विचाराधीन कैदियों में 55 प्रतिशत दलित, आदिवासी या मुस्लिम

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स की 2015 की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि देशभर की जेल में बंद कैदियों में से 55 फीसदी विचाराधीन कैदी मुस्लिम, दलित या फिर आदिवासी हैं। एनसीआरबी के अनुसार, जेल में बंद दो तिहाई कैदी विचाराधीन हैं और देश की सभी जेलों में कुल मिलाकर यह संख्या 2,82,076 हैं। इन कैदियों में से 80,528 निरक्षर हैं। विचाराधीन कैदियों में 1,19,082 दसवीं क्लास से ऊपर तक पढ़े हैं।

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एनसीआरबी के आँकड़ों के अनुसार जेल में बंद कैदियों में से 70 प्रतिशत ऐसे हैं जिन्होंने दसवीं क्लास भी पास नहीं की है। इस प्रकार दलित, मुस्लिम और आदिवासी की जनसंख्या कुल मिलाकर देश की 39 प्रतिशत होती है। ऐसे में इस तरह के ये आँकड़े चिंता पैदा करते हैं।

2011 की जनगणना के मुताबिक, देश की 14.2 प्रतिशत आबादी मुस्लिम, 16.6 प्रतिशत आबादी दलितों और 8.6 प्रतिशत आबादी आदिवासी लोगों की है। इन्हीं तीनों समुदायों के कैदियों में विचाराधीन कैदी सबसे ज्यादा है, और दोषी पाए गए कम हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर सारे कैदियों का 50.4 प्रतिशत होता है। 

इसी प्रकार मुस्लिमों में दोषियों की संख्या 15.8 प्रतिशत है लेकिन विचाराधीन कैदियों की संख्या 20.9 प्रतिशत है। जो कि काफी ज्यादा है। दलितों में दोषियों की संख्या 20.9 प्रतिशत है और विचाराधीन कैदियों की संख्या 21.6 प्रतिशत है। इसी तरह आदिवासियों में 12.4 प्रतिशत लोग दोषी करार हो चुके हैं जबकि विचाराधीन कैदियों में उनका प्रतिशत 13.7 है।
 
एनसीआरबी के अनुसार, विचाराधीन कैदियों को जमानत के लिए कम से कम तीन महीने की सजा काटनी ही पड़ती है। 65 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिन्होंने 3 महीने से 5 साल जेल में बिता भी दिए हैं।
 
कैदियों का घनत्व सबसे ज्यादा (276.7 प्रतिशत) दादर और नगर हवेली की जेल में हैं। उसके बाद छत्तीसगढ़ (233.9 प्रतिशत) है और तीसरे नंबर पर दिल्ली (226.9 प्रतिशत) की जेल का नंबर आता है। चौथे नंबर पर मेघालय (177.9 प्रतिशत) और पाँचवें पर उत्तर प्रदेश (168.8 प्रतिशत) है। यूपी के बाद मध्यप्रदेश (139.8 प्रतिशत) का नंबर आता है।
 
Source: Indian Express

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