहालय बनाने के प्रस्ताव को लॉलीपॉप बताया है और कहा है कि राम मंदिर से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।

Vinay katiyar

मंगलवार को केंद्रीय संस्कृति मंत्री ने रामायण संग्रहालय के सिलसिले में अयोध्या का दौरा किया, लेकिन सांसद विनय कटियार कहते हैं कि इस सबसे कुछ नहीं होगा और राम मंदिर के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि वे जब भी अयोध्या जाते हैं, तो संत हमेशा यही पूछते हैं कि मंदिर कब बनेगा, लेकिन उनके पास कोई जवाब नहीं होता।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में किसी भी तरह से जीत पाने के लिए लालायित भाजपा को मंदिर आंदोलन से जुड़े नेताओं के इन तेवरों से दिक्कत हो सकती है। इसके पहले उमा भारती भी ग्वालियर में ओबीसी आरक्षण को सभी राज्यों में बढ़ाकर 27 प्रतिशत तक करने की माँग उठा चुकी हैं, जो कि पार्टी की आम राय के खिलाफ है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी आरक्षण के ही खिलाफ हैं, और आर्थिक आधार पर आरक्षण का पक्ष लेते हैं।

उमा भारती ओबीसी के लोधी समाज से हैं, और विनय कटियार भी ओबीसी की कुर्मी जाति से हैं। दोनों ही जातियाँ उत्तर प्रदेश में अच्छी और प्रभावी संख्या में हैं, लेकिन वर्तमान में दोनों ही भाजपा में उपेक्षित हैं। उमा भारती को तो गंगा सफाई मंत्रालय दे भी दिया गया है, लेकिन विनय कटियार की पूरी तरह से अनदेखी की जा रही है।

विनय कटियार को तो भाजपा ने एक बार सोनिया गांधी के भी खिलाफ चुनाव लड़ने भेज दिया था, लेकिन वादे के विपरीत पहले से तय हार के बाद भी उनका राजनीतिक पुनर्वास नहीं किया गया। फिलहाल वे राज्यसभा के सांसद मात्र हैं और पार्टी में उनकी कोई पूछ नहीं है।

ऐसे में लगता है कि भाजपा में मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे ओबीसी के नेता अपनी अनदेखी को सहन करने को तैयार नहीं है। भाजपा दलितों को और बसपा से आए नेताओं को तो हाथोंहाथ ले रही है, लेकिन अपने पुराने हार्डकोर नेताओं को हैसियत देने के लिए तैयार नहीं है। विधानसभा चुनावों तक अगर इन नेताओं की नाराजगी बनी रही, तो भाजपा की सारी कोशिशें नाकाम हो सकती है।

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