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यूपी में बीजेपी का नया पैंतरा – वोट खींचने के लिए लगाएगी जॉब मेला

यूपी में बीजेपी, गुजरात में रोजगार मेला लगा कर युवाओं को रोजगार देने के तमाशे की री-साइकिलिंग कर रही है। गुजरात में ऐसे मेलों से रोजगार देने का जो नाटक किया गया, उसकी कलई खुलते देर नहीं लगी। ऐसे मेलों के जरिये मिली नौकरियों में लोगों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल रही है।

 

अगर विपक्ष ने गुजरात मॉडल के मिथक का भांडा नहीं फोड़ा तो नोटबंदी और चुनावों के इस माहौल में नौकरी देने का हौव्वा खड़ा कर भाजपा एक बार हवा अपने रुख में मोड़ सकती है। विपक्ष के लोगों को यह बताना होगा कि कैसे गुजरात रोजगारविहीन विकास का प्रतीक बन गया है।

गुजरात रोजगार मेले का हौव्वा : गुजरात में लोन मेले के जरिये 65,000 लोगों को नौकरियां देने का दावा किया गया है। लेकिन अधिकारियों की सूचना के मुताबिक 23 जिलों में सिर्फ 51,587 लोगों को ही नौकरियां मिली हैं। इनमें से 11,172 यानी 30.4 फीसदी अप्रेंटिस में हैं। यानी सिर्फ 40,415 लोगों को रोजगार मुहैया कराया गया। हालांकि सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक रोहित प्रजापति और तृप्ति शाह को 32,372 लोगों के नाम ही मुहैया कराए गए।

राजनीतिक तौर पर बेहद अहम राज्य उत्तर प्रदेश में मोदी और उनकी टीम ने केंद्र सरकार के रोजगार मेलों के लिए भाजपा के मंत्रियों और विधायकों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।

मंगलवार यानी 29 नवंबर को बीजेपी की संसदीय दल की बैठक के बाद मोदी सरकार ने नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। बैठक के बाद तुरंत बाद केंद्रीय कौशल विकास मंत्री राजीव प्रताप रुडी को तुरंत लखनऊ रवाना किया गया। तुरंत लखनऊ पहुंचने का उनका एक मकसद था। उन्हें यह देखना था कि चुनावी राज्य यूपी में भाजपा के अब तक के सबसे बड़े जॉब प्लेसमेंट अभियान का काम कैसा चल रहा है।

दरअसल यूपी में जॉब मेला चला कर भाजपा गुजरात के ‘कच्छ मेलों’ (रोजगार मेले) की ही नाम बदल कर मार्केटिंग कर रही है। इस तरह के मेलों के जरिये भाजपा ने कम वेतन वाली नौकरियों को कांट्रेक्ट जॉब में बदल दिया है। हालांकि गुजरात में मोदी 2001 से 2014 तक सीएम रहे। लेकिन इस तरह के मेले अपने मकसद में कामयाब साबित नहीं हो सके। इसके बावजूद यूपी में इसी मॉडल पर रोजगार देने का हौवा खड़ा किया जा रहा है। यूपी की चुनावी रणनीति में बीजेपी इस दांव को बखूबी आजमाएगी।

राज्य में इस तरह के 19 मेगा जॉब मेले लगाए जाएंगे और ‘रोजगार मेला’ सीरीज का पहला कैंप लखनऊ में लगेगा। अगले दो महीनों में जब यूपी में चुनावी अभियान चरम पर होंगे तो तब ये रोजगार मेले राज्य के अलग-अलग इलाकों में लगाए जाएंगे।

रुडी ने ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ से बातचीत में यूपी के रोजगार मेलों का मकसद बयां किया। उन्होंने कहा, ‘दरअसल हम युवाओं को नौकरियां दिलाने में मदद कर रहे हैं। भले ही ये युवा प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) के तहत आऩे वाले कार्यक्रमों का हिस्सा हो या न हों।

राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) ने उद्योग संगठनों से संपर्क कर काम के लिए लोगों (मानव संसाधन) की तलाश कर रही कंपनियों से समझौता किया है। एनएसडीसी रोजगार की तलाश कर रहे लोगों और कंपनियों के बीच सेतु का काम कर रहा है। हमने वाराणसी में इस तरह का कार्यक्रम छोटे पैमाने पर शुरू किया था। लेकिन यह इतना सफल साबित हुआ कि पीएम ने हमें इस तरह के और कार्यक्रम आयोजित करने के लिए प्रोत्साहित किया।

