जब से अपने बनारस और डेहरी आन सोन के भ्रमण से लौटा हूं, JNU का ताजा प्रकरण दिमाग में लगातार मंडरा रहा है। शायद, इसीलिए वह मेरे सपनों में भी मेरे साथ बना रहता है। बीती रात सपने में Jnu गया। वहांv एक बाबा-नुमा चरित्र मिल गये।
लाइब्रेरी भवन के ठीक सामने। मैं जवाहर बुक स्टाल की तरफ जा रहा था। वह रास्ते में खड़े थे। मुझे इंगित कर कहा, 'तुम यहाँ क्या कर रहे हो?' मैने कहा, 'बाबा, मैं यूं ही आ गया, कैंपस का हालचाल जानने।' उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, 'चलो कुछ समय यहां आकर हाल चाल जान लो, कुछ दिनों बाद यह सब तुम जैसों के लिए निषिद्ध क्षेत्र हो जायेगा!' मैने तनिक नाराजगी जाहिर करते हुए पूछा, 'यह कैसे बाबा? मैं तो यहां का पूर्व छात्र हूं, अपने विश्वविद्यालय में आने से मुझे भला कोई कैसे रोक सकता है?'
बाबा ने फिर मुस्कराते हुए कहा, 'यही तो मैं बता रहा हूँ, अब यह हम जैसों का विश्वविद्यालय बनने वाला है, तुम्हारा वाला खत्म हो जायेगा।' मैने प्रतिवाद करना चाहा, 'बाबा आपकी बातें मुझे समझ में नहीं आ रही हैं। क्या नया कुछ करेंगे यहा?' उन्होंने असल बात अब बताई, 'देखो दो-तीन साल बाद यहां एक देशभक्त किस्म का विश्वविद्यालय बनेगा। नाम कुछ भी हो सकता है: नेशनल विश्वविद्यालय या सावरकर विश्वविद्यालय या केशव विश्वविद्यालय या याज्ञवल्क्य विश्वविद्यालय या पतंजलि विश्वविद्यालय! इसके कुलपति, कुलाधिपति, अनुशासन अधिकारी और प्राचार्य आदि संत, सिद्ध बाबा, विद्वान योगी, श्रेष्ठ शास्त्र ज्ञाता होंगे। हर विषय की पढ़ाई होगी पर बिल्कुल द्रोणाचार्य के आश्रम जैसी पवित्र और शुद्ध प्राचीन पद्धति से।' उत्सुकता वश मैंने पूछा, 'इसका मतलब तब यहां आम घरों के छात्र नहीं पढ़ सकेंगे, सिर्फ कुछ ही वर्ण के लोग प्रवेश पा सकेंगे ?' मेरा यह सवाल सुनते ही बाबा गुस्से में आ गये:'सारी बातें अभी बता दूं तेरे को!' और यह कह कर बाबा अंतरध्यान हो गये। फिर मैं प्रशासनिक ब्लाक में गया तो देखा, वहां मौखिक परीक्षा(वाइवा) में 100 फीसद के प्रस्तावित प्रावधान के खिलाफ चारों तरफ पोस्टर लगे हैं। वीसी के आदेश पर कुछ लोग उन पोस्टरों को वहां से हटा रहे हैं। मेरा सपना टूट गया था। अब सचमुच JNU जाने की तैयारी कर रहा हूं। अपने विश्वविद्यालय का हालचाल जानने।
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