Categories
Media Politics

विरोध का शांतिपूर्ण तरीक़ा अपना कर पत्रकार अक्षय मुकुल ने कर दिया मोदी को शर्मसार

फांसीवादी ताकतों के खिलाफ पहले भी आवाजें उठती रही है और विरोध दर्ज होते रहे है बावजूद इसके ये ताकतें अपने दमनकारी कामों से लोकप्रियता का नकली मकड़जाल बुनने की नाकाम कोशिशें जरूर करती है।

कल शाम हुए रामनाथ गोयनका पुरस्कार के आयोजन में बहुत बड़ी ताकत के खिलाफ बहुत छोटा सा प्रयास दुनिया ने देखा। पीएम मोदी बतौर हैसियत इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे और देश के चुनिन्दा पत्रकारों को इस सम्मान से उनके हाथों नवाज़ा जाना था।

पत्रकार अक्षय मुकुल

लेकिन एक अवार्डी ने पीएम मोदी के हाथों सम्मानित होने से खुद को दूर रखा। क्योंकि वह यहां ये संदेश देना चाहते थे कि जनकल्याण और जनसंहार की भावना एक ही फ्रेम में नहीं होने चाहिए। इसलिये टाइम्स ऑफ इंडिया के पत्रकार अक्षय मुकुल से ये अवार्ड नहीं लिया।

 

ये सरेआम प्रधानमंत्री मोदी को शर्मसार कर देने वाला मामला था, लेकिन ढीठ आदमियों पर नश्तरों का प्रभाव नहीं होता हैं। आपको बता दे कि रामनाथ गोयनका पुरस्कार पत्रकारिता के क्षेत्र में दिया जाने वाला देश का बेहद प्रतिष्ठित पुरस्कार है। अक्सर इस पुरस्कार समारोह की अध्यक्षता प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति या देश के मुख्य न्यायाधीश करते हैं। कल शाम मौका था देश के प्रधानमंत्री द्वारा इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने का, लेकिन अक्षय मुकुल ने खुद को पीएम मोदी के साथ देखना अपने नैतिक मूल्यों का पतन समझा।

सीनियर जर्नलिस्ट अक्षय मुकुल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों रामनाथ गोयनका पुरस्कार लेने से मना कर दिया। फिर उनकी जगह हार्पर कॉलिन्स इंडिया के पब्लिशर और प्रधान संपादक कृशन चोपड़ा ने उनकी तरफ से पुरस्कार लिया। इस अवार्ड को पाने का सपना हर पत्रकार देखता है, लेकिन अगर मोदी जैसा आदमी इस अवार्ड को दे तो फिर अपने उसूलों को तरजीह देना ही अक्षय मुकुल ने बेहतर समझा।

जबकि उन्होनें कहा कि ‘मैं रामनाथ गोयनका पुरस्कार पाकर बेहद सम्मानित महसूस कर रहा हूं. मुझे इसकी बेहद खुशी है, लेकिन यह पुरस्कार मैं नरेंद्र मोदी के हाथों नहीं ले सकता। इसलिए मैंने किसी अन्य को इसे ग्रहण करने के लिए भेजा है।’
आज जब देश के कई पत्रकार पीएम मोदी के साथ सेल्फी खिंचवाकर पागल हुए जा रहे है तब ऐसे में किसी अक्षय मुकुल का होना बताता है कि लोकतत्रं की आंच अभी गरम है।

(Views expressed here are the author’s own. Sabrangindia doesn’t endorse them)

Courtesy: Janta ka Reporter

Exit mobile version