उरी हमला – सोच समझ कर ठोस कदम उठाने का वक्त

अफसोस क‌ि सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों को एनएसए ने लूप से बाहर रखा है।  प्रधानमंत्री इस बात की अहमयित समझें क‌ि राष्ट्रीय सुरक्षा प‌र‌िषद में एक्सटर्नल स‌िक्यूरिटी के सलाहकार का होना बेहद जरूरी है। अगर वह स‌िर्फ मिस्टर डोभाल की सलाह तक ही खुद को सीम‌ित रखेंगे तो राष्ट्रीय सुरक्षा अपर्याप्त और गैर असरदार ही रहेगी।

उरी कैंप पर १८ तारीख के हमले में पाकिस्तान प्रशक्ष‌ित आतंक‌ियों ने हमारे १७ जवानों को मार द‌िया और ३० से ज्यादा को घायल कर द‌ि या। हमलावर चार थे। इन हमलावरों ने मीड‌िया का पर्याप्त ध्यान खींचा है और वह इन्हें आतंकी बता रहा है। जबक‌ि हमारे राजनेताओं ने ‌इस हमले को कायरना करा द‌िया है। यहां इस हमले के स‌िलस‌िले में कुछ मुद्दों पर व‌िचार करना जरूर है।

पहली बात तो यह क‌ि ऐसे मुश्क‌िल इलाकों में ड्यूटी को अंजाम देने वाले सैन‌िक हमेशा एक अनजान हमले से मुकाब‌िल रहते हैं। उन्हें यह पता नहीं होता क‌ि  हमलावर कौन होंगे, क‌िधर से आएंगे , उनके हमले का तरीका और वक्त क्या होगा। जाह‌िर है ऐसे हमलों का सामना करने या ऐसी ड्यूटी न‌िभाने के ल‌िए बेहद दृढ़ता  और साहस की जरूरत होती है। लेक‌िन इसके  ल‌िए ट्रेन‌िंग और जमीनी नेतृत्व की भी जरूरत पड़ती है। और सबसे अहम तो यह है कि ऐसे हर जवान के मन में यह भरोसा रहना चाह‌िए क‌ि अगर वह इस तरह की लड़ाई में मारा जाए या स्थायी तौर पर अपाहिज हो जाए तो देश उसके प‌र‌िवार या उसका पूरा ख्याल रखेगा।

इसमें कोई संदेह नहीं क‌ि इस तरह के हमलों का सामना करने के लिए हमारे सैन‌िक पूरी तरह प्रश‌िक्ष‌ित हैं ( हालांक‌ि उन्हें और अच्छी तरह ट्रेंड क‌िया जा सकता है)। लेकिन देश की ओर से उनकी पूरी तरह देखभाल के भरोसे में कमी है। हमारे देश के नेता जवानों को यह भरोसा देने में नाकाम रहे हैं। राजनीत‌िक नेतृत्व जोख‌िम भरी पर‌ि‌स्थ‌ित‌ियों और क ठ‌िनाइयों से जूझते हुए काम कर रहे जवानों को यह भरोसा नहीं द‌िला पाए हैं क‌ि उन्हें इस सेवा के बदले दिया जाने वाला हक मिलेगा। उन्हें ब्यूरोक्रेट्स (जानबूझ कर) लगातार गुमराह कर रहे हैं। ये वो लोग हैं जो एयरकंडीशंड दफ्तरों और घरों में रहते हैं और जिन्होंने कभी पैदल चल कर एक व्यस्त सड़क पार करने से ज्यादा कोई जोख‌िम नहीं ल‌िया होगा।

दूसरी अहम बात यह है क‌ि क्या उरी के हमलावरों को आतंकवादी कहा जा सकता है। मेरी समझ में उन्हें आतंकी कहना सही नहीं है। वे हथ‌ि यारबंद लड़ाके थे। उन्हें आतंकवादी कहने का मतलब तो यह होगा क‌ि उन्होंने हमारी आर्मी के जवान को आतंक‌ित कर द‌िया। ऐसा तो हुआ नहीं है। हमारे जांबाज जवानों को कौन आतंक‌ित कर सकता है।

बहरहाल, जब भी ऐसे हमले होते हैं तो हमेशा पहल आतंक‌ियों की ओर से होती है। खास कर आत्मघाती हमलावरों की ओर से। दूसरी ओर से स‌िर्फ इसका जवाब द‌िया जा सकता है या इन्हें रोका जा सकता है। इसकी तैयार‌ियों के तौर पर सतकर्ता बरती जा सकती है (इंटेल‌िजेंस और सर्व‌िलांस के जर‌िये) । हमलावरों की राह में बाधा खड़ी की जा सकती है। छानबीन की जा सकती है। तुरंत र‌िएक्ट क‌िया जा सकता है। आतंक‌ियों को मारा जा सकता है। जान-माल की क्षत‌ि को कम  क‌िया जा सकता है या उसे काबू क‌िया जा सकता है।

