विमर्श : यूपी में खाट और साइकिल की राजनीति

याद है जब #कांग्रेसी खाट,#साइकिल वाले उठा ले गये थे '

Congress Khat

जिस दिन लोग 'कांग्रेसी खाट' को 'साइकिल' पर उठाकर ले गये थे अौर टीवी | प्रिंट मीडिया ने उन्हें 'खाट के लुटेरे' सम्बोधित कर रिपोर्ट किया था;

उसी दिन संकेत मिल गये थे कि राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस, जो देश में 5 दशक से अधिक तक राज की है , एक दिन 'साइकिल' की सीट पर सवार होकर लोकतंत्र की वैतरणी पार करेगी।

"30 साल यूपी बेहाल"

अभियान पर लाखों-करोड़ों रूपये ख़र्च कर उत्तर प्रदेश में 'खाट सभा' के ज़रिए 'छवि निर्माण' करने वाली कांग्रेस की यह दुर्दशा किसी अौर ने नहीं की है। इसके लिए वो ख़ुद ज़िम्मेवार है।

मैं इस पार्टी की ताक़त को बचपन में महसूस किया था।दादा कांग्रेसी थे। लेकिन उनके यहाँ ग़ैर कांग्रेसी भी आते थे। उन तक पकड़ दोनों की थी।

मुझे याद है,गाँव के एक मुस्लिम के एक पत्र लिख कर भेजने मात्र से पुलिस फ़ौरन भाग कर आती थी। आज वहीं पुलिस है,पत्र की बात छोड़िए,उसके आगे सारे अस्त्र फ़ेल होते जा रहे हैं। यह इक़बाल कांग्रेस ने अर्जित की थी। यह 70 का अंतिम दशक था।

शहर से लगायत गाँव तक सांगठनिक ढाँचा ठीक-ठाक था। राजनैतिक चेहरे का नाम काफ़ी था। धीरे-धीरे पार्टी का पकड़ सांगठनिक ढाँचे पर कमज़ोर होती गयी।

नये तरह के नेता आये। जिनका न जनता से सरोकार रहा न जन सेवा से। जैसे-जैसे सरकारी बजट बढ़ता गया। जनाधार कम होने लगी अौर सेवा की भावना ख़त्म होने लगी।

लूट-खसोट ने इसकी जगह ले ली। स्वार्थी। धोखेबाज़ अौर मक्कार टाइप के लोगों का राजनीति में आगमन हुआ।

ये राजनीति को निवेश का साधन बनाए। पीड़ित जनता विकल्प की लगातार तलाश करती रही। लेकिन जितने भी विकल्प मिले,खरे नहीं उतरे।

कांग्रेस न केवल संगठन के स्तर पर फ़ेल हुई, बल्कि लीडरशिप पर भी काम नहीं किया।

1990 के दशक में क्षेत्रीय पार्टियों के उभार ने जनता को अपनी अोर खींचना शुरू किया। कांग्रेस धीरे-धीरे सिमटती चली गयी।

एक राष्ट्रीय पार्टी, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन का बैमाना अपने नाम कर लिया था अौर जनता के भेजे में अपने पराक्रम का इंजेक्शन लगाया हुआ था। बदलते वक़्त के साथ सब बदल गया।

देश पर राज करने वाली पार्टी आज एक क्षेतीय पार्टी से सीटों की भीख माँग रही है।यह गठबंधन कांग्रेस के लिए संजीवनी है।

यह सत्ता का इक़बाल ही कहा जायेगा कि जो राजसत्ता की ताक़त की बदौलत देश-समाज को दशकों तक लूटते रहे, उनकी 'खाट' 'साइकिल' वाले 'लूट' (?) कर गये।

यह तो वहीं बात हुई कि

"पुरूष बलि नहीं होत है, समय होत बलवान।

भीलन लूटी गोपिका, वहीं अर्जुन वहीं बान "

डॉ. रमेश यादव, फ़ेसबुक पर
 

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