भले ही मंत्री ने यह कहा हो कि इस तरह के कार्यक्रम की तैयारी चल रही है लेकिन इसका इस्तेमाल पूरी तरह भाजपा की चुनावी रणनीति में होगा। इसके तहत पूर्वी उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर, लखनऊ, वाराणसी, आजमगढ़, बस्ती, गोंडा, अमेठी और पश्चिम उत्तर प्रदेश में बरेली, मेरठ, गाजियाबाद और नोएडा में इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। 

केंद्रीय मंत्रियों को रोजगार के आकांक्षी युवाओं को जॉब सर्टिफिकेट बांटने के लिए तैनात कर दिया गया है। दिसंबर और जनवरी में पूरे राज्य में 19 जॉब मेले आयोजित किए जाएंगे। यह वह दौर है जब यूपी चुनाव के लिए प्रचार अभियान चरम पर होगा। पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी और अब टेक्सटाइल मंत्री स्मृति ईरानी अमेठी के जॉब मेल में शिरकत कर सकती हैं। अमेठी उनका चुनाव क्षेत्र है। यहां वह लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ मैदान में उतर चुकी हैं। ऐसे ही जॉब मेले में शिरकत करने के लिए वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमन आगरा में होंगी। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान गाजियाबाद, शिक्षा मंत्री प्रकाश जावड़ेकर सहारनपुर और मुख्तार अब्बास नकवी मुरादाबाद में होंगे। इस अभियान में मनोज सिन्हा, राधा मोहन सिंह, थावर चंद गहलोत, एम. वेंकैया नायडू और जे पी नड्डा जैसे केंद्रीय मंत्री भी लगेंगे।

भाजपा के इस कार्यक्रम का मकसद केंद्र के कल्याणकारी कार्यों को राजनीतिक ताकत देना है। उसका मकसद है कि लोगों तक इन कार्यक्रमों के फायदों तक न सिर्फ पहुंचाया जाए, बल्कि इसे प्रदर्शित भी किया जाए। इस लिए इस तरह के जॉब मेलों में न सिर्फ मंत्रियों को बल्कि स्थानीय सांसदों और पार्टी कार्यकर्ताओं को भी रहने को कहा गया है। जैसे लखनऊ रोजगार मेले में पार्टी के एक एमएलसी और राष्ट्रीय सचिव प्रमुख रूप से मौजूद थे। गृह मंत्री फिदेल कास्त्रो के अंतिम संस्कार समारोह में हिस्सा लेने के लिए हवाना गए हैं। लेकिन उनकी अनुपस्थिति के बारे में लोगों को बताया गया।

ऐसे में यह सवाल पैदा होता है कि क्या आने वाले महीनों में भाजपा का यह कदम उसके लिए फायदेमंद साबित होगा। लेकिन यह सब इस बात पर निर्भर करेगा कि भाजपा गुजरात में इस तरह की रणनीति की नाकामी को किस हद तक छिपा पाती है।  

सोमवार और मंगलवार को इस तरह के जॉब मेलों में 10000 युवाओं ने हिस्सा लिया और इनमें से 3340 का  चयन ऑटोमेटिव, एग्रीकल्चर, ब्यूटी एंड वेलनेस, कंस्ट्रक्शन, इलेक्ट्रॉनिक्स, हेल्थकेयर और अन्य सेक्टरों में जॉब के लिए किया गया। जॉब मेलों के दौरान इन लोगों को ऑफर लेटर बांटे गए। रूडी कहते हैं कि आप चाहें तो इसे राजनीतिक मकसद साधना कह सकते हैं लेकिन यह हमारी ओर से तरक्की के लिए किया जाने वाला काम है। हम आगे भी पूरे देश में इस तरह का काम करते रहेंगे। 

 
गुजरात मॉडल के रोजगार मेलों का अनुभव
 
रोहित प्रजापति और दिवंगत तृप्ति शाह ने गुजरात में रोजगार देने के लिए लगाए जाने वाले इस तरह के ‘लोन मेलों’ (रोजगार मेले के तौर पर आयोजित होने वाले) का विस्तृत अध्ययन किया है।

