Categories
Communal Organisations Communalism Education Freedom Politics Rule of Law

विश्वविद्यालयों में आपातकाल है! महाश्वेता बैन हैं

तो इसका मतलब यह हुआ कि लेखिका महाश्वेता देवी की लिखी रचनाएं भी संघियों-भाजपाइयों की नजर में देशद्रोह है? महज उनके लिखे एक नाटक 'द्रौपदी' का मंचन हुआ महेंद्रगढ़ स्थित हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में। और अब उसके आयोजन में सक्रिय भूमिका निभाने वाली टीचर को कठघरे में खड़ा कर दिया गया…।

Hindutva

मौजूदा संविधान अभी लागू है, लेकिन भाजपा के लिए अब उसके कोई मायने नहीं हैं। वह बोलने की तो छोड़ दीजिए, सोचने की आजादी तक को छीन लेने के इंतजाम में लगी है।

उस नाटक में सेना से संबंधित दृश्य 'द्रौपदी' के मुताबिक ही थे, लेकिन उसके आयोजन में सक्रिय रही शिक्षक स्नेहसता को अगले दिन संघियों के मेंढ़क संगठन एबीवीपी और भगवा दिमाग वाले हिंसक ढोंगियों के विरोध के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने अगर तंग करना शुरू कर दिया, तो इससे यह समझना चाहिए कि अब किसी भी तरह के आजाद 'विचार' के लिए भाजपा के राज में क्या जगह है…!

आरएसएस-भाजपा के ब्राह्मण-दर्शन में तो वैसे ही स्त्री की हैसियत गुलाम से ज्यादा की नहीं है। लेकिन 'द्रौपदी' नाटक के बहाने अगर कोई सवाल इस मर्द और पंडावादी व्यवस्था पर उठा तो उस नाटक की परिकल्पना करने वालों को ही तबाह कर दो, ताकि आगे कोई भी सोचने से डरे।

यही आरएसएस-भाजपा का सामाजिक दर्शन है, स्त्रियों और दलित-वंचित जातियों को इस पंडावादी समाज व्यवस्था का गुलाम बना कर रखना… और अगर कहीं से भी बगावत की जमीन बने तो उस पर तेजाब बरसा देना…! तो क्या भाजपा-आरएसएस और एबीवीपी जैसे उसके सहयोगी संगठनों से किसी भी होशमंद इंसान को डरना चाहिए? हां, क्योंकि मनुष्य की शक्ल में जो अविकसित दिमाग के गिरोह और झुंड होते हैं, उन्हें सिर्फ अपनी सत्ता प्यारी होती है और उनके लिए सभ्य और संवेदनशील इंसान चबा के खा जाने लायक चारा होते हैं…!

Exit mobile version