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विश्वविद्यालयों में नहीं थम रहा जातिगत भेदभावः एक साल में 142 मामले दर्ज

बेंगलुरू। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद विश्वविद्यालयों में जातिगत भेदभाव पर गुस्सा फूट पड़ा। जातिगत भेदभाव की गूंज अब सत्ता के गलियारों तक पहुंच चुकी है। 17 जनवरी 2016 को हैदराबाद विश्वविद्यालय प्रशासन के भेदभाव की वजह से दलित छात्र रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली थी। रोहित वेमुला जातिगत भेदभाव के अकेले शिकार नहीं हुए, शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव आज भी जारी है। 

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टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षण सत्र 2015-16 के दौरान विश्वविद्यालयों में दलित छात्रों के साथ जातिगत भेदभाव के तामाम मामले पूरे देश दर्ज किए गए। देश के 11 राज्यों के 19 विश्वविद्यालयों में जातिगत भेदभाव के 142 मामले आए। इन जाति आधारित भेदभाव के मामलों में रोहित वेमुला का मामला जातिगत भेदभाव के तहत नहीं माना गया। जिससे पता चलता है दलित छात्रों के साथ अनेकों जातिगत भेदभाव के मामलों को अधिकारी तरजीह नहीं देते। 
 
हैदराबाद विश्वविद्यालय के अंबेडकर स्टूडेंट यूनियन के सह-संयोजक मुन्ना सानाकी के मुताबिक, "2015-16 के शिक्षण सत्र में जातिगत भेदभाव के 142 मामले दर्ज किए गए, इनमें से 102 जातिगत भेदभाव के मामले अनुसूचित जाति जबकि 40 जातिगत भेदभाव के मामले अनसूचित जनजाति के छात्रों के खिलाफ दर्ज हुए, जिनमें से 114 मामलों को निबटाया जा चुका है।" वहीं रोहित वेमुला मामले को हैदराबाद विश्वविद्यालय ने दलित छात्र मानने से इंकार कर दिया था। इस तरह से हैदराबाद यूनिवर्सिटी में कोई जातिगत भेदभाव का मामला नहीं हुआ। जबकि हैदराबाद विश्वविद्यालय में 5 छात्रों को रोहित की तरह जातिगत भेदभाव को भोगना पड़ा था। ये छात्र अभी भी विश्वविद्यालय में जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ लड़ रहे हैं। इन छात्रों ने जातिगत भेदभाव की कई शिकायतें दर्ज कराई लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ है।" 
 
बेंगलुरू विश्वविद्यालय के छात्र के मुताबिक, "रोहित वेमुला की आत्महत्या के 2 महीने बाद यूजीसी ने सर्कुलर जारी करके कहा शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव को रोका जाए।  विश्वविद्यालयों के अधिकारियों और शिक्षकों से कहा गया विश्वविद्यालय में एससीएसटी छात्रों के सामाजिक मूल को लेकर जातिगत भेदभाव बंद कर देना चाहिए। जातिगत भेदभाव के खिलाफ प्रत्येक विश्वविद्यालय में शिकायत करने के वेबसाइट हो जहां पर एससीएसटी के छात्र संस्थान के अधिकारी और प्रिंसिपल के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकें। इन सबके बावजूद यूनिवर्सिटी कैंपस में जाति आधारित भेदभाव लगातार जारी है। विश्वविद्यालयों में रिसर्च टॉपिक चुनने पर भी बहुत भेदभाव होता है।" कर्नाटक के कर्नाटका वेटरनिटी, एनिमल एंड फिशरीज़ साइंस यूनिवर्सिटी में इस साल जाति आधारित भेदभाव की 8 शिकायतें दर्ज की गईं।
 
मुन्ना सानाकी ने कहा जहां तक विश्वविद्यालयों में शीघ्र शिकायत निवारण तंत्र की जरूरत है। सभी विश्वविद्यालय इस समस्या से जूझ रहे हैं। बेंगलुरू विश्वविद्यालय में 18 साल से शिक्षिका रहीं समाजशास्त्री, लेखिका प्रोफेसर समानता देशमाना ने कहा है कि देश के ज्यादातर विश्वविशविद्यालयों में जातिगत भेदभाव होता है।
 
प्रोफेसर देशमाना ने कहा कि "मैं पूरे विश्वास के साथ कहती हूं कि पूरे देश में कोई भी विश्वविद्यालय दलित छात्रों के साथ भेदभाव की बात से इंकार नहीं कर सकता। इन मामलों की उनके पास कोई सूची नहीं है लेकिन प्रबंधन में कुछ लोग हैं जो इन मामलों की परवाह करते हैं।" 
 
कर्नाटक के स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के महासचिव गुरुराज देसाई के मुताबिक सरकार से अपील की जा रही है कि विश्वविद्यालयों से जातिगत भेदभाव को खत्म किया जाए। विश्वविद्यालय कैंपस में जातिगत भेदभाव की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। यदि विश्वविद्यालय ज्ञान के मंदिर हैं फिर वहां जातिगत भेदभाव क्यों?
 
हम ऐसे देश में रहते हैं जहां जातिगत भेदभाव होता है। हम ऐसा नहीं चाहते थे। लेकिन तथ्यों को नकारा नहीं जा सकता। हमारी भारतीयता से ही पहचान है इसे जल्दी बदला नहीं जा सकता। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का सपना जाति मुक्ति भारत का सपना था। अंबेडकर ने ये बातें अपनी किताब कॉस्ट अनहिलेशन ऑफ इंडिया में लिखी हैं।

Courtesy: National Dastak

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