गुजरात सरकार यह दावा करती है कि इस तरह के मेलों ने बड़ी संख्या में नौकरियां पैदा की हैं। लेकिन हमारा मकसद यह पता करना है इस तरह के दावों में कितनी सच्चाई है। गुजरात स्थित स्वतंत्र और मुखर ट्रेड यूनियन ज्योति कर्मचारी मंडल, अमरीश ब्रह्मभट्ट और रोहित प्रजापति ने डॉक्यूमेंटेशन एंड स्टडी सेंटर फॉर एक्शन के सहयोग से गुजरात में रोजगार मुहैया कराने के नाम 2012 में पर चलाए गए साप्ताहिक कार्यक्रम (फरवरी/मार्च 2012) स्वामी विवेकानंद युवा रोजगार सप्ताहों की बारीक छानबीन की। इस संबंध में उन्होंने जो आरटीआई आवेदन दाखिल किए गए उसके एवज में दिए गए गए जवाब में गुजरात सरकार ने बताया कि इन महीनों के दौरान इस तरह के 489 मेले लगाए गए । रोजगार मेलों के जरिये 65,000 युवाओं को रोजगार दिए गए।

12 अप्रैल को लेखक-कार्यकर्ता ने गुजरात सीएमओ और प्रधान सचिव, श्रम  और रोजगार विभाग के पास विस्तृत आरटीआई आवेदन डाले थे। और उनसे 18 बिंदुओं पर विस्तृत जानकारी मांगी थी। लेकिन सीएमओ और श्रम और रोजगार मंत्रालय के प्रधान सचिव के बदले उन्हें हर जिले के रोजगार और प्रशिक्षण विभाग से टुकड़ों-टुकड़ों में सूचनाएं मिलीं।

 लेकिन जिलों के इन केंद्रों के आंकड़ों के बीच कोई तालमेल नहीं था। कुछ केंद्रों ने अपने जवाब में आंकड़े पेश किए । उन्होंने जिले में रोजगार के आंकड़े दिए तो कुछ अन्य कुछ ही सवालों के जवाब में आंकड़े पेश किए। ये जवाब संतोषजनक नहीं थे। कुछ भी जवाब ही नहीं दिए। और इसका कोई संतोषजनक कारण भी नहीं बताया।

लोन मेले के जरिये 65,000 लोगों को नौकरियां देने का दावा किया गया है। लेकिन अधिकारियों की सूचना के मुताबिक 23 जिलों में सिर्फ 51,587 लोगों को ही नौकरियां मिली हैं। इनमें से 11,172 यानी 30.4 फीसदी अप्रेंटिस में हैं। यानी सिर्फ 40,415 लोगों को रोजगार मुहैया कराया गया। सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक रोहित प्रजापति और तृप्ति शाह को 32,372 लोगों के नाम ही मुहैया कराए गए।

तृप्ति शाह और प्रजापति ने यह जानना चाहा था कि युवाओं क्या पद दिए गए। उन्हें कितना वेतन दिया गया और किस सेक्टर में उन्हें नौकरी दी गई। उन्हें रोजगार मेला के तहत जो नौकरी दी गई उसमें उसे श्रम और अन्य संवैधानिक कानूनों के तहत क्या सुविधाएं क्या मिलेंगी।

इन लोगों को कर्मचारियों को मिलने वाली सुविधाओं के बारे में ठीक से जानकारी नहीं दी गई। कहा गया ये सूचनाएं संबंधित कंपनियों या नियोजकों से ही मिलेंगी। जबकि कुछ ने पद, कर्मचारियों के नाम आदि मुहैया कराए। किसी ने वेतन और उन्हें मिलने वाली सुविधाओं का ब्योरा नहीं दिया।
इन सारी जानकारियों के आधार पर जो निष्कर्ष निकले वे इस तरह हैं-

1.  किसी भी कर्मचारी को ‘नियुक्ति पत्र’ नहीं दिया गया था। इसके नाम पर दिया गया कागज किसी भी कानूनी नजरिये से नियुक्ति पत्र नहीं था।