जवानों का घायल होना या मारा जाना इस जोख‌िम का ह‌िस्सा है। और यहीं हमें इस मुद्दे पर व‌िचार करना पड़ता है क‌ि जो जवान मारा जाता है या फ‌िर स्थायी तौर पर अपाह‌िज हो जाता है, उसे उन लोगों की तुलना में पर्याप्त वेतन या भत्ता मिलता है क‌ि नहीं जो सैन‌िक सेवा के दौरान सुर‌क्ष‌ित रहे हैं। उन्हें उन लोगों की तुलना में सम्मानजनक पेंशन या नौकरी म‌ि लती है या नहीं जो ३८ साल की उम्र में र‌िटायरमेंट ले लेते हैं और एक सैन‌िक की इज्जत के साथ जीते हैं। उन्हें सरकारी दफ्तरों में इज्जत म‌िलती है। अपने गांव और शहर में वे इज्जत पाते हैं।

तीसरी बात यह है क‌ि इस हमले को कायरना कहा जा रहा है। लेकिन यह समझना होगा क‌ि इस तरह के छोटे दल में आने वाले हमलावर कभी भी एक बड़ी और ताकतवर फौज का मुकाबला नहीं कर सकते। खुद से बेहतर फौज पर वे इस तरीके और ऐसे समय में हमला करेंगे, ज‌ि सका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। वे हमले करेंगे और ज‌ि तनी जल्दी हो गायब हो जाएंगे। जब हमलावरों को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने की ट्रेन‌िंग दी जाती है और फ‌िदा‌इन बनने के ल‌िए प्रेर‌ित क‌िया जाता है तो मुकाबला मुश्क‌िल हो जाता है। हमलावरों को इस बात से बे फ‌ि क्र होने की ट्रेनिंग दी जाती है वे मर जाएंगे तो क्या होगा। पकड़ ल‌िए जाएंगे तो क्या होगा। ल‌िहाजा ऐसे आतंक‌ियों के साथ डील करना थोड़ा मुश्क‌िल होता है। इसल‌िए इस तरह के हमले को कायराना कहनाजमीनी स्थ‌ित‌ि से अनजान होना है। फौज अगर इस बारे में अनजान हो तो कहा जा सकता है क‌ि उस पर कायराना हमला हुआ। लेकिन जवान कभी दुश्मन को कम करके नहीं आंकते। ऐसे हमलों के ल‌िए वे तैयार रहते हैं।

बहरहाल, हम सीन‌ियर फौज‌ियों  में कुछ ऐसे हॉक भी हैं जो बदला लेने  या सर्ज‌िकल स्ट्राइक की बात कर रहे हैं। ऐसी मांग इसल‌िए हो रही है क‌ि स‌िर्फ चार हमलावरों ने हमारे फौ ज‌ियों को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। लेक‌‌िन यह वक्त आर्मी मुख्यालयों, कैंपों और प्रत‌िष्ठानों की सुरक्षा की समीक्षा और उसे बेहतर बनाने का है। यह देखने का वक्त है क‌ि सुरक्षा कदमों में कोई कमी तो नहीं रह गई थी या फ‌िर इससे जुड़ी प्रोसेस या ड्रील में कोई चूक रह गई हो।  इसके अलावा सर्वोच्च सैन्य, राजनीतिक और राजनय‌िक स्तर पर एक सुन‌ियोज‌ि त और सोची-समझी नीत‌ि के साथ कदम उठाने की जरूरत है। इसमें पाक‌िस्तान की ओर से परमाणु कार्रवाई करने जैसे पहलू को भी ध्यान में रखना होगा। साथ ही चीन की ओर से हमारे ख‌िलाफ मोर्चा खोलने की आशंका को भी शाम‌िल करना होगा।

जिस तरह यह समय दब कर रखने का नहीं है ठीक उसी तरह खोखले राजनीत‌ि क भाषणों का भी नहीं है। । भारत की फौज हमेशा कार्रवाई के ल‌िए तैयार रही है। क्या एक्शन ल‌िया जाए या कैसे और कब ल‌िया जाए इस पर तुरंत व‌ि चार करना होगा। लेक‌िन यह राजनीत‌िक नेतृत्व, ब्यूरोक्रेट्स और सबसे अहम सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों के बीच बारीक और लगातार सलाह-मशव‌िरे का मामला है। अफसोस क‌ि सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों को एनएसए ने लूप से बाहर रखा है।  प्रधानमंत्री इस बात की अहमयित समझें क‌ि राष्ट्रीय सुरक्षा प‌र‌िषद में एक्सटर्नल स‌िक्यूरिटी के सलाहकार का होना बेहद जरूरी है (उनके पूर्ववर्ती ऐसा करने में नाकाम रहे थे।)। देश ह‌ित में बेहद अहम है। अगर वह स‌िर्फ मिस्टर डोभाल की सलाह तक ही खुद को सीम‌ि त रखेंगे राष्ट्रीय सुरक्षा अपर्याप्त और गैर असरदार ही रहेगी।

मेजर जनरल एस जी वोम्बटकेरे आर्मी हेडक्वार्टर एजी ब्रांच के व‌िश‌िष्ट सेवा मेडल प्राप्त अत‌िर‌‌िक्त डीजी और ड‌िस‌िप्लीन और व‌िज‌िलेंस रहे हैं। वह नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट और पीपुल्स यून‌ि यन फॉर स‌िव‌िल ल‌िबर्टीज (पीयूसीएल) के सदस्य भी रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय सेम‌िनारों में उनके ५०० से ज्यादा पेपर पढ़े जा चुके हैं। वह सामर‌िक और विकास से जुड़े मुद्दों में बेहद द‌िलचस्पी रखते हैं।

This article was first published on countercurrents.org

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