2. रोजगार और प्रशिक्षण विभाग के मुताबिक इन मेलों में 1,87,70000 रुपये खर्च किए गए थे। इनमें मुख्यमंत्री समेत तमाम मंत्रियों की भागीदारी पर हुआ खर्च शामिल नहीं है। रोजगार और प्रशिक्षण मंत्रालय ने कहा कि उसने मंत्रियों की भागीदारी पर खर्च नहीं किया। यह पैसा उनके पास ‘अन्य स्त्रोतों’ से आया। क्या यह काला धन था या वैध धन था। यह मिलीभगत वाले पूंजीवादी व्यवस्था का पैसा था या फिर सरकार की ओर से अलग तरह से आया था।

3. जो जानकारी मिली, उसके आधार पर कह सकते हैं कि ज्यादा से ज्यादा 32 से 40 हजार लोगों को कुछ अनिश्चित ( गैर निर्धारित किस्म के)  काम मिले। 11,000 लोगों को अप्रैंटिसशिप मिली। अहमदाबाद में 4,370 लोगों को भर्ती हुई लेकिन सभी अप्रैंटिस थे।

4. अप्रैंटिस एक्ट 1961 के तहत (इसके तहत कुछ फैक्टरियों में एक निश्चित संख्या में अप्रैंटिसों को बहाल करना होता है) अप्रैंटिसों को श्रम कानून के तहत कोई वैधानिक लाभ नहीं मिलता लेकिन पहले साल 1490, दूसरे साल 1700 और तीसरे साल 1970 रुपये का मासिक स्टाइपेंड मिलता है। जिन मामलों में लोगों को वास्तव में जो नौकरियां भी मिलीं वे भी अस्थायी किस्म की थीं।

5. अप्रैंटिसशिप से जो नौकरियां मिलीं वे प्राइवेट सेक्टर की थीं। ये अस्थायी थीं और कर्मचारियों को काफी कम कौशल हासिल हुआ। इस तरह सरकार निजी कंपनियों के लिए अपने खर्चे पर सस्ते में मजदूर मुहैया करा रही थी। 
 
इस लेख में इस बात का जिक्र नहीं किया गया है कि राज्य की ओर से आंकड़े देने में किस तरह का फर्जीवाड़ा किया गया। यहां यह बताना इसलिए जरूरी है कि रोजगार पा चुके युवाओं के नाम पूछे जाने पर कई सूचियों में एक ही नाम बार-बार लिखे गए थे। जिन लोगों को खुद के प्रयास से नौकरी मिली थी उनके नाम भी मोदी के इस कार्यक्रम की बदौलत मिली नौकरी में शामिल कर लिया गया था।

इन कार्यकर्ता-लेखकों जितने लोगों से बात की, उनमें से कइयों ने बताया कि वे कम वेतन वाले रोजगार थे, जिनमें काम के घंटे बहुत ज्यादा था (कुछ मामलों में ये काम के घंटे 12 थे)। कई नौकरियों में पीएफ की कोई सुविधा नहीं थी और न ही साप्ताहिक अवकाश की।
 
मिली जानकारी के मुताबिक

  1. आणंद जिले में रोजगार और प्रशिक्षण विभाग ने 2464 लोगों को रोजगार दिया । इस जिले की सूची के मुताबिक 621 ( 25.21 फीसदी) ग्रेजुएटों, पोस्ट ग्रेजुएटों, एमए-बीएड, पीजीडीसीए को स्कूल को-ऑर्डिनेटर की जॉब दी गई। उन्हें 4500 से लेकर 5000 तक प्रति माह सैलरी का वादा किया गया। लेकिन हर महीने 3100 से 3500 रुपये ही मिले। यह संवैधानिक तौर पर निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से भी कम है। कुछ लोगों से 11 साल के कांट्रेक्ट से दस्तख्त कराए गए और लेकिन 10 से 11 महीनों में ही निकाल दिया गया। 
  2.  पूरी प्रक्रिया में जो तस्वीर सामने आई उसके मुताबिक मोदी साहब को लोगों को रोजगार देने का वादा छलावा साबित हुआ। उनकी सरकार राज्य के खर्चे पर निजी उद्योगो को सस्ते कर्मचारी उपलब्ध करा रही थी। वह भी धोखे और जबरदस्ती से।

